बोले प्रयागराज : नहरों का जाल फिर भी पानी का अकाल
Gangapar News - मांडा क्षेत्र में पेयजल संकट गंभीर है। यहां की आधी ग्राम पंचायतों में गर्मियों में पानी की भारी कमी होती है, जिससे ग्रामीणों को कठिनाई का सामना करना पड़ता है। सरकारी योजनाएं प्रभावी नहीं हो रही हैं,...
मांडा में पेयजल संकट आजादी के लंबे अंतराल और तमाम विकास संबंधी नारों के बावजूद मांडा क्षेत्र के पचास प्रतिशत ग्राम पंचायतों के हजारों ग्रामीणों की पेयजल और सिंचाई की समस्या सरकार और विभागीय अधिकारी दूर नहीं कर पा रहे हैं, जिससे हर साल गर्मी के मौसम में लोगों को काफी परेशानी झेलनी पड़ती है। जनपद के दक्षिणी पहाड़ी भूभाग में बसे मांडा क्षेत्र के पचास प्रतिशत से अधिक ग्राम पंचायतें पहाड़ पर हैं। इन ग्राम पंचायतों और इनसे संबंधित गांवों और मजरों में फरवरी से ही जलस्तर काफी नीचे चला जाता है, जिससे कुंओ और हैंडपंप का पानी मटमैला हो जाता है।
मार्च समाप्त होने के साथ ही कुंओ और हैंडपंप का पानी भी समाप्त हो जाता है, जिससे पेयजल के लोगों की परेशानी शुरु हो जाती है। इन गांवों की सबसे भयावह स्थिति मई और जून महीने में होती है। क्षेत्र के मसौली, महुआरीखुर्द, बदौआ, केड़वर, बेरी, पूरा लक्षन, पचेड़ा, सिरावल, धनावल, गजाधरपुर, मझिगवां, पियरी, नेवढ़िया बयालिस, हाटा, दोहथा, दसवार, गेरुआडीह, मांडा खास पहाड़, सोनबरसा, ऊंचडीह उपरौध, कोसड़ाखुर्द, बनवारीखास व सुरवांदलापुर ग्राम पंचायतों से जुड़े तमाम ऐसे मजरे हैं, जहां के लिए इन ग्राम पंचायतों को गर्मी में पेयजल आपूर्ति के लिए टैंकर की व्यवस्था करनी पड़ती है। जिन गांवों में पेयजल के लिए आम इंसान ही परेशान और बेहाल हो, उन गांवों के पालतू पशुओं और मवेशियों की गर्मी में क्या दशा होती होगी, इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। हर साल गर्मी में सैकड़ों गोवंश व अन्य पालतू पशुओं और मवेशियों की चारे पानी के अभाव में असमय मौत हो जाती है। इन गांवों के संपन्न वर्ग के लोग तो गर्मी शुरू होते ही सपरिवार शहरों में चले जाते हैं, लेकिन आम गरीब इंसान चार बजे भोर से देर शाम तक पेयजल के लिए ही भटकता रहता है। हर तरह के चुनावों में इस क्षेत्र के ग्रामीणों की जन प्रतिनिधियों से मुख्य मांग यही रहती है कि क्षेत्र के पेयजल मुहैया कराया जाये, लेकिन अभी तक फिलहाल ग्रामीणों की पेयजल की आस पूरी न होने से प्यास नहीं बुझ पा रही है। यहां तक कि मांडा खास रानी का तारा, सिकरा, महेवा कला, दिघिया, सुरवांदलापुर, चौकठा आदि तमाम गांवों में करोड़ों के लागत से दसों वर्षों से तैयार पेयजल समूहों का शुभारंभ भी जन प्रतिनिधि व विभागीय अधिकारी नहीं करवा पा रहे हैं। यदि पेयजल समूहों को शुरु करवा दिया जाये, हजारों लोगों की प्यास बुझ सकती है। साल में 11 महीने नहीं रहता नहरों में पानी मांडा क्षेत्र में चारों ओर नहरों का जाल होने के बावजूद किसी भी नहर में साल में अधिकतम एक माह से अधिक पानी नहीं आता। पानी आने पर भी हेड के कुछ गांवों तक ही पानी सीमित रहता है। उपरौध राजबहा से संबंधित पियरी, मझिगवां, सोनबरसा, नेवारी आदि तमाम ऐसे गांव हैं, जहाँ नहरों का पानी नहीं पहुंच पाता। पहाड़ी क्षेत्र के डेढ़ दर्जन ग्राम पंचायतों को उपरौध क्षेत्र कहा जाता है। इसके अलावा बेलन नहर प्रखंड, गुलरिया जलाशय, देवरी बांध आदि से भी तीन दर्जन ग्राम पंचायतों में बनाई गई नहरों में साल के 11 माह तक धूल उड़ती रहती है। मांडा क्षेत्र के नहरों में पानी छोड़े जाने कोई नियम या रोस्टर न होने से हर वर्ग प्रभावित और परेशान रहता है। मांडा क्षेत्र में अमृत सरोवरों को लेकर सरकार ने करोड़ों की धनराशि खर्च की, लेकिन नब्बे प्रतिशत अमृत सरोवर पानी विहीन है। इन अमृत सरोवरों पर सरकार ने करोड़ों ख़र्च किया है, लेकिन इसमें पानी न होने ग्रामीणों को कोई लाभ नहीं मिल पा रहा है। नहरों और तालाबों में यदि पानी उपलब्ध रहता, तो कुओं और हैंडपंप का भी जलस्तर गर्मी के मौसम में इतना नीचे न जाता। फिलहाल सिंचाई के अभाव में हर साल मांडा उपरौध क्षेत्र की सैकड़ों बीघे जमीन बंजर ही रह जाती है। बोले जिम्मेदार सुरवांदलापुर पहाड़ पर पानी की समस्या दूर करने के लिए ब्लॉक की टीम स्थलीय भ्रमण कर पहाड़ी बस्ती में हर हाल में पेयजल उपलब्ध करायेगी। हालांकि अभी तक बस्ती के लोगों ने ब्लॉक में बने पेयजल कंट्रोल रुम में कोई भी शिकायत दर्ज नहीं करायी है। इस संबंध में ग्राम प्रधान सुरवांदलापुर को भी निर्देशित किया जाएगा। -अमित मिश्रा, खंड विकास अधिकारी, मांडा -------------------------- हमारी भी सुनें हर साल गर्मी में पानी की परेशानी हम लोगों को झेलनी पड़ती है। खराब हैंडपंप और पेयजल टंकी ठीक कराने के लिए ब्लॉक के अधिकारियों से प्रार्थना भी किया जाता है, लेकिन कोई भी ध्यान नहीं देता। -मेरु किसान, सुरवांदलापुर पानी की समस्या के चलते समय से भोजन नहीं बन पाता, जिससे अक्सर हम लोगों को बिना भोजन किये ही दैनिक मजदूरी के लिए निकल जाना पड़ता है। -अंगद, सुरवांदलापुर पहाड़ सुबह होते ही पेयजल के लिए हर साल गर्मी में हमें हांथ में डिब्बा और बाल्टी लेकर घर से दूर जाना पड़ता है। पानी के बिना रसोई में चूल्हे नहीं जल पाते। -मालती देवी, सुरवांदलापुर पहाड़ पहाड़ी क्षेत्र की पानी की टंकी साल भर से खराब है, हैंडपंप बेकार हैं, लेकिन हमारी कोई भी सुनता नहीं। ब्लॉक से मिला टैंकर भी हम लोगों के बस्ती तक कभी नहीं आता। -सरस्वती देवी, सुरवांदलापुर पहाड़ गेहूं और चावल तो सरकार दे रही है, लेकिन पानी न मिल पाने से गेहूं और चावल राशन का रुप नहीं ले पाता। पानी के लिए हमें पहाड़ पर काफी परेशानी झेलनी पड़ती है। -रानी, सुरवांदलापुर पहाड़ पानी की समस्या को लेकर अधिकारियों और नेताओं से अक्सर शिकायत की जाती है, लेकिन कोई भी अधिकारी या नेता पहाड़ पर बसे हम लोगों की बस्ती तक पानी उपलब्ध नहीं करा पाई रहा है। -संगीता देवी, सुरवांदलापुर पहाड़ पेयजल जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए भी हम लोगों को हर साल गर्मी में दर दर भटकना पड़ता है। अभी तक हर चुनाव में नेताओं द्वारा हमें केवल आश्वासन मिलता रहा है। -ननकी देवी, सुरवांदलापुर पहाड़ हमारी बस्ती की पेयजल टंकी या खराब हैंडपंप ठीक कराना तो दूर, बस्ती तक पानी का टैंकर भी नहीं आ पा रहा है। यदि नियमित रूप से टैंकर से पेयजल मिल जाये, तो हमारी तमाम समस्या दूर हो सकती है। -रामरती देवी, सुरवांदलापुर पहाड़ इतनी गर्मी में पेयजल के लिए भी हमें पहाड़ दर पहाड़ भटकना पड़ता है, लेकिन ग्राम पंचायत, ब्लॉक ओर अन्य अधिकारी पेयजल तक नहीं उपलब्ध करा पा रहे हैं। -पुष्पा देवी, सुरवांदलापुर पहाड़ पेयजल की समस्या को लेकर हम लोगों ने प्रधान और ब्लॉक में भी फरियाद की, लेकिन हमारी फरियाद का अभी तक कोई भी असर नहीं पड़ा। -कौशिल्या देवी, सुरवांदलापुर पहाड़ सरकारी गेहूं और चावल पकने के लिए पानी चाहिए होता है। पानी का टैंकर लगन बारात वाले घरों में भेजा जाता है और हमारी बस्ती के लोग बिना पानी परेशान होते हैं। -सुहागी देवी, सुरवांदलापुर पहाड़
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