बोले बरेली: खराब ई-पॉश मशीन और सर्वर की समस्या से जूझ रहे कोटेदार
Bareily News - बरेली में कोटेदारों को राशन वितरण में कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। उन्हें 90 रुपए कमीशन मिलता है, जबकि अन्य राज्यों में यह 200 रुपए है। डिजिटल सिस्टम के ठप होने और ठेकेदारों के साथ समस्याओं...

सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत कोटेदार कार्ड धारकों को राशन बांटने की जिम्मेदारी निभाते हैं। गेहूं-चावल, बाजरा और चीनी बांटते हैं। सरकार कोटेदार को एक कुंतल राशन का वितरण करने पर 90 रुपए कमीशन देती है। जबकि दूसरे राज्यों में कमीशन अधिक है। राशन वितरण में गड़बड़ी रोकने के लिए शुरू की गई ऑनलाइन व्यवस्था भी कोटेदारों को तंग कर रही है। डिजिटल सिस्टम धोखा दे रहा है। सर्वर की हालत खराब रहती है। ई-पॉश मशीन और डिजिटल कांटा अक्सर काम नहीं करते। राशन का वितरण अटक जाता है। ई-केवाईसी नहीं हो पा रहीं। प्रशासनिक और राजनीति दवाब भी कोटेदारों पर हावी है। ठेकेदारों के सहायक बदसूलकी करते हैं। पूरा राशन नहीं देना चाहते। बरेली में 1761 कोटेदारों समस्याओं से जूझ रहे हैं। कोटेदारों ने हिन्दुस्तान के साथ अपनी परेशानियां साझा कीं।
बरेली में 766312 राशन कार्ड हैं। राशन कार्ड धारकों को कोटेदार सरकार के मानक के मुताबिक नि:शुल्क खाद्यान्न वितरित करते हैं। रियायती दर पर चीनी भी बांटी जाती है। बरेली में 1761 कोटेदार हैं। गांव-गांव सरकार राशन की दुकानें हैं। अकेले बरेली शहर में 283 कोटेदार हैं। गरीबों को मुफ्त खाद्यान्न वितरित करने वाले कोटेदारों के सामने भी समस्याएं कम नहीं हैं। कोटेदारों को राजनीतिक और प्रशासनिक के साथ-साथ राशन कार्ड धारकों का दवाब झेलना पड़ता है। कोटेदारों को सरकार एक कुंतल खाद्यान्न वितरित करने पर 90 रुपए कमीशन देती है। जिसको कोटेदार नाकाफी बताते हैं। दूसरे राज्यों में एक कुंतल खाद्यान्न के वितरण पर 200 रुपए कमीशन मिलने का दावा कर रहे हैं। कोटेदार वन नेशन वन कमीशन की मांग दोहरा रहे हैं। बरेली के कोटेदार दूसरे राज्यों की तरह 200 रुपए प्रति कुंतल के हिसाब से कमीशन चाहते हैं। ज्यादातर कोटेदारों के सामने परिवार का पालन पोषण करना चुनौती बन गया है। दुकान का खर्च निकालना मुश्किल हो गया है। दुकान का किराया, लेबर का खर्च और मशीनों के मेंटेनेंस ने कोटेदारों की मुसीबत को बढ़ा दिया है।
लड़खड़ाते डिजिटल सिस्टम ने इनकी परेशानी को कम करने की बजाय और बढ़ा दिया है। डिजिटल सिस्टम दिन में अक्सर काम नहीं करता। सर्वर ठप होने की वजह से ई-पॉश मशीन और इलेक्ट्रॉनिक कांटा काम नहीं करता। इसका असर राशन वितरण पर साफ दिखाई देता है। निर्धारित समय में राशन नहीं वितरित हो पाता। सर्वर की समस्या से जूझ रहे कोटेदार लगातार अधिकारियों से शिकायत कर रहे हैं। समाधान नहीं निकल सका। पत्र जरूर यहां से लेकर लखनऊ और दिल्ली तक दौड़ लगा रहे हैं। कोटेदारों को कहना है कि दूसरे राज्यों में कोटदारों को मानदेय भी मिलता है। यहां ऐसी व्यवस्था नहीं है। कोटेदारों का कहना है कि ठेकेदार पूरा राशन नहीं देते। घटतौली करते हैं। बगैर सूचना के अचानक राशन लेकर पहुंचते हैं। ठेकेदारों के सहायक गंदा व्यवहार करते हैं। राशन को धर्मकांटे पर तोल कराने को तैयार नहीं होते। खाद्यान्न की बोरियां भी कम देकर जाते हैं। बारदाने का वजन कम नहीं करते। बोरियों के फटने की वजह से खाद्यान्न कम हो जाता है। कोटेदार कार्डधारकों को अपने कांटे से तोल कर खाद्यान्न देता है। जो राशन कम होता है उसका खामियाजा कोटेदार को उठाना पड़ता है। कोटेदारों के कमीशन में लेटलतीफी होती है। एक महीने से पहले कमीशन नहीं मिलता। जबकि एक सप्ताह के अंदर कमीशन आना चाहिए। कई बार अधिकारियों से शिकायत कर चुके। नतीजा कुछ नहीं निकला। कोटेदार एफएसडीए की सैंपलिंग से भी परेशान हैं। कोटेदारों को कहना है कि खाद्यान्न की सैंपलिंग एफसीआई के गोदाम में होना चाहिए। वहीं से हमारे खाद्यान्न वितरण करने केलिए आता है। एफएसडीए वाले सैंपल लेने के बाद राशन को सील नहीं करते हैं। छह महीने बाद रिपोर्ट आती है। तब तक राशन बंट चुका होता है। अगर नमूना फेल हुआ तो उसका कोई फायदा पब्लिक को नहीं होता। राशन स्कूलों में मिड डे मील के लिए सप्लाई होने वाले खाद्यान्न का नमूना फेल होने पर कार्रवाई कोटेदार को झेलनी पड़ती है। कोटेदारों को कहना है कि ई-केवाईसी कराने की जिम्मेदारी कार्ड धारकों की है। जबकि अधिकारी ई-केवाईसी के लिए कोटेदारों पर दवाब बना रहे हैं।
मिड डे मील के खाद्यान्न बांटने का नहीं मिलता कमीशन
सरकारी प्राथमिक स्कूल और आंगनबाड़ी केंद्रों पर मिड डे मील के लिए कोटेदार खाद्यान्न मुहैया कराते हैं। स्कूल और आंगनबाड़ी केंद्रों को सप्लाई किए जाने वाले राशन का कमीशन काटेदारों को नहीं मिलता।
पूरे-पूरे दिन करते हैं सर्वर के दुरुस्त होने का इंतजार
कोटेदारों का कहना है कि डिजिटल सिस्टम बहुत परेशान कर रहा है। पूरे-पूरे दिन सर्वर ठप रहता है। राशन नहीं बंट पाता। कार्ड धारक नाराज होकर लौटते हैं। हमें उल्टा-सीधा कहते हैं। राशन का वजन करने के रखे गए प्राइवेट व्यक्ति की पूरी मजदूरी देनी पड़ती है।
सरकार नहीं देती वाई-फाई की सुविधा
कोटेदारों को कहना है कि खाद्यान्न का वितरण डिटिजल सिस्टम से होता है। सरकार ने वाई-फाई की सुविधा मुहैया नहीं कराई है। कोटेदारों को अपने खर्च पर वाई-फाई लगानी पड़ती है। वाई-फाई ने कोटेदारों का खर्च बढ़ा दिया है।
शिकायतें:
1. कोटेदारों को खाद्यान्न वितरण पर दूसरे राज्यों की तरह 200 रुपए प्रति कंुतल कमीशन नहीं मिलता
2. दुकान तक राशन की आपूर्ति करने वाले ठेकेदार पूरा खाद्यान्न नहीं देते
3. सार्वजनिक वितरण प्रणाली की दुकानों पर अक्सर नेटवर्क ठप रहता है,
4. सरकारी स्कूल और आंगनबाड़ी केंद्रों पर सप्लाई होने वाली खाद्यान्न पर नहीं मिलता कमीशन
5. एफएसडीए की टीमें खाद्यान्न का सैंपल लेने के बाद नहीं करतीं राशन को सील
6. ई-पॉश मशीन और डिटिजल कांटे के फॉल्ट को दुरुस्त कराने की हर तहसील में व्यवस्था नहीं
सुझाव:
1. वन नेशन वन कमीशन लागू किया जाए, 200 रुपए प्रति कंुतल कमीशन का भुगतान हो
2. खाद्यान्न की आपूर्ति करने वाले ठेकेदार कोटेदारों के सामने तोल कराकर राशन दें
3. नेटवर्क को दुरुस्त कराने के लिए सरकार व्यवस्था करे, सवर्क ठप रहने की समस्या खत्म हो
4. सरकारी स्कूल और आंगनबाड़ी केंद्रों पर खाद्यान्न आपूर्ति पर कमीशन मिलना चाहिए
5. एफएसडीए की टीमों को खाद्यान्न का सैंपल लेने के बाद राशन सील करना चाहिए
6. ई-पॉश मशीन और डिटिजल कांटे के फॉल्ट को ठीक कराने की हर तहसील में हो व्यवस्था
कोटेदारों की सुनिए:
दूसरे राज्यों की तरह हमें भी 200 रुपए प्रति कुंतल कमीशन मिलना चाहिए। वन नेशन वन कमीशन की नीति लागू हो। अक्सर सर्वर ठप रहता है। ई-पॉश और कांटा काम नहीं करता। शासन-प्रशासन को व्यवस्था को दुरुस्त करना चाहिए।- अंशुल अग्रवाल
ठेकेदार के सहायक बहुत बदसलूकी करते हैं। पूरा राशन दुकानों तक नहीं पहुंचाते। तोल में कम निकलने पर खाद्यान्न को पूरा नहीं कराते। ऐसे में कोटेदारों को नुकसान उठाना पड़ता है।- नरेश सागर
ई-केवाईसी लोगों को कोटेदार की दुकान पर आकर करानी चाहिए। कोई भी कार्डधारक बगैर बुलाए नहीं आता। ज्यादातर समय सर्वर काम नहीं करता। ई-केवाईसी नहीं हो पाती। पूरे दिन सर्वर के ठीक होने का इंतजार करना पड़ता है।- ब्रजेश प्रताप सिंह
प्राइमरी स्कूल और आंगनबाड़ी केंद्रों को खाद्यान्न की आपूर्ति कोटेदार की दुकान से होती है। स्कूल और आंगनबाड़ी सेंटरों पर खाद्यान्न की आपूर्ति का कमीशन भी कोटेदारों को मिलना चाहिए।- राजीव अग्रवाल
राशन का वितरण और ई-केवाईसी सब डिजिटल सिस्टम के जरिए होता है। कोटेदारों को सरकार वाई-फाई की सुविधा नहीं देती। वाई-फाई का खर्च खुद उठाना पड़ता है। कोटेदारों को शासन वाई-फाई की सुविधा दे।- अंतरिक्ष साहू
कोटेदारों के यहां खाद्यान्न एफसीआई के गोदामों से आता है। एफएसडीए को सैंपलिंग एफसीआई के गोदामों में करनी चाहिए। जबकि सैंपलिंग कोटेदारों के यहां होती है। नमूना फेल होने पर कोटेदारों को पार्टी बनाया जाता है। जो गलत है- उवेश खान
कोटेदारें को कमीशन बहुत कम है। दूसरे राज्यों में दो गुने से अधिक कमीशन कोटेदारों को मिलता है। सरकार को दूसरे राज्यों की तरह 200 रुपए प्रति कुंतल कमीशन देना चाहिए। कोटेदारों को दुकान के संचालन में काफी खर्चे होते हैं।- मुनीश गौड़
खाद्यान्न वितरण के कमीशन का भुगतान एक सप्ताह करने का प्रावधान है। जबकि कमीशन का भुगतान एक-एक महीने में होता है। कोटेदारों के सामने आर्थिक संकट आ जाता है। कोटेदारों को भी परिवार का पालन पोषण करना होता है।- आरके शुक्ला
सर्वर ठप होने पर अक्सर कुछ राशन कार्ड धारक कोटेदारों से बदसलूकी करते हैं। अधिकारियों को शिकायतें भेजते हैं। कोटेदारों को प्रताड़ित किया जाता है। कोटेदारों की सुरक्षा को लेकर भी अधिकारियों को विचार करना चाहिए।- पूजा
ई-पॉश मशीन और डिजिटल कांटे की खामियों को दूर करने की व्यवस्था सुधरनी चाहिए। मशीनों की मरम्मत के नाम पर कोटेदारों को शोषण होता है। मशीनों को लेकर तहसील सदर बुलाया जाता है। दूसरी तहसीलों में व्यवस्था ही नहीं है।- मुकेश कुमार
आधार अपडेट न होने से ज्यादातर कार्ड धारकों की ई-केवाईसी नहीं हो पा रहीं। प्रशासन को आधार अपडेट करने की व्यवस्था में सुधार करना चाहिए। ई-केवाईसी के लिए कोटेदारों पर दवाब बनाना गलत है।- समीर
हमारी दिक्कतों को स्थानीय लोग मुख्यमंत्री और शासन तक नहीं पहुंचने देते। कोटेदारों की शिकायतों को अधिकारी बगैर सुनवाई के ही खारिज कर देते हैं। यह गलत है। अफसरों को कोटेदारों की दिक्कतों का निस्तारण कराना चाहिए।- देवेश अरोरा
सांसद-विधायक सबका टीए-डीए बढता है। कोटेदारों के कमीशन में वृद्धि करने की चिंता किसी को नहीं है। जबकि लगातार महंगाई बढ़ रही है। कोटेदार भी महंगाई से प्रभावित होते हैं। उनका भी घर परिवार है। - जय कुमार
सभी कोटेदारों की दुकानों पर यूनिटों की समान संख्या होनी चाहिए। ताकि कोटेदारों का कमीशन लगभग समान हो सके। कई कोटेदारों को दुकान के संचालन का खर्च निकालना मुश्किल हो रहा है।- राजेश कुमार
कोटेदारों को ई-केवाईसी करने का कुछ भी भुगतान नहीं होता। जबकि कोटेदार को इंटरनेट और लेबर समेत कई खर्च ई-केवाईसी के लिए करने होते हैं। अधिकारियों को ई-केवाईसी का भुगतान तय करना चाहिए। - प्रीतम लाल
कोटेदारों को ठेकेदारों के सहायक राशन कम देते हैं। कई बार बोरियां गाड़ी में फट जाती है। खाद्यान्न निकल जाता है। उसकी भरपाई नहीं की जाती। बारदाने का बजन कम नहीं किया जाता।- मोहसिन रजा
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