जहाजों की गड़गड़ाहट से गूंजता था आसमान
कश्मीर घाटी में हुए आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ गया है, जिससे युद्ध का खतरा मंडराने लगा है। केंद्र सरकार ने सभी राज्यों में मॉक ड्रिल के निर्देश दिए हैं, जिसे लोग संभावित युद्ध...

अररिया, संवाददाता। कश्मीर घाटी में हुए हालिया आतंकी हमले के बात भारत पाक के बीच बढ़ती तनातनी के मद्देनजर दोनों देश के बीच युद्ध का खतरा मंडराने लगा है। बुधवार को केंद्र सरकार द्वारा सभी राज्यों में मॉक ड्रिल के निर्देश को लोग युद्ध की संभावित तैयारी से ही जोड़ कर देख रहे हैं। इसी क्रम में पिछले कुछ युद्ध के दौरान के हालात को लेकर ‘हिन्दुस्तान के पड़ताल से ये बात सामने आई कि वर्ष 1971 में तत्कालीन पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध के दौरान जिले में लंबे समय तक भय माहौल बना रहा था। सामाजिक कार्यकर्ता शैलेन्द्र शरण और दीपक दास बताते हैं कि अररिया में मिलिट्री या सिविल सोसाइटी का कोई मॉक ड्रिल तो नहीं हुआ था।
लोग उस समय ऑल इंडिया रेडियो द्वारा जारी सूचनाओं पर अमल करते थे। श्री दास कहते हैं कि निर्देशानुसार शाम को घरों में अंधेरा कर दिया जाता था। अधिक से अधिक घरों के अंदर रौशनी करने की अनुमति थी। श्री दास ये भी कहते हैं कि जब बमबारी होती थी तो आसमान में फैली रौशनी अररिया से भी दिखाई पड़ती थी। वहीं श्री शरण ने बताया कि आर्मी और सिविलियन का मॉक ड्रिल पूर्णिया में तो होता था। वहां छुपने के लिए गड्ढे आदि बनाना भी सिखाया जाता था। उन्होंने बताया कि उस समय ऐसा कोई सिविल डिफेंस सोसाइटी नहीं था, लेकिन भारत चीन युद्ध के बाद डीएम की अध्यक्षता में नागरिक परिषद का गठन हुआ था। तब अररिया जिला नहीं अनुमंडल ही था। उस परिषद में अररिया का प्रतिनिधित्व लल्लू बाबू वकील करते थे। नागरिक परिषद काफी समय तक सक्रिय रहा था। अररिया डाल बंगला में भी उसकी कई बैठकें हुई थीं। बैठक में जमीलुररहमान भी शामिल होते थे। तब वे वकालत करते थे। बाद में सांसद बने थे। श्री शरण ने बताया कि उस समय युद्ध के बाद आर्मी के लिए सरकार ने सोना दान करने का आह्वान किया था। लल्लू बाबू और स्वर्गीय जमीलुर्रहमान ने भी सोना दान किया था। एक पुरानी घटना को याद करते हुए श्री शरण ने बताया कि पहली बार जब आर्मी की एक टुकड़ी अररिया आई तो वे लोग मैप लेकर बसंतपुर ढूंढ रहे थे। बंबई होटल के आर्मी वालों से उन लोगों की भेंट हो गई। वहीं श्री दास ने कहा कि अब जो अररिया सिलीगुड़ी एनएच है वो उस समय एलआरपी रोड कहलाता था। उस सड़क पर दिन रात फौज की गाड़ियां आती जाती रहती थीं। एयरफोर्स के प्लेन की गड़गड़ाहट से आसमान गूंजता रहता था।
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