Challenges Faced by South Indian Pilgrims in Kashi Need for Improved Accessibility and Services बोले काशी- यात्रा पथों से पहुंच-पूजन और प्रस्थान सुगम बनाए प्रशासन, Varanasi Hindi News - Hindustan
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बोले काशी- यात्रा पथों से पहुंच-पूजन और प्रस्थान सुगम बनाए प्रशासन

Varanasi News - काशी में दक्षिण भारतीय तीर्थयात्रियों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। मठ-आश्रमों तक पहुँच, भाषा की दिक्कतें और उचित मार्गदर्शन की कमी मुख्य चिंताएं हैं। प्रबंधकों का मानना है कि यदि प्रशासन...

Newswrap हिन्दुस्तान, वाराणसीThu, 17 April 2025 01:50 AM
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बोले काशी- यात्रा पथों से पहुंच-पूजन और प्रस्थान सुगम बनाए प्रशासन

वाराणसी। सदियों पुराना नाता है काशी-शिवकाशी एवं उनके अनुयायियों का। जब सुगम साधन नहीं थे, तब तीर्थयात्रा की पड़ी नींव आज मजबूत और समृद्ध तीर्थाटन का आधार बन चुकी है। तमिलनाडु, आंध्र, तेलंगाना, कर्नाटक और केरल से आने वाला शिवभक्तों का अनवरत रेला काशी के आश्रमों-मठों में ठौर पाता है। इन मठ-आश्रमों के संचालकों का मानना है कि एयरपोर्ट-स्टेशनों से उन तक पहुंच, काशी विश्वनाथ समेत प्रमुख देवालयों में दर्शन और आवागमन की मौजूदा व्यवस्था थोड़ी व्यवस्थित एवं सुगम हो जाए तो श्रद्धालुओं का प्रवाह कई गुना बढ़ सकता है। काशी आध्यात्मिक रूप से तीन भागों में विभक्त है- केदार खंड, विश्वेश्वर और ओंकारेश्वर खंड। सोनारपुरा से जंगमबाड़ी के बीच का गंगा तटीय क्षेत्र केदारखंड माना जाता है। इसमें मानसरोवर, क्षेमेश्वर, हनुमान घाट से शिवाला के बीच दक्षिण भारतीय बोलियां बोलने वालों की रिहाइश है। इन्हीं मोहल्लों में मठ एवं आश्रम भी हैं। तीन सौ से चार सौ वर्ष पुराने। उनमें ज्यादातर किन्हीं न किन्हीं शिव साधक संत-महात्मा की प्रेरणा से स्थापित हैं। इनके ट्रस्टी-संचालक मानसरोवर स्थित श्रीरामतारक आंध्र आश्रम के सभागार में जुटे। उन्होंने ‘हिन्दुस्तान से दक्षिण के तीर्थयात्रियों का दर्द साझा किया जो उन तक रोज पहुंचता है।

हनुमान घाट स्थित श्रीकांची कामकोटिश्वर मठ-मंदिर के प्रबंधक वी. सुब्रमण्यम मणि ने कहा कि दक्षिण के श्रद्धालुओं में ज्यादातर अधेड़ और वृद्ध होते हैं। कई ऐसे भी जो बिना सहारे 10 पग नहीं चल सकते। बताया कि इन दिनों श्रद्धालुओं को सबसे अधिक दिक्कत स्टेशनों से सोनारपुरा, सोनारपुरा से गलियों में स्थित मठ-आश्रमों तक पहुंचने, फिर सोनारपुरा से विश्वनाथ धाम तक पहुंचने में हो रही है। स्टेशनों पर समुचित गाइडेंस नहीं मिलता। वहां भाषाई दिक्कतें भी हैं। ऑटो-टोटो चालक मनमाने ढंग से तीर्थयात्रियों को उनकी इच्छा के विपरीत गेस्ट हाउस या होटल में पहुंचा देते हैं। क्योंकि वहां उन्हें भारी कमीशन मिलता है। मठ-आश्रम में कमीशन प्रथा नहीं है।

बंगाली टोला तक छूट क्यों नहीं

श्रीरामतारक आश्रम के ट्रस्टी प्रबंधक वीवी सुंदरशास्त्री क साथ ही सीएच मुरली कृष्णा, वीवी सुब्रमण्यम शर्मा ने लगभग समान अनुभव साझा किया कि ट्रैफिक पुलिस अक्सर भेलूपुर चौराहा से सोनारपुरा चौराहा के बीच दक्षिण के श्रद्धालुओं के वाहन रोक देती है। कई बार परेशान भी करती है। इससे कई बार अशक्त श्रद्धालुओं को अपने गंतव्य मठ या आश्रम तक जाने में बहुत दिक्कत होती है। गलियों में टोटो भी नहीं जा पाते। श्री राजराजेश्वरी चेरिटेबल ट्रस्ट के टी. गजानन जोशी ने सवाल किया कि जब लक्सा रोड से टूरिस्टों के वाहन गिरजाघर चौराहा, मैदागिन चौराहा से विश्वनाथ धाम के गेट नंबर चार तक जा सकते हैं तो दक्षिण भारतीय तीर्थयात्रियों के वाहन पांडे हवेली या बंगाली टोला इंटर कॉलेज तक भी क्यों नहीं जा सकते? उन्होंने बताया कि पहले जंगमबाड़ी तक छूट थी। क्राउड मैनेजमेंट के चलते अब जंगमबाड़ी तक बड़े वाहन नहीं जा सकते मगर ऑटो या छोटे रिक्शों से अशक्त, बुजुर्ग तीर्थयात्रियों को जंगमबाड़ी तक जाने की अनुमति होनी ही चाहिए।

कामर्शियल टैक्स और टैरिफ से दिक्कतें

सभी संचालकों ने बताया कि नगर निगम और बिजली विभाग कामर्शियल रेट से टैक्स, बिल की वसूली करते हैं जबकि हम व्यावसायिक लाभ के लिए मठ-आश्रमों का संचालन नहीं करते। वीवी सुंदरशास्त्री ने बताया कि हम एक कमरे का अधिकतम चार सौ रुपये चार्ज करते हैं। नाश्ता-भोजन नि:शुल्क रहता है। वीवी सुब्रमण्यम शास्त्री एवं सीएच मुरलीकृष्णा अपने ‘छत्रम् में तीर्थयात्रियों को हफ्ते में तीन दिन सभी सुविधाएं नि:शुल्क मुहैय्या कराते हैं। टी. गजानन जोशी ने स्पष्ट किया कि मठ-आश्रम सेवा भाव से काम करते हैं। लाभ कमाना उनका ध्येय नहीं है। यही होटल-गेस्ट हाउस या लॉज से बेसिक फर्क है। आर. प्रसाद, हरिहर शास्त्री ने कहा कि कामर्शियल टैक्स और टैरिफ के चलते मठ-आश्रमों का संचालन कठिन होता जा रहा है। इस पर गौर होना चाहिए।

कुंभ जैसे प्रबंध की दरकार

वीवी सुब्रमण्यम मणि, दीक्षित शर्मा, के. चंद्रशेखर आदि ने कहा कि शहर की सफाई व्यवस्था में पहले से सुधार हुआ है लेकिन अब सुधार की बहुत गुंजाइश है। सुबह-शाम के अलावा केदार खंड के मोहल्लों, गलियों में दोपहर में भी झाड़ू लगने के साथ कूड़ा उठान का इंतजाम होना चाहिए। उन्हानें कहा कि हाल ही में संपन्न प्रयागराज के महाकुंभ की व्यवस्था से सीख लेने की जरूरत है। वहां प्रशासन ने सचल शौचालयों की व्यवस्था कर रखी थी। जगह-जगह चेंजिंग रूम, वाटर एटीएम के इंतजाम थे। मणिजी ने सवाल किया कि गंगा घाटों पर वैसी व्यवस्था क्यों नहीं हो सकती? गुरुप्रसाद, रविशंकर प्रसाद ने बताया कि प्रधानमंत्री की सांसद निधि से क्षेमेश्वर, हनुमान, मानसरोवर और केदार घाटों पर लगे वाटर एटीएम या तो कब्जे में हैं अथवा गायब हो चुके हैं। चेंजिंग रूम भी बंद रहते हैं। कई जगह उनमें दुकानें खोल ली गई हैं। इन अव्यवस्थाओं से तीर्थयात्रियों को दिक्कतें होती हैं।

पास बंद, बुजुर्ग भी लगाते कतार

दक्षिण भारत के तीर्थयात्री काशी में श्रीविश्वेश, माधव या बिंदुमाधव, ढुंढिराज, दंडपाणि, काल भैरव, अन्नपूर्णा-विशालाक्षी, वंदे काशी (कर्णघंटा), गुह्य गंगा और मणिकर्णिका-नौ तीर्थों का दर्शन-पूजन अनिवार्य रूप से करते हैं। (काशी में भी प्रत्येक सुबह ‘विश्वेशं माधवं ढुंढिं दंडपाणि च भैरवं...श्लोक का पाठ होता है)। इसके अलावा बहुतेरे यहां एक माह, छह माह या वर्ष भर के लिए काशीवास करने आते हैं। इनमें ज्यादातर 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोग होते हैं। वीवी वेंकटसुंदर शास्त्री ने बताया कि काशीवास करने वालों को महाकुंभ के पहले तक विश्वनाथ मंदिर में दर्शन के लिए पास मिलता था। महाकुंभ से वह व्यवस्था स्थगित है। फणि विश्वानंद, पीसीएम शास्त्री, केवी राघव शर्मा, शिवनाथ शास्त्री ने बताया कि महाकुंभ के पहले से तीर्थयात्रियों को विश्वनाथ धाम से सीधे विशालाक्षी या अन्नपूर्णा के मंदिर जाने से रोका जा रहा है। इससे उन्हें बहुत दूरी तय करनी पड़ रही है। दूसरे, धाम में अशक्त-वयोवृद्ध तीर्थयात्रियों को भी लंबी कतार में खड़ा कर दिया जा रहा है। जबकि अयोध्या एवं तिरुपति में उनके लिए अलग लाइन लगती है, दर्शन में वरीयता भी दी जाती है। संचालकों ने पूछा कि तिरुपति और अयोध्या में आधार कार्ड के आधार पर दर्शन की व्यवस्था है तो धाम में वह क्यों नहीं लागू हो सकती? एक शिकायत भी है कि जिन उद्देश्य से धाम को चार गोल्फ कार्ट मिले थे, उनका लाभ बुजुर्ग दर्शनार्थियों को नहीं मिल रहा है।

दें मौका, नहीं होगी भाषाई दिक्कत

टी. गजानन जोशी समेत कई संचालकों ने ध्यान दिलाया कि दक्षिण के तीर्थयात्रियों में ज्यादातर अपनी मातृभाषा में ही बोल पाते हैं। अंग्रेजी या हिंदी बहुत कम लोग बोल या समझ पाते हैं। बाबतपुर एयरपोर्ट, सभी रेल स्टेशनों के अलावा केदार खंड से लेकर विश्वनाथ धाम तक कहीं भी तमिल-तेलगु, कन्नड़-मलयालम में संकेतक बोर्ड या साइनेज नहीं लगे हैं जिसे पढ़कर आम दक्षिण भारतीय तीर्थयात्री आराम से अपने गंतव्य तक पहुंच सकें। दूसरे, विश्वनाथ धाम में उक्त भाषाओं में सूचना प्रसारण की व्यवस्था भी नहीं है। वीवी सुब्रमण्यम शास्त्री, वेंकट सुंदर शास्त्री ने कहा कि अनेक तमिल या कन्नड़ भाषा भाषी लंबे समय से विश्वनाथ की व्यवस्था में बिना किसी लाभ के लगे हुए हैं। वे प्रसारण व्यवस्था में सहयोग कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि हम संस्थाओं की मदद से दक्षिण भारतीय भाषाओं में साइनेज भी तैयार करा सकते हैं बशर्ते नगर निगम उन्हें समुचित स्थानों पर लगवाने की व्यवस्था करे।

आदि शंकराचार्य ने किया था श्रीगणेश

हनुमान घाट स्थित श्रीकांची कामकोटेश्वर मठ-मंदिर के प्रबंधक वी. सुब्रमण्यम मणि ने बताया कि तीर्थाटन की इस परंपरा का श्रीगणेश आदि शंकराचार्य ने किया। समय के साथ वह निरंतर पुष्ट होती गई है। उन्होंने बताया कि पहले अमूमन आश्विन माह यानी सितंबर से चैत्र पूर्णिमा यानी मध्य अप्रैल के बीच दक्षिण भारतीयों की तीर्थयात्रा होती थी। श्रीकाशी विश्वनाथ धाम के लोकार्पण के बाद अवधि का बंधन टूट गया है। आज आंध्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, तेलंगाना आदि से रोज औसत 12 हजार श्रद्धालु काशी आ रहे हैं। बोले-‘एक उत्कट अभिलाषा उन्हें खींच लाती है कि जीवन में एक बार काशी में श्रीविश्वनाथ और अन्नपूर्णा-विशालाक्षी का दर्शन करना है। केदार खंड समेत शहर के आसपास लगभग डेढ़ सौ मठ-आश्रम हैं। वे उन श्रद्धालुओं की मेहमाननवाजी से लेकर प्रमुख देवालयों में दर्शन-पूजन एवं काशी भ्रमण का इंतजाम करते हैं। बोले, यदि ये मठ-आश्रम न होते तो दक्षिण के तीर्थयात्रियों की यात्रा सहज न होती। यहां उन्हें भाषा को लेकर अधिक दिक्कत नहीं होती। अपने ‘देश का भोजन मिल जाता है।

सुझाव-

1. होटल, गेस्ट हाउस की तरह मठ-आश्रमों पर टैक्स न लगाया जाए। नगर निगम, बिजली विभाग ऐसे स्थानों को छूट उपलब्ध कराए।

2. गोदौलिया से शिवाला के बीच की गलियों में भी तीन बार सफाई कराई जाए। सुबह-दोपहर और देर शाम झाड़ू लगाने के साथ डस्टबिन की व्यवस्था हो।

3. महाकुम्भ से पहले की तरह बंगाली टोला इंटर कॉलेज तक तीन पहिया, कार को जाने की अनुमति दी जाए। त्यौहार, भीड़ के दौरान ही प्रतिबंध लागू हो।

4. काशी विश्वनाथ मंदिर समेत दस प्रमुख मंदिरों के लिए कुछ ई-रिक्शा को अलग से बारकोड मिले। वहां दक्षिण भारत के श्रद्धालु अधिक संख्या में जाते हैं।

5. काशी विश्वनाथ मंदिर में बुजुर्ग तीर्थयात्रियों के लिए अलग कतार होनी चाहिए। काशीवास करने वाले यात्रियों को सुगम दर्शन करने की व्यवस्था होनी चाहिए।

शिकायतें-

1. ट्रस्ट से संचालित आश्रम, धर्मशालाओं में सेवाभाव से बहुत कम कीमत में कमरे मिलते हैं। लेकिन उनसे वाणिज्यिक श्रेणी में भारी भरकम टैक्स वसूला जाता है।

2. गोदौलिया से शिवाला के बीच सफाई के बाद भी गंदगी बिखरी रहती है।

3. सोनारपुरा तिराहे पर पुलिस ने बैरिकेडिंग लगा दी है। इससे यात्रियों को पैदल या पैडल रिक्शा चालकों को मनमानी किराया देकर जाना पड़ता है।

4. ई-रिक्शा पर बारकोड से मंदिरों में दर्शन का खर्च चार-पांच गुना बढ़ गया है। जगह-जगह वाहन बदलना तीर्थयात्रियों के लिए मुसीबत है।

5. काशी विश्वनाथ मंदिर में बुजुर्ग श्रद्धालुओं को भी कतार में इंतजार करना पड़ता है। दक्षिण भारतीय भाषाओं में साइनेज या संकेतक न होने से बहुत दिक्कत होती है।

मठ-आश्रमों में श्रद्धालुओं के ठहरने, भोजन की व्यवस्था सेवा भाव से होती है। उनसे वाणिज्यिक टैक्स नहीं लेना चाहिए।

वीएस सुब्रमण्यम मणि

विश्वनाथ धाम में भाषागत दिक्कतें दूर करने लिए दक्षिण भारतीयों को सेवा का अवसर मिले तो तीर्थयात्रियों को सहूलियत होगी।

वीवी सुंदर शास्त्री

होटल-गेस्ट हाउस और मठ-आश्रमों में फर्क समझना चाहिए। हम सेवा भाव से संचालन करते हैं।

टी. गजानन जोशी

महाकुंभ के पहले सोनारपुरा से बंगाली टोला तक कार-ऑटो जाता था, अब प्रतिबंध लगा देने से बहुत दिक्कत होती है।

राघव शर्मा

गंगा के घाटों पर यूरिनल-शौचालयों और चेंजिंग रूम की व्यवस्था महाकुंभ की तरह हमेशा होनी चाहिए।

के. चंद्रशेखर

हमारे ट्रस्ट में पहले तीन दिन आवास-भोजन की निःशुल्क व्यवस्था है लेकिन हमसे वाणिज्यिक टैक्स लिया जाता है।

सीएच मुरली कृष्णा

विश्वनाथ धाम में बुजुर्ग श्रद्धालुओं के लिए अलग कतार हो, जिससे उन्हें घंटों इंतजार न करना पड़े।

योगेन्द्र त्रिपाठी

केदार खंड में कई जगह गलियों के पत्थर उखड़ गए हैं। आवागमन में दिक्कत होती है। इनकी मरम्मत आवश्यक है।

रविशंकर

काशीवास करने वाले श्रद्धालुओं के लिए पहले की तरह पास जारी होना चाहिए। तिरुपति की तरह दर्शन व्यवस्था लागू हो।

हरिहर शास्त्री

तीर्थयात्री बड़ी आस्था के चलते सुदूर दक्षिण से काशी आते हैं लेकिन दुखद, यहां उनकी आस्था को ठेस पहुंच रही है।

वीवी सुब्रमण्यम शर्मा

विश्वनाथ मंदिर सहित दस देवालयों के लिए ई रिक्शा चालकों को अलग बार कोड दिया जाए।

गुरु प्रसाद

ट्रस्ट से संचालित मठ-आश्रमों और धर्मशालाओं को वाणिज्यिक श्रेणी से बाहर किया जाए।

शिवनाथ शास्त्री

एक नजर

150 के आसपास मठ-आश्रम हैं काशी के केदारखंड में

12 हजार औसत तीर्थयात्री रोज आते हैं दक्षिण भारत से

09 देवस्थानों पर दर्शन तीर्थयात्रा का है अनिवार्य अंग

08 भैरवों के दर्शन का चलन हाल के वर्षों में बढ़ा है

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