हां! सात दारोगाओं का हाथ-पैर तुड़वाकर गड्ढे में फिकवाया था, योगी के मंत्री संजय निषाद ने कारण भी बताया
सात दारोगाओं का हाथ पैर तुड़वाकर गड्ढे में फेंकवाने की बात कहकर चर्चा में आए योगी सरकार के कैबिनेट मंत्री संजय निषाद ने अब पूरी घटना बयां की है। उन्होंने यह भी साफ किया कि जब कानून का रक्षक ही भक्षक बनता है तो आत्मरक्षा के लिए यह सब करना पड़ता है।

योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री और निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद ने सुल्तानपुर की सभा में यह कहकर सनसनी फैला दी कि उन्होंने सात दारोगाओं के हाथ-पैर तुड़वाकर गड्ढे में फिकवाया था। उनका यह बयान तेजी से वायरल हो रहा है। इसी को लेकर जब उनसे सवाल हुआ तो उन्होंने पूरी घटना ही बयां कर दी। इसके पीछे के कारणों को भी बताया। संजय निषाद ने यह भी साफ किया कि हमें संविधान में आत्मरक्षा का अधिकार मिला है। जब कोई कानून का रक्षक ही भक्षक बन जाएगा तो अपनी रक्षा के लिए कुछ भी करना पड़ता ही है। जब जिंदा रहेंगे तभी संविधान की रक्षा कर सकेंगे और देश में संविधान लागू हो सकेगा।
भारत समाचार से बातचीत में संजय निषाद ने कहा कि कार्यकर्ता ही किसी भी पार्टी की रीढ़ की हड्डी और दिल होते हैं। जब तक दिल चलता है आदमी जिंदा रहता है। अगर कार्यकर्ताओं को बिना मतलब फंसाया जाएगा, मुकदमे लगाए जाएंगे तो ऐसा करने वालों को याद दिलाया जाएगा कि संविधान में लिखा है कि आत्मरक्षा के लिए कुछ भी किया जाएगाा। कानून में भी यही है।
संजय निषाद ने कहा कि आंदोलन का अधिकार संविधान में सभी को मिला है। गांधी जी, आंबेडकर ने भी आंदोलन किया तभी इस देश को आजादी मिली है। संजय निषाद ने कहा कि यह घटना तब की है जब रेलवे की जमीन पर आंदोलन चल रहा था। हालांकि 7 जून की तारीख तो बताई लेकिन सन बताते समय कभी 2015 तो कभी 2016 कहा। उस समय प्रदेश में सपा की सरकार थी। संजय निषाद ने कहा कि आंदोलन को कोई रोकेगा और कानून का रक्षक ही भक्षक बन जाएगा तो आत्मरक्षा के लिए कुछ करना ही होगा। कहा कि उस समय दारोगा ने विधायक के कहने पर गोली चलाई थी। इससे निषाद समाज के हमारे भाई की मौत हो गई थी। पहले लाठी चलाई गई फिर गोली चला दी गई। आंसू गैस भी छोड़ा जा सकता था।
संजय निषाद ने कहा कि कानून के रक्षक जब भक्षक हो गए तो हम लोगों को करना पड़ा था। कोर्ट ने भी माना था कि दारोगा ने गोली गलत चलाई थी। संजय निषाद ने कहा कि उस समय दारोगा, सिपाही, एसपी सभी यादव थे। उन पर विधायक का प्रभाव था। इसलिए पुलिस वालों को हाथ पैर तोड़ना पड़ा था। आत्मरक्षा में उस वक्त जो किया जा सकता था किया गया।
केवल निषाद होने के नाते आंदोलन को इस तरह से कुचला गया औऱ दारोगा ने गोली चलाई थी। जहां आंदोलन चल रहा था, वहां न सड़क चल रही थी न कुछ और था। रेलवे की जमीन थी। रेलवे तो केंद्र सरकार का मामला है। जमीन भी रेलवे की थी। उसमें पुलिस का क्या काम था। जो भी करना था आरपीएफ को करना चाहिए था। हमारा भाई मारा गया और उसके लिए हमारे लोगों को ही दोषी बना दिया गया। जो युवा उस समय किसी अन्य जिले में पढ़ाई कर रहा था उसे भी फंसा दिया गया। अन्याय दारोगा कर रहा था तो उसे सीखाना जरूरी था। कानून के रक्षक जब भक्षक बनेंगे तो क्या किया जाएगा।
अब जब सुल्तानपुर में भी एक दारोगा ने गलत काम किया है तो वहां कहना पड़ा कि इस तरह की घटना पहले भी हो चुकी है। फिर से ऐसी घटना मत करना। यूपी पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठाते हुए संजय निषाद ने कहा कि पुलिस अगर अत्याचार नहीं करती तो बेगुनाह कैसे फंस रहे हैं। आखिर पुलिस फंसा देती है फिर कोर्ट से बरी हो जाते हैं। तब भी मैंने अधिकारियों से कहा था कि जो मेन अभियुक्त है उसे गिरफ्तार करो। निर्दोषों को क्यों पकड़ रहे हो। मेन अभियुक्त तो विधायक का आदमी था। दारोगा ने उसी के कहने पर गोली भी चलाई थी। उन्होंने दोहराया कि रक्षक ही भक्षक बनेंगे तो वही होगा, जो उस समय हुआ था। अन्याय होगा तो आत्मरक्षा में हमारा समाज तो आगे आएगा ही।