मवेशियों से परेशान किसानों का मेंथा खेती की ओर बढ़ा रुझान
Amroha News - हसनपुर। छुट्टा पशुओं से फसलों की बर्बादी को लेकर परेशान किसानों का मेंथा की खेती के प्रति मोह लगातार बढ़ता जा रहा है। छह वर्ष के भीतर मेंथा रकबा बढ़क

छुट्टा पशुओं से फसलों की बर्बादी को लेकर परेशान किसानों का मेंथा की खेती के प्रति मोह लगातार बढ़ता जा रहा है। छह वर्ष के भीतर मेंथा रकबा बढ़कर दोगुना हो गया है। रुझान बढ़ने की सबसे अहम वजह इस फसल को पशुओं द्वारा नुकसान न पहुंचाना है। न मचान पर रात भर फसल की रखवाली का झंझट और न खेतों के चारों ओर बाढ लगाने की कोई जरूरत। जिले की सबसे बड़े हसनपुर तहसील क्षेत्र में पिछले आठ वर्ष से छुट्टा पशु बड़ी समस्या बने हैं। झुंड के रूप में घूम रहे पशुओं से किसान परेशान हैं। पशु गेहूं, ईख, मक्का, हरे चारे आदि फसलों को बेहद नुकसान पहुंचाते हैं। किसानों को खेत पर मचान बनाकर फसलों की रखवाली करनी पड़ती है। इसके बावजूद भी नजर बचते ही पशु फसल चट कर जाते हैं। लंबे समय से काश्तकार व किसान संगठन छुट्टा पशु पकड़वाने की मांग अफसरों से कर रहे हैं लेकिन समस्या से निजात मिलती नहीं दिख रही। ऐसे में किसानों को रुझान ऐसी फसलों की ओर बढ़ा है जिन्हें पशु नुकसान नहीं पहुंचाते। इनमें प्रमुख फसल मेंथा है। मेंथा के पौधे को गंध के कारण पशु नहीं खाते। उद्यान वैज्ञानिकों के मुताबिक आठ से दस हजार रुपये प्रति बीघा की लागत वाली इस फसल से अच्छा मुनाफा भी मिलता है। तीन माह में फसल तैयार हो जाती है। सिंचाई के पर्याप्त संसाधनों के चलते अब सिंचाई का कोई झंझट भी नहीं है। फसल से तेल निकासी के लिए भी दूर-दराज की दौड़ नहीं लगानी पड़ती। गांव-गांव मेंथा फसल से तेल निकासी की फैक्ट्री लगी हुई हैं। तेल स्थानीय शहरों के बाजारों में बेचा जा सकता है।
छह वर्ष में दोगुना हुआ रकबा
हसनपुर। उद्यान विभाग के आंकड़ों के मुताबिक मेंथा के प्रति किसानों के रुझान के चलते छह वर्ष के भीतर जिले में रकबा तीन से बढ़कर छह हजार हेक्टेयर हो गया है। अब तहसील क्षेत्र में जिधर भी नजर जाती है, मेंथा की फसल दिखाई दे जाती है। कई लोग तो सहफसली खेती भी कर रहे हैं।
वर्ष 2020 : रकबा 3000 हेक्टेयर
2021: 3400 हेक्टेयर
2022 : 4000
2023 : 4600
2024: 5300
2025: 6000
-ईख, धान, हरा चारा, मक्का व गेहूं आदि फसलों को पशु बेहद नुकसान पहुंचाते हैं। मेंथा ही ऐसी फसल है जिसमें पशुओं द्वारा कोई नुकसान नहीं किया जाता। इससे मुनाफा भी अच्छा मिलता है। इसलिए मेंथा की खेती को तवज्जो दे रहे हैं।
बसंत सिंह, काश्तकार
-पशु फसलों के लिए बड़ी समस्या बने हुए हैं। बार-बार अनुरोध के बाद भी अधिकारी पशुओं को नहीं पकड़वा रहे। ऐसे में मेंथा फसल की बुआई कर तीन-चार महीने के लिए पशुओं से निश्चिंत हो गए हैं।
हरिराम भगत, काश्तकार
-पहले सिंचाई की समस्या थी, इसलिए तमाम लोग मेंथा की खेती से बचते थे। लेकिन अब खेत-खेत नलकूप हो गए हैं। दूसरा है कि क्षेत्र से होकर गुजर रही नहर से भी भूगर्भ जलस्तर में इजाफा हुआ है। इसलिए अब तमाम किसान मेंथा की खेती कर रहे हैं।
चंद्रपाल सिंह, किसान
मेंथा की फसल में गंध होने की वजह से इसे पशु नहीं खाते हैं। हसनपुर क्षेत्र में छुट्टा पशु व नीलगाय खासी तादाद में हैं। फसलों की रखवाली के लिए किसान परेशान हैं। ऐसे में मेंथा की फसल की ओर किसानों को रुझान बढ़ा है।
डा.संतोष कुमार, जिला उद्यान अधिकारी
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