Kushinagar Farmers Struggle with Irrigation Crisis Amidst Government Promises बोले कुशीनगर: नहरों में हेड से टेल तक पहुंचे पानी, महंगी सिंचाई से राहत मिले, Kushinagar Hindi News - Hindustan
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बोले कुशीनगर: नहरों में हेड से टेल तक पहुंचे पानी, महंगी सिंचाई से राहत मिले

Kushinagar News - कुशीनगर में किसान महंगी सिंचाई से जूझ रहे हैं। मुख्य पश्चिमी गंडक नहर और रजवाहों की जर्जर स्थिति के कारण उन्हें निजी संसाधनों का सहारा लेना पड़ रहा है। डीजल के बढ़ते दामों ने उनकी आर्थिक स्थिति को और...

Newswrap हिन्दुस्तान, कुशीनगरFri, 18 April 2025 04:54 AM
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बोले कुशीनगर: नहरों में हेड से टेल तक पहुंचे पानी, महंगी सिंचाई से राहत मिले

Kushinagar news: सरकार किसानों की आय दोगुनी करने की बात तो कर रही है, लेकिन इसके हकीकत इसके उलट है। कुशीनगर जिले के लाखों किसान महंगी सिंचाई से जूझ रहे हैं। मुख्य पश्चिमी गंडक नहर से कनेक्ट माइनर और रजवाहे की जर्जर स्थिति और उनके सूखे रहने के कारण किसान सिंचाई को लेकर परेशान रहते हैं। मजबूरी में पंपिग सेट का सहारा लेना पड़ता है। इससे खेती की लागत बढ़ जाती है। ‘हिन्दुस्तान से बातचीत में किसानों ने अपना दर्द साझा किया और समाधान की मांग की।

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Kushinagar news: देवरिया जिले से अलग होकर 13 मई, 1994 को कुशीनगर जनपद का सृजन हुआ। यह जिला पड़ोसी मूल्क नेपाल और पड़ोसी राज्य बिहार से जुड़ा हुआ है। जिले में बड़ी गंडक यानि नारायणी नदी, छोटी गंडक नदी ही जल का मुख्य स्रोत है। इसमें बड़ी गंडक यानि नारायणी नदी के नेपाल में वाल्मीकिनगर में बैराज बनाकर मुख्य पश्चिमी गंडक नहर का निर्माण किया गया है। जनपद सृजन के समय कुशीनगर की झोली में पडरौना, कठकुइयां, रामकोला समेत नौ चीनी मिलें मिलीं। सिंचाई के लिए मुख्य पश्चिमी गंडक नहर समेत चार उप नहरें व 224 रजवाहे का बिछा हुआ जाल भी मिला। लोगों को उम्मीद थी कि चीनी मिल और नहरों के संजाल से यहां के किसान खूब खुशहाल होंगे और उनकी आर्थिक स्थिति में तेजी से बदलाव आएगा, लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया और चीनी मिलें एक के बाद एक होकर बंद होती गईं तो सिंचाई की अव्यवस्था ने भी किसानों के विकास को अवरुद्ध करना शुरू दिया।

कृषि विभाग के आंकड़ों पर गौर करें तो करीब चार लाख हेक्टयर भूमि की सिंचाई मुख्य पश्चिमी गंडक नहर के सहारे निकलने वाली उप नहरों, रजवाहों और माइनरों के सहारे ही की जा रही थी। बाकी जो भूमि बच रही है, उसकी सिंचाई के लिए किसान नलकूप, कुएं और तालाब का सहारा लेते हैं। इन्हीं की मदद से किसान प्रति वर्ष गन्ना, गेहूं, धान, मक्का, सरसों, ज्वार समेत सब्जी की खेती कर लाभ कमा रहे हैं। ‘हिन्दुस्तान से बातचीत करते हुए किसानों ने कहा कि कुशीनगर जिले के फाजिलनगर, कप्तानगंज, खड्डा, तमकुहीराज, रामकोला समेत 14 ब्लॉक क्षेत्रों में सिंचाई तंत्र की दुर्दशा के कारण उन्हें अपने खेतों की सिंचाई के लिए निजी संसाधनों का सहारा लेना पड़ रहा है। नहरें वर्षों से सफाई और मरम्मत के अभाव में या तो जाम हो गई हैं या उनमें हेड से लेकर टेल तक पानी कभी पहुंचता ही नहीं है।

किसान राजेश शर्मा ने कहा कि उनकी जमीन गंडक नहर परियोजना से जुड़ी है, लेकिन पिछले दो वर्षों से नहर में ठीक से पानी नहीं आ रहा है। जब पानी आता भी है तो जर्जर हालत के कारण रजवाहा टूट जाता है और सिंचाई विभाग को तत्काल पानी बंद करना पड़ता है। इस तरह रजवाहा पूरे साल सूखा ही पड़ा रहता है। ऐसे में सिंचाई के लिए निजी संसाधनों का सहारा लेना पड़ता है। किसान ट्यूबवेल और डीजल पंप का उपयोग करने को विवश होते हैं, लेकिन डीजल की बढ़ती कीमतों ने उन्हें आर्थिक संकट में डाल दिया है। एक एकड़ खेत की सिंचाई में 700 से 1,000 रुपये तक खर्च आ रहा है, जो छोटे और सीमांत किसानों की कमर तोड़ रहा है। अगर शासन और प्रशासन समय रहते इन सिंचाई संसाधनों को दुरस्त नहीं करता है तो किसान खेती छोड़ने को मजबूर हो जाएंगे और जिले में अनाज का संकट खड़ा हो सकता है।

किसान दिवस व अन्य सरकारी योजनाओं से अनभिज्ञ हैं किसान :

जिला प्रशासन द्वारा हर माह किसान दिवस का आयोजन किया जाता है ताकि किसान अपनी समस्याओं को संबंधित अधिकारी व कर्मचारी से मिलकर अवगत करा सकें, लेकिन अधिकतर किसानों को किसान दिवस की जानकारी ही नहीं है और न ही वे बैठक में कभी शामिल होते हैं। हालांकि, कुछ सजग और प्रगतिशील किसान दिखते हैं, लेकिन वे दूसरों को योजनाओं की जानकारी नहीं देते हैं। दिवस विशेष के दौरान आयोजित बैठक में मौजूद सिंचाई विभाग के अफसर उन्हें आश्वस्त भी करते हैं कि जल्द ही नहरों की स्थिति में सुधार हो जाएगा। इसके लिए शासन स्तर पर बात रखी गई है। इसलिए किसान परेशान न हों। हकीकत यह है कि प्रदेश सरकार द्वारा संचालित प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना और सिंचाई जल प्रबंधन जैसी योजनाएं कागजों में भले ही प्रभावशाली हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर इनका लाभ किसानों तक नहीं पहुंच पा रहा है। किसान वीरेंद्र ओझा, राजकुमार शर्मा, रामू शर्मा, इसरावती, सुभावती देवी, सुनीता देवी समेत अधिकांश किसानों ने बातचीत में बताया कि वे इन योजनाओं से अनभिज्ञ हैं। कृषि विभाग द्वारा न तो इसका प्रचार-प्रसार कराया गया है और न ही उन्हें जानकारी दी गई है।

मुख्य पश्चिमी नहर समेत अधिकांश नहरें हुईं बेकार :

‘हिन्दुस्तान से बातचीत करते हुए किसानों ने कहा कि नहरों की समय पर सफाई और मरम्मत हो जाए तो सिंचाई की समस्या काफी हद तक हल हो सकती है, लेकिन विभागीय उदासीनता के चलते यह कार्य वर्ष दर वर्ष टलता रहता है। इसके कारण नहरों की खोदाई और सफाई कई वर्षों से नहीं हो सकी है। कई जगहों पर नहरों में झाड़ियां और मिट्टी भर गई है। ऐसे में पानी आ भी जाए तो खेतों तक पहुंच ही नहीं पाता। जिले के तमकुहीराज तहसील क्षेत्र की सिसवा नहर 30 वर्षों से मिट्टी से पटी पड़ी है। सिसवा माइनर के मिट्टी से पट जाने के कारण बीते दो दशक से इसमें पानी नहीं आ रहा है। इससे क्षेत्र के किसान परेशान हैं। नाराज किसानों ने बताया कि सिसवा बाजार से होकर निकलने वाली माइनर की कुल लंबाई 3.5 किलोमीटर है। जवहीं मलही, एहतमाली वेदुपार, एहतमाली, वेदुपार, मुस्तकबिल, सिसवा नाहर, सिसवा दीगर, सिसवा अव्वल, मठिया श्रीराम जैसे दर्जनों गांवों से होकर गुजरने वाली इस माइनर से लगभग 30 हजार किसानों को सिंचाई का लाभ मिलता था। माइनर में मिट्टी भर जाने के कारण पिछले 30 साल से पानी नहीं आ रहा है। इसे लेकर क्षेत्र के किसान कई बार धरना-प्रदर्शन कर चुके हैं। बार-बार सिंचाई विभाग को लिखित एवं मौखिक शिकायत भी की गई, लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हो सकी है। जिले के 14 ब्लॉक क्षेत्रों में स्थित अधिकतर रजवाहों और माइनरों की कमोवेश यही हालत है।

शिकायतें :

1. अधिकतर नहरों में कभी पानी नहीं आता है, माइनर और रजवाहों में धूल उड़ रही है। पानी आ भी जाए तो वह खेत तक नहीं पहुंच पाता है।

2. नहरें झाड़-झंखाड़ के कारण और टूट-फूटकर जाम पड़ी हुई हैं, लेकिन विभाग इनकी सफाई कराने की ओर कभी ध्यान नहीं देता है।

3. नहरों की दुदर्शा के कारण खेतों की समय से सिंचाई नहीं हो पा रही है। डीजल और बिजली की बढ़ती कीमतों के कारण निजी पंप से सिंचाई करना मुश्किल है।

4. किसान दिवस, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई जैसी योजनाओं की किसानों को जानकारी नहीं है। इसलिए किसान उनका लाभ नहीं उठा पा रहे हैं।

5. पानी के लिए कई दफा किसान आंदोलन कर चुके हैं। प्रशासनिक उदासीनता और उचित कदम नहीं उठाने के कारण शिकायत और ज्ञापन बेमानी साबित हो रहे हैं।

सुझाव :

1. रबी और खरीफ सीजन से पहले सभी माइनर और रजवाहों की नियमित सफाई और मरम्मत कराई जाए ताकि इनमें हेड से लेकर टेल तक पानी पहुंच सके।

2. पानी की समय पर आपूर्ति सुनिश्चित की जाए और मुख्य नहरों से पानी छोड़ने का शेड्यूल भी तय कर उसे सख्ती से लागू करने की आवश्यकता है।

3. डीजल और बिजली पर निर्भरता कम करने के लिए किसानों को सब्सिडी पर सौर ऊर्जा पंप सेट दिए जाएं।

4. ग्राम पंचायत स्तर पर कैंप लगाकर किसानों को सरकारी योजनाओं की जानकारी दी जाए।

5. किसानों की भागीदारी में निगरानी समिति बनाई जाए, जो सिंचाई व्यवस्था की निगरानी करे और अगर नहरों में कोई टूट-फूट होती है तो उसे ठीक कराने की पहल करें।

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किसानों का दर्द

नहर में पानी कभी कभार ही देखने को मिलता है। सिंचाई विभाग हर बार आश्वासन देता है कि इस वर्ष नहर में पूरा पानी मिलेगा, लेकिन नतीजा सिफर ही रहता है।

-वीरेन्द्र ओझा

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सिंचाई के अभाव में खेत बंजर होते जा रहे हैं। कारण, डीजल इतना महंगा हो गया है कि सिंचाई करना घाटे का सौदा बन गया है। सरकार कुछ राहत दे तो बात बने।

-राजेश शर्मा

जिले का किसान अपनी आय दोगुनी करने के लिए नई तकनीक अपनाना चाहता है, लेकिन जब बुनियादी सुविधा यानी सिंचाई के लिए पानी ही नहीं मिलेगा तो क्या करें।

-सुरेंद्र श्रीवास्तव

नहरों में पानी को लेकर किसान कई बार आंदोलन कर चुके हैं और हमेशा विभाग को लिखते भी रहते हैं, पर वह इस ओर कभी ध्यान ही नहीं देता है।

-श्यामलाल

किसानों की यह हालत सिर्फ सिस्टम की नाकामी है। अगर समय पर नहरों की सफाई हो जाए तो किसानों की समस्या काफी हद तक कम हो जाएगी।

-शिवम सिंह

पानी की कमी से फसल उत्पादकता पर प्रभाव पड़ रहा है। किसानों को सिंचाई के लिए उपलब्ध वैकल्पिक सिंचाई तकनीकों का सहारा लेना ही होगा।

-रमाशंकर

जल प्रबंधन की नीति नए सिरे से बनानी होगी। पुराने नहर नेटवर्क की मरम्मत और डिजिटल मॉनिटरिंग की जरूरत है।

-राजकुमार शर्मा

किसान देश की रीढ़ हैं। वर्तमान समय में सबसे ज्यादा यही वर्ग परेशान है। खेती करने में उसे सिंचाई समेत विभिन्न परेशानियां झेलनी पड़ रही हैं।

-जितेंद्र राम

हमने जवानी में जिन खेतों को सींचा, आज बुढ़ापे में पानी के अभाव में उन्हें सूखते हुए देख रहे हैं। इससे बहुत दुख होता है।

-सुभावती देवी

सिंचाई संकट का सीधा असर किसानों की फसल पर पड़ रहा है। इससे उपज में लगातार कमी आ रही है और लागत बढ़ती जा रही है।

-इसरावती देवी

किसान कई बार सिंचाई विभाग और जिला प्रशासन को इस संबंध में जानकारी दे चुके हैं। अधिकारी आश्वासन जरूर देते हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर सुधार नहीं होता।

-संजीत कुमार

अधिकतर किसानों को किसान दिवस की जानकारी तक नहीं है। सरकार द्वारा उनके लिए जो भी योजनाएं चलाई जा रही हैं, उनका प्रचार-प्रसार भी नहीं कराया जाता है।

-गिरिजाशंकर

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