Famous Pedha of Kharanti A Sweet Business Struggles Amid Rising Costs बोले औरंगाबाद : बैंकों से कम ब्याज पर लोन की आस में हैं पेड़ा कारोबारी, Aurangabad Hindi News - Hindustan
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बोले औरंगाबाद : बैंकों से कम ब्याज पर लोन की आस में हैं पेड़ा कारोबारी

ओबरा प्रखंड के खरांटी का पेड़ा पूरे प्रदेश में प्रसिद्ध है, लेकिन बढ़ती महंगाई और लागत के कारण कारोबारी परेशान हैं। रोजाना सैकड़ों लोग पेड़ा खरीदने आते हैं, लेकिन दूध और चीनी की कीमतों में वृद्धि से...

Newswrap हिन्दुस्तान, औरंगाबादThu, 24 April 2025 11:39 PM
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बोले औरंगाबाद : बैंकों से कम ब्याज पर लोन की आस में हैं पेड़ा कारोबारी

ओबरा प्रखंड के खरांटी का पेड़ा अपने स्वाद के लिए प्रदेश भर में जाना जाता है। पिछले 42 वर्षों से यहां का पेड़ा पूरे राज्य में फेमस है। यहां पेड़ा की दुकान एनएच-139 से सटे हुए है। इस दुकान पर रोजाना सैकड़ों लोगों की भीड़ पेड़ा खरीदने के लिए पहुंचती है। दुकान मालिक के मुताबिक यहां रोजाना लगभग एक क्विंटल से अधिक पेड़ा की बिक्री होती है। मिली जानकारी के मुताबिक वर्ष 1982 में महाराज साव नाम के शख्स ने यहां पेड़ा बनाना शुरू किया। देखते ही देखते पेड़ा के स्वाद ने सैकड़ों लोगों को दुकान की ओर खींचा। इस कारोबार में धीरे-धीरे लोग जुड़ते चले गए। आज यहां दर्जनों पेड़ा की दुकानें खुली हुई हैं। पेड़ा दुकान संचालकों ने बताया कि गाय के दूध से पेड़ा तैयार किया जाता है जिसमें चीनी की मात्रा कम होती है। साथ ही इसमें इलायची पाउडर का भी इस्तेमाल किया जाता है। इससे इसके स्वाद में बढ़ोतरी होती है। इस पेड़ा को बनाने में पांच क्विंटल दूध की रोजाना खपत होती है। इसी दूध से रोज पेड़ा तैयार किया जाता है। दूध स्थानीय ग्वाला से लिया जाता है। यहां की पेड़ा की दुकानों पर दूर दराज की गाड़ियां आकर रूकती हैं और लोग पेड़ा खरीद कर ले जाते हैं। बता दें कि रोजाना 80 से 100 किलो पेड़े की बिक्री आसानी से हो जाती है। वहीं पर्व त्यौहार में दो क्विंटल तक की बिक्री होती है। यहां पेड़ा 400 रुपए प्रति किलो बिकता है लेकिन इस कारोबार से जुड़े हुए लोगों को भी अपनी समस्याएं हैं। उनका कहना है कि दूध, चीनी और गैस के महंगा होने के कारण पेड़ा बनाने में खर्च अधिक होता है लेकिन उसके मुताबिक लाभ नहीं मिल पाता है। इस व्यवसाय से जुड़े हुए लोगों ने कहा कि सरकार हम लोगों को सस्ते दर पर ऋण और सब्सिडी दे तो तो उनकी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हो सकती है। कारोबारी का कहना है कि 60 रुपए लीटर दूध लेकर पेड़ा तैयार करना मुश्किल हो रहा है। कागज के डिब्बे भी महंगे हैं। धीरे-धीरे कारीगर कम हो रहे हैं। मजदूर अधिक मजदूरी मांगते हैं जबकि उतना मुनाफा नहीं होता है। उनलोगों का व्यापार चलना मुश्किल हो गया है। वैसे तो जिले में सैकड़ों पेड़ा की दुकानें हैं जिनके यहां रोज का कारोबार सीमित है लेकिन ओबरा के खरांटी में पेड़ा की दर्जनों दुकानें हैं जिनके रोज का कारोबार लाखों रुपए में है। होली और दीवाली त्योहार पर पेड़ा के कारोबार में तेजी आती है। पेड़ा कारोबारी बताते हैं कि जीएसटी के नाम पर व्यापारियों को परेशान किया जाता है। पेड़ा कारोबारी को कहना है कि एक किलो पेड़ा बेचने पर 20 से 30 रुपए की बचत होती है। दुकानदारों का कहना है कि यहां एक सुरक्षित बाजार नहीं होने के कारण मशहूर पेड़ा का अस्तित्व धीरे-धीरे समाप्त हो रहा है। यहां बाजार उपलब्ध और विकसित करने के लिए सरकार को योजना बनानी चाहिए। सरकार और स्थानीय प्रशासन से उन्हें किसी प्रकार का सहयोग नहीं मिल पाता है जिससे लोगों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। हम सभी लोग खुदरा पेड़ा ही बेच सकते हैं लेकिन हम लोगों को अगर बाजार उपलब्ध हो होती तो हम बड़े पैमाने पर निर्माण कर राज्य एवं राज्य के बाहर भी भेज सकते हैं। सरकार को इस कारोबार को बढ़ाने के लिए योजना बनाकर इस कारोबार से जुड़े हुए लोगों को लाभ दिलाने की आवश्यकता है।

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पांच सुझाव

पेड़ा कारोबारी को सरकार के प्रावधानों के प्रति जागरूक और प्रशिक्षित किया जाए

छोटे उद्योगों को संरक्षण की जरूरत है

जीएसटी की विसंगतियों से भी राहत दिलानी चाहिए

शहर में एक स्थान पार्किंग के लिए तय किया जाए ताकि व्यापारी, ग्राहक निश्चित होकर गाड़ी खड़ी कर सकें।

खाद्य विभाग को पारदर्शिता के साथ काम करना चाहिए। सैंपल के नाम पर परेशान करना बंद किया जाए

इस कारोबार से जुड़े हुए लोगों को सस्ते दर पर बैंक से लोन उपलब्ध कराने की जरूरत है।

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त्योहार आते ही अफसर जांच के नाम पर धमकाने लगते हैं

दुकानदारों के अफसरों का व्यवहार अच्छा नहीं होता

बैंकों से मुद्रा लोन लेना मुश्किल है

बिजली विभाग जांच के नाम पर मानसिक तथा आर्थिक उत्पीड़न करते हैं।

सड़क पर गाड़ी खड़ी मिली तो पुलिस दुकानदारों के साथ गलत व्यवहार करती है

दुकानदारों की गाड़ियों का भी चालान हो जाता है।

छोटे व्यापारियों को जागरूकता के अभाव में सरकारी योजनाओं को लाभ नहीं मिल पाता है

इस कारोबार से जुड़े हुए लोगों को आसानी से लोन नहीं मिलता है।

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कैंप लगाकर पेड़ा कारोबारी को मिले योजनाओं की जानकारी

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आत्मनिर्भर भारत का सपना हर जगह साकार हो रहा है लेकिन असल में पेड़ा कारोबार से जुड़े हुए कारोबारी के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। ना तो उनके लिए जागरूकता कैंप आयोजित किया जाता है और ना ही पेड़ा कारोबारी को सरकारी योजनाओं का सही लाभ मिलने की जानकारी दी जाती है। परिणाम स्वरूप इस व्यवसाय से जुड़े लोग लगातार बढ़ती महंगाई और अन्य खर्चों का बोझ सहते हुए नुकसान की मार झेल रहा है। बिना सरकारी मदद के यह व्यवसाय उनके लिए बेहद मुश्किल हो गया है। कई छोटे व्यापारी इस वजह से अपना कारोबार बंद कर चुके हैं और दूसरे राज्यों में काम करने के लिए मजबूर हो रहे हैं। अगर स्थानीय विभाग और सरकारी योजनाओं का सही तरीके से लाभ दिया जाए तो फिर से पेड़ा व्यवसाय समृद्ध हो सकता है और हजारों लोगों को रोजगार मिल सकता है। इस कारोबार में युवा वर्ग भी जुड़ा हुआ है। उनके लिए सिर्फ बैंक से सस्ते दर पर ऋण की उपलब्धता होनी चाहिए। इस व्यवसाय को करने के लिए युवा बैंकों की ओर दौड़ लगाते रहे पर बैंकों की ओर से उन्हें ऋण उपलब्ध कराने में कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाई गई। नतीजा यह है कि जानकारी के अभाव में युवा उद्यमी पूंजी नहीं लगा पाते हैं और ना ही इस व्यवसाय में उम्मीद के मुताबिक तरक्की ही कर पाते हैं। पेड़ा कारोबार में लगे लोगों को कहना है कि सरकार को कारोबारी को चिन्हित कर व्यवसाय के लिए सस्ते दर पर ऋण उपलब्ध कराए तो फिर से यह कारोबार चल पड़ेगा।

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हमारी भी सुनिए

पेड़ा कारोबार से जुड़े हुए लोगों को और बेहतर बनाने के लिए सरकार ने अब तक कोई कारगर कदम नहीं उठाया। आज इस क्षेत्र में कदम रखने में लोग घबराते हैं।

सन्नी कुमार

हमारा भी घर, परिवार है। बच्चों की पढ़ाई इतने पैसे में नहीं हो सकती है। किराए पर जगह लेकर दुकान चलाते हैं। सड़क किनारे छोटी सी जगह पर पेड़ा का कारोबार करते हैं।

प्रकाश कुमार

पेड़ा कारोबारी के लिए एक स्थाई पेड़ा बाजार चाहिए। बाजार नहीं होने के कारण सड़क किनारे दुकान लगाने को मजबूर हैं। इसके कारण नुकसान भी होता है।

अंजम कुमार

बढ़ती महंगाई और खर्चों ने पेड़ा कारोबार को मुश्किल में डाल दिया है। वे लोग इस धंधे को जारी रखना चाहते हैं। सरकार को इस ओर ध्यान देने की जरूरत है।

रोहित कुमार

कारोबार में काफी दिक्कतें आ रही हैं। बाजार से कच्चा माल खरीदना और काम करने के लिए मजदूर ढूंढना टेढ़ी खीर हो गया है। उन्हें कारोबार में कोई मदद नहीं मिल पाती है।

धीरज कुमार

धीरे-धीरे कारीगर कम हो रहे हैं। मजदूर कम होने से जो काम कर रहा है, वह अधिक मजदूरी मांगता है। व्यापार चलाना मुश्किल हो गया है। खर्च बढ़ने पर कीमत बढ़ाना मजबूरी होगी।

सिंपल कुमार

बड़ी दुकानों पर बनाने वाले पेड़ा के सैंपल पास हो जाते हैं। कार्रवाई केवल छोटे दुकानदारों पर होती है। मामूली गलती पर भी उन्हें परेशान किया जाता है। प्रशासन की यह कार्रवाई पूरी तरह गलत है।

जितेंद्र साव

चीनी और दूध के दामों पर नियंत्रण होना चाहिए। दाम बढ़ते हैं और लागत बढ़ती है। इससे पेड़ा की कीमत बढ़ानी पड़ती है। इसके कारण ग्राहक दूर हो जाते हैं।

अमित कुमार

शहर के बाजार में सही तरीके से पार्किंग की सुविधा होनी चाहिए। इस दिशा में कोई पहल नहीं हो रही है। इससे दुकानदारी सही ढंग से होगी।

संजय कुमार

अधिकारी बड़ी दुकानों का निरीक्षण करने नहीं जाते। उनकी तलवार हम छोटे दुकानदारों पर ही लटकी रहती है। मदद तो नहीं होती लेकिन कार्रवाई की जाती है।

दर्शन कुमार

जानकारी नहीं होने के कारण अधिकारी उनलोगों का शोषण करते हैं। त्योहार के समय खाद्य विभाग के अधिकारी बेवजह तंग करते हैं। उनकी समस्याओं को दूर करने की दिशा में कार्रवाई नहीं होती है।

विमल कुमार

छोटे कारोबारी के लिए पेड़ा का धंधा अब घाटे का सौदा साबित हो रहा है। उनके उत्पाद को कई जगहों पर सही तरीके से पेश नहीं किया जाता है। सही कीमत नहीं मिलने से दुकानदारी प्रभावित हो रही है।

राजू गुप्ता

बाजार में जाम लगता है इसलिए लोग दुकान पर खरीदारी करने नहीं पहुंच पाते हैं। जाम की समस्या दूर होनी चाहिए। अधिकारियों को इस बारे में विचार करना चाहिए।

संजय कुमार

पेड़ा कारोबारी को त्यौहार के मौके पर छापेमारी का डर दिखा दिया जाता है। वे लोग कोई मिलावट नहीं करते हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए।

विनोद कुमार गुप्ता

कारीगरों का मेहनताना पहले से दोगुना हो गया है। चीनी और दूध के दाम भी बढ़ गए हैं। महंगा पेड़ा खरीदने से लोग बचते हैं। इसका असर व्यवसाय पर पड़ रहा है।

उपदेश

पेड़ा कारोबार से जुड़े लोगों को संरक्षण की जरूरत है ना कि टैक्स के बोझ के तले इन्हें दबाया जाए। जीएसटी की विसंगतियों से भी राहत दिलानी चाहिए। इस कारोबार में आमदनी सीमित है।

ओम प्रकाश

छोटे व्यापारियों को जागरूकता के अभाव में सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता है। अधिकारी उनकी सहायता नहीं करते हैं। इसके लिए पहल की जरूरत है।

राजेश कुमार

बैंकों से मुद्रा लोन लेना मुश्किल है। इसके लिए आवेदन करने के बावजूद कोई जानकारी नहीं मिलती है। बिजली विभाग जांच के नाम पर मानसिक और आर्थिक रूप से उत्पीड़न करते हैं।

धीरज कुमार

सरकार को पेड़ा कारोबार को जिंदा रखने के लिए बैंकों से सस्ते दर पर ऋण उपलब्ध कराना चाहिए। इसके साथ ही सब्सिडी भी मिले तभी उन्हें लाभ हो सकेगा।

सत्येंद्र गुप्ता

पेड़ा मिठाई कारोबारीयो को सरकार की ओर से सब्सिडी की सुविधा मिलनी चाहिए। साथ ही साथ इस कारोबार से जुड़े हुए लोगों को हेल्थ कार्ड बनना चाहिए। उनके बार में किसी भी स्तर पर विचान नहीं किया जाता है।

प्रदीप कुमार

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