कलेक्ट्रेट के कागजात में हेरफेर के मामले में अज्ञात के विरुद्ध धोखाधड़ी का केस
Deoria News - देवरिया में केंद्रीय विद्यालय की भूमि के अभिलेख में कुटरचना का मामला सामने आया है। डीएम दिव्या मित्तल की सख्ती के बाद पुलिस ने अज्ञात के विरुद्ध केस दर्ज किया है। जांच में कागजात में हेरफेर की पुष्टि...

देवरिया, निज संवाददाता। केंद्रीय विद्यालय की भूमि के अभिलेख में की गई कुटरचना के मामले में सदर कोतवाली पुलिस ने अज्ञात के विरुद्ध केस दर्ज कर लिया। साथ ही मामले की विवेचना शुरू कर दी। कलेक्ट्रेट स्थित अभिलेखागार स्थित अभिलेख में यह हेरफेर की गई है। डीएम द्वारा जांच कमेटी की जांच में पुष्टि होने के बाद डीएम दिव्या मित्तल के सख्त होने के बाद कार्रवाई की गई है। हालांकि तहरीर में आरोपियों के नाम स्पष्ट नहीं किए गए हैं। देवरिया का केंद्रीय विद्यालय आज भी उधार के भवन में संचालित हो रहा है। जबकि 2005 में अमेठी में केंद्रीय विद्यालय के लिए भूमि तो आवंटित कर दिया गया, लेकिन कुछ लोगों ने इस भूमि पर ही अपना स्वामित्व का दावा कर दिया। जिसके चलते भवन का निर्माण नहीं हो पा रहा। मामले का डीएम दिव्या मित्तल ने संज्ञान लिया और जांच कमेटी का गठन किया।
जांच में अभिलेखागार में कागजात में हेरफेर करने की पुष्टि हुई है। कागजात में ओवरराइट पाया गया है। राजस्व अभिलेखापाल राजस्व अभिलेखागार कलेक्ट्रेट संजय कुमार की तहरीर पर कोतवाली पुलिस ने अज्ञात कस्टोडियन अभिरक्षक व अन्य व्यक्तियों के नाम पता अज्ञात के विरुद्ध केस दर्ज किया है।
तहरीर में कहा गया है कि राजस्व अभिलेखागार में अभिरक्षित विभिन्न अभिलेखों में की गई कूटरचना की जांच नामित कमेटी द्वारा की गई है, जिसमें अभिलेखों में कूटरचना की पुष्टि हुई है। यह कूटरचना 21 जून 2018 से 1 मार्च 2025 के बीच की गई है। सीओ सिटी संजय कुमार रेड्डी ने बताया कि इस मामले में केस दर्ज किया गया है। मामले की विवेचना की जा रही है। विवेचना में इस मामले में शामिल कर्मियों व अभिलेख में हेरफेर कराने वाले लोगों का नाम भी प्रकाश में लाया जाएगा।
हर कार्यालय में प्राइवेट लोगों का हस्तक्षेप, चंद रुपये में बदल जा रहा कागजात
जिस कार्यालय में जिलाधिकारी बैठते हों, उस कार्यालय के अभिलेख में चंद रुपये में कर्मचारी अपना इमान बेच दे रहे हैं और कागजात में हेरफेर कर दे रहे हैं। डीएम ने सख्ती दिखाई तो मामला सामने आया, अगर डीएम ने सख्ती नहीं दिखाई होती तो कई वर्षों तक यह मामला न्यायालय की चौखट पर दौड़ता रहता। यहां तो मामला पकड़ गया है, लेकिन विभिन्न तहसीलों में भी यह खेल बड़े पैमाने पर चल रहा है। हर कार्यालय व अधिकारियों ने अपने हिसाब से प्राइवेट कर्मियों को रख लिया है। भले ही सरकार ने प्राइवेट कर्मियों पर लगाम लगाने का निर्देश दिया है, लेकिन इस पर रोक नहीं लग पा रहा है। कभी खतौनी में हेरफेर तो कभी अन्य कागजातों में हेरफेर कर दे रहे हैं। चंद रुपये में कभी किसी काश्तार को खतौनी में मृत्यु कर दिया जा रहा है तो कभी खतौनी में रकबा भी कम कर दिया जा रहा है। अगर संबंधित व्यक्ति सक्रिय हुआ तो सुधार कर दिया जा रहा है, लेकिन अगर वह सक्रिय नहीं है तो उसे बाद में न्यायालय की चौखट पर दौड़ लगानी पड़ रही है। बरहज व सलेमपुर तहसील में आए दिन इस तरह के मामले में सामने आ रहे हैं। शिकायत साहब की कुर्सी तक पहुंच रही है तो सुधार तो कर दिया जा रहा है, लेकिन इसमें संलिप्त कर्मियों पर कार्रवाई नहीं हो रही है। आखिर क्यों? कुल मिलाकर कलेक्ट्रेट से लेकर तहसील तक चंद रुपये में कागजात में हेरफेर करने की बात आम हो गई है। अगर काश्तार सक्रिय नहीं रहे तो कागजात में हेरफेर हो जाएगा और उन्हें सुधार कराने के लिए डीएम से लेकर मुख्यमंत्री कार्यालय तक दौड़ लगानी होगी।
जांच रिपोर्ट आई तो नामजद तहरीर क्यों नहीं
कलेक्ट्रेट के अभिलेखागार में हेरफेर किया गया है। मामले में इसकी पुष्टि और कोई नहीं, बल्कि जांच कमेटी ने की है। जांच में अगर 2018 से मार्च 2025 के बीच कागजात में हेरफेर करने की बात सामने आई है तो उतने दिन तैनात रहे जिम्मेदारों पर कार्रवाई के लिए रिपोर्ट क्यों नहीं दी गई? तहरीर में आखिरकार अज्ञात क्यों कर दिया गया? कहीं इसमें शामिल जिम्मेदारों को बचाने की तो चाल नहीं है? फिलहाल जो भी हो, इसका पर्दाफाश तो अब पुलिस की जांच में ही हो सकेगा।
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