बोले सहारनपुर : गिहार समाज को मिलें सुविधाएं तो सुधरे जीवन
Saharanpur News - महानगर में गिहार जाति के लगभग तीन हजार लोग निवास करते हैं। ये हस्त कारीगर हैं, लेकिन शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और सामाजिक सुरक्षा जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी से जूझ रहे हैं। बेरोजगारी और कम आमदनी के...

महानगर में गिहार जाति के करीब तीन हजार लोग निवास करते हैं। इस जाति के ज्यादातार लोग हस्त कारीगर हैं जो बांस और सरकंडे से चिक, मूढ़ा, मेज, सूप आदि तैयार कर गुजर-बसर करते हैं। इनके परिवार की महिलाएं पुराने कपड़े लेकर स्टील के बर्तन देने के रोजगार से जुड़ी हैं। लेकिन शक्षिा, स्वास्थ्य, आवास, रोजगार और सामाजिक सुरक्षा जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी इनके जीवन को प्रभावित कर रही है। जोगियान पुल के कृष्णपुरा इलाके में इनकी एक कॉलोनी बनी है। साथ ही पांवधोई नदी किनारे अपने अस्थायी ठिए बनाए हुए हैं। यहां लोग बांस और सरकंडे से चिक, मेज, मूढ़ा और सूप तैयार करते हैं। इनकी शिकायत है कि इतनी मेहनत के बावजूद इनको उचित दाम नहीं मिलता। मजबूरन इनके परिवार के सदस्य दूसरे कामों की तलाश में जुट गए हैं।
जोगियान पुल के कृष्णपुरा इलाके में इनकी एक कॉलोनी बनी है। जहां की संकरी गलियों में काफी संघर्षपूर्ण जीवन व्यतीत कर रहे हैं। पुरुषों ने पांव धोई नदी किनारे अपने अस्थायी ठिए बनाए हुए हैं। जहां यह लोग बांस और सरकंडे से चिक, मेज, मूढ़ा और सूप तैयार करते हैं। परिवार के सभी सदस्य उनकी मदद करते हैं। एक चिक बनाने में करीब सारा दिन बीत जाता है। इनकी शिकायत है कि इतनी मेहनत के बावजूद इनको उचित दाम नहीं मिलता। मजबूरन इनके परिवार के सदस्य दूसरे कामों की तलाश में जुट गए हैं। जिसके चलते तीन पीढ़ियों से चला आ रहा हस्तकारीगर का काम अपनी पहचान खो रहा है। चिक बनाने वाले प्रवेश ने बताया कि हमारा जाति अनूसूचित जाति में आती है। इसके बावजूद हमें सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा है। कोई बैंक ऋण नहीं देता। जिससे हम अपने काम को एक अलग पहचान देने में नाकाम साबित हो रहे हैं। सरकार अगर मदद करे तो हमारा रोजगार भी बढ़ेगा और आमदनी भी दोगुनी हो जाएगी। बदलते समय के साथ कारोबार करने का तरीका भी बदला है। सरकार हमे आधुनिक प्रशिक्षण, ऑनलाइन ट्रेडिंग की जानकारी और सस्ती दरों पर लोन उपलब्ध कराए तो कारोबार को विकास के पंख लगेंगे। गिहार समाज भी आधुनिक और विकसित भारत में अहम योगदान दे सकेगा।
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बेरोजगारी भत्ते की मांग
बेरोजगारी की समस्या ने गिहार समुदाय के युवाओं को सबसे ज्यादा प्रभावित किया है। पढ़े-लिखे युवा भी नौकरी की तलाश में दर-दर भटक रहे हैं। इनका कहना है कि जब तक रोजगार नहीं मिलता, तब तक सरकार को बेरोजगारी भत्ता देना चाहिए ताकि वे सम्मानपूर्वक जीवन यापन कर सकें।
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मेहनत ज्यादा, आमदनी कम
गिहार जाति के लोगों का जीवन कठिन मेहनत पर आधारित है। कई लोगों ने बताया कि वे 10-12 घंटे मेहनत करते हैं, लेकिन आमदनी इतनी कम मिलती है कि घर चलाना मुश्किल होता है। एक बुजुर्ग व्यक्ति ने कहा कि सरकारी मदद नहीं मिली तो अपना काम छोड़कर मजदूरी करनी पड़ेगी।
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आयुष्मान कार्ड की मांग
गिहार समुदाय के अधिकांश लोगों के पास आयुष्मान भारत योजना का कार्ड नहीं है। बिना इस कार्ड के वे न तो सरकारी अस्पतालों में मुफ्त इलाज करवा पा रहे हैं और न ही बड़ी बीमारियों का खर्च उठा पा रहे हैं। एक महिला ने बताया,मेरे पति की तबीयत खराब हुई, लेकिन हमारे पास इलाज के पैसे नहीं थे। आयुष्मान कार्ड होता तो मदद मिल जाती।
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प्रधानमंत्री आवास की मांग
गिहार समुदाय के बहुत से लोग आज भी कच्चे मकानों में रहते हैं। बरसात, सर्दी और गर्मी में ये मकान उनकी सुरक्षा नहीं कर पाते। एक व्यक्ति ने कहा, हमने कई बार प्रधानमंत्री आवास योजना के लिए आवेदन दिया, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। इनकी मांग है कि सरकार गिहार जाति के पात्र लोगों को प्राथमिकता देते हुए आवास योजनाओं का लाभ दे ताकि वे भी सम्मानजनक जीवन जी सकें।
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सस्ती दरों पर लोन की मांग
गिहार जाति के कई लोग छोटे-मोटे काम जैसे सब्जी बेचना, सिलाई-कढ़ाई या रेहड़ी-पटरी का काम करना चाहते हैं, लेकिन पूंजी न होने के कारण वे शुरुआत नहीं कर पाते। इनका कहना है कि यदि सरकार उन्हें कम ब्याज पर या बिना ब्याज के लोन दे तो वे आत्मनिर्भर बन सकते हैं। एक युवक ने कहा हम काम करना चाहते हैं, लेकिन शुरुआत के लिए पैसे नहीं हैं। बैंक लोन भी नहीं देते, क्योंकि हमारे पास गारंटी नहीं होती।
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महंगी शिक्षा की समस्या
गिहार जाति के बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं, लेकिन गुणवत्ता और संसाधनों की कमी के कारण उन्हें अच्छी शिक्षा नहीं मिल पाती। जो थोड़ा बेहतर करना चाहते हैं, उनके सामने फीस और खर्च की बड़ी बाधा होती है। एक महिला ने बताया कि बेटे को प्राइवेट स्कूल में डालना चाहा, लेकिन फीस नहीं भर पाए। सरकारी स्कूल में पढ़ता है, पर वहां पढ़ाई नाम मात्र की है। इनकी मांग है कि सरकार गिहार समाज के बच्चों को मुफ्त और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराए, साथ ही स्कॉलरशिप की सुविधा भी दी जाए।
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सरकारी मदद की मांग
सरकार की कई योजनाएं हैं, लेकिन गिहार जाति तक उनकी पहुंच बेहद कम है। जानकारी का अभाव, दस्तावेजों की कमी, और भेदभाव जैसी समस्याएं उन्हें इन योजनाओं का लाभ उठाने से रोकती हैं।
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समस्याएं
-रोजगार की समस्या
-आमदनी कम होने की समस्या
-सरकारी योजनाओं की जानकारी नहीं होने की समस्या
-बेरोजगारी की समस्या
-स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ नहीं मिलने की समस्या
सुझाव
-बेरोगारी भत्ते की मांग
-सरकारी योजनाओं का लाभ मिले
-सस्ती दरों पर लोन की मांग
-मुफ्त आधुनिक शिक्षा की मांग
-ऑनलाइन ट्रेडिंग के लिए प्रशिक्षण की मांग
0-वर्जन
सरकार को चाहिए कि वह विशेष कार्ययोजना बनाकर गिहार समाज को विकास की धारा में शामिल करे - तभी एक समावेशी भारत का सपना साकार हो सकेगा। सुधीर कुमार
सरकार को रोजगार के अवसर बढ़ाने चाहिए और विशेषकर हमारे समुदाय के लिए अलग योजनाएं बनानी चाहिए ताकि हमारा सामाजिक-आर्थिक स्तर सुधर सके। ओमनाथ
रोजगार, स्वास्थ्य, शिक्षा, आवास, और सामाजिक सुरक्षा जैसे अधिकार हर नागरिक का हक है, लेकिन गिहार समाज आज भी इन अधिकारों से वंचित है। प्रवेश
सरकार को चाहिए कि वह विशेष कार्ययोजना बनाकर गिहार समाज को विकास की धारा में शामिल करे। तभी एक समावेशी भारत का सपना साकार हो सकेगा। पवन कुमार
महंगाई और आर्थिक मंदी का असर हमारे समाज पर सबसे ज्यादा पड़ा है। रोजगार का संकट खड़ा हो गया है। सरकारी योजनाओं का लाभ मिले तभी राहत मिलेगी वरना दूसरे काम की तलाश करनी होगी। सीमा
गिहार जाति के युवाओं ने पढ़ाई तो की है, लेकिन रोजगार नहीं मिल रहा। न सरकारी नौकरी में अवसर मिलते हैं, न ही निजी क्षेत्र में स्वीकारा जाता है। गोविंदा
इनकी मांग है कि सरकार गिहार समाज के बच्चों को मुफ्त और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराए, साथ ही स्कॉलरशिप की सुविधा भी दी जाए। जितेंद्र गिहार
गिहार जाति के बुजुर्गों की हालत भी दयनीय है। उन्हें न पेंशन मिलती है, न कोई सामाजिक सुरक्षा। वृद्धापेंशन के लिए विशेष कैंप लगाए जाने चाहिए। गुडडो
सबसे बड़ी समस्या रोजगार की है। सरकार को पढ़े-लिखे युवाओं के लिए रोजगार के अवसर प्रदान कराने चाहिए। जिससे उनका भविष्य सुरक्षित हो सके। राम सिंह,
सस्ती दरों पर लोन की सुविधा मिलनी चाहिए। हमारे समाज के पास हुनर तो है लेकिन पूंजी नहीं है। हम अपने काम को नई उचाईयों पर ले जाना चाहते हैं। लेकिन पूंजी की कमी के चलते समस्या हो रही है। सुखदेही
दूसरे शहरों में भी हमारे द्वारा तैयार किए गए चिक, मूड़ा, मेज बेची जाती है। काम मे काफी स्कोप है लेकिन उचित दाम नहीं मिलने के चलते लोग इस काम को छोड़कर दूसरे कामों में हाथ आजमा रहे हैं। भोला
पूरे जनपद में गिनती के लोग ही इस पेशे से जुड़े हैं। हमारा काम हस्तशिल्प कला के अंतर्गत आता है। अगर सरकारी योजनाओं का लाभ मिले तो कारोबार को दो से तीन गुना किया जा सकता है। रोहित
10-12 घंटे मेहनत करते हैं, लेकिन आमदनी इतनी कम मिलती है कि घर चलाना मुश्किल होता है। अगर यही हालात रहे तो दशको पुराना काम छोड़कर दूसरे विकल्प तलाश करने पड़ेंगे। बिटटू
सामाजिक भेदभाव का सामना करना पड़ता है। देश बदल गया है, लेकिन कुछ लोगों की सोच अभी भी नहीं बदली है। सामाजिक भेदभाव समाप्त होना चाहिए। भानु
कंटेंट-मनोज नरुला/फोटो-एच शंकर शुक्ला
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