बोले सहारनपुर : सुविधाओं को तरस रहे सैलून संचालक
Saharanpur News - जिले के हजारों बार्बर आज जीविकोपार्जन के लिए संघर्ष कर रहे हैं। आधुनिकता के चलते लोग महंगे सैलून की ओर बढ़ रहे हैं, जिससे पारंपरिक बार्बरों की आमदनी प्रभावित हुई है। बार्बर समाज को सरकारी योजनाओं और...
जिले के कोने-कोने में बाल काटने और दाढ़ी बनाने जैसे पारंपरिक कार्यों से जुड़े हजारों सैलून संचालक आज भी जीविकोपार्जन के लिए संघर्ष कर रहे हैं। यह समाज वर्षों से अपनी सेवाएं देता आ रहा है, लेकिन आज जब देश आधुनिकता की ओर बढ़ रहा है, तब भी यह समुदाय पीछे छूटता जा रहा है। बढ़ती महंगाई और प्रतिस्पर्धा के चलते बारबरों की आमदनी पर गहरा असर पड़ा है। एक समय था जब गांव-गांव में बारबरों की स्थायी जरूरत मानी जाती थी, परंतु अब लोग महंगे सैलून और ब्रांडेड हेयर कटिंग शॉप की ओर रुख करने लगे हैं। इसका सीधा असर पारंपरिक बारबर की आय पर पड़ा है। बारबर समाज की समस्याएं केवल आर्थिक नहीं, बल्कि सामाजिक और संरचनात्मक भी हैं। इस समुदाय को मुख्यधारा में लाने के लिए समर्पित योजनाओं और वास्तविक क्रियान्वयन की आवश्यकता है। यदि सरकार और समाज मिलकर प्रयास करें तो बारबर न केवल आत्मनिर्भर बन सकते हैं, बल्कि अपने पेशे को नई ऊंचाइयों तक ले जा सकते हैं।
जिले में करीब 25 हजार लोग बाल कटिंग पेशे से जुड़े हुए हैं। ग्रामीण क्षेत्र से लेकर शहर के किसी भी कोने में हेयर सैलून की दुकानें देखी जा सकती हैं। एक समय था जब थोड़ी सी पूंजी में ही कारोबार शुरु हो जाता था। लेकिन बदलते समय के साथ सैलून खोलना काफी मंहगा हो गया है। इस क्षेत्र में दूसरे समुदाय के लोग भी आ गए हैं। अब यह किसी समाज की पहचान ना होकर एक बड़े कारोबार में तब्दील हो गया है। जिसका खामियाजा परंपरागत रुप से करते आ रहे समुदाय को उठाना पड़ रहा है। बाल काटने और शेव बनाने तक ही पेशा सीमित नहीं रहा है। बालों के लिए नए नए स्टाईल आ रहे हैं।
जिनको काटने के लिए अलग अलग तरीके भी इजाद किए जा रहे हैं। छोटी सी पूंजी में शुरु होने वाला पेशा लाखों की लागत मांग रहा है। जो लोग बदलते समय के साथ प्रशिक्षण हासिल नहीं कर पाए वो समुदाय आज रोजगार को तरस रहा है। लोग छोटी दुकान पर जाने के बजाए मंहगे पार्लर का रुख कर रहे हैं। प्रतिस्पर्द्धा में पिछड़ने वाले अपनी दुकान बंदकर पार्लर में नौकरी करने को मजबूर हो गए हैं। इनकी मांग है कि सरकार इन्हें मुफ्त प्रशिक्षण और सस्ती दरों पर लोन उपलब्ध कराए जिससे यह आधुनिक पार्लर का मुकाबला कर सकें और अपरे परंपरागत पेशे को जिंदा रख सकें।
हैयर सैलून में मिलने वाली सेवाएं
हैयर सैलून में बाल कटवाना, स्टाइलिंग, रासायनिक उपचार(रंग,हाइलाइट, पर्म और केराटिन), बाल और स्कैल्प उपचार, दाढी और मूंछों को आकार देने की सेवाएं प्रदान की जाती हैं।
स्वास्थ्य बीमा से वंचित बार्बर
अधिकांश बार्बर असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं, जिससे वे आयुष्मान भारत या राज्य सरकारों की स्वास्थ्य योजनाओं का लाभ नहीं उठा पाते। स्वास्थ्य बीमा न होने के कारण छोटी सी बीमारी भी आर्थिक संकट बन जाती है।
महंगे प्रोडक्ट्स का बोझ
बालों की देखभाल से जुड़े शैंपू, कंडीशनर, हेयर जेल, क्रीम आदि की कीमतें लगातार बढ़ती जा रही हैं। बार्बर की जेब पर इसका भारी असर पड़ता है क्योंकि ये प्रोडक्ट ग्राहकों की मांग पर अनिवार्य हो गए हैं।
प्रशिक्षण की भारी कमी
आज के दौर में हेयर स्टाइलिंग एक कला बन चुकी है, जिसकी मांग भी बहुत है। परंतु बार्बर समाज को आधुनिक हेयर स्टाइलिंग, ग्रूमिंग और सैलून मैनेजमेंट का प्रशिक्षण नहीं मिल पा रहा है। यदि प्रशिक्षण दिया जाए, तो ये युवा रोजगार के बेहतर अवसरों को हासिल कर सकते हैं।
जातिगत भेदभाव का दंश
अब भी कई क्षेत्रों में बार्बर जातिगत भेदभाव का शिकार होते हैं। उन्हें सामाजिक तौर पर सम्मान नहीं मिल पाता। यह स्थिति लोकतांत्रिक मूल्यों के विरुद्ध है और इसे समाप्त करना अत्यंत आवश्यक है।
लोन की सुविधा नहीं मिलती
बैंक और वित्तीय संस्थाएं बार्बर समाज को आसानी से लोन नहीं देतीं। कर्ज की प्रक्रियाएं जटिल होती हैं और बार्बर जैसे असंगठित श्रमिक अक्सर दस्तावेज़ों की कमी के कारण वंचित रह जाते हैं। सस्ती दरों पर लोन मिलना उनकी आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देगा।
समस्याएं एवं मांगे
-आय में कमी की समस्या
-सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिलने की समस्या
-स्वास्थ्य बीमा का लाभ नहीं मिलने
-रोजगार की समस्या
-मंहगे प्रोडक्ट की समस्या
मांग
-आधुनिक सैलून और हेयर स्टाइंलिंग के बारे में प्रशिक्षण दिया जाए
-श्रमिक सुविधाओं का लाभ मिले
-जातिगत भेदभाव खत्म होना चाहिए
-सामाजिक सुरक्षा प्रदान की जाए
-सस्ती दरों पर लोन की सुविधा मिले
वर्जन.........
पारंपरिक कार्यों से जुड़े हजारों बार्बर आज भी अपने जीविकोपार्जन के लिए संघर्ष कर रहे हैं। आज जब देश आधुनिकता की ओर बढ़ रहा है, तब बार्बर समुदाय पीछे छूटता जा रहा है। मास्टर आसिफ
वर्जन
बढ़ती महंगाई और प्रतिस्पर्धा के चलते बार्बरों की आमदनी पर गहरा असर पड़ा है। अब लोग महंगे सैलून और ब्रांडेड हेयर कटिंग शॉप की ओर रुख करने लगे हैं। इसका सीधा असर पारंपरिक बार्बर की आय पर पड़ा है। चांद
वर्जन
सरकार द्वारा चलाई जा रही स्वरोजगार और उद्यमिता से जुड़ी योजनाएं बार्बर समाज तक नहीं पहुंच पा रही हैं। जागरूकता की कमी और कागजी कार्यवाई की जटिलता हमारे लिए सबसे बड़ी बाधा बन चुकी है। अफजाल
वर्जन
रोजगार के अवसर सीमित हो गए हैं। शहरी इलाकों में कॉम्पिटिशन बहुत ज्यादा है, जिससे बार्बर रोजगार के स्थायित्व को लेकर चिंतित रहते हैं। सुहैल
वर्जन
आज के दौर में हेयर स्टाइलिंग एक कला बन चुकी है, जिसकी मांग भी बहुत है। परंतु बार्बर समाज को आधुनिक हेयर स्टाइलिंग, ग्रूमिंग और सैलून मैनेजमेंट का प्रशिक्षण नहीं मिल पा रहा है। इरशाद
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