बोले सहारनपुर : बेटियों के सपनों के मिले उड़ान तो बने आधी आबादी की पहचान
Saharanpur News - सहारनपुर की महिलाएं आत्मनिर्भरता की दिशा में बढ़ रही हैं, लेकिन उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। रोजगार मेले में 150 से अधिक महिलाओं ने अपनी प्रतिभा को प्रदर्शित किया और कंडक्टर बनने की...

सहारनपुर की आधी आबादी सपने पूरा करने के लिए प्रयास कर रही हैं, लेकिन उनके सामने अनेक समस्याएं है। कई बार कार्यस्थल पर सुरक्षा की कमी उन्हें असहज कर देती है। खासकर जहां रात्रि यात्रा या दूरदराज के क्षेत्रों में ड्यूटी होती है, वहां उनके लिए सुरक्षा के विशेष इंतजाम जरूरी हैं। साथ भी आज भी सरकारी योजनाओं की जानकारी से वंचित हैं बेटियां हर क्षेत्र में अपना नाम रोशन कर रही हैं। उड़नपरी पीटी ऊषा से शुरू करें तो कल्पना चावला से होते हुए मनु भाकर तक तमाम नाम गिने जा सकते हैं। विपरीत हालातों में भी इन बेटियों ने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। पढ़ाई से लेकर समाज में खुद को स्थापित करने की बात हो या नौकरी और अन्य कार्य, बेटियों के सामने दुश्वारियों का पहाड़ दिखता है। उन्हें अगर कुछ सहारा मिले, सहयोग किया जाए तो वे और ज्यादा गर्व का अनुभव करवा सकती हैं। सहारनपुर की बेटियां अपने सपने पूरा करने के लिए प्रयास कर रही हैं, लेकिन कुछ बाधाएं उनके कदम बार-बार पीछे खींचती हैं, मनोबल तोड़ती हैं। अगर इनका सहयोग किया जाए तो ये असली तरक्की की ओर बढ़ सकती हैं। बेटियां अब आत्मनिर्भर बनने की दिशा में ऐसे-ऐसे कार्यक्षेत्रों में प्रवेश कर रही हैं, जिनमें पहले केवल पुरुषों का ही दबदबा हुआ करता था। यही नहीं, वे अपने कार्यों से न केवल खुद को स्थापित कर रही हैं, बल्कि समाज का नजरिया भी बदल रही हैं।
मंगलवार को क्षेत्रीय प्रबंधक कार्यालय में आयोजित रोजगार मेले में करीब 150 बेटियों और महिलाओं ने हिस्सा लिया। इस आयोजन में एक खास बात यह रही कि इनमे से अनेक महिलाओं और युवतियों ने रोडवेज की बसों में कंडक्टर बनने में विशेष रुचि दिखाई। यह उस सोच की झलक है, जो अब महिलाओं को केवल घरेलू कार्यों तक सीमित नहीं रखना चाहती, बल्कि उन्हें हर वह अवसर देना चाहती है, जो उन्हें आत्मनिर्भर बना सके। उनका कहना था कि समाज में अब तक अधिकतर कार्यक्षेत्रों में पुरुषों को ही विशेष पहचान दी जाती रही है। चाहे वह प्रशासनिक सेवा हो, सुरक्षा विभाग हो, या फिर परिवहन का क्षेत्र - हर जगह पुरुषों की भूमिका को ही प्राथमिकता दी जाती रही है। लेकिन अब यह तस्वीर बदल रही है। महिलाएं न केवल इन क्षेत्रों में प्रवेश कर रही हैं, बल्कि खुद को साबित भी कर रही हैं। आज सहारनपुर में स्वास्थ्य विभाग में जिला अस्पताल व महिला अस्पताल की जिम्मेदारी, शिक्षा विभाग, पुलिस प्रशासन, बैंकिंग, उद्यमिता के बाद अब परिवहन क्षेत्र में भी महिलाएं जिम्मेदारी निभा रही हैं। यह बदलाव न सिर्फ उनकी कड़ी मेहनत और आत्मविश्वास का परिणाम है, बल्कि उन सरकारी योजनाओं और नीतियों का भी, जो महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देती हैं।
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रोजगार मेला, नए अवसरों का मंच
रोजगार मेले जैसे आयोजन महिलाओं के लिए नए अवसरों के द्वार खोलते हैं। मंगलवार को क्षेत्रीय प्रबंधक कार्यालय पर आयोजित इस रोजगार मेले में बेटियों ने यह साबित कर दिया कि अगर अवसर मिले तो वे किसी भी क्षेत्र में पुरुषों से पीछे नहीं हैं। खास बात यह रही कि कुछ युवतियों ने बताया कि वे बचपन से ही कुछ अलग करना चाहती थीं, लेकिन जानकारी के अभाव और सामाजिक दबाव के कारण अपनी इच्छाओं को दबा देती थीं। इस रोजगार मेले ने उन्हें वह मंच दिया, जहां उन्होंने पहली बार खुलकर अपने सपनों के बारे में बात की। कुछ ने कहा, हम कंडक्टर बनकर अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती हैं। एक अन्य युवती ने बताया, मुझे कभी नहीं लगा था कि यह भी हमारे लिए संभव है। लेकिन अब जब ऐसा मौका मिला है, तो मैं जरूर अपनी किस्मत आजमाऊंगी।
सुरक्षा और समर्थन की आवश्यकता
हालांकि आत्मनिर्भर बनने की इस राह में कई चुनौतियां भी हैं। महिलाओं ने इस दौरान यह भी साझा किया कि कई बार कार्यस्थल पर सुरक्षा की कमी उन्हें असहज कर देती है। खासकर जहां रात्रि यात्रा या दूरदराज के क्षेत्रों में ड्यूटी होती है, वहां उनके लिए सुरक्षा के विशेष इंतजाम जरूरी हैं। अगर सरकार और प्रशासन इस दिशा में ठोस कदम उठाए तो महिलाएं अधिक निश्चिंत होकर बिना किसी हिचक के बहुत आगे जा सकती है।
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सरकारी योजनाओं की जानकारी का अभाव
एक बड़ी चुनौती यह भी है कि कई महिलाएं आज भी सरकारी योजनाओं की जानकारी से वंचित हैं। चाहे वह प्रधानमंत्री मुद्रा योजना हो या महिला उद्यमिता योजना-जानकारी के अभाव में अनेक महिलाएं इन योजनाओं का लाभ नहीं उठा पातीं। ऐसे में जरूरी है कि ग्राम स्तर पर जागरूकता अभियान चलाए जाएं, पंचायत स्तर पर कैम्प लगाए जाएं और स्कूल-कॉलेजों में सेमिनार आयोजित किए जाएं। ताकि महिलाएं अपने अधिकार और अवसरों के बारे में जान सकें।
महिला सशक्तिकरण से मिला हौसला
महिला सशक्तिकरण ने आज हर बेटी को अपने भविष्य की दिशा तय करने का हौसला दिया है। पहले जहां बेटियों को पढ़ाई के बाद घर बैठा दिया जाता था, वहीं अब वे आगे बढ़कर करियर की राह चुन रही हैं। वे खुद को किसी भी क्षेत्र में कमतर नहीं मानतीं और यह सोच ही उन्हें विशेष बनाती है।
परिवर्तन की बयार
सहारनपुर जैसे जिले में जब महिलाएं रोडवेज बसों की कंडक्टर बनती हैं, जब वे अस्पतालों में वरिष्ठ चिकित्सक की भूमिका निभाती हैं, जब वे स्कूलों की प्रिंसिपल बनकर शिक्षा की दिशा तय करती हैं, तो यह बदलाव केवल आंकड़ों में नहीं, समाज की मानसिकता में भी दर्ज होता है। हर वो बेटी जो आत्मनिर्भर बनती है, अपने साथ-साथ दूसरों को भी प्रेरणा देती है। वह साबित करती है कि अवसर मिलने पर महिलाएं क्या कुछ नहीं कर सकतीं। वह समाज को एक नई दिशा देती है-जहां लैंगिक भेदभाव की कोई जगह नहीं।
राह कठिन जरूर, लेकिन असंभव नहीं
आत्मनिर्भरता की राह कठिन जरूर है, लेकिन असंभव नहीं। सहारनपुर की शहजादियां इस राह पर चल पड़ी हैं। वे जानती हैं कि उन्हें अपनी पहचान खुद बनानी है, अपने पंख खुद फैलाने हैं और आसमान को छूना है। रोजगार मेले में शामिल होने वाली महिलाएं जब रोडवेज में कंडक्टर की वर्दी पहनेंगी, यात्रियों का स्वागत करेंगी, टिकट काटेंगी और अपने मृदुल व्यवहार के साथ काम करेगी। तो यह सिर्फ नौकरी नहीं होगी, यह एक परिवर्तन की शुरुआत होगी। समाज को भी अब चाहिए कि वह इन महिलाओं के प्रयासों को सम्मान दे, उन्हें प्रोत्साहित करे, और उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चले। तभी एक सशक्त, समावेशी और आत्मनिर्भर भारत का सपना पूरा हो सकेगा।
खुद निर्णय लेने में कोई बाधा न बने
आज के दौर में बेटियों को माता-पिता उड़ने के लिए पंख तो दे रहे हैं पर आज भी उन्हें थोपे फैसलों पर निर्भर रहना पड़ता है। तभी उनके सपनों को रफ्तार नहीं मिलती। कुछ बेटियां ने कहा कि उन्हें अपने करियर के चुनाव में खुद निर्णय लेने का अधिकार नहीं है। अपने करियर में बनना कुछ चाहती हैं और माता-पिता की अनुमति के कारण उन्हें अपने सपनों को ताख पर रखना पड़ता है। बेटियों से देरी का कारण पूछा जाता है तो बेटों से क्यों नहीं।
सुरक्षा मिले या ऐसे ऑटो चलें जिनमें छात्राएं ही बैठे
घर से निकलने के बाद ऑटो लेना भी एक बड़ी चुनौती है, जब खुद ऑटो चालक लड़कियों को देखकर ऑटो में ज्यादा सवारियां बैठाते हैं। तो कहीं सवारियां ज्यादा होती हैं। ऐसे में या सुरक्षित सफर हो या ऐसे आटो का कान्सेप्ट हो जहां लड़कियों के लिए सेप्रेट ऑटो की व्यवस्था हो। जिससे असुरक्षा की भावना पूरी तरह से खत्म हो जाए।
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शिकायतें
1. ग्रामीण क्षेत्र में लाइब्रेरी न होने से घर से दूर पढ़ने जाना पड़ता है, जिससे आने और जाने में आधे से ज्यादा समय खराब हो जाता है।
2. हर समय परिवार हमारी सुरक्षा को लेकर चितिंत रहता है। कई बार सुरक्षा को देखते हुए घर से बाहर नहीं जाने दिया जाता है।
3. ऑटो में सफर के दौरान ऑटो चालक जानबूझकर अधिक लोगों को बैठाता है, जिससे तमाम दिक्कतें होती हैं।
4. करियर में अपने माता-पिता के कहने पर अपने सपनों को एक तरफ रखना पड़ता है क्योंकि उनकी अनुमति नहीं मिलती।
5. इंटर के किसी क्षेत्र में जाने की जानकारी नहीं होना भी बड़ी समस्या है। बेहतर गाइडेंस मिले तो समस्या खत्म होगी।
समाधान
1. हर क्षेत्र में एक लाइब्रेरी आवश्य होनी चाहिए, जिससे पढ़ाई के लिए घर से ज्यादा दूर न जाना पड़े। लड़कियों को आने-जाने में दिक्कत न हो
2. ग्रामीण क्षेत्रों में पुलिस कर्मी या महिला पुलिस कर्मी की तैनाती हो, ताकि बेटियां अपने घर सुरक्षित पहुंच सकें।
3. ऑटो में कम से कम चार लोग ही बैठाएं जाएं जिससे छेड़छाड़ जैसी घटनाओं पर रोक लगे। ऑटो चालक लड़कियों को देखकर ज्यादा लोगों को बैठाते हैं।
4. इंटर के बाद बेटियों के साथ माता-पिता की काउंसिलिंग होनी चाहिए, जिससे बेटियों के सपनों में कोई भी सेंध न लगा सके।
5. समय-समय पर बेटियों के लिए करियर काउसिलिंग होनी चाहिए, जिससे इंटर के बाद विषय व क्षेत्र चुनने में उन्हें कोई दिक्कत न हो सकें।
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हमारी भी सुनों
1.हम अब पीछे नहीं रहना चाहतीं। रोजगार मेले में भाग लेकर मुझे एहसास हुआ कि अब समय आ गया है खुद के लिए खड़े होने का। अगर हमें सही जानकारी और मौका मिले, तो हम भी परिवार और समाज के लिए मजबूत आधार बन सकती हैं। - राधा
2.सरकारी योजनाओं की सही जानकारी समय पर मिले तो हम महिलाएं भी आगे बढ़ सकती हैं। कई बार जानकारी के अभाव में हम अवसर खो देते हैं। मुझे लगता है कि पंचायत स्तर पर नियमित जानकारी देने की व्यवस्था होनी चाहिए। - शीतल
3.मुझे खुशी है कि महिलाएं अब कंडक्टर जैसी नौकरियों के लिए भी सामने आ रही हैं। यह समाज की सोच में बदलाव का प्रतीक है। मैं चाहती हूं कि हर लड़की अपने सपने पूरे करने के लिए निडर होकर आगे बढ़े। - स्वाति
4.हमारे यहां की लड़कियां अब अपने दम पर कुछ करना चाहती हैं। सरकार को चाहिए कि हमें प्रशिक्षण और सुरक्षा दोनों दे ताकि हम आत्मविश्वास से काम कर सकें। नौकरी करना अब मजबूरी नहीं, पहचान बन गई है। - सुशीला
5.जब मैंने देखा कि महिलाएं बसों में कंडक्टर बन रही हैं, तो मेरे अंदर भी आत्मविश्वास आया। यह कदम समाज की सोच को बदलने वाला है। मैं चाहती हूं कि ऐसी पहल हर जिले में हो। - अनु
6.हम महिलाएं सिर्फ घर की जिम्मेदारी ही नहीं, बाहर की जिम्मेदारी भी बखूबी निभा सकती हैं। अगर सही समय पर मार्गदर्शन और समर्थन मिले, तो हम समाज के हर क्षेत्र में बदलाव ला सकती हैं। - जगनेश
7.मुझे लगता है कि आत्मनिर्भर बनने के लिए केवल इच्छा ही नहीं, संसाधनों की भी जरूरत होती है। अगर सरकार प्रशिक्षण, सुरक्षा और सहयोग दे तो हम कहीं भी पीछे नहीं रहेंगी। - आकांक्षा शर्मा
8.रोजगार मेला हमारे लिए उम्मीद की किरण बनकर आया। यहां आकर मैंने जाना कि महिलाएं भी बसों की कंडक्टर बन सकती हैं। समाज को भी अब महिलाओं की क्षमता को पहचानना होगा। - पूजा सैनी
9.मैं गांव से हूं और मैंने पहली बार देखा कि महिलाएं कंडक्टर की नौकरी के लिए आवेदन कर रही हैं। यह बहुत गर्व की बात है। हमें और भी अवसर मिलने चाहिए ताकि हम अपने बच्चों के लिए अच्छा भविष्य बना सकें। - रामभतेरी
10.आज महिलाएं केवल सहयोगी नहीं, मुख्य भूमिका निभा रही हैं। रोजगार मेले में आकर यह विश्वास और मजबूत हुआ कि मेहनत और हौसला हो तो कुछ भी संभव है। अब हमें भी समाज में बराबरी का दर्जा चाहिए। - मानसी
11.मैंने अपनी जिंदगी में कभी नहीं सोचा था कि महिलाएं बसों में कंडक्टर बनेंगी। अब लगता है कि समय बदल रहा है। हमें जरूरत है अवसरों की और जानकारी की ताकि हम भी आत्मनिर्भर बन सकें। - सुशीला
12.मुझे कंडक्टर की नौकरी में बहुत रुचि है। यह न केवल नौकरी है, बल्कि एक आत्मसम्मान की बात है। मैं चाहती हूं कि महिलाएं हर क्षेत्र में आगे आएं और खुद पर विश्वास करें। - प्रीति
13.सरकारी योजनाएं तो बहुत हैं, लेकिन जानकारी का अभाव है। रोजगार मेला जैसी पहल बहुत जरूरी हैं। अगर गांव-गांव जाकर जानकारी दी जाए, तो हर महिला अपने पंख फैला सकती है। - अंजना
14.हमारे समाज में अभी भी महिलाओं को सीमित भूमिकाओं में देखा जाता है। लेकिन अब समय बदल रहा है। हमें जरूरत है सहयोग, सुरक्षा और सही मार्गदर्शन की ताकि हम भी सम्मान से अपनी पहचान बना सकें। - ज्योति
15.रोजगार मेले में भाग लेकर बहुत कुछ सीखा है। अब समझ में आया कि अगर महिलाएं आगे आना चाहें तो कोई रोक नहीं सकता। हमें खुद पर भरोसा रखना होगा। - कोमल
16.मैं चाहती हूं कि लड़कियों को शुरुआत से ही आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा मिले। उन्हें स्कूलों में ही बताया जाए कि उनके लिए क्या-क्या अवसर हैं। आत्मनिर्भर महिला ही सशक्त समाज की नींव है। - मोनिका
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फोटो-- कंटेंट: साहिल राणा, फोटो: एच. शंकर शुक्ल
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