बोले काशी- शेल्टर होम और हॉस्टल-शौचालय हो तो न झेलें जलालत
Varanasi News - वाराणसी में ट्रांसजेंडर समाज ने अपनी समस्याओं और मांगों को उठाया। उन्होंने ट्रांस शौचालय, हॉस्टल, और पहचान पत्र की आवश्यकता जताई। समाज का नजरिया बदलने और सरकारी योजनाओं की जानकारी पहुँचाने की जरूरत पर...
वाराणसी। महिला-पुरुष की जीवनधारा के बीच एक और तबका है जो इसी समाज का हिस्सा है। वह है ट्रांसजेंडर। वह इसी समाज में रचता-बसता है, लेकिन उसे लगता है कि समाज का नजरिया संकुचित, विकृत है। इसलिए पग-पग पर जलालत झेलनी पड़ती है। पुलिस हो या दूसरे सरकारी विभाग, कहीं उनकी समस्याओं पर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया जाता। इसे शेल्टर होम की दरकार है। समाज के सदस्य चाहते हैं कि शहर में ट्रांस शौचालय बनें। शिक्षण संस्थानों के हॉस्टलों में उनके लिए कमरे आरक्षित हों। उनकी पहचान का कार्ड बने। केवल आधी आबादी की बात करते रहना तब तक बेमानी लगता है, जब तक कि ट्रांसजेंडर समाज की समस्याओं को भी अधिकारों से न जोड़ा जाए।
ट्रांसजेंडर समाज के उत्थान के लिए निरंतर आवाजें उठें और उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के उपक्रम हों तो यह तबका भी स्वस्थ भारत की तस्वीर को और निखार सकता है। उनके सर्वांगीण विकास की दिशा में लोगों को सहानुभूतिपूर्वक आगे आना होगा, क्योंकि वे भी इसी समाज का हिस्सा हैं। सिगरा स्थित एक संस्था के परिसर में जुटे ट्रांसजेंडर समाज के लोगों ने ‘हिन्दुस्तान से बातचीत में अपनी पीड़ा सुनाई और मांगें भी उठाईं। सुंदरी और नीति ने कहा कि योजनाओं की जानकारी हम तक नहीं पहुंच पाती, ऐसे में योजनाओं के लाभ की बात करना बेमानी है। कहा कि हमें ऐसा सुरक्षित वातावरण मिलना चाहिए जहां हमें अपनी पहचान छिपानी न पड़े। बताया, किसी समस्या के समाधान के लिए पुलिस या किसी विभाग में जाने पर गंभीरता से सुनवाई नहीं होती है। ऐसी स्थितियों में अब बदलाव लाने की जरूरत है। विश्वविद्यालयों में बनें हास्टल असम की मूल निवासी और बीएचयू में एमए हिंदी की विद्यार्थी अनन्या ने कहा कि विश्वविद्यालयों में महिला-पुरुष हॉस्टल हैं, लेकिन ट्रांस हॉस्टल नहीं। समय के हिसाब से ट्रांस हॉस्टल भी बनाए जाने चाहिए। जो हॉस्टल बने हैं, वहां ट्रांसजेंडर के लिए कमरे आरक्षित होने चाहिए ताकि आवास की समस्या न झेलनी पड़े। आज भी हाल यह है कि लोग हमें किराये पर कमरे नहीं देना चाहते हैं। याद दिलाया कि केंद्र सरकार ने ट्रांसजेंडर के लिए 'गरिमा गृह' बनाने की बात की थी लेकिन वाराणसी में वह नहीं बना। कहा, लोगों का नजरिया बदल जाए तो हम भी बेहतर तालीम पा सकते हैं। इसी क्रम में आर्या ने कहा कि सार्वजनिक शौचालय में ट्रांसजेंडर के लिए भी सुविधा होनी चाहिए। इसके न होने से बहुत परेशानी का सामना करना पड़ता है। शिक्षण संस्थानों में भी ट्रांस शौचालय बनाए जाएं। अभी जहां ट्रांस शौचालय हैं, उनमें ताला बंद रहता है। कागजी औपचारिकताओं का दंश श्रेया और धारा ने ध्यान दिलाया कि किसी भी सुविधा का लाभ पाने की प्रक्रियाएं बेहद जटिल हैं। कभी-कभी खुद को साबित करने की समस्या सामने आने लगती है। इतनी जटिलता से मन खिन्न हो जाता है, लाभ नहीं ले पाते हैं। हम लोग कुछ न कुछ काम करके अपनी जीविका चलाते हैं। कहा कि हमारी योग्यता का उपयोग समाज हित में किया जा सकता है, लेकिन हमारे हितों के लिए कोई आगे नहीं आता। सवाल किया कि आखिर हमने गुनाह क्या किया है कि लोग हमारी समस्याओं को लेकर मौन हो जाते हैं। उपहास न उड़ाएं, सम्मान दें वाणिज्य में स्नातक असद खान उर्फ पारो ने कहा कि समाज का नजरिया हम लोगों के प्रति विकृत है। आर्थिक संकट भी आता रहता है। इन दोनों समस्याओं के बीच किसी तरह से स्नातक कर लिया लेकिन आगे नहीं पढ़ पाया। किसी तरह से जीवन की धारा को गतिमान किए हूं। लोगों से अनुरोध है कि हमारा उपहास न उड़ाएं बल्कि सम्मान दें। हमारे समाज की परंपरागत कुरीतियों को अब खत्म करने का समय है। विद्यापीठ की विद्यार्थी (बीए चतुर्थ सेमेस्टर) हेतवी ने कहा कि हमारे साथ किसी घटना या हमारी किसी शिकायत पर कहीं कोई कार्रवाई नहीं होती है। इससे हमारा मनोबल कमजोर होता है। लोगों की नजरें हम लोगों के प्रति दूषित रहती हैं, यह ठीक नहीं है। लोगों का नजरिया सकारात्मक होना चाहिए। सार्वजनिक वाहनों में सुविधा मिले नीति और हेतवी ने कहा कि सार्वजनिक वाहनों में हमारे लिए कोई सुविधा या आरक्षण नहीं है। हमें कहीं आने-जाने में बहुत दिक्कत होती है। बसों, ट्रेनों में हमारे लिए भी आरक्षण होना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमें आर्थिक संकट से उबारने के प्रयास होने चाहिए। नौकरियों में हमारे लिए विचार हो, योजनाएं बननी चाहिए। बीएफए कर रहे नितिन ने कहा कि सार्वजनिक वाहनों में हमारे लिए सुविधा न होना अखरता है। इस समाज के अनेक लोगों के ट्रांसजेंडर कार्ड नहीं बने हैं। इसका भी खामियाजा हम भुगतते हैं। ऐसे में खुद को साबित कर पाना टेढ़ी खीर होता है। आरती ने कहा कि सामाजिक ढांचे में हमारे प्रति लोगों की सोच बदल रही है, लेकिन उसकी गति बहुत धीमी है। यह गति तेज होनी चाहिए ताकि हम कहीं भी-कभी भी कंधे से कंधा मिलाकर चल सकें। सुनें ये आवाज सरकार की किसी भी योजना की जानकारी नहीं है, ऐसे में उनका लाभ मिलने का सवाल ही नहीं है। -सुंदरी हमें भी हर जगह सुरक्षित वातावरण मिलना चाहिए। असमान्य परिस्थिति में पुलिस के पास जाने पर सुनवाई नहीं होती। -नीति शहर में अनेक स्थानों पर सार्वजनिक शौचालय हैं लेकिन वे महिला-पुरुषों के लिए हैं। ट्रांसजेंडर के लिए भी बनाएं जाएं। -आर्या किसी भी काम के संबंध में हम लोगों को प्रशासन का सहयोग नहीं मिलता है। यह भेदभाव ठीक नहीं है। -धारा विश्वविद्यालयों में ट्रांसजेंडर के लिए अलग से हॉस्टल बनाया जाए, पहले के हास्टलों में कमरे भी आरक्षित किए जाएं। -अनन्या किसी भी विभाग में हमारी समस्याओं का समाधान समय पर नहीं मिलता। इससे हमें बहुत परेशानी होती है। -आरती समाज के गलत नजरिये और आर्थिक संकट से हमारी पढ़ाई छूट गई। समाज का नजरिया बदलना चाहिए। -असद खान उर्फ पारो सरकार की किसी भी योजना का लाभ हम तक पहुंच नहीं पाता। हमें भी योजनाओं का लाभ मिलना चाहिए। -नितिन ट्रांसजेंडर इसी समाज के हिस्सा हैं। उनके लिए भी जॉब की उपलब्धता होनी चाहिए, इससे मनोबल बढ़ेगा। -श्रेया ट्रांसजेंडर कार्ड नहीं बनाया जाता है। किसी घटना के बाद हमारी कोई सुनवाई नहीं होती। यह स्थिति बदलनी चाहिए। -हेतवी सुझाव शहर में बने सार्वजनिक शौचालयों में या उसके पास ट्रांसजेंडर के लिए भी व्यवस्था होनी चाहिए। इससे परेशानी नहीं होगी। प्रत्येक विश्वविद्यालय में ट्रांसजेंडर के लिए अलग से हॉस्टल बने। निर्मित हास्टलों में कमरे भी आरक्षित होने चाहिए। सरकार की सभी योजना की जानकारी ट्रांस जेंडर तक पहुंचनी चाहिए। तभी वे योजनाओं का लाभ ले पाएंगे। ट्रांसजेंडर इसी समाज का हिस्सा हैं। उनके लिए भी जॉब की उपलब्धता होनी चाहिए, इससे मनोबल बढ़ेगा। प्राथमिकता के आधार पर ट्रांसजेंडर कार्ड बनाया चाहिए। किसी घटना के बाद ट्रांसजेंडर की भी सुनवाई होनी चाहिए। शिकायतें शहर में बने सार्वजनिक शौचालयों में या उसके पास ट्रांसजेंडर के लिए व्यवस्था नहीं हैं। इससे बहुत परेशानी होती है। किसी विश्वविद्यालय में ट्रांसजेंडर के लिए अलग से हॉस्टल नहीं है। निर्मित हास्टलों में कमरे भी आरक्षित नहीं हैं। सरकार की किसी भी योजना की जानकारी ट्रांसजेंडरों तक नहीं पहुंच पाती। इससे वे योजनाओं का लाभ नहीं ले पाते हैं। ट्रांस जेंडर के लिए जॉब उपलब्धता सुनिश्चित नहीं है। किसी तरह वे अपनी आर्थिक समस्याओं से छुटकारा पाते हैं। प्राथमिकता के आधार पर ट्रांसजेंडर कार्ड नहीं बनता। किसी घटना के बाद ट्रांस जेंडरों की सुनवाई नहीं होती। बोले जिम्मेदार बोर्ड की बैठक जल्द बुलाने का है प्रयास जिलास्तर पर किन्नर कल्याण बोर्ड है। उसकी बैठक में किन्नरों की समस्याओं पर विचार होता है, निदान के प्रयास होते हैं। बोर्ड की बैठक जल्द हो, इस पर ध्यान केंद्रित है। किन्नर समाज के लिए गरिमा गृह बनाने की योजना केंद्र की है। इसे किसी एनजीओ के माध्यम से संचालित होना है। कोई एनजीओ अभी इसके लिए आगे नहीं आया है। इस विषय पर विभाग का ध्यान है। जैसे ही व्यवस्था मिलेगी, इसे अमली जामा पहनाया जाएगा। -गिरीशचंद्र दुबे, समाज कल्याण अधिकारी
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