Efforts to Bring Buddha s Relics to Kapilvastu Fail Hindering Tourism Development बुद्ध के अस्थि कलश लाने की नहीं बन पा रही बात, आए तो बढ़ जाए आकर्षण, Siddhart-nagar Hindi News - Hindustan
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बुद्ध के अस्थि कलश लाने की नहीं बन पा रही बात, आए तो बढ़ जाए आकर्षण

Siddhart-nagar News - चित्र परिचय 03 एआईडीडी 31: बुद्ध की क्रीड़ास्थली में मौजूद स्तूप नहीं विदेशों में भी पहचान का मोहताज नहीं है। कपिलवस्तु में भगवान बुद्ध के अस्थि का अस

Newswrap हिन्दुस्तान, सिद्धार्थMon, 3 March 2025 11:26 PM
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बुद्ध के अस्थि कलश लाने की नहीं बन पा रही बात, आए तो बढ़ जाए आकर्षण

सिद्धार्थनगर, हिटी। नेपाल सीमा से सटे जिले का कपिलवस्तु देश नहीं विदेशों में भी पहचान का मोहताज नहीं है। कपिलवस्तु में भगवान बुद्ध के अस्थि का अस्टम भाग दफन था जिसे अंग्रेज खोद कर ले गए थे। लंबे समय तक कोलकाता और अब दिल्ली के म्यूजियम में है। उसे सिद्धार्थनगर (कपिलवस्तु) लाने का लंबे समय से चल रहा प्रयास आज भी विफल है। अगर अस्थि कलश आ जाए तो देशी, विदेशी सैलानियों की आमद बढ़ेगी और पिछड़े जिले में विकास के द्वार खुल जाएंगे।

राजा शुद्धोधन की राजधानी गनवरिया (कपिलवस्तु से एक किमी पहले) कभी वैभवशाली नगरी थी। यहां राजकुमार सिद्धार्थ ने रहते हुए संसार की नश्वरता और दुखों को देखकर सन्यास ले लिया था। उन्होंने अपनी तप-साधना पूर्ण होने पर बोध ज्ञान प्राप्त किया और भगवान बुद्ध कहलाए। बाद में पूरे विश्व में शांति, अहिंसा व करुणा का संदेश दिया। कपिलवस्तु स्थित मुख्य स्तूप के दर्शन के लिए प्रतिवर्ष हजारों की संख्या में विदेशों से बौद्ध अनुयायी आते हैं।

1898 में पेपे ने स्तूप की कराई थी खोदाई

गजेटियर के मुताबिक जिला मुख्यालय से 22 किमी दूर भगवान बुद्ध की धरती कपिलवस्तु में वर्ष 1898 में अंग्रेज जमींदार डब्ल्यूसी पेपे ने कुछ खुदाई कराई तो उसके आश्चर्य की सीमा न रही। जब पता चला कि वहां तो एक स्तूप है। स्तूप की खुदाई करने पर एक सेलखड़ी (चॉक स्टोन) का बना कलश मिला, जिस पर अशोक कालीन ब्राह्मी लिपि में-सुकिती भतिनाम भगिनी का नाम-सा-पुत-दात्नानाम इयम सलीला-निधाने-बुद्धस भगवते साक्यिानाम लिखा था।

प्रयास के बाद भी नहीं आ पा रहा अस्थि कलश

इतिहासकारों ने अस्थि कलश को इस तरह अनुवाद किया है कि बुद्ध भगवान के अस्थि अवशेषों का यह पात्र शाक्य सुकिती भ्रातृ, उनकी बहनों, पुत्रों और पत्नियों द्वारा दान किया गया है। यह पात्र आज भी दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में रखा है। भगवान बुद्ध के महापरिनर्विाण के बाद उनके अस्थि अवशेष आठ भागों में विभाजित किए गए थे। एक भाग भगवान बुद्ध के शाक्य वंश को भी प्राप्त हुआ था। पेपे को ये अवशेष आठ फीट की गहराई पर मिला था।

1971 में पुरातत्व विभाग ने की थी खोदाई

1971 में तत्कलीन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के निदेशक केएम श्रीवास्तव ने उस स्थान पर खोज व खुदाई का काम कराया था। स्तूप में लगभग 10 फीट गहराई पर चौकोर पत्थर के एक बाक्स मिला जिसमे कलश मिले थे। दोनों ही अंग्रेज लेकर चले गए थे। ये दोनों पात्र और अस्थियां नेशनल म्यूजियम जनपथ नई दिल्ली में रखे हैं।

बजट में कपिलवस्तु की अनदेखी

केंद्र व प्रदेश सरकार के बजट में बुद्ध भूमि के विकास के लिए कुछ नहीं मिला। यहां की हालत यह है कि न ठहरने की व्यवस्था है और न खान पान का इंतजाम है। देशी, विदेशी पर्यटक कुछ देर रहने बाद वाद वापस चले जाते हैं। अगर यहां रहने और खाने की ही व्यवस्था हो जाए तो उनका ठहराव होगा और विकास खुद ब खुद हो जाएगा।

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