देवप्रयाग के श्री रघुनाथ मंदिर में टिहरी नरेशों की रही है आस्था
भगवान राम के प्रति टिहरी नरेशों की गहरी आस्था का प्रमाण देवप्रयाग के श्री रघुनाथ मन्दिर में मिलता है। यहां टिहरी नरेशों के कई अभिलेख, ताम्र पत्र और शिलालेख हैं, जो उनके धार्मिक समर्पण को दर्शाते हैं।...

भगवान राम के प्रति टिहरी सहित भारत के कई नरेशों की गहरी आस्था रही थी। भगवान राम की तपस्थली देवप्रयाग स्थित प्राचीन श्री रघुनाथ मन्दिर में टिहरी नरेशों के महत्वपूर्ण अभिलेख मौजूद हैं। यहां शिलाओं, घंटों और ताम्र पत्रों पर टिहरी नरेशों के अभिलेख के प्रमाण रूप में हैं। भगवान रघुनाथ मन्दिर में महाराज जगतपाल का सन 1455 का गढ़वाली का प्रथम ताम्रलेख मौजूद है। जिसमें वैष्णव देवालयों के पूजा प्रबन्धन के लिए भूमिदान दिए जाने का उल्लेख है। इसी ताम्रपत्र के आधार पर संसद में गढ़वाली को आठवीं अनुसूची में शामिल किए जाने का प्रस्ताव रखा गया था। महाराजाधिराज कहे गए टिहरी नरेश सहज पाल के पांच अभिलेख रघुनाथ मन्दिर में सन 1548 से 1575 तक के हैं। सहज पाल को विद्वानों का आश्रयदाता, महाबली और कुशल राजनैतिज्ञ माना जाता था। टिहरी नरेश मानसाह का सन 1608 का शिलालेख भी रघुनाथ मन्दिर में उनकी भगवान राम के प्रति आस्था को दिखाता है। मानसाह को पराक्रमी नरेश के रूप में जाना जाता था। उनकी मानपुर वर्तमान श्रीनगर भव्य राजधानी थी। यूरोपीय यात्री वि फिंच ने उनका बहुत धनी व शक्तिमान राजा के तौर पर उल्लेख किया है। 1908 में ग्वालियर नरेश महाराजा दौलतराव सिंधिया ने भूकम्प के क्षति ग्रस्त रघुनाथ मन्दिर का निर्माण कराया था। टिहरी के पंवार राजाओं द्वारा 25 गूंठ गांव भी भगवान रघुनाथ की सेवा के लिए अर्पित किए थे। यही नहीं, गोरखा शासन काल में अमर सिंह थापा ने भी भगवान रघुनाथ के प्रति अपनी गहरी आस्था के रूप में यहां का सिंह द्वार बनवाया था, जिसे नेपाली भाषा में ढोका कहा जाता है।
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