बोले उन्नाव : स्कूलों की दुकानों से संकट में हमारा व्यापार
Unnao News - इंटरनेट के प्रचलन ने स्टेशनरी दुकानदारों के कारोबार को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। बिक्री 60 से 80 फीसदी तक गिर गई है और ऑनलाइन शिक्षा के कारण किताबों की मांग कम हो गई है। जीएसटी और कोरोना काल के...

इंटरनेट के बढ़ते प्रचलन ने स्टेशनरी के होलसेल और फुटकर दुकानदारों पर खासा असर डाला है। दुकानदारी प्रभावित हुई, जबकि निजी स्कूलों में कॉपी-किताब और स्टेशनरी के सामान तय दुकान से खरीदने की बाध्यता ने तो उनकी कमर ही तोड़ दी है। इस वजह से उनका कारोबार सिकुड़ता जा रहा है। आपके अपने अखबार ‘हिन्दुस्तान से स्टेशनरी दुकानदारों ने अपनी पीड़ा साझा की। सभी ने एकसुर में कहा कि सीजन के दिनों को छोड़ दिया जाए तो बिक्री 60 से 80 फीसदी तक गिर गई है। मोबाइल के इस दौर में बोर्ड परीक्षा के सॉल्व और अनसॉल्व पेपर लेने के लिए कम संख्या में बच्चे आ रहे हैं। शहर में ट्रांसपोर्टेशन की व्यवस्था भी ठीक नहीं है। इन समस्याओं से वे निजात चाहते हैं।
कागज कलम दवात ला, लिख दूं दिल तेरे नाम करूं...अभिनेता गोविंदा की एक फिल्म में यह गाना एक दशक पहले खूब चला था। लेकिन, अब नए दौर में कागज, कलम, दवात की जगह मोबाइल, टैब और कंप्यूटर ने ले ली है। बदलते वक्त ने अपने को ऐसा बदला कि अब फॉर्म से लेकर पढ़ाई तक सब ऑनलाइन है। फॉर्म की जरूरत पड़े या प्रतियोगी परीक्षाओं की किताबों का पाठ्न करना हो, सब कुछ नेट पर उपलब्ध है। फुटकर स्टेशनरी का कारोबार करने वाले व्यापारी विनोद जिंदल और संतोष दीक्षित कहते हैं कि साल 2002 में जब दुकान का संचालन शुरू किया तो हर दिन सुबह से भीड़ नजर आती थी। शाम को फुर्सत के पल नहीं रहते थे। प्रतियोगिता के लिए परीक्षाओं की तैयारी करने वालों की पसंदीदा किताबों का जत्था भी उनके आगे कम पड़ जाता था। अतिरिक्त ऑर्डर पर किताबें दिल्ली, बनारस, कानपुर, लखनऊ तक से मंगाते थे। पेन-पेंसिल के अलावा कागज पर तब कोई टैक्स नहीं था। छोटे-बड़े दुकानदार सस्ती दरों पर इसकी बिक्री करते थे। मुनाफा भी उसी दौर में मिला अब तो सिर्फ समय काट रहे हैं।
गांवों और कस्बों में बंद हो गईं छोटी दुकानें
शहर के बड़े व्यवसायी सौरभ दीक्षित कहते हैं कि स्टेशनरी का व्यापार अब खत्म होने लगा है। मोबाइल से पढ़ाई होती है, किताबों की जरूरत न के बराबर रह गई है। ऑनलाइन क्लासेस से लेकर अन्य कई गतिविधियां इस दौर में स्टेशनरी के कारोबार को चौपट कर रही हैं। गांवों और कस्बों में अब यह दुकानें नहीं खुलती हैं। औसतन पांच साल पहले जो दुकानदार 20 हजार का एक सप्ताह में माल की खरीद करता था, अब वह चार से छह हजार में सिमट कर रह गया है।
अभिवावकों पर पड़ रही जीएसटी की मार
व्यवसायी राजीव कहते हैं कि आमतौर पर छात्रों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली स्टेशनरी वस्तुएं जैसे स्लेट पेंसिल, इरेजर, शार्पनर, गणितीय बॉक्स और अभ्यास पुस्तकें शून्य से 12 फीसदी तक की रियायती जीएसटी दरों के अधीन हैं। बॉल पॉइंट पेन 18 प्रतिशत जीएसटी श्रेणी में आते हैं। यह जीएसटी की दरें महंगाई को बढ़ावा भी देती हैं। इससे अभिवावकों पर भी बोझ पड़ा और दूसरी ओर स्टेशनरी कारोबार भी प्रभावित हुआ।
ऑनलाइन शिक्षा पर भी जीएसटी का प्रावधान लागू हो
असल में स्टेशनरी का व्यापार करने वालों का मानना है कि शैक्षिक संस्थानों द्वारा दी जाने वाली ऑनलाइन शिक्षण सेवाओं को भी जीएसटी के दायरे में लाना चाहिए। इन लोगों को रियायत क्यों दी जा रही है। अब हर किताबों की जरूरत मोबाइल पूरी करता है। इंटरनेट पर सभी किताबें और फॉर्म, परीक्षा के प्रत्येक प्रश्न अपडेट हैं ऐसे में इन्हें तो जरूर जीएसटी वाले नियमों में रखना चाहिए।
कोरोना काल में ऑनलाइन क्लासेस ने तोड़ी कमर
कोरोना काल के दौरान स्कूल भी बंद रहे। शुरुआत के महीनों में ही स्टेशनरी का अच्छा कारोबार होता है। इस वजह से स्टेशनरी व्यापारियों को दोनों सत्रों में करोड़ों का नुकसान हुआ। बच्चों की पढ़ाई ऑनलाइन शुरू कर दी तो दिक्कतें और अधिक बढ़ गईं। दुकानदार कहते हैं कि ऑनलाइन पढ़ाई में बच्चों को उतनी स्टेशनरी की जरूरत नहीं पड़ती है, जितनी क्लासेस चलने पर पड़ती है। अभिभावक भी उतनी ही कॉपी और किताबें खरीदते हैं, जितने में बच्चों का काम चल जाए। इसी वजह से स्टेशनरी का कारोबार काफी हद्द तक प्रभावित हुआ।
ऑनलाइन कंटेंट से धंधे पर असर पड़ा
बुक डिपो का व्यापार अब आसान नहीं है। ऑनलाइन पुस्तकालयों की वजह से प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है। यह ऑनलाइन व्यवस्था सीधे-सीधे बिक्री पर प्रभाव डालती है। इसका सीधा असर घर के खर्च पर आता है। यह कहना है शहर के आदर्श नगर में एक बुक संचालक राजू सैनी का। वह मानते हैं कि ऑनलाइन पुस्तकालय मोबाइल पर उपलब्ध है। अब लोग घर बैठे ही सब देख लेते हैं। इसका असर धंधे पर पड़ा है। इस कारण पहले जैसा मुनाफा भी नहीं है।
ई-लाइब्रेरी के दौर में अब नहीं बिकतीं किताबें
एक समय स्टेशनरी या बुक डिपो की दुकानों पर कई प्रकाशनों की किताबें मिलती थीं। इसके कई ऑर्डर भी रोजाना डिपो के संचालकों को मिलते थे, लेकिन अब समय बदल गया है। जगह-जगह हाईटेक लाइब्रेरियां बनने लगी हैं। निजीकरण ने भी इसमें अपना दखल दे दिया है। स्कूलों में लाइब्रेरी बनाकर किताबें छात्रों को उपलब्ध करा दी जाती हैं। इस वजह से वह बुक डिपो से किताबों की खरीद करने से बचते हैं। इससे कारोबार बुरी तरह प्रभावित हुआ है।
सुझाव
1. बिजली विभाग की मनमानी से सबसे ज्यादा परेशानी होती है। समय पर बढ़े बिजली बिल का निस्तारण करना चाहिए।
2. शहर के बड़े-छोटे चौराहे पर स्टेशनरी का बाजार है। यहां पार्किंग की समस्या है। इसे दूर करना चाहिए
3. ट्रांसपोर्ट खर्च घटाने के लिए नियम कानून कड़े करें। अधिक भाड़ा वसूलने पर पर कार्रवाई की जाए।
4. जीएसटी की दरों से कई स्टेशनरी आइटमों को दूर रखना चाहिए, क्योंकि वह हर एक छात्र की जरूरत है।
5. गांवों और कस्बों में छोटे स्टेशनरी दुकान वालों को ऋण देना चाहिए।
6. निजी स्कूलों में कॉपी-किताबें और स्टेशनरी के सामान खरीदने की बाध्यता कम हो।
शिकायतें
1. इंटरनेट के इस दौर में किताबें और कॉपियां बहुत कम बिकती हैं। प्रतियोगी परीक्षा नेट पर हो रही है।
2. यातायात के सिपाही कई बार दुकानों के बाहर आए ग्राहकों से गलत बर्ताव करते हैं।
3. गर्मियों के दिनों में बिजली की कटौती दुकान पर बैठना दूभर कर देती है।
4. पेन, कॉपी में जीएसटी लगने से दाम बढ़ाना मजबूरी है। इस कारण पहले की तरह ऑर्डर नहीं मिलते हैं।
5. कई छोटे व्यवसायी कोरोना काल के दौरान का कर्ज अब तक नहीं चुका पाए हैं। इन लोगों को बैंक कर्मियों द्वारा परेशान किया जाता है।
6. वाहनों पर मालभाड़ा लादकर दुकान तक आने में समस्या होती है। सीजन के दिनों में रियायत दी जाए।
बोले स्टेशनरी संचालक
कोरोना काल की बंदी ने इस कदर व्यापार तोड़ा कि अब तक संभल नहीं सका। कर्मियों की सैलरी तक निकालना मुश्किल होता है। - रमेश गुप्ता
सीजन के तीन महीने में ही कुछ मुनाफा होता है। इसी से सालभर का खर्च चलता है। बिजली और किराया भी महंगा हो गया है।
- हरिओम गुप्ता
इंटरनेट का दौर है। प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले अब किताबें नेट पर पढ़ते हैं। वहां पर सब फ्री सुविधा है।
-वरुण दीक्षित
हाईटेक दौर में विद्यालय भी अपडेट हुए। अब वह किताबों की जगह वेबसाइट या एप पर किताबों के अध्ययन की सलाह देते हैं। - यशदीप
अब स्टेशनरी का कारोबार बंदी की कगार पर पहुंच चुका है। 2020 और 2021 में कई महीने तक स्कूल बंद रहे। इससे धंधा चौपट हो गया। - राजीव
बोले जिम्मेदार
पार्किंग बनाने के लिए चल रहा विचार
शहर में पहली बार पार्किंग बनाने को विचार चल रहा है। दुकानदारों के सीजन के दिन हो या पर्व। हर दिन उन्हें पार्किंग की सुविधा व्यापार को आसान करने में मददगार साबित होगी। स्टेशनरी संचालकों की समस्याओं पर बैठक कर चर्चा करेंगे।
- विकास कुमार सिंह, एडीएम- निकाय प्रभारी उन्नाव
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