बोले मेरठ : बिना डिग्री वालों पर लगे रोक, प्राचीन पद्धति को मिले सम्मान
Meerut News - भारत में आयुर्वेद और यूनानी चिकित्सा प्रणाली के डॉक्टरों को उचित मान-सम्मान और सुविधाएं नहीं मिल रही हैं। वे रजिस्ट्रेशन और सरकारी नौकरियों में उत्पीड़न का सामना कर रहे हैं। आयुर्वेद का ज्ञान और उसकी...

मेरठ। भारत की धरती पर चिकित्सा विज्ञान सिर्फ एलोपैथी तक सीमित नहीं रहा है। यहां की मिट्टी में आयुर्वेद और यूनानी जैसी प्राचीन चिकित्सा पद्धतियां रची-बसी हैं। इन दोनों पद्धतियों ने न जाने कितनी पीढ़ियों को रोगमुक्त किया, लेकिन आज इन चिकित्सा प्रणाली से जुड़े डॉक्टरों को न तो वो मान-सम्मान और न ही सुविधाएं मिल पा रही हैं, जिसके वह हकदार हैं। आयुर्वेद और यूनानी प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टर आज अपने हक की लड़ाई लड़ रहे हैं। वह सुविधाओं की डोज चाहते हैं। आयुर्वेद और यूनानी डॉक्टरों के ज्ञान और क्षमता को गंभीरता से नहीं लिया जाता। अधिकांश सरकारी अस्पतालों में आयुर्वेद या यूनानी चिकित्सकों के लिए पर्याप्त पद भी नहीं हैं और न ही स्थायी नियुक्तियां। कई जगह इन डॉक्टरों को सिर्फ सीमित दवाइयां देने की अनुमति होती है। उन्हें न तो बराबरी का अधिकार है, न ज़िम्मेदारी निभाने की आज़ादी। देखा जाए तो आयुर्वेद और यूनानी पद्धतियों पर आधारित रिसर्च के लिए पर्याप्त फंड नहीं मिलता है, न ही आधुनिक तकनीक का साथ। रजिस्टर्ड आयुर्वेदिक डॉक्टरों का कहना है कि आयुर्वेदिक एवं यूनानी ग्रेजुएट यानि बीएएमएस व बीयूएमएस का प्रैक्टिस से पहले रजिस्ट्रेशन होता है। वहीं सैकड़ों की संख्या में ऐसे लोग भी प्रैक्टिस कर रहे हैं जिनके पास डिग्री नहीं है। इनके फेर में डिग्री वालों को परेशान किया जाता है।
कई जटिलताएं और चुनौतियां अभी भी बनी
डॉ. सुनील जैन, डॉ. रहमान, डॉ सुब्रतो सेन और डॉ. अनीस का कहना है कि हजारों वर्षों पुरानी भारतीय चिकित्सा प्रणाली आयुर्वेद आज पूरी दुनिया में अपनी जड़ों को मजबूती से फैला रही है। दूसरे देशों में इसके प्रति लोगों में रुचि बढ़ी है और आयुर्वेदिक उत्पादों, उपचार पद्धतियों को व्यापक स्वीकार्यता मिल रही है। दुर्भाग्यवश, जिस देश में इस प्राचीन ज्ञान का जन्म हुआ, वहीं इसके पेशेवर अभ्यास को लेकर कई जटिलताएं और चुनौतियां अभी भी बनी हुई हैं। सबसे बड़ी समस्या रजिस्ट्रेशन को लेकर होती है। जहां विभागीय अधिकारी सही डिग्री वाले डॉक्टरों का उत्पीड़न करते हैं। डिग्री वाले बीएएमएस और बीयूएम की समस्याओं का समाधान किया जाए।
उत्पीड़न से मिले मुक्ति, हो समाधान
डॉ. अमरीष शर्मा, डॉ. बीडी भारद्वाज, डॉ. राजीव गोयल, डॉ. शशि त्यागी, डॉ. सुरभि रस्तोगी और डॉ. अंजली गुप्ता का कहना है कि जिले में 500 के करीब आयुर्वेदिक और यूनानी डॉक्टर हैं, जो आयुर्वेद और यूनानी कार्यालय में रजिस्टर्ड हैं। इनमें 300 के करीब आयुर्वेदिक डॉक्टर हैं और 200 के करीब यूनानी हैं। रजिस्ट्रेशन कार्यालय में भ्रष्टाचार है, यहां रजिस्ट्रेशन बिना पैसे तो होता ही नहीं है। डिग्री वाले आयुर्वेदिक और यूनानी डॉक्टर्स का रजिस्ट्रेशन के लिए आज भी उत्पीड़न किया जाता है, जिसका समाधान जरूरी है।
डिग्री वाले परेशान, झोलाछाप से वसूली
नेशनल इंटीग्रेटेड मेडिकल एसोसएिशन अध्यक्ष डॉ. नगेंद्र का कहना है कि चिकित्सा विभाग में रजिस्ट्रेशन के नाम पर बीएएमएस और बीयूएमएस डॉक्टर्स का उत्पीड़न किया जाता है, इस कारण से सीएमओ ऑफिस के एक बाबू जेल भी जा चुके हैं, लेकिन हालात आज भी वही हैं। यहां सीएमओ ऑफिस में एक झोलाछाप सेल है, जिसके एक नोडल अधिकारी भी हैं। जिले में दो हजार से अधिक झोलाछाप लोगों की फौज है। उनके खिलाफ कार्रवाई की जिम्मेदारी चिकित्सा विभाग के नोडल अधिकारी की है। झोलाछाप एलोपैथिक दवाइयां लिख रहे हैं, उन्हें पकड़ने के बजाय यह कहकर छोड़ दिया जाता है कि अपनी दुकान पर बीएएमएस या बीयूएमएस लिख लो। उनके यहां मरीजों को ड्रिप भी लगी रहती हैं और दवाइयां भी दी जाती हैं, लेकिन कार्रवाई के नाम पर एकमुश्त रकम बांध ली जाती है।
विभागों में ज्यादातर संविदाकर्मी डॉक्टर
नीमा में रजिस्टर्ड डॉक्टर का कहना है कि जिले में सीएमओ के अंडर आने वाले एमओसीएच (मेडिकल ऑफिसर कम्युनिटी हेल्थ) और पीएचसी पर 60 के करीब आयुर्वेदिक, यूनानी और होम्योपैथिक डॉक्टर मौजूद हैं। इनमें अधिकतर एनएचआरएम प्रोग्राम के तहत संविदा पर रखे गए हैं, इनका कई प्रकार से उत्पीड़न किया जाता है। जिले में करीब 18 आयुर्वेदिक मेडिकल ऑफिसर हैं, जो आयुर्वेदिक चिकित्सालयों में तैनात हैं। डॉक्टरों के राइट्स को दरकिनार कर दिया जाता है। उनका उत्पीड़न ही होता है।
एलोपैथिक मेडिसिन के अधिकारों की अनदेखी
आयुर्वेद के उपयोग को गंभीर और जटिल रोगों से निवारण के लिए आधुनिक चिकित्सा के साथ जोड़ने की आवश्यकता है। लेकिन अधिकांश राज्यों में आयुर्वेद स्नातकों को एलोपैथिक दवाओं का प्रयोग करने की अनुमति नहीं है, जिससे उनके अभ्यास की सीमाएं तय हो जाती हैं। इस कारण कई योग्य आयुर्वेदिक चिकित्सक सीमित दायरे में ही अपनी सेवाएं देने को मजबूर हैं।
आयुर्वेद गूढ़ और विशाल ज्ञान प्रणाली है, लेकिन वर्तमान में इससे संबंधित वैज्ञानिक अनुसंधान का अभाव इसे आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के समकक्ष खड़ा करने में बाधा बन रहा है। एक सक्रिय वैज्ञानिक पारिस्थितिकी तंत्र की अनुपस्थिति के कारण आयुर्वेदिक चिकित्सकों को नए उपचारों की खोज और प्रमाणन के लिए स्वयं पर निर्भर रहना पड़ता है। इससे उनके लिए व्यावसायिक रूप से आगे बढ़ना कठिन हो जाता है।
कार्रवाई हो तो मिले राहत
नीमा के डॉक्टर्स का कहना है जहां बीएएएमएस और बीयूएमएस डॉक्टर्स सरकारी विभागों में काम कर रहे हैं, वहां भी उनका उत्पीड़न किया जाता है। अधिकतर काम उन्हीं से कराया जाता है। जिले में 500 आयुष चिकित्सक रजिस्टर्ड हैं, लेकिन 2000 से अधिक लोग आयुष की डिग्री लिखकर काम कर रहे हैं। इनका ना कहीं रजिस्ट्रेशन होता है और ना ही प्रैक्टिस की अनुमति, इसके बावजूद ये लोग, डिग्री धारक आयुष चिकत्सक से ज्यादा कमाई करते हैं। उसी कमाई का एक हिस्सा जांच पड़ताल करने वाले विभाग को भी जाता है। जिससे समस्याएं बढ़ जाती हैं, कई बार बड़ी घटनाएं भी हो जाती हैं।
आयुर्वेद को मिले प्रथम चिकित्सा का दर्जा
डॉ. सुप्रभावति 21 वर्ष तक राजकीय मेडिकल ऑफिसर आयुर्वेद के पद पर रहीं और बाद में उन्होंने वीआरएस ले लिया। वह बताती हैं कि भारत वर्ष की प्राचीनतम चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद है, हमारे वेदों के आधार पर इसका जन्म हुआ। इस पद्धति को राष्ट्रीय चिकित्सा का प्रथम दर्जा मिलना चाहिए। इसके लिए अधिकतम बजट मिलना चाहिए। आज पूरा विश्व इसकी तरफ ध्यान दे रहा है, भारत सरकार को इसे प्रथम दर्जे की चिकित्सा घोषित करना चाहिए ताकि जन-जन तक आयुर्वेद की पहुंच हो सके।
आयुर्वेद सर्जनों को भी मिले बढ़ावा
आयुर्वेदिक डॉक्टर्स बताते हैं कि सुश्रुत और धनवंतरी की पूजा दुनिया के अन्य देशों में भी की जाती है। सुश्रुत इस धरती पर प्रथम शल्य क्रिया करने वाले हुए फिर आयुर्वेदिक शल्य सर्जन पर शल्य क्रिया करने पर प्रतिबंध क्यों है। बीएचयू जाम नगर आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय में उन्हें सब कुछ सिखाया और पढ़ाया जाता है। डॉ. विनोद गुप्ता, एमडी, आयुर्वेद सर्जरी, डॉ. सुनील जोशी एमडी, आयुर्वेद सर्जरी जैसे अनेक सर्जन सर्जरी कर रहे हैं। आयुर्वेदिक सर्जन को प्राथमिकता पर बढ़ावा देना चाहिए।
मर्म चिकित्सा को समर्पित आयुर्वेद
डॉक्टर सुनील जोशी कहते हैं कि मर्म चिकित्सा आयुर्वेद की महत्वपूर्ण विद्या है, इसमें मनुष्य के शरीर में स्थित 107 मर्म बिंदुओं की उत्प्रेरण द्वारा चिकित्सा की जाती है। परिणाम की दृष्टि से यह तुरंत कार्यकारी और लाभ देने वाली चिकित्सा पद्धति है। इसके द्वारा वो रोग भी ठीक किए जा सकते हैं जो वर्तमान में अन्य चिकित्सा से भी ठीक नहीं किए जा सकते। सेरीब्रल पॉल्सी, पोस्ट पोलियो, पैरालिसिस, रीढ़ की हड्डी के रोग, घुटनों का प्रत्यारोपण समेत अनेक रोगों का उपचार मर्म चिकित्सा के माध्यम से किया जा सकता है।
समस्याएं
- रजिस्ट्रेशन के नाम पर बीएएमएस, बीयूएमएस का होता है उत्पीड़न
- आयुर्वेद और यूनानी को विभाग द्वारा मान्यता की कमी
- सरकारी योजनाओं और नीतियों में कम अवसर मिलते हैं
- आयुर्वेद और यूनानी में शोध और विकास की अनदेखी
- कई राज्यों में आयुर्वेद डॉक्टरों को सीमित दवाइयों की अनुमति
सुझाव
- आयुर्वेद और यूनानी को मान्यता और सम्मान का विस्तार हो
- दोनों पद्धतियों को सरकारी योजनाओं में बराबर भागीदारी मिले
- आयुर्वेद और यूनानी में शोध को प्रोत्साहन मिलना चाहिए
- आयुर्वेद और यूनानी पद्धतियों का वृहद रूप से विस्तार हो
- विभागों द्वारा रजिस्ट्रेशन को लेकर उत्पीड़न पूरी तरह बंद हो
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डॉक्टरों का दर्द
विभाग में झोलाछाप सेल है, बावजूद इसके दो हजार से अधिक लोग बिना रजिस्ट्रेशन प्रैक्टिस कर रहे हैं, जिनके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। - डॉ. नगेंद्र
बहुत से लोग आयुर्वेद और यूनानी डॉक्टरों को कमतर आंकते हैं। बीएएमएस के ज्ञान और क्षमता को गंभीरता से नहीं लिया जाता।
- डॉ. सुनील जैन
आयुर्वेद डॉक्टरों को सीमित दवाइयां देने की अनुमति है, उन्हें न तो बराबरी का अधिकार है, न ज़िम्मेदारी निभाने की आज़ादी, इसमें बदलाव जरूरी है। - डॉ. रहमान
विभाग में ही रजिस्ट्रेशन के नाम पर प्रताड़ित किया जाता है, जबकि डिग्रीधारक आयुष डॉक्टर अपनी सही प्रैक्टिस करते हैं।
- डॉ. सुब्रतो सेन
आयुर्वेद और यूनानी पद्धतियों पर आधारित रिसर्च के लिए न तो पर्याप्त फंड मिलता है, न ही आधुनिक टेक्नोलॉजी का साथ - डॉ. अनीस अहमद
अधिकांश सरकारी अस्पतालों में आयुर्वेद या यूनानी चिकित्सकों के लिए न तो पर्याप्त पद हैं और न स्थायी नियुक्तियां - डॉ. अमरीष शर्मा
आयुर्वेद और यूनानी डॉक्टरों को एलोपैथिक डॉक्टरों के समान दर्जा और अधिकार मिले, सभी चिकित्सा पद्धतियां समान रूप से महत्वपूर्ण हैं - डॉ. बीडी भारद्वाज
आयुष मंत्रालय के माध्यम से इन डॉक्टरों को स्थायी पद, समान वेतन और सम्मानजनक सेवाएं प्रदान की जाएं - डॉ. राजीव गोयल
इन पद्धतियों के सिद्धांतों पर वैज्ञानिक शोध से आधुनिक दुनिया में आयुर्वेद और यूनानी को वैश्विक मंच पर प्रतिष्ठा मिलेगी - डॉ. शशि त्यागी
आम जनता को शिक्षित किया जाए कि ये पद्धतियां मात्र वैकल्पिक नहीं, बल्कि संपूर्ण चिकित्सा प्रणाली हैं, इनमें रोगों का जड़ से इलाज है - डॉ. सुरभि रस्तोगी
आयुर्वेद और यूनानी डॉक्टर हकीम या वैद्य नहीं हैं, वे भारतीय चिकित्सा परंपरा के जीवित स्तंभ हैं, उत्पीड़न बंद हो - डॉ. अंजलि गुप्ता
रजिस्ट्रेशन और एलोपैथिक के नाम पर होने वाला उत्पीड़न बंद होना चाहिए, जो वर्षों से प्रैक्टिस कर रहे हैं उनको सहायता मिले - डॉ. मधु देशवाल
भारत में आयुर्वेदिक चिकित्सा अभ्यास को पेशेवर करियर बनाने वाले लोगों के सामने विभिन्न चुनौतियों होती हैं - डॉ. सुरेंद्र सिंह
इस प्राचीन चिकित्सा प्रणाली का बड़ी संख्या में लोगों द्वारा उपयोग किया जा रहा है, जिसके लाभ बहुत कारगर होते हैं - डॉ. शरद स्वामी
उपयुक्त मान्यता एवं समर्थन की कमी से लेकर सीमित रोजगार के अवसर जैसी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है - डॉ. कपिल कुमार गुप्ता
चिकित्सकों को उपचार और उसकी प्रक्रिया की खोज के लिए स्वयं पर निर्भर रहना पड़ता है, जिससे कई समस्याएं पैदा होती है -डॉ. अनिता सिंघल
रजिस्टर्ड आयुर्वेदिक और यूनानी डॉक्टर का रजिस्ट्रेशन व एलोपैथिक मेडिसिन लिखने के अधिकारों की अनदेखी की जाती है - डॉ. अमरपाल शर्मा
भारत में आयुर्वेद पद्धति को राष्ट्रीय चिकित्सा का प्रथम दर्जा मिलना चाहिए और इसके लिए अधिकतम बजट मिलना चाहिए - डॉ. सुप्रभावति
सभी आयुर्वेद चिकत्सकों को मर्म चिकित्सा में निष्णात होकर अपने आप को पीड़ित मानव की सेवा में समर्पित करना चाहिए - डॉ. सुनील जोशी
सुश्रुत इस धरती पर प्रथम शल्य क्रिया करने वाले हुए, फिर आयुर्वेदिक शल्य सर्जनों पर शल्य क्रिया करने पर प्रतिबंध क्यों है- डॉ. विनोद गुप्ता
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