बड़े फलदार पेड़ों के कम होने से जैव विविधता पर छाया संकट
Prayagraj News - प्रयागराज में जैव विविधता पर संकट बढ़ रहा है। विकास की दौड़ में पारंपरिक पेड़ों की संख्या घट रही है, जिससे जैव विविधता और पारिस्थितिकी असंतुलित हो रही है। वैज्ञानिक डॉ. अनुभा श्रीवास्तव के अनुसार,...

प्रयागराज। जीव और प्रकृति एक दूसरे के पूरक हैं, लेकिन विकास की दौड़ में सबसे ज्यादा संकट प्रकृति पर है। क्योंकि इसका प्रभाव जल, जंगल और जमीन पर पड़ता है। यहां तक कि पारंपरिक पेड़ों की घटती संख्या और नदियों में बढ़ते प्रदूषण से जीव-जंतुओं और पादपों का संरक्षण नहीं हो पाता। इससे जैव विविधता और पारिस्थितिकी तेजी से असंतुलित होने लगती है। गुरुवार को अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस मनाया जाएगा। वैज्ञानिक डॉ. अनुभा श्रीवास्तव ने बताया कि आजकल कलमी फलदार पौधों का क्षेत्र बढ़ रहा है। इसलिए आम, बेल, महुआ, नीम, कटहल, शीशम व बरगद जैसे पारंपरिक पेड़ों की संख्या लगातार कम हो रही है।
जबकि पारंपरिक पौधे न केवल लंबे समय तक लकड़ी व फल देते हैं, बल्कि जैव विविधता के लिए महत्वपूर्ण होते हैं। जिला परियोजना अधिकारी एषा सिंह ने बताया कि नदियां जैव विविधता का जीवंत केंद्र होती हैं। क्योंकि नदियों में मछलियां, डॉल्फिन, कछुए, केकड़े, जलपक्षी और सैकड़ों सूक्ष्म जीव रहते हैं। डॉल्फिन जलजीवों की शृंखला में शीर्ष शिकारी होती हैं। इनके न होने से मछलियों और अन्य जीवों की संख्या असंतुलित हो सकती है।
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