Kushinagar Heritage Sites Preservation Archaeological Department s Medical Treatment for Ancient Relics विश्व विरासत दिवस आज: मेडिकल ट्रीटमेंट से कुशीनगर में छठी शताब्दी के विरासत की सुरक्षा, Kushinagar Hindi News - Hindustan
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विश्व विरासत दिवस आज: मेडिकल ट्रीटमेंट से कुशीनगर में छठी शताब्दी के विरासत की सुरक्षा

Kushinagar News - कुशीनगर में पुरातत्व विभाग ने विरासत स्थलों की सुरक्षा के लिए बुद्ध की लेटी प्रतिमा और अन्य खंडहरों की देखभाल के लिए मेडिकल ट्रीटमेंट शुरू किया है। ये स्थल पांचवीं-छठीं सदी के हैं। महापरिनिर्वाण मंदिर...

Newswrap हिन्दुस्तान, कुशीनगरFri, 18 April 2025 09:14 AM
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विश्व विरासत दिवस आज:  मेडिकल ट्रीटमेंट से कुशीनगर में छठी शताब्दी के विरासत की सुरक्षा

कुशीनगर। कुशीनगर में विरासत स्थलों की सुरक्षा व संरक्षा के लिए पुरात्व विभाग का प्राचीन धरोहरों को मेडिकल ट्रीटमेंट देता है। महानिर्वाण स्थली स्थित बुद्ध की लेटी प्रतिमा व आसपास के खंडहर पांचवी-छठीं सदी के बताये जाते हैं। रामाभार स्तूप व माथा कुंवर मंदिर भी इसी के आसपास के हैं। इन सभी की सुरक्षा व संरक्षा किसी चुनौती से कम नहीं है। लगातार निगरानी व धरोहरों को स्पर्श से बचाने के लिए सुरक्षा उपाय व नियमित सफाई के जरिए पुरातत्व विभाग ने कुशीनगर मौजूद तीनों विरासत स्थलों को करीने से सहेज रखा है। पूरे विश्व को मैत्री करुणा का संदेश देने वाले भगवान बुद्ध की महापरिनिर्वाण स्थली कुशीनगर है। यहां बुद्ध से जुड़ी तीन स्मारक व विरासत स्थलों की सुरक्षा व संरक्षा भारत सरकार के पुरातत्व विभाग के अधीन है। मुख्य महापरिनिर्वाण मंदिर में बुद्ध की छह फिट से अधिक लंबी लेटी प्रतिमा विराजमान है। यह प्रतिमा पांचवीं छठी शताब्दी में बलुई मिट्टी से बनायी गयी होगी, ऐसा पुरातत्व विभाग मानता है।

इसकी खुदाई अंग्रेज़ अधिकारी कार्लाइल ने पंडित हीरानंद शास्त्री के सहयोग से 1876 में करायी थी तब यह प्रतिमा मिली थी। इसी खुदाई के दौरान माथाकुंवर मंदिर व रामाभर स्तूप के अलावे धातु वितरण स्थल को भी ढूंढा गया था। धातु वितरण स्थल को सिर्फ चिन्हित कर छोड़ दिया गया है। लेकिन महापरिनिर्वाण मंदिर, माथाकुंवर, रामाभार स्तूप को विकसित कर उसे संरक्षित कर लिया गया है।

आजादी के बाद 1956 में भारत सरकार ने बुद्ध की 2500 वीं शताब्दी के अवसर पर भव्य महापरिनिर्वाण मंदिर का निर्माण कराकर बुद्ध प्रतिमा को संरक्षित किया गया। प्रतिमा का क्षरण न हो इसके लिए पुरातत्व विभाग को समय समय पर इसका मेडिकल ट्रीटमेंट कराना पड़ता है। विशेषज्ञों की टीम विशेष तरह का केमिकल लेकर आती है। मंदिर में लोगों का प्रवेश बंद कर प्रतिमा के चारों से लगाया गया पारदर्शी ग्लास निकाला लाता है। टीम प्रतिमा का निरीक्षण करने के बाद पूरी प्रतिमा पर सावधानी से केमिकल का लेप लगाती है। सूखने के बाद फिर से उसे पारदर्शी ग्लास से ढंक दिया जाता है। प्रतिमा को कोई स्पर्श न कर सके इसके लिए चारों तरफ से ग्लास व स्टील की बैरिकेडिंग करा दी गयी है।

तीनों परिसर में जो खंडहर के अवशेष खुदाई में मिले थे, उसके ईंटों की नियमित सफाई के लिए पुरातत्व विभाग ने कई कर्मचारी लगा रखे हैं। गार्ड इसकी निगरानी रखता है कि खंडहर की ईंटों पर कोई चढ़े न, वरना ये घिसते हैं। धून गर्द आदि के अलावा इन पर घास पूस व झाड़ियां न उगे, इसलिए नियमित साफ सफाई करायी जाती है।

बरसात में डूब जाते हैं खंडहर के अवशेष, बचाना चुनौती

पुरातत्व विभाग के सामने चुनौती तब बन जाती है, जब बरसात के दिनों में लो लैंड स्थित पुरावशेषों का कुछ हिस्सा पानी में डूब जाता है। भरा पानी निकालने के लिए कई तरह के संसाधनों का उपयोग किया जाता है। पुरातत्व विभाग के वरिष्ठ संरक्षण सहायक शादाब खान बताते हैं कि हम अपने धरोहरों को सुरक्षित करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते। स्मारक का कुछ हिस्सा लो लैंड में आने के कारण बरसात में पानी जमा हो जाता है। इसका स्थाई समाधान निकाला जा रहा है।

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