बोले बेल्हा: राजकीय वाहन हैं खस्ताहाल, काम के बोझ से चालक रहते बेहाल
Pratapgarh-kunda News - राजकीय वाहन चालकों की समस्याओं का कोई समाधान नहीं है, जबकि उनकी संख्या जिले में 50 फीसदी से कम है। इन्हें अक्सर लंबी ड्यूटी करनी पड़ती है और काम का बोझ बढ़ गया है। चालक पुरानी पेंशन बहाली की मांग कर...

अफसरों का वाहन चलाने वाले राजकीय वाहन चालकों का रुतबा किसी से कम नहीं माना जाता लेकिन असलियत यह है कि इनकी समस्याएं भी तमाम हैं। खास बात यह कि दिन रात अफसरों के साथ रहने वाले चालकों का दर्द जानने का प्रयास भी कोई नहीं करता। यह कभी देर रात तक ड्यूटी करते हैं तो कभी ऐसा भी होता है कि काम की अधिकता के कारण घर नहीं पहुंच पाते। सरकारी अफसरों का चालक होने के काण इन्हें अवकाश के दिनों में भी अलर्ट रहना पड़ता है। कारण पता नहीं कब साहब के आवास से फोन आ जाए और निकलना पड़ जाए। भले ही राजकीय वाहन चालक दिन-रात अफसरों के साथ रहते हैं लेकिन उनकी समस्याओं का समाधान करने वाला कोई नहीं है। पद के सापेक्ष जिले में 50 फीसदी राजकीय वाहन चालक भी नही हैं इससे काम का बोझ बढ़ना लाजिमी है लेकिन अतिरिक्त ड्यूटी का कोई भुगतान नहीं दिया जाता। नतीजा परिजनों की जरूरतें पूरी करने में भी बाधा आती है। पीडब्ल्यूडी के वाहन चालकों को फील्ड में भी काम करना पड़ता है जहां तमाम दिक्कतें आती हैं लेकिन न सुरक्षा के इंतजाम हैं और न सम्मान मिलता है। आपके अपने अखबार हिन्दुस्तान ने जिले के राजकीय वाहन चालकों की समस्या जानने का प्रयास कया तो चालकों ने बारी-बारी से अपनी समस्याएं बताईं और उनके निस्तारण का सुझाव भी दिया।
बेल्हा में वर्तमान में कुल 56 राजकीय वाहन चालकों की तैनाती है, जबकि जिले में कुल राजकीय वाहन चालकों के 100 से अधिक पद हैं। तैनात चालक अलग-अलग विभाग के अफसरों का वाहन चलाते हैं, इसके अलावा कुछ चालक पीडब्ल्यूडी के कॉमर्शियल वाहन चलाते हैं। इनकी जरूरत पीडब्ल्यूडी की ओर से सड़कों का निर्माण कराने पर रोलर चलाने के लिए होती है। अलग-अलग विभाग के अफसरों का वाहन चलाने वाले राजकीय वाहन चालकों की ड्यूटी रोज सुबह शुरू होती है और अधिकतर देर रात तक चलती है। अधिकारी जिधर भी रुख करते हैं, वाहन चालक उधर ही चल पड़ जाते हैं। कई विभाग में वाहन चालकों को अवकाश के दिन भी काम करना पड़ता है। यही नहीं एसडीएम स्तर के अफसरों का वाहन चलाने वाले चालकों को त्योहार के दिन भी ड्यूटी करनी पड़ती है। नतीजा परिवार के साथ त्योहार बनाने की फुर्सत नहीं मिलती। इसके बाद भी राजकीय वाहन चालकों के मुद्दे का कोई हल नहीं निकल पा रहा। राजकीय वाहन चालक कहते हैं कि हम भी प्रशासनिक तंत्र का अभिन्न हिस्सा हैं लेकिन हमारी कार्यस्थिति, आर्थिक परेशानी और जीवन स्तर को बेहतर बनाने के ठोस प्रयास कभी नहीं किए गए। यह मलाल हमारे मन हमेशा रहता है। राजकीय वाहन चालकों ने बताया कि पुरानी पेंशन बहाली की मांग लंबे समय से की जा रही है लेकिन जिम्मेदारों पर कोई असर नहीं हो रहा है। हमारी बचत इतनी नहीं होती कि रिटायर होने के बाद उससे अपना भरण पोषण कर सकें। पुरानी पेंशन बहाल न की गई तो रिटायर होने के बाद हम असहाय हो जाएंगे। पुरानी पेंशन बहाल करने की मांग संगठन के पदाधिकारी प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर उठा रहे हैं। चालकों का कहना है कि रिटायर होने वाले कर्मचारियों के रिक्त पर नियुक्ति नहीं की जा रही है, इससे 50 फीसदी से अधिक पद रिक्त हैं। नतीजा काम का बोझ बढ़ता जा रहा है। कई वाहन चालकों की उम्र अधिक हो गई है और कई बीमारी से ग्रसित हैं। बावजूद इसके सभी नियमित ड्यूटी कर रहे हैं। हमारी स्थानीय शिकायतों का निस्तारण करने में भी आनाकानी अथवा बहानेबाजी की जाती है। हमारी सेहत की जांच के लिए कभी शिविर का आयोजन नहीं कराया जाता। ऐसे में बीमारियों की जांच और इलाज कराने के लिए अवकाश लेकर जाना पड़ता है। कई चालक ऐसे हैं जिनकी बीमारियां उचित इलाज नहीं मिलने से बढ़ रही हैं।
डिमांड के सापेक्ष राजकीय वाहन चालकों की तैनाती नहीं होने से अधिकतर चालक के पास काम का अतिरक्ति बोझ रहता है। कभी कभी ऐसा भी होता है कि काम की अधिकता के कारण व्यक्तिगत काम प्रभावित होते हैं जिससे समस्या पैदा हो जाती है। सरकारी अधिकारियों के दौरे, आपातकालीन सेवाएं, त्योहारों पर संजीदा इलाकों में ड्यूटी, दूसरे जिलों तक की दौड़, बाढ़, कटान, अगलगी की घटनाओं सहित राज्य मुख्यालय तक जाने की तमाम जिम्मेदारियों का एक सिरा वाहन चालकों पर ही आता है। चालक बताते हैं कि त्योहारों आदि पर अधिकारियों को सक्रिया रहना पड़ता है। ऐसे में हमें भी अलर्ट रहना होता है। त्योहारों पर हम अफसरों के साथ ड्यूटी पर डटे रहते हैं लेकिन यह हमारे काम का हिस्सा है ऐसे में कोई मलाल नहीं होता लेकिन ड्यूटी के मुताबिक हमारे शरीर को भी आराम की जरूरत होती है। इसके लिए वाहन चालकों के ड्यूटी के घंटे निर्धारित होने चाहिए। लंबे समय तक लगातार ड्यूटी करने से शारीरिक थकान औैर मानसिक तनाव सेहत पर बुरा असर डालता है, इससे जोखिम भी बढ़ जाता है।
सरकारी वाहनों में कई तरह की समस्याएं
जिले के सरकारी विभागों में तैनात राजकीय वाहन चालक बताते हैं कि अधिकतर विभाग के सरकारी वाहन खस्ताहाल हालत में हैं। जब नए वाहन खरीदे जाते हैं तब उनका बीमा कराया जाता है। इसके बाद इन वाहनों की हालत जानने का कोई प्रयास नहीं करता। इक्का-दुक्का अधिकारी ही ऐसे हैं जो अपने वाहन के फिटनेस आदि की जानकारी करते रहते हैं जबकि अधिकतर अफसर इससे कोई सरोकार नहीं रखते। सबसे बदतर हालत पीडब्ल्यूडी विभाग के वाहनों की है जबकि इन वाहनों से ही लगातार सड़कें बनाने का काम लिया जाता है। चालक कहते हैं कि हमारे पास ऐसा कोई बजट आता नहीं जिससे हम वाहन की मरम्मत करा सकें। जिला स्तर पर विभागों को मिलने वाले बजट से वाहनों को रिपेयर कराया जाना चाहिए। साथ ही इस बात का भी विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए कि वाहन का फिटनेस, बीमा आदि जरूरी अभिलेख दुरुस्त रहें। सरकारी वाहनों की खराब स्थिति और सुरक्षा का अभाव इनकी स्थिति को चिंताजनक बनाती है। सरकारी विभाग के कई वाहन ऐसे हैं जिनके ब्रेक, टायर और इंजन में समस्या है लेकिन अफसर उसकी अनदेखी कर रहे हैं। सरकारी वाहनों में आधुनिक सुरक्षा सुविधाओं का अभाव रहता है, जिससे चालकों को हर समय खतरे का अंदेशा बना रहता है।
पुरानी पेंशन बहाली को गंभीरता से लिया जाए
जिले के सरकारी विभागों में तैनात राजकीय वाहन चालकों के आगे समस्याओं का अंबार है लेकिन इनकी सुधि लेने वाला कोई नहीं है। इनमें कुछ समस्याएं बेहद गंभीर भी हैं। जैसे पुरानी पेंशन किए जाने से चालकों को बुढ़ापे का सहारा मिल जाएगा। वाहन चालक बताते हैं कि हम अपना पूरा जीवन सरकारी सेवाओं में खपा दे रहे हैं लेकिन सरकार हमारी बुढ़ापे की लाठी छीनना चाहती है। पुरानी पेंशन प्राथमिकता से बहाल की जानी चाहिए जिससे हमारा भविष्य सुधर सके। हमारे पास इतनी बचत नहीं हो पाती कि रिटायर होने के बाद हम उससे बचा जीवन आसानी से गुजार सकें। नई पेंशन स्कीम में तमाम खामियां हैं जिसे सिर्फ सरकारी कर्मचारी ही समझ सकता है। तमाम कर्मचारी संगठन पुरानी पेंशन बहाल करने की मांग कर रहे हैं लेकिन सरकार ने चुप्पी साध रखी है। यह रवैया कर्मचारियों को अखरता है।
ठेका व्यवस्था का शिकार हो रहे विभाग
राजकीय वाहन चालक कहते हैं कि कई विभागों में ठेके पर वहन लगाने की प्रथा शुरू हो गई है। ठेके पर ही वाहन चालक भी रखे जा रहे हैं। इसके कारण हमें अवसर भी कम मिल रहे हैं। जिले में डिमांड के सापेक्ष सरकारी वाहन चालक नही हैं। सरकारी तंत्र यह चाहता ही नहीं कि उनके पास राजकीय वाहन चालक हों। प्राइवेट वाहन और उनके चालक हमसे अवसर छीन रहे हैं। ऐसा कोई विभाग वर्तमान में नहीं बचा है जहां प्राइवेट वाहन और उनके चालक का वर्चस्व न हो। ऐसे में सरकारी वाहन चालकों को दरकिनार कर दिया जाता है।
सरकारी कर्मचारी बन रहे चालक
जिले में तैनात राजकीय वाहन चालक बताते हैं कि अफसरों के पास वाहन चालकों की कमी है। सरकारी वाहन भी अधिकतर अफसरों के पास नहीं है। वाहनों की व्यवस्था कॉन्ट्रैक्ट के आधार पर की जाती है लेकिन राजकीय वाहन चालक नहीं होने से वाहन कैसे चलें। ऐसे में कई अफसर सफाई कर्मचारी तो कई ने प्राइवेट चालक रख लिया है। हालांकि प्राइवेट चालक पर आसानी से भरोसा नहीं किया जा सकता लेकिन सरकारी चालक की कमी होने के कारण मजबूरी में काम चलाना पड़ रहा है। राजकीय वाहन चालक कहते हैं कि यदि रिक्त पदों पर नियुक्ति की जाए तो जिले के तमाम युवाओं को नौकरी मिल सकती है। अधिकारी भी चाहते हैं कि राजकीय वाहन चालक मिल जाएं तो सरकारी काम काज निपटाने में सहूलियत मिल जाए। आवास से ऑफिस, समाधान दिवस, गांवों के निरीक्षण, विकास योजनाओं के निरीक्षण पर जाना होता है। कई बार सुबह से शाम हो जाती है ऐसे में राजकीय वाहन चालक हों तो काम निपटाने में सहूलियत मिले।
शिकायतें
1. सरकारी विभागों में सरकारी वाहनों की संख्या लगातार कम होती जा रही है। इससे राजकीय वाहन चालकों का सम्मान घट रहा है।
2. अधिकतर विभाग प्राइवेट वाहन और प्राइवेट चालकों पर निर्भर होते जा रहे हैं। इससे विभाग के काम काज पर असर पड़ रहा है।
3. जिम्मेदारों की अनदेखी के कारण राजकीय वाहन चालक के 50 फीसदी से अधिक पद रिक्त हैं।
4. जिले के अधिकतर राजकीय वाहन खस्ताहाल दशा में हैं ऐसे में उन्हें चलाना चालकों के लिए आसान नहीं रह गया है।
5. राजकीय वाहन चालकों की ड्यूटी का कोई समय निर्धारित नहीं है, लगातार ड्यूटी करने से सेहत खराब हो जाती है।
सुझाव
1. राजकीय वाहन चालकों के ठहरने और बैठने के लिए स्थान निर्धारित हो। जिससे हम उस स्थान पर बैठकर कुछ देर आराम कर सकें।
2. जिले में राजकीय वाहन चालकों के रिक्त पद पर नियुक्ति करने के साथ सरकारी वाहनों की संख्या में इजाफा किया जाए।
3. शासन की ओर से जारी ड्यूटी चार्ट के मुताबिक ही राजकीय वाहन चालकों से काम लिया जाए।
4. सरकारी विभागों में बढ़ रही ठेका प्रथा समाप्त कर विभागवार राजकीय वाहनों की खरीद की जाए।
5. खस्ताहाल हो चुके सरकारी वाहनों की प्राथमिकता से रिपेयरिंग कराई जाए। जिससे सरकारी काम निपटाने में सहूलियत मिल सके।
जरा हमारी भी सुनें...
राजकीय वाहन चालकों के 50 फीसदी पद रिक्त हैं और यही हाल विभागों में सरकारी वाहन का भी है। इससे युवाओं को रोजगार नहीं मिल रहा है। प्राइवेट वाहन स्वामी सरकारी विभागों से कमाई कर रहे हैं जबकि वाहन चालक हाशिए पर हैं।
घनश्याम सिंह
सिर्फ जिले में नहीं बल्कि पूरे प्रदेश के सरकारी विभागों में राजकीय वाहन चालकों की कमी है। अधिकतर विभाग में प्राइवेट चालक नियुक्त किए गए हैं, इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल रहा है। जिम्मेदारों को इस पर रोक लगाना चाहिए।
नंदलाल यादव
पीडब्ल्यूडी के अधिकतर रोलर और वाहन खस्ताहाल हो चुके हैं, जबकि इन्हीं वाहनों से लगातार सड़कें बनाने का काम लिया जाता है। वाहनों के खराब होने पर चालक परेशान होता है और प्राइवेट रोड रोलर मंगाकर सड़क का काम पूरा किया जाता है।
शिवप्रकाश
राजकीय वाहन चालक महासंघ के पदाधिकारियों की ओर से लगातार समस्याएं उठाई जाती हैं और अफसरों को ज्ञापन देकर निस्तारण की मांग की जाती है लेकिन अफसर मांगों की अनदेखी कर देते हैं। यह कर्मचारियों के लिए निराशाजनक है।
सफीक अहमद
अधिकतर राजकीय वाहन चालक किसी अफसर का वाहन चला रहा है लेकिन उसकी समस्याएं सुनने के लिए किसी के पास वक्त नहीं है। अफसरों को हमारी समस्याएं सुनकर उनका प्राथमिकता से निस्तारण करना चाहिए।
हनुमान सिंह
राजकीय वाहन चालक लगातार ड्यूटी करते हैं जिससे वह अपने परिवार को भी समय नहीं दे पाते। जिम्मेदारों को राजकीय वाहन चालकों की सेहत की जांच कराने के लिए समय समय पर स्वास्थ्य शिविर का आयोजन कराना चाहिए।
एहसान अंसारी
जिले के कई राजकीय वाहन चालक सीनियर हो चुके हैं लेकिन जिम्मेदारों की अनदेखी के कारण उनका प्रमोशन नहीं हो रहा है। उच्चाधिकारियों को इस पर गंभीरता दिखाते हुए वरिष्ठ चालकों की सूची बनाकर नियमानुसार पदोन्नत करना चाहिए।
रघुनाथ गौड़
राजकीय वाहन चालकों के साथ हर महीने नियमित उच्चाधिकारियों को बैठक करनी चाहिए, इससे सभी चालक अपनी समस्याएं खुलकर अफसरों के आगे रख सकेंगे। बैठक नहीं होने से वाहन चालक अपनी समस्याएं किसी से बता नहीं पाते।
रामबदन गौड़
राजकीय वाहन चालकों से शासन की ओर से जारी ड्यूटी चार्ट के मुताबिक काम लिया जाए। इसके अलावा यदि काम लिया जा रहा है तो उसके लिए अलग से भुगतान देने की व्यवस्था कराई जाए। इसके अलावा पुरानी पेंशन प्राथमिकता से बहाल की जाए।
शिवकुमार
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राजकीय वाहन चालक भी सरकारी तंत्र का प्रमुख हिस्सा हैं लेकिन जिम्मेदारों ने हमें हाशिए पर रखा है। अफसरों का यह रवैया हमें हैरान करता है। हमारी छोटी-छोटी समस्याओं को भी दरकिनार कर दिया जाता है। यह तकलीफदेह है।
राजेश
दर्जनों राजकीय वाहन चालक फील्ड में काम करते हैं उन्हें अपनी सुरक्षा की चिंता सताती रहती है। कारण कई बार चालकों से फील्ड में बदसलूकी हो चुकी है। ऐसे चालकों की सुरक्षा जिम्मेदारों को सुनिश्चित करनी चाहिए। जिससे चालक बेखौफ होकर काम कर सकें।
वीरेन्द्र कुमार
पुरानी पेंशन व्यवस्था खत्म किए जाने से सरकारी कर्मचारियों के बुढापे की लाठी छिन गई है, इससे रिटायर होने के बाद हमारे सामने परिवार का खर्च चलाने की समस्या आ जाएगी। जिम्मेदारों को हमारी समस्या को प्राथमिकता देनी चाहिए।
सर्वजीत
विभागों में सरकारी वाहनों की संख्या लगातार घटती जा रही है। यही कारण है कि राजकीय वाहन चालकों का अस्तित्व भी खत्म होता जा रहा है। अधिकारी वाहन चालकों की समस्या को गंभीरता से नहीं लेते, जबकि हम उनके ही विभाग का हिस्सा हैं।
अरुण सिंह
बोले जिम्मेदार..
राजकीय वाहन चालक सरकारी तंत्र का अहम हिस्सा हैं। इनकी समस्याएं जानकर प्राथमिकता से निस्तारित कराई जाएंगी। चालक अपनी समस्याएं सीधे मिलकर बता सकते हैं। सरकारी काम काज में चालकों के सुझाव शामिल किए जाएंगे।
शिव सहाय अवस्थी, डीएम
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