बोले जौनपुर : अभ्यास की सुविधा और समय बढ़ाएं, सपने हम पूरा करेंगे
Jaunpur News - जौनपुर के इंदिरा गांधी स्टेडियम में खेल सुविधाओं की कमी से खिलाड़ियों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। खिलाड़ियों का कहना है कि मैदान में रौशनी, चेंजिंग रूम और खेल उपकरणों की कमी है। इन बेटियों...
जौनपुर के सिद्दीकपुर में इंदिरा गांधी स्टेडियम है, लेकिन नाम में ही सबकुछ नहीं होता। मैदान है, पर रौशनी नहीं। खिलाड़ी हैं, पर संसाधन नहीं। कोच हैं, पर सुविधा नदारद हैं। यहां रोज़ सुबह-शाम पसीना बहाते हैं कबड्डी, वॉलीबॉल, खो-खो, किकबॉक्सिंग और तलवारबाज़ी के खिलाड़ी। इनमें बड़ी संख्या बेटियों की है। गांवों से आईं, सपनों के साथ मैदान में उतरती हैं, लेकिन सुविधाओं की धूल उड़ाते हुए। ओलंपिक तक पहुंचने का सपना है इनका। स्टेडियम में ही ‘हिन्दुस्तान के साथ चर्चा में इन बेटियों ने यहां खेल मैदान की समस्याएं गिनाई। कहा, हम स्कूल से लौटते हैं, जल्दी-जल्दी कपड़े बदलते हैं, खाना भी अधूरा छोड़कर मैदान की ओर दौड़ते हैं। शाम को चार बजे से अभ्यास शुरू होता है। लेकिन सूरज ढलते ही खेल भी ढल जाता है। स्टेडियम में हाईमास्ट लाइट नहीं है। अंधेरा होते ही घर लौटना मजबूरी हो जाती है। क्या सिर्फ रौशनी की कमी की वजह से कोई खिलाड़ी अपने एक घंटे का सपना गंवा दे? अगर लाइट होती तो उस एक घंटे में हम बहुत कुछ सीख सकते थे। वॉलीबॉल की खिलाड़ी प्रिया यादव कहती हैं कि हमारे पास एक ही वॉलीबॉल ग्राउंड है। वहीं लड़के भी अभ्यास करते हैं, वहीं हम भी। टाइम क्लैश हो जाता है। जब हम खेल रहे होते हैं तो वहीं लड़कों की टीम भी आ जाती है। एक ही ग्राउंड, एक ही वक्त, तो अभ्यास में दिक्कत तो होगी ही। अगर एक और ग्राउंड बना दिया जाए तो लड़के और लड़कियां दोनों बेहतर तरीके से अभ्यास कर सकेंगे।
अभ्यास के लिए चाहिए स्पार्टन की बॉल
आया चौहान का दर्द थोड़ा अलग है लेकिन जुड़ा हुआ है। कहती हैं, हम मैदान में आते हैं तो सबसे पहले अपने शरीर को वॉर्मअप करना होता है। लेकिन यहां न हैडल है, न स्पीकिका, न थाराबैंड, न कोन। कुछ सामान है भी तो उतना नहीं कि हर खिलाड़ी को बराबरी से मिल जाए। एक्सरसाइज़ का आधा वक्त इंतज़ार में कट जाता है। हम रनिंग करके शरीर को गर्म करते हैं लेकिन इससे हर बार काम नहीं चलता। जो बॉल हमें दी जाती है, वह दोयम दर्जे की होती है। जबकि जब हम राज्य या राष्ट्रीय स्तर पर खेलने जाते हैं तो वहां स्पार्टन की बॉल होती है। यहां भी वही बॉल मिल जाए तो हमारी तैयारी का स्तर बढ़ जाएगा।
कूड़े के चलते पंचर हो जाती है बॉल
नव्या चौहान कहती हैं कि ग्राउंड के चारों तरफ कूड़ा-करकट फैला रहता है। बॉल उधर जाती है तो पंचर हो जाती है। बॉल से ज़्यादा डर हमें कांच और लोहे के टुकड़ों से लगता है। कोई अगर दौड़ते वक्त गिर गया तो सीधे चोट लगती है। यहां पीने के पानी की भी कोई बेहतर इंतजाम नहीं। एक हैंडपंप है, लेकिन उसका पानी इतना खराब है कि पीने का मन नहीं करता। वाटर कूलर की ज़रूरत है।
स्टेडियम है पर चेंजिंग रूम नहीं
सपना यादव कबड्डी की खिलाड़ी हैं। कहती हैं, बारिश होती है तो मैदान कीचड़ में बदल जाता है। हमारे पास कोई इनडोर सुविधा नहीं है। और तो और, चेंजिंग रूम तक नहीं है। हम कपड़े भी वहीं कोने में बदलते हैं। मैदान में जो बाथरूम बना है उसमें सीमेंट भरा हुआ है। लड़कियों के लिए ऑफिस के अंदर जो वॉशरूम है, वहां इतनी गंदगी है कि इस्तेमाल करने का मन नहीं करता। शालू यादव, स्नेहा गुप्ता, खुशी पाल, स्मिता गुप्ता, प्रिया मौर्य, अमृता यादव और ज्योति सिंह की बातें भी कमोबेश यही हैं। सभी ने रौशनी, पानी और चेंजिंग रूम की समस्या बताई। कहती हैं, अगर लाइट की व्यवस्था हो जाए तो हम कम से कम एक घंटा और अभ्यास कर सकती हैं। कबड्डी अब मैट पर खेली जाती है। यहां भी अगर मैट की व्यवस्था हो जाए तो हम राष्ट्रीय स्तर की तैयारी कर सकेंगी।
बारिश में नहीं कर पाते अभ्यास
किकबॉक्सिंग की खिलाड़ी अक्षरा विश्वकर्मा और अदिति विश्वकर्मा की समस्याएं तो और भी बुनियादी हैं। कहती हैं कि हम खुले मैदान में अभ्यास करते हैं। बारिश होती है तो पूरा ग्राउंड खराब हो जाता है। हमारे पास इनडोर स्टेडियम नहीं है। पंचिंग बैग का पोल टूटा हुआ है, किसी तरह उसे पकड़कर अभ्यास करती हैं। न हैमर है, न मेडिसिन बॉल, न कोई और सामान। अदिति बताती हैं कि ग्लव्स तक हमें खुद चंदा करके खरीदना पड़ता है। एक ग्लव्स दो हज़ार रुपये का आता है। हममें से कई लड़कियों के घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। लेकिन फिर भी किसी तरह पैसे जुटाकर सामान खरीदती हैं। हम राज्य स्तर पर गोल्ड मेडल लाते हैं, फिर भी कोई सुविधा नहीं मिलती।
देश का नाम रौशन करेंगी बेटियां
इस स्टेडियम से अब तक कई खिलाड़ी राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर खेल चुके हैं। लेकिन मैदान की हालत वैसी की वैसी है। खिलाड़ियों के मुताबिक, हम मैदान को खुद खेलने लायक बनाते हैं। खुद साफ-सफाई करते हैं। कोई पूछने वाला नहीं है। खेल विभाग के मंत्री गिरीश यादव इसी शहर के हैं। हमें उम्मीद है कि हमारी बात उन तक जरूर पहुंचेगी। सुबह 5:30 से 8:30 और शाम 4 बजे से 7 बजे तक ये खिलाड़ी मैदान में पसीना बहाते हैं। ज्यादातर गांवों से आईं बेटियां हैं, जो साइकिल या पैदल चलकर स्टेडियम तक पहुंचती हैं। इन बेटियों की आंखों में सपने हैं, कोई ओलंपिक में जाना चाहती है, कोई ऑल इंडिया टीम का हिस्सा बनना चाहती है। लेकिन सवाल ये है कि क्या ये सपने सिर्फ मैदान पर पसीना बहाने से पूरे हो जाएंगे? या फिर सिस्टम की कुछ ज़िम्मेदारियों को भी निभाना होगा? अगर इन बेटियों की मांगें पूरी कर दी जाएं तो ये लड़कियां ओलंपिक में देश का नाम रोशन कर सकतीं हैं।
हम देश के लिए खेलने निकली हैं
नव्या चौहान, अक्षरा विश्वकर्मा और स्मिता गुप्ता ने कहा कि हम जब मैदान में आते हैं तो सिर्फ दौड़ना, कूदना या पंच मारना ही मकसद नहीं होता। ये अभ्यास हमारे भीतर एक आत्मविश्वास गढ़ता है, जो घर, समाज और हर चुनौती के सामने खड़ा होने की ताकत देता है। कई बार हमें खुद से भी लड़ना पड़ता है। जब थकान हो, जब साधन न हों, जब कोई पूछे कि खेलकर क्या मिलेगा? मगर हर सुबह जब सूरज की किरणों में हमारी परछाई दौड़ती है, तो हम अपने सपनों को पास आता महसूस करती हैं। हम चाहती हैं कि हमारी छोटी-छोटी लड़ाइयों को कोई सुने, कोई समझे, ताकि आने वाली पीढ़ियों को ये रास्ता थोड़ा आसान मिले। हम देश के लिए खेलने निकली हैं, सिर्फ अपने लिए नहीं।
सुझाव :
स्टेडियम में हाईमास्ट लाइट लगवाई जाए ताकि खिलाड़ी अंधेरा होने के बाद भी अभ्यास जारी रख सकें और समय की बाध्यता न रहे।
लड़कियों और लड़कों के लिए अलग-अलग अभ्यास ग्राउंड बनवाया जाए ताकि दोनों को समय और स्थान की पूरी सुविधा मिल सके।
खिलाड़ियों को पर्याप्त और आधुनिक फिटनेस उपकरण जैसे थाराबैंड, कोन, स्पीकिका और मेडिसिन बॉल उपलब्ध कराए जाएं ताकि प्रशिक्षण प्रभावी हो।
लड़कियों के लिए स्वच्छ, सुरक्षित चेंजिंग रूम और टॉयलेट की व्यवस्था की जाए, जिससे उन्हें सुविधा और गरिमा के साथ खेलने का माहौल मिले।
हर खेल के लिए गुणवत्ता पूर्ण सामग्री जैसे स्पार्टन बॉल, पंचिंग बैग मुहैया कराई जाए ताकि खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर की तैयारी कर सकें।
शिकायतें :
स्टेडियम में अंधेरा होते ही अभ्यास बंद करना पड़ता है, क्योंकि हाईमास्ट लाइट नहीं है और रौशनी की कोई वैकल्पिक व्यवस्था भी नहीं।
लड़कियों और लड़कों का अभ्यास एक ही ग्राउंड पर होता है, जिससे टकराव और समय की दिक्कतें आती हैं और ध्यान भंग होता है।
फिटनेस प्रशिक्षण के लिए ज़रूरी संसाधनों की कमी है। जैसे थाराबैंड, मेडिसिन बॉल, हैडल ने होने से सही ढंग से वॉर्मअप नहीं हो पाता।
स्टेडियम में चेंजिंग रूम और साफ़-सुथरा टॉयलेट नहीं है, जिससे लड़कियों को असुविधाओं का सामना करना पड़ता है।
प्रशिक्षण के लिए दी जाने वाली बॉल और अन्य सामान खराब गुणवत्ता के होते हैं, जिससे टूर्नामेंट स्तर की तैयारी करना मुश्किल होता है।
बोली बेटियां:
हम शाम को अभ्यास के लिए आती हैं लेकिन लाइट नहीं होने से अंधेरे में लौटना पड़ता है, अगर लाइट हो तो एक घंटा और मिल सकता है।
पूजा चौहान
अगर वॉलीबॉल का एक और ग्राउंड बन जाए तो हम बिना रुकावट बेहतर अभ्यास कर सकती हैं, लड़कों के साथ ग्राउंड साझा करना मुश्किल होता है।
प्रिया यादव
वार्मअप के लिए जरूरी कोई भी सामान नहीं है, हम रनिंग करके तैयारी करते हैं जबकि हमें थाराबैंड और स्पार्टन बॉल जैसे संसाधन मिलने चाहिए।
आया चौहान
हमारी बॉल कूड़े में जाकर पंचर हो जाती है, ग्राउंड में सफाई और वाटर कूलर की सख्त ज़रूरत है, बारिश में मैदान में पानी भर जाता है।
नव्या चौहान
बारिश में मैदान गीला हो जाता है, चेंजिंग रूम तक नहीं है, अगर मैट मिलता तो हम राष्ट्रीय स्तर जैसा अभ्यास कर पातीं।
सपना यादव
अगर मैदान में रौशनी की बेहतर व्यवस्था हो जाए तो हम एक घंटे और अभ्यास कर सकती हैं, अंधेरे की वजह से जल्दी लौटना पड़ता है।
शालू यादव
हमें खेलने के लिए अच्छे संसाधन नहीं मिलते, मैदान की सफाई भी हम खुद करते हैं, अगर सुविधाएं मिलें तो हम और बेहतर कर सकती हैं।
स्नेहा गुप्ता
बारिश हो जाए तो मैदान में पानी भर जाता है, हम कुछ नहीं कर पाते, हमें कम से कम ऐसा मैदान चाहिए जहां हर मौसम में अभ्यास हो सके।
खुशी पाल
स्टेडियम में रोशनी की सुविधा हो जाए तो शाम का समय भी हमारा अभ्यास में लग सकता है, हम और आगे बढ़ सकती हैं।
स्मिता गुप्ता
साफ-सफाई और सुविधा दोनों की कमी है, खेलने के बाद भी हमें आराम से बैठने या कपड़े बदलने तक की जगह नहीं मिलती।
प्रिया मौर्या
हमें मैदान में पानी पीने तक की सुविधा नहीं मिलती, ना चेंजिंग रूम है ना अच्छे टॉयलेट, फिर भी हम मेहनत करते हैं।
अमृता यादव
हमारी साथी स्टेट में गोल्ड लाई लेकिन पंचिंग बैग तक टूटा हुआ है, ग्लव्स भी खुद चंदा कर के खरीदे हैं, कोई सुविधा नहीं मिलती।
अक्षरा विश्वकर्मा
हमारी प्रैक्टिस खुले मैदान में होती है, बारिश में सब बंद हो जाता है, अगर इंडोर स्टेडियम होता तो हमें कभी अभ्यास रोकना न पड़ता।
अदिति विश्वकर्मा
अगर मैदान में हाईमास्ट लाइट लग जाए तो हम शाम में भी अभ्यास कर सकती हैं, अभी अंधेरा होते ही घर लौटना पड़ता है।
ज्योति सिंह
बोले जिम्मेदार :
स्टेडियम में जल्द दूर होंगी कमियां
खिलाड़ियों की जो भी शिकायतें हैं, हम पहले ही उन्हें महसूस कर चुके हैं। इसी वजह से इंदिरा गांधी स्टेडियम में सिंथेटिक ट्रैक का निर्माण कराया जा रहा है, जिस पर राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताएं कराई जा सकेंगी। मल्टीपर्पज हॉल का निर्माण शुरू हो चुका है, जहां कबड्डी, कुश्ती, बॉक्सिंग जैसे खेल मैट पर हो सकें। इसके पास ही शौचालय बन रहा है और मैदान में हाईमास्ट लाइट की भी व्यवस्था की जा रही है। स्विमिंग पूल का भी निर्माण हो रहा है। संसाधनों की कमी अब नहीं रहने दी जाएगी। जहां तक पेयजल की बात है, वाटर कूलर पहले था, लेकिन अब खराब हो गया है। इसकी जानकारी मुख्य विकास अधिकारी को दी गई है, जल्द ही नया वाटर कूलर लग जाएगा।
चंदन सिंह, जिला खेल अधिकारी।
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राज्य मंत्री गिरीश चंद्र यादव
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