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संवारी जा रहीं हैं जिले की धरोहरें, बन रहे पर्यटन केन्द्र

Santkabir-nagar News - संतकबीरनगर, हिन्दुस्तान टीम। संतकबीरनगर जिले में जनपद की धरोहरों को संवारने का

Newswrap हिन्दुस्तान, संतकबीरनगरFri, 18 April 2025 12:22 PM
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संवारी जा रहीं हैं जिले की धरोहरें, बन रहे पर्यटन केन्द्र

संतकबीरनगर, हिन्दुस्तान टीम। संतकबीरनगर जिले में जनपद की धरोहरों को संवारने का काम तेजी से चल रहा है। कभी उपेक्षित पड़ी मगहर में संत कबीरदास की परिनिर्वाण स्थली बेहतर सुविधाओं के साथ प्रमुख पर्यटक स्थल के रूप में विकसित की गई है। इसके अलावा धर्मसिंहवा में बौद्ध स्तम्भ के विकास का कार्य भी तेजी से चल रहा है। इनके विकसित होने से जनपद में पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा। मगहर में संतकबीर पर शोध कार्य के लिए संतकबीर अकेडमी स्थापित की गई है। मगहर में अब पर्यटकों की संख्या बढ़ जाएगी। वहीं विश्व में सबसे पहले धान की खेती का प्रमाण देने वाला लहुरादेवा के भी विकास की कार्ययोजना बनाकर प्रस्ताव भेजा गया है।

विश्व प्रसिद्ध महान संत कबीर दास की निर्वाण स्थली मगहर है। जो पर्यटन के लिहाज से महत्वपूर्ण है। यह विश्व का अद्वितीय स्थल है। जहां एक ही शख्स की समाधि व मजार एक ही परिसर में है। इसलिए इस स्थली को देखने के लिए देश ही नहीं विदेश से पर्यटक आते रहते हैं। यहां तक सड़क मार्ग के द्वारा पहुंचा जा सकता है। हाईवे के किनारे स्थित व मात्र एक किलोमीटर की दूरी होने के कारण पर्यटकों को आवागमन में परेशानी नहीं होती है I हाईवे से उतर कर लोग निर्वाण स्थली तक ई-रिक्शा से आसानी से पहुंच जाते हैं। यहां ट्रेन का ठहराव न होना इसकी महत्ता को चार चांद नहीं लग पा रहा है। इसके अलावा संतकबीर अकेडमी भी लोगों को लुभा रही है। यहां पर शोध छात्रों को संत कबीर पर शोध करने में मदद मिलेगी। आने वाले दिनों में यहां देश ही नहीं दुनिया भर से आने वाले छात्र कबीर पर शोध करते हुए दिखेंगे। यहां के आडिटोरियम में सांस्कृतिक विभाग विभिन्न अवसरों पर कार्यक्रमों का आयोजन करता है।

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गिरे बौद्ध स्तम्भ को किया संरक्षित

धर्मसिंहवा कस्बे में स्थित बौद्ध स्थली को पर्यटन स्थल के रूप में चयनित कर विकसित किया जा रहा है। पर्यटन विभाग ने यहां का दौरा कर विकास की रणनीति बनाई है। इस स्थल को धम्मसिंहा के नाम से जाना जाता है। यहां पर बौद्ध यात्री आकर रुकते थे। तत्कालीन सांसद स्व शरद त्रिपाठी और पूर्व विधायक राकेश सिंह बघेल ने यहां के बौद्ध स्थल के विकास के लिए काफी प्रयास किया था। पुरातत्व विभाग द्वारा कुछ काम भी करवाया गया था। यहां का बौद्ध स्तंभ वर्ष 2020 की बरसात में गिर गया था। इसके बाद बौद्ध स्तंभ के अवशेष संरक्षित करते हुए ऊपर से एक माडल बना दिया गया है। यहां पर बौद्ध स्तम्भ के संरक्षण, एक लाईब्रेरी का निर्माण होगा जिसमें बौद्ध स्तंभ की यादों से जुड़े अवशेष संरक्षित किए जाएंगे, बौद्ध स्तूप के बगल में स्थित पोखरे के चारो तरफ लाईट और इंटरलाकिंग करवाई जाएगी। परिसर में बाउंड्री वाल और इंटरलाकिंग करवाया जाना है। बौद्ध स्तूप को संरक्षित किया गया है। थोड़ी दूर इंटरलाकिंग सड़क और बांउड्री वाल बनाई गई है।

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लहुरादेवा के विकास के लिए भेजा गया है प्रस्ताव

जनपद के लहुरादेवा में खुदाई में विश्व में सबसे पहले धान की खेती करने के प्रमाण मिले थे। खुदाई की जगह को दोबारा मिट्टी से भरकर यूं ही छोड़ दिया गया। धान की भूसी की कार्बन डेटिंग से ईसा पूर्व छह हजार से नौ हजार साल पहले तक की सभ्यता का पता चला है। लहुरादेवा ऐतिहासिक महत्व की जमीन है। 2000 से 2008-09 तक चली खुदाई में ईसा पूर्व 9000 से 6000 तक की धान की भूसी, मृदभांड, कुआं, बड़ी-बड़ी ईंटें और दूसरे कई अवशेष मिले। लहुरादेवा को दक्षिण एशिया की सबसे आरम्भिक नियोलिथिक साइटों में गिना जाने लगा। पुरातत्वविद राकेश तिवारी ने भी 2009 में एक रिपोर्ट दी। कार्बन डेटिंग के आधार कहा गया कि लहुरादेवा से मिले धान की भूसी और चावल 9000 ईसा पूर्व और 8000 ईसा पूर्व के बीच के समय का है। लेकिन इन सबके बावजूद वहां खुदाई की जगह को मिट्टी से भरकर यूं ही छोड़ दिया गया। अब जिला प्रशासन ने इसके विकास की सुधि ली है। यहां के विकास के लिए प्रस्ताव तैयार कर शासन को भेजा गया है। ताकि इसे पर्यटन केन्द्र के रूप में विकसित किया जा सके। यहां एक संग्रहालय बनाने का भी प्रस्ताव है जिसमें यहां खुदाई में मिली सामग्री रखी जाएंगी। इससे शोध कार्य करने वाले छात्रों को मदद मिलेगी।

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