बोले हल्द्वानी: आशा-भोजन माता मांगें पक्का काम, वेतन, सुरक्षा और सम्मान
हल्द्वानी में आशा वर्कर और भोजन माताओं ने कम वेतन, असुरक्षित कार्य स्थितियों और बिना सामाजिक सुरक्षा के खिलाफ प्रदर्शन किया। उन्होंने सरकार से पक्का काम, वेतन वृद्धि, स्वास्थ्य बीमा और पेंशन की मांग...
हल्द्वानी। आशा वर्कर भारत की ग्रामीण और शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य व्यवस्था की रीढ़ हैं। गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं की देखभाल से लेकर आशा वर्कर सरकार की विभिन्न योजनाओं को घर-घर तक पहुंचाती हैं। कोरोना काल में भी उन्होंने जमीनी स्तर पर काम कर स्थितियों को संभालने में अहम भूमिका निभाई। इसके बाद आशाओं को सरकार की तरफ से निराशा ही हाथ लगी है। उनकी मानदेय बढ़ाने सहित अन्य कई मांगें लंबे समय से पूरी नहीं हो पाई हैं। कुछ ऐसा ही हाल स्कूलों में बच्चों के लिए खाना बनाने वाली भोजन माताओं का है। भोजन माताएं स्कूल में मिडडेमील बनाने के साथ-साथ सफाई, बागवानी, झाडू-पोंछा समेत कई कामों को अंजाम देती हैं।
उनका कहना है कि उन्हें केरल, पुंडुचेरी, तमिलनाडु में इस पद पर काम करने वाली भोजन माताओं से भी कम वेतन मिलता है। ऐसे में घर चलाने से लेकर अन्य जरूरतों को पूरा करने में जूझना पड़ता है। आशा वर्कर और भोजन माताएं पक्का काम, वेतन, पेंशन, सुरक्षा और सम्मान की मांग लंबे समय से उठा रही हैं, लेकिन उनकी सुनवाई नहीं हो रही है। मंगलवार को बोले हल्द्वानी की टीम जब आशा वर्करों और भोजन माताओं के बीच पहुंची तो उन्होंने खुलकर अपनी समस्याएं बताईं और समाधान के लिए सुझाव भी दिए। आशा वर्कर और भोजन माताएं लंबे समय से काफी कम पारिश्रमिक, असुरक्षित कार्यस्थितियों और बिना सामाजिक सुरक्षा के कार्य कर रही हैं। कोविड-19 महामारी के दौरान इन्होंने अग्रिम पंक्ति पर रहकर जान जोखिम में डालकर सेवा की, उसके बावजूद इनकी उपेक्षा की जा रही है। भाजन माताओं को मात्र 100 रुपये प्रतिदिन मेहनताना मिलता है जबकि उत्तराखंड में अकुशल श्रेणी के मजदूर को प्रतिदिन 477 से 487 रुपये मानदेय दिया जाता है। भाजन माताएं मानदेय को बढ़ाने की मांग लंबे समय से उठा रही हैं। दोनों ने ही सरकार से मांग की है कि न्यूनतम वेतन, कर्मचारी का दर्जा व सेवानिवृत्त होने पर अनिवार्य पेंशन का प्रस्ताव विधानसभा के इसी सत्र में पारित कर केंद्र सरकार को भेजा जाए। मांगों को अपनी मांगों को लेकर आशा वर्कर और भोजन माताओं ने मिलकर बुद्धपार्क में प्रदर्शन किया। इसके बाद एसडीएम कोर्ट तक रैली निकालकर अपनी आवाज बुलंद की। सरकार से वादा निभाने की मांग: आशा यूनियन की हल्द्वानी ब्लॉक अध्यक्ष रिंकी जोशी ने बताया कि, 31 अगस्त 2021 को उत्तराखंड आशा हेल्थ वर्कर्स यूनियन (ऐक्टू) के आंदोलन के बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने खटीमा स्थित कैम्प कार्यालय में प्रतिनिधिमंडल से वार्ता की थी। आशाओं का कहना है कि सीएम ने उनसे मासिक मानदेय नियत करने व डीजी हेल्थ उत्तराखंड के आशाओं को लेकर बनाए गए प्रस्ताव को लागू करते हुए प्रतिमाह 11500 रुपये का वादा किया था। सरकार ने अभी तक वादा पूरा नहीं किया गया है। आशाओं ने यह वादा पूरा करने की मांग की है। सम्मानजनक व्यवहार नहीं मिलने से निराशा: आशा वर्करों का कहना है कि अस्पतालों में कई बार उनके साथ चिकित्सक और अन्य कर्मी सम्मानजनक व्यवहार नहीं करते हैं। इस कारण उन्हें परेशानी का सामना करना पड़ता है। वहीं भोजन माताओं का कहना है कि वह अपने काम को पूरी इमानदारी से करती हैं। स्कूल में बच्चों के साथ-साथ स्टाफ की भी जरूरतों का ध्यान रखती हैं। उन्हें खाना बनाने वाली कह कर पुकारा जाता है जिससे से वह आहत होती हैं। अपनी जिम्मेदारियों को पूरी तरह से निभाने के बावजूद उनके साथ सम्मानजनक व्यवहार नहीं होता है जिसकी वे हकदार हैं। स्वास्थ्य बीमा, अवकाश मिले आशा वर्कर्स का कहना है कि उनके लिए अवकाश और स्वास्थ्य बीमा की व्यवस्था नहीं है। कोरोना, डेंगू आदि महामारी आने पर उनसे काम लिया जाता है, लेकिन न तो उनका स्वास्थ्य बीमा है न ही अवकाश की व्यवस्था है। ऐसे में कई बार बीमार होने की स्थिति में उन्हें जान जोखिम में डालकर ड्यूटी करनी पड़ती है। आशाओं की मांग है कि उनका भी स्वास्थ्य बीमा कराया जाए। समान कार्य पर समान वेतन की व्यवस्था की जानी चाहिए। वहीं भोजन माताओं का कहना है कि उन्हें किसी भी तरह का स्वास्थ्य बीमा नहीं दिया जाता है। कई बार बीमारी की स्थिति में वह अपना उपचार कराने में भी समक्ष नहीं होतीं। वेतन कम होने के कारण उन्हें दवाइयों और इलाज के खर्चों के लिए जूझना पड़ता है। अतिरिक्त कार्य कराने पर अलग मेहनताना मिले आशा वर्कर और भोजनमाताओं का कहना है कि उनसे पूर्व में निर्धारित कामों के अलावा भी कई तरह के काम करवाए जाते हैं, लेकिन इसके बदले में अलग से कोई भुगतान नहीं किया जाता है। भुगतान मांगने पर कार्रवाई की चेतावनी तक दे दी जाती है। चिंता की बात यह है कि अतिरिक्त काम के लिए कोई अतरिक्त सुविधा भी नहीं उपलब्ध कराई जाती है। दोनों की मांग है कि अतिरिक्त कार्य करवाने पर अलग से और समय से भुगतान किया जाए। आशा वर्करों और भोजनमाताओं की पांच समस्या 1. दुर्घटना के समय भी किसी तरह का अतिरिक्त अवकाश नहीं मिलता। 2. स्थायी नियुक्ति नहीं होने से भविष्य को लेकर रहती है चिंता 3. गर्भावस्था में मातृत्व अवकाश नहीं मिलता। 4. कुछ स्थानों पर अच्छा व्यवहार नहीं किया जाता। 5. सेवानिवृत्त होने पर किसी भी तरह की सहयोग राशि नहीं मिलती। समाधान के लिए पांच सुझाव 1. वेतन वृद्धि के साथ ही स्वास्थ्य और जीवन बीमा का लाभ मिले। 2. स्थाई नियुक्ति कर नियमितिकरण किया जाए। 3. गर्भावस्था में मातृत्व अवकाश की सुविधा दी जाए। 4. काम का सम्मान किया जाए व उनके साथ सम्मानजनक व्यवहार हो। 5. सेवानिवृत्त होने पर सभी को अनिवार्य पेंशन का लाभ मिले। महिला कर्मियों का दर्द आशा कार्यकताओं को सम्मानजनक मानदेय मिलना चाहिए। हम लंबे समय से सरकारी कर्मचारी का दर्जा देने की मांग कर रहे हैं, इसके बाद भी हमारी मांगों को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है। यह सरासर अन्याय है। शोभा गोस्वामी आशा कार्यकर्ताओं को सिर्फ 3300 रुपये प्रोत्साहन राशि मिलती है। इसमें घर चलाना बहुत मुश्किल है। हम लंबे समय से मानदेय बढ़ाने की मांग कर रहे है लेकिन अभी तक कार्रवाई नहीं हुई है। किसी को हमारी चिंता नहीं है। पूनम नेगी आशाओं के लिए अवकाश की व्यवस्था नहीं है। काम के घंटे तय नहीं होने के कारण हम दिन-रात कार्य करने को मजबूर हैं। इसके बाद भी हमें सम्मान नहीं दिया जाता ना ही समय पर मानदेय दिया जाता है। इससे हम परेशान हैं। रेखा पाठक हम कई साल से अपनी जान जोखिम में डालकर काम कर रहे हैं। कोरोना काल में भी पूरी जिम्मेदारियां निभाईं। इसके बाद भी हमें न तो पक्का काम मिलता है और न ही उचित वेतन। हमें कभी भी हटाया जा सकता है। हेमा सम्मल मानदेय इतना कम है कि परिवार चलाना मुश्किल हो गया है। बच्चों की पढ़ाई और घर का खर्च निकालना मुश्किल है। हमें लगता है कि सरकार हमारी अनदेखी कर रही है। हमें न्यूनतम मजदूरी के बराबर वेतन मिलना चाहिए। तनुजा तिवारी हम दिन-रात काम करते हैं, घर-घर जाकर लोगों को स्वास्थ्य सेवाओं के बारे में बताते हैं, टीकाकरण करवाते हैं। लेकिन हमें कोई सुरक्षा नहीं मिलती। कभी-कभी हमें लोगों के गुस्से का भी सामना करना पड़ता है। हमारी सुरक्षा सुनिश्चित की जाए। सुनीता मेहरा हमारे लिए सबसे बड़ी समस्या सम्मान की है। लोग हमें सिर्फ एक ‘आशा के रूप में देखते हैं, जो बिना किसी अधिकार के काम करती है। हमें स्वास्थ्य विभाग का अभिन्न अंग माना जाना चाहिए और हमें सम्मान मिलना चाहिए। कमला बिष्ट हमें रिटायरमेंट के बाद कोई पेंशन या अन्य लाभ नहीं मिलते। लंबे समय तक सेवा देने के बाद भी हम खाली हाथ रह जाते हैं। सरकार को हमारे लिए सामाजिक सुरक्षा योजनाएं लागू करनी चाहिए। सरकार हमारे लिए कुछ तो करें। कमला आर्या हम आशाओं को सरकार ने वेतन, बीमा और पेंशन तीनों ही सुविधाओं से वंचित रखा है। ऐसे में हमें अपना पूरा कार्य करने के बाद भी वाउचर के लिए परेशान होना पड़ता है। बीमार होने पर कोई सुविधा तक नहीं मिलती है। ललित आर्या हमें स्थायी कर्मचारी का दर्जा दिया जाए। हम अपना परिवार छोड़कर अस्पतालों में मरीजों का ख्याल रखती हैं, लेकिन हमें उचित मेहताना आज तक सरकार नहीं दे पाई है। इसके साथ ही हमें कोई भी स्वास्थ्य सेवाएं नहीं मिलती हैं। प्रेमा घुघुतियाल भोजनमाताओं को नियमित किया जाना चाहिए। स्वास्थ्य बीमा, पेंशन और मातृत्व अवकाश की व्यवस्था की जाए। शासनादेश के अलावा अतिरिक्त कार्य दिया जा रहा है, ऐसा करने वालों पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। दीपा उप्रेती भोजनमाताओं को स्थाई किया जाए। साल में दो ड्रेस बनाने के लिए हजार रुपये दिए जाते हैं, जबकि एक ही ड्रेस को बनवाने में खर्चा आठ सौ रुपये का आता है। हमें अपनी जेब से पैसे खर्च करने पड़ते है। इसे दो हजार करना चाहिए। ममता पूरी जिंदगी इस काम में लगा चुके हैं, लेकिन आज भी हमारा भविष्य अधर में है। सरकार को हमें नियमित करना चाहिए, ताकि हमें भी एक सुरक्षित भविष्य मिल सके और बुढ़ापे में दर-दर की ठोकरें ना खानी पड़ें। हेमा जोशी, हल्दूचौड़। एक ही स्कूल में चार भोजनमाताएं होने पर भी काम का कोई बंटवारा नहीं है। कुछ लोग ज्यादा काम करते हैं और कुछ लोग कम। कार्य का उचित वितरण होना चाहिए, ताकि किसी पर भी बेवजह का बोझ ना पड़े। मनीषा जोशी। जो वेतन हमें मिलता है, उससे घर चलाना बहुत मुश्किल है। महंगाई इतनी बढ़ गई है कि दो वक्त की रोटी का इंतजाम करना भी भारी पड़ता है। वेतन वृद्धि के साथ-साथ हमें स्वास्थ्य और जीवन बीमा का लाभ भी मिलना चाहिए। साधना कई बार शासनादेश से ज्यादा काम करवा लिया जाता है, जैसे किसी कार्यक्रम या छुट्टी के दिन भी स्कूल बुला लिया जाता है। इस अतिरिक्त कार्य के लिए हमें अतिरिक्त वेतन भी मिलना चाहिए। यह हमारा हक है। ललित देवी गर्भावस्था में भी हमें काम करना पड़ता है क्योंकि हमें कोई मातृत्व अवकाश नहीं मिलता। यह एक महिला के लिए कितनी मुश्किल बात है। सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए और हमें भी अन्य कर्मचारियों की तरह सुविधा देनी चाहिए। मोहिनी जोशी हम बच्चों के लिए खाना बनाते हैं, साफ-सफाई करते हैं, लेकिन हमें कभी सम्मान नहीं मिलता। लोग हमें बस ‘खाना बनाने वाली समझते हैं। हम भी बच्चों के भविष्य निर्माण में अहम भूमिका निभाते हैं। हमें सम्मान और सुरक्षा मिलनी चाहिए। हेमा तिवारी जब तक हम नियमित नहीं होते, तब तक हमारा भविष्य अनिश्चित है। हमें हर साल नवीनीकरण के लिए इंतजार करना पड़ता है। सरकार को लंबे समय से कार्यरत भोजनमाताओं को प्राथमिकता देनी चाहिए और उन्हें तुरंत नियमित करना चाहिए। चम्पा बिनवाल हमें जो थोड़ा-बहुत पैसा मिलता है, उससे न तो बच्चों की अच्छी पढ़ाई हो पाती है और न ही हम अपने स्वास्थ्य का ध्यान रख पाती हैं। अगर वेतन अच्छा हो और बीमा की सुविधा मिले, तो हमें काफी मदद मिल सकती है। कलावती देवी बोले जिम्मेदार भोजन माताओं की जो मांगें हैं उन्हें लेकर शासन स्तर पर अवगत करा दिया गया है। शासन से जो भी दिशा निर्देश मिलेंगे उन्हें लागू कराया जाएगा। पुष्कर लाल टम्टा, जिला शिक्षा अधिकारी (माध्यमिक) नैनीताल आशा वर्करों की जो भी मांगें जिला स्तर की हैं उन्हें तुरंत हल किया जाता है। जो मांगें शासन स्तर की होती हैं उन्हें शासन को भेज दिया जाता है। शासन के जो दिशा निर्देश होते हैं उन्हें लागू कराया जाता है। डॉ. हरीश चन्द्र पंत, सीएमओ नैनीताल
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।