बोले अलीगढ़: समस्याओं ने ताला उद्योग को चंगुल में जकड़ा
कभी ताले के लिए मशहूर अलीगढ़ अब उद्यमियों की बेबसी के लिए पहचाना जाने लगा है। यहां के उद्योगपति अब उत्पादन कम और समस्याओं से संघर्ष ज़्यादा कर रहे हैं। कभी अघोषित बिजली कटौती, कभी सड़क पर जलभराव, तो कभी प्रशासनिक उत्पीड़न।
बोले अलीगढ़ अभियान के तहत हिन्दुस्तान ने जब इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट एसोसिएशन और विभिन्न फैक्ट्री संचालकों से बात की, तो सामने आया कि अलीगढ़ के उद्योग अपने ही शहर में बेगाने हो चुके हैं। अलीगढ़ के उद्योगपतियों का सबसे बड़ा रोष अघोषित बिजली कटौती को लेकर है। उद्यमियों का कहना है कि बिना किसी सूचना के दिन में कई बार बिजली चली जाती है। जिससे मशीनें रुक जाती हैं और उत्पादन बाधित होता है। उन्होंने बताया कि बिजली कटती है तो सिर्फ लाइट नहीं जाती, हमारा पैसा, समय और ग्राहक का भरोसा सब चला जाता है।
दूसरी बड़ी समस्या आगरा रोड और अन्य औद्योगिक इलाकों में जलभराव की है। बारिश हो या सीवर ओवरफ्लो, इन इलाकों में जलभराव से माल का ट्रांसपोर्ट बाधित हो जाता है। कई बार ऑर्डर कैंसिल कराने पड़ते हैं क्योंकि ट्रक समय पर फैक्ट्री से नहीं निकल पाते।
उद्यमियों की परेशानी यहीं खत्म नहीं होती। नगर निगम द्वारा नियुक्त निजी सफाई कंपनी बिना किसी मानक के यूजर चार्ज वसूल रही है। यह चार्ज किसी से 100 तो किसी से 250 रुपए तक लिया जा रहा है। बिना रसीद, बिना नियमन। ट्रैफिक पुलिस पर भी सवाल खड़े हुए। उद्यमियों का आरोप है कि उनकी फैक्ट्रियों के बाहर खड़ी गाड़ियों पर हजारों रुपए के चालान काट दिए जाते हैं। एक कारोबारी ने कहा, गाड़ी खड़ी कर इनवॉइस निकाल रहे थे, इतने में चालान कट गया। क्या यह व्यापार के अनुकूल माहौल है। जीएसटी, लेबर रजिस्ट्रेशन और बोगस फर्मों पर भी उद्यमियों ने नाराजगी जाहिर की। उनका कहना है कि विभागों की गलतियों का खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ता है। कहा कि हमने टैक्स भरा, फिर भी अगर कोई फर्म बोगस निकले तो जिम्मेदार हम कैसे। अलीगढ़ के उद्योगपति अब सरकारी रवैये से हताश हो चुके हैं। वे किसी राहत या प्रोत्साहन की नहीं, सिर्फ निष्पक्षता और मूलभूत सुविधाओं की मांग कर रहे हैं।
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बिजली के बिना उद्योग का दम घुटता है
-प्रतिदिन 2-3 बार अघोषित बिजली कटौती।
-जनरेटर से उत्पादन महंगा, मुनाफा घटा।
-मशीनों के जलने की घटनाएं बढ़ीं।
-कोई पूर्व सूचना नहीं, न ही मुआवजा नीति।
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जलभराव से माल अटका, टूट रही सप्लाई चेन
-आगरा रोड, क्वार्सी, और नगला मसानी में जलभराव आम।
-ट्रकों को प्रवेश में दिक्कत।
-समय पर डिलीवरी न होने से ऑर्डर रद्द।
-कोई स्थायी जल निकासी योजना नहीं।
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प्राइवेट सफाई कंपनी बनी वसूली एजेंसी
-मनमाने यूजर चार्ज।
-रसीद नहीं, मानक नहीं।
-पैसा न देने पर कूड़ा न उठाने की धमकी।
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ट्रैफिक पुलिस की चालान नीति पर सवाल
-फैक्ट्री के बाहर चालान हजार से 10 हजार तक।
-कोई चेतावनी नहीं, सीधा जुर्माना।
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विभागीय नीति में दोहरा मापदंड
-छोटी-छोटी चूक पर नोटिस।
-अधिकारियों की भूल माफ, उद्यमी की नहीं।
-जीएसटी अपील में 95% नोटिस खारिज, फिर भेजे क्यों जाते हैं।
-ईमानदार व्यापारी को ही नुकसान क्यों।
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बोले अलीगढ़
हमारा संगठन उद्यमियों के साथ है। किसी भी उद्यमी का शोषण बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। सरकारी कार्यालयों में उद्यमियों का हर स्तर पर शोषण किया जा रहा है। रणनीति बना हर विभाग में हल्ला बोल प्रदर्शन करेंगे।
यतेंद्र वार्ष्णेय वाई के, संस्थापक अध्यक्ष, इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट एसोसिएशन
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पहले नोटबंदी, फिर जीएसटी ने कारोबार की कमर तोड़ कर रख दी है। बाजार में कम पूंजी में अब कोई काम ही नहीं है। धातुओं के दाम आसमान पर हैं। लेकिन, हमारा मार्जिन कम होता जा रहा है।
सोमेंद्र वार्ष्णेय
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हमारी फैक्ट्री में दिन में तीन बार काम बंद हो जाता है। क्योंकि बिजली कभी भी काट दी जाती है। बिना सूचना के कटौती से मशीनरी को नुकसान होता है और काम रुकता है। क्या हम उद्योग चलाते हैं या जनरेटर सर्विस।
विपुल
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ट्रैफिक पुलिस चालान काटने के लिए घात लगाए बैठी रहती है। कोई दिशा-निर्देश नहीं, कोई समझाइश नहीं, सीधा चालान। हमने 12 हजार का चालान भुगता। वाहन कोई और चला रहा है, जुर्माना किसी और का कटता है।
राज सक्सेना
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हमने एक पंजीकृत सप्लायर से माल लिया और पूरा जीएसटी भरा। दो साल बाद विभाग कहता है कि फर्म बोगस थी, अब टैक्स हमें दोबारा भरो। यह किस तरह का कानून है जो ईमानदार को ही सजा देता है।
सचिन
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नगर निगम ने प्राइवेट सफाई कंपनी लगा दी है। जो अब हमें यूजर चार्ज के नाम पर 250 रुपये महीना वसूल रही है। कोई रसीद नहीं, कोई मानक नहीं। अगर न दो तो धमकी मिलती है कि कूड़ा नहीं उठेगा।
रोहित वार्ष्णेय
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आगरा रोड पर जलभराव के कारण पिछले हफ्ते हमारा माल तीन दिन लेट पहुंचा। ग्राहक नाराज हुआ और बड़ा ऑर्डर रद्द कर दिया। सवाल ये है कि सड़क और जल निकासी का जिम्मा किसका है।
नरेंद्र
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छोटी-छोटी जीएसटी चूकों पर भारी जुर्माना और नोटिस आते हैं। जबकि हमसे ज्यादा बड़ी गलतियां विभाग खुद करता है। लेकिन वहां कोई कार्रवाई नहीं होती। हमें लगता है हम अपराधी हैं, उद्यमी नहीं।
अंकित वर्मा
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शहर से बाहर जो इंडस्ट्रियल एरिया बनाए जा रहे हैं, वहां न सड़क है, न पानी, न ट्रांसपोर्ट। हम छोटे उद्यमियों के लिए वहां जाना संभव नहीं। शहर के पास छोटे औद्योगिक क्लस्टर बनाएं, तभी विकास होगा।
सुबोध
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हर साल लेबर रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया और जटिल हो रही है। एक कर्मचारी एडवांस लेकर भाग गया। अब हमें नोटिस मिला कि रजिस्ट्रेशन में विसंगति है। ये कैसे उचित है।
कुलदीप यादव
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पिछले महीने दो बार बिजली जाने के कारण मशीन जल गईं। नुकसान लाखों का हुआ। लेकिन बिजली विभाग कोई जिम्मेदारी नहीं लेता। न मुआवजा, न माफी बस बिल भेज देते हैं समय पर।
नितिन वार्ष्णेय
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हमारी फैक्ट्री में काम बंद करना पड़ा क्योंकि रोड पर जलभराव के कारण श्रमिक ही नहीं आ सके। कई घंटे इंतजार किया। लेकिन ट्रैफिक और पानी की समस्या ने सब चौपट कर दिया।
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ट्रैफिक पुलिस की चालान नीति उद्योग विरोधी है। गाड़ी बाहर खड़ी करते हैं तो चालान, अंदर ले जाते हैं तो लेबर से सवाल-जवाब। काम कैसे चलेगा जब हर समय डर बना रहे।
दीपक
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सरकारी अफसर उद्यमियों को अपराधी की तरह देखते हैं। कोई गलती हो जाए तो मानवीय नहीं, कानूनी नजरिए से लिया जाता है। इससे उद्योग चलाना दिन-ब-दिन मुश्किल हो रहा है।
अभय
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हमारा माल जब बाहर जाता है, तो सड़क की हालत इतनी खराब है कि कई बार ट्रक फंस जाते हैं। समय पर डिलीवरी नहीं होती और ग्राहक हमसे नाराज होते हैं।
योगेंद्र शर्मा
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जीएसटी में इनपुट क्रेडिट लेने के बाद भी अगर कोई फर्म बोगस निकल जाए, तो ईमानदार व्यापारी को नोटिस क्यों भेजा जाता है। ये नीति हमें उद्योग करने से रोकती है।
रोमी
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प्राइवेट सफाई कंपनी का व्यवहार बेहद अमानवीय है। हमसे पैसे मांगते हैं और जब पूछो कि नियम क्या है, तो कहते हैं ऊपर से ऑर्डर है। क्या यही शासन की पारदर्शिता है।
विजय सिकरवार
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बिजली विभाग की कोई शिकायत सुनवाई नहीं होती। पोर्टल पर शिकायत करो तो बस रिसीव हो जाती है। लेकिन समाधान नहीं मिलता। आखिर हम जाएं तो कहां जाएं।
प्रदीप शर्मा
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लेबर डिपार्टमेंट का व्यवहार शोषणकारी है। जो लोग कानून का पालन कर रहे हैं, उन्हीं को सबसे ज्यादा परेशान किया जाता है। छापे मारे जाते हैं, धमकी दी जाती है।
प्रमोद
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हमने सरकार के हर नियम का पालन किया। लेकिन फिर भी जब किसी एजेंसी की गलती से नुकसान होता है, तो कोई जिम्मेदारी नहीं लेता। सिर्फ हमसे ही जवाब मांगा जाता है।
योगेश शर्मा
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हर महीने किसी न किसी विभाग की चिट्ठी आ जाती है। कभी फायर, कभी एनवायरनमेंट, कभी लेबर। क्या कोई ऐसा सिस्टम नहीं हो सकता जहां एक ही जगह सब कुछ क्लियर किया जा सके।
स्वतंत्र प्रकाश
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हम रोजाना संकट में जीते हैं बिजली कब जाएगी। सड़क से कब माल फंसेगा, कौन सा विभाग कल नोटिस भेज देगा कुछ तय नहीं। इस हालत में कोई नया उद्योग लगाने की हिम्मत नहीं करता।
अजय कश्यप
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