Sanitation Supervisors Demand Regularization and Wage Increase Amid Economic Crisis बोले औरंगाबाद : स्वच्छता पर्यवेक्षकों को नियमित मानदेय मिले तो संवर जाये जीवन, Aurangabad Hindi News - Hindustan
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बोले औरंगाबाद : स्वच्छता पर्यवेक्षकों को नियमित मानदेय मिले तो संवर जाये जीवन

स्वच्छता पर्यवेक्षक अनुबंध पर काम कर रहे हैं और उनका भविष्य असुरक्षित है। वे स्थायी सेवाओं की मांग कर रहे हैं ताकि वे बेहतर जीवन जी सकें। वर्तमान मानदेय महंगाई के अनुसार अपर्याप्त है। कई पर्यवेक्षक...

Newswrap हिन्दुस्तान, औरंगाबादSun, 4 May 2025 12:04 AM
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बोले औरंगाबाद :  स्वच्छता पर्यवेक्षकों को नियमित मानदेय मिले तो संवर जाये जीवन

स्वच्छता पर्यवेक्षक अनुबंध पर कार्य कर रहे हैं जिससे उनका भविष्य असुरक्षित बना हुआ है। वे चाहते हैं कि उनकी सेवाओं को नियमित किया जाए ताकि वह स्थाई रूप से इस कार्य को कर सकें। पंचायतों में स्वच्छता व्यवस्था बनाए रखने के लिए यह बेहद आवश्यक है कि इन कर्मियों को आवश्यक सुविधा मिले। स्वच्छता पर्यवेक्षकों का वर्तमान मानदेय पांच हजार से सात हजार के करीब है। महंगाई के इस दौर में यह मानदेय उनके परिवार के लिए अपर्याप्त साबित हो रहा है। वे सरकार से मानदेय में वृद्धि की मांग कर रहे हैं ताकि सम्मानजनक जीवन जी सकें। कई पर्यवेक्षक मजबूरी में उधार लेने को मजबूर हो रहे हैं।

आर्थिक तंगी के कारण उनका मानसिक तनाव भी बढ़ रहा है। कई महीनों से स्वच्छता पर्यवेक्षकों को उनका मानदेय नहीं मिला है। इससे उनके सामने गंभीर आर्थिक संकट खड़ा हो गया है। परिवारों के भरण पोषण में समस्या हो रही है। बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है, घर का खर्च चलाना भी मुश्किल हो गया है। स्वच्छता पर्यवेक्षक सुशील कुमार, रोशन कुमार, उपेंद्र कुमार, विमलेश चौधरी, प्रकाश वर्मा, दिलीप कुमार सिंह, विजय कुमार, ओमप्रकाश, अनूप कुमार, नीरज उर्फ सनोज कुमार, सुषमा कुमारी, उदय कुमार, सिंटू कुमार, राजेश कुमार आदि ने बताया कि स्वच्छता पर्यवेक्षक चाहते हैं कि उनकी नौकरी 60 साल की जाए ताकि वह बिना किसी भय के अपने कार्य कर सकें। फिलहाल वे हर साल नौकरी की नवीनीकरण के इंतजार में रहते हैं जिससे उनका भविष्य असुरक्षित बना रहता है। अगर नौकरी स्थाई कर दी जाती है तो वह अधिक मनोयोग से कार्य कर सकेंगे और पंचायत की सफाई व्यवस्था में सुधार होगा। अधिकतर स्वच्छता पर्यवेक्षक को ईपीएफ, स्वास्थ्य बीमा और आयुष्मान भारत योजना जैसी सुविधाओं का लाभ नहीं मिल रहा है। अगर उन्हें ये सुविधाए दी जाएगी तो वे आर्थिक और स्वास्थ्य संबंधित सुरक्षा प्राप्त कर सकेंगे। कई पर्यवेक्षक और कर्मी बिना किसी स्वास्थ्य बीमा के काम कर रहे हैं जिससे उन्हें किसी भी बीमारी या दुर्घटना की स्थिति में भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है। बेबी देवी, प्रियंका कुमारी, दीपक कुमार, विकास कुमार, रामप्रवेश कुमार, सोनू कुमार आदि ने बताया कि स्वच्छता पर्यवेक्षकों को किसी भी प्रकार की सामाजिक सुरक्षा प्राप्त नहीं है। बीमारी की स्थिति में हमारे पास इलाज के लिए पैसे नहीं होते जिससे हमारी आर्थिक और मानसिक स्थिति प्रभावित होती है। हमारा मानदेय बहुत कम है जिससे जीवन यापन करना मुश्किल हो गया है। महंगाई बढ़ रही है लेकिन हमारे वेतन में कोई वृद्धि नहीं हो रही है। हम मांग करते हैं कि हमें कम से कम न्यूनतम वेतन की गारंटी दी जाए। उन्होंने बताया कि हमें हर महीने समय पर वेतन नहीं मिलता जिससे आर्थिक संकट उत्पन्न हो जाता है। कई बार हमें महीनों तक वेतन का इंतजार करना पड़ता है। इससे हमारे घर के खर्चे पूरे करना मुश्किल हो जाता है। हम स्वच्छता की जिम्मेदारी निभा रहे हैं लेकिन हमें कोई सम्मान नहीं दिया जाता। जब भी हम अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाते हैं तो हम पर दबाव बनाया जाता है और हमारी समस्याओं को नजरअंदाज कर दिया जाता है। सरकार से हमारी मांग है कि हमारी समस्याओं पर भी ध्यान दे। स्वच्छता पर्यवेक्षकों ने कहा कि हम प्रतिदिन सुबह 6 से लेकर देर शाम तक स्वच्छता एवं इससे संबंधित कार्यों में लगे रहते हैं लेकिन कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है। हमें कोई भता, बीमा योजना, पेंशन योजना, सेवा समाप्ति के बाद आर्थिक सुरक्षा यानी कोई भी सुविधा नहीं मिलती है। यहां तक कि हमें कोई भी सरकारी योजना का लाभ भी नहीं मिलता है। हमें संविदा पर तो बहाल किया गया है लेकिन संविदा कर्मियों की तरह हमें कोई सुविधा हासिल नहीं है। हम काम के दौरान भी अनेक समस्याओं का सामना करते हैं। सुरक्षा किट और स्वच्छता उपकरण जो नियोजन के समय मिले थे, उनकी कभी पुनः आपूर्ति नहीं हुई। स्वच्छता कर्मी जब आवश्यक सामग्री मांगते हैं तो हम उन्हें उपलब्ध नहीं करा पाते हैं। लाभुकों से स्वच्छता शुल्क वसूलना भी एक बड़ी चुनौती है। कई लाभुक मात्र 30 रुपए का शुल्क देने में भी आनाकानी करते हैं। कई बार स्वच्छता पर्यवेक्षक और लाभुकों के बीच विवाद भी हो जाता है। अधिकारी हम पर शुल्क वसूलने का दबाव तो बनाते हैं लेकिन कोई सहयोग नहीं करते हैं। साफ-सफाई होने से गांव की बदल रही है तस्वीर गांव अब तेजी से बदल रहे हैं। हर खाली जमीन पर मकान बन चुके हैं या बनाए जा रहे हैं। बढ़ती आबादी और शहरीकरण की ओर बढ़ते गांव में अब कूड़ा निस्तारण के लिए कोई जगह नहीं बची है। ऐसे में लोग मजबूरी में एक दूसरे की जमीन पर चोरी छिपे कूड़ा फेंक देते हैं। खेतों में कूड़ा फेंके जाने से मिट्टी की उर्वरता पर भी बुरा असर पड़ रहा है। प्लास्टिक और अन्य अपशिष्ट पदार्थ मिट्टी की गुणवत्ता को खराब कर रहे हैं जिससे किसानों की फसल उत्पादन क्षमता प्रभावित हो रही है। पहले जहां किसान अपने खेतों में जैविक खाद डालकर उर्वरता बनाए रखते थे वहीं खेत कूड़े के ढेर में बदलते जा रहे हैं। सरकार ने इस समस्या को ध्यान में रखते हुए पंचायत में स्वच्छता कर्मियों और पर्यवेक्षकों की बहाली की थी ताकि गांव में कूड़ा उठाव और निस्तारण की उचित व्यवस्था हो। मौजूदा हालात यह है कि ज्यादातर पंचायत में स्वच्छता कर्मियों को वेतन नहीं मिल रहा है। उनके सामने परेशानी उत्पन्न हो रही है। स्वच्छता कर्मियों ने बताया कि अगर यही स्थिति बनी रही तो हम लोग काम करना बंद कर देंगे। सरकार को इसके लिए समाधान निकालना चाहिए। अगर जल्द ही समाधान नहीं निकाला गया तो गांव में सफाई व्यवस्था चरमरा जाएगी। सरकार को चाहिए कि वह पंचायत में कूड़ा निस्तारण के लिए उचित स्थान चिन्हित करें। स्वच्छता कर्मियों का वेतन भुगतान सुनिश्चित करें और ठोस कूड़ा प्रबंधन की एक प्रभावी नीति लागू करें। स्वच्छता कर्मियों को उनके कार्य की ओर और अधिक प्रभावी बनाने के लिए उचित प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। यदि हमें आधुनिक सफाई उपकरणों और नई तकनीक के उपयोग का प्रशिक्षण मिलेगा तो गांव की साफ-सफाई अच्छे ढंग से हो पाएगी। उन्होंने कहा कि हमें काम करने के दौरान किसी प्रकार के सुरक्षा उपकरण उपलब्ध नहीं कराए जाते। सफाई कार्य के दौरान हमें कोई बार गंदगी और संक्रमित कचरे के संपर्क में आना पड़ता है जिससे गंभीर बीमारी होने का खतरा बना रहता है। स्वच्छ भारत अभियान को केवल सरकारी प्रचार तक सीमित ना रखा जाए बल्कि इसे जमीनी स्तर पर प्रभावी बनाने के लिए हमें सशक्त किया जाए। स्वच्छता गर्मियों को इस अभियान का सक्रिय भागीदार बनाया जाए। स्वच्छता पर्यवेक्षकों ने बताया कि उन्हें बहुत कम वेतन दिया जाता है जो उनकी आजीविका के लिए पर्याप्त नहीं होता है। हम लोग साफ-सफाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। गांव की गलियों को चकाचक रखते हैं। हमारे कार्यों को बेहतर बनाने के लिए सरकार को वेतन और भत्ते में सुधार करने की आवश्यकता है। स्वच्छता पर्यवेक्षकों ने बताया मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में 20 हजार रुपए, उत्तर प्रदेश में 16 हजार रुपए और झारखंड में 18 हजार रुपया मानदेय दिया जा रहा है। उत्तर प्रदेश सरकार ने तो इस वर्ष 10 हजार रुपए का बोनस भी दिया है। इसके विपरीत बिहार सरकार उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दे रही है। हमारा मानदेय बढ़ाकर 20 हजार रुपए किया जाए। संविदा कर्मियों को मिलने वाले सभी लाभ हमें दिए जाए। हमारा मानदेय बिहार रूरल डेवलपमेंट सोसाइटी से प्रत्यक्ष रूप में दिया जाए। विभिन्न भत्तों के साथ सेवा नियमित की जाए एवं सेवानिवृत्ति की उम्र 60 वर्ष तक की जाए। सेवानिवृत्ति के बाद पेंशन और अन्य आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित की जाए। महंगाई के अनुरूप समय-समय पर मानदेय में वृद्धि हो। हमें पीएफ आदि की सुविधा मिले। सरकारी यदि मांगों पर ध्यान नहीं देती तो हम स्वच्छता पर्यवेक्षक को और हमारे परिवारों का भविष्य अंधकारमय बना रहेगा। सुझाव 1. स्वच्छता कर्मियों और पर्यवेक्षकों को स्थाई किया जाए ताकि वह काम कर सकें। 2. मानदेय को बढ़ाया जाए ताकि वह सम्मानजनक जीवन व्यतीत कर सकें। 3. समय पर वेतन भुगतान सुनिश्चित किया जाए 4. सभी कर्मियों को ईपीएफ, बीमा और स्वास्थ्य योजनाओं का लाभ दिया जाए। 5. सरकार स्वच्छता कार्य को गंभीरता से ले, पंचायतो में स्वच्छता बजट का सही उपयोग सुनिश्चित करें। शिकायतें 1. महीनो से वेतन नहीं मिला जिससे परिवार चलाना मुश्किल हो गया है। 2. मानदेय बहुत कम है, महंगाई के अनुरूप इसे बढ़ाया नहीं गया है। 3. नौकरी की कोई स्थायित्व नहीं है जिससे भविष्य असुरक्षित बना हुआ है। 4.बीमा और स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ नहीं मिलता, दुर्घटना की स्थिति में बड़ी समस्या खड़ी हो सकती है। 5. सरकार की ओर से कोई स्पष्ट नीति नहीं है जिससे स्वच्छता कार्य में बाधा उत्पन्न हो रही है। हमारी भी सुनिए हमें मेडिकल, भविष्य निधि या अन्य कोई भी सुविधा हासिल नहीं है। हमारा मानदेय भी काफी कम है जिसे बढ़ाने की जरूरत है। सरकार हमारी मांगों पर उचित पहल करे। सुशील कुमार मानदेय में कोई वृद्धि नहीं हो रही है। ना कोई पेंशन और ना ही इंश्योरेंस मिलता है। सेवानिवृति को लेकर भी अनिश्चितता बनी हुई है। समस्या पर सुनवाई नहीं होती है। रौशन कुमार हमारा मानदेय काफी कम है। हम सरकार से यह मांग करते हैं कि स्वच्छता पर्यवेक्षक को संविदा कर्मी का सभी लाभ दिया जाए। जिला स्तर पर उनकी समस्याओं पर सुनवाई हो। उपेंद्र कुमार भीषण महंगाई को देखते हुए स्वच्छता पर्यवेक्षकों का मानदेय बढ़ना चाहिए। हम लोगों का वेतन 75 सौ से 20 हजार रुपए किया जाए। उनकी सेवा को ध्यान में रखते हुए अलग विभाग बनाया जाए। विमलेश चौधरी पंचायती विभाग के अनुसार स्वच्छता पर्यवेक्षक का मानदेय 20 हजार रुपए है जबकि वर्तमान में उन्हें 75 सौ रुपए मिलता है। उनकी सेवा शर्तों का निर्धारण सरकार करे। प्रकाश वर्मा नियोजित कर्मी के तहत जो भी लाभ मिलने चाहिए, उस पर कार्रवाई हो। सभी पर्यवेक्षक को एकसमान लाभ दिया जाए साथ ही मेडिकल की भी सुविधा दी जाए। दिलीप कुमार सिंह स्वच्छता कर्मी को उचित मानदेय दिया जाए। इसके साथ ही नौकरी में 60 वर्ष की आयु तक काम करने की सुविधा मिले। उनकी सेवा शर्त का निर्धारण किया जाए। विजय कुमार स्वच्छता पर्यवेक्षक का मानदेय बिहार रूरल डेवलपमेंट सोसाइटी बीआरडीएस से दिया जाए। स्वच्छता कर्मियों और पर्यवेक्षकों का भविष्य अंधकारमय बना हुआ है। ओम प्रकाश हम सभी पर्यवेक्षक एवं कर्मी के परिवारों का भरण पोषण अच्छे से हो सके, इसके लिए पहल हो। स्वच्छता पर्यवेक्षक का मानदेय बढ़ना चाहिए। अनूप कुमार पंचायत पर्यवेक्षकों को बहुत कम मानदेय मिल रहा है। इससे घर परिवार का भरण पोषण सही तरीके से नहीं होता है। पैसों की कमी हमेशा बनी रहती है। नीरज उर्फ सनोज कुमार यादव हमारा मानदेय काफी कम है। मनरेगा के श्रमिक से भी काफी कम पेसे मिलते हैं। सरकार द्वारा निर्धारित मानक का उल्लंघन हो रहा है। यह समझ से परे है कि सरकार के स्तर से उनकी बहाली होने के बावजूद लाभ नहीं मिलता है। सुषमा कुमारी वेतन समय सीमा पर नहीं मिलने से परिवार का भरण पोषण करने में परेशानियों का सामना करना पड़ता है। वे लोग कई तरह की समस्याओं का सामना कर रहे हैं। उदय कुमार हम कई महीनो से बिना वेतन के काम कर रहे हैं जिससे घर चलना मुश्किल हो गया है। बच्चों की स्कूल फीस भरने के लिए कर्ज लेना पड़ रहा है। दैनिक जरूरत को पूरा करना चुनौती बन गया है। बेबी देवी हमें हर महीने समय पर वेतन नहीं मिलता जिससे आर्थिक संकट उत्पन्न हो जाता है। कई बार हमें महीनों तक वेतन का इंतजार करना पड़ता है जिससे हमारे घर के खर्चे पूरे करना मुश्किल हो जाता है सिंटू कुमार किसी प्रकार की सामाजिक सुरक्षा प्राप्त नहीं है। बीमारी की स्थिति में हमारे पास इलाज के लिए पैसे नहीं होते जिससे हमें आर्थिक और मानसिक परेशानी होती है। राजेश कुमार हमारा मानदेय बहुत कम है जिससे जीवन यापन करना मुश्किल हो गया है। महंगाई दिन-ब-दिन बढ़ रही है लेकिन हमारे वेतन में कोई वृद्धि नहीं हो रही है। हम मांग करते हैं कि हमें कम से कम न्यूनतम वेतन की गारंटी दी जाए। प्रियंका हमारी नौकरी अस्थाई होने के कारण हमें भविष्य की चिंता सताती रहती है। हर साल यह डर बना रहता है कि हमें काम से हटा दिया जाएगा। हम चाहते हैं कि हमें 60 वर्ष तक स्थाई नौकरी का लाभ मिले। दीपक कुमार हम स्वच्छता की जिम्मेदारी निभा रहे हैं लेकिन हमें कोई सम्मान नहीं दिया जाता। जब भी हम अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाते हैं तो हम पर दबाव बनाया जाता है और हमारी समस्याओं को नजर अंदाज कर दिया जाता है। विकास कुमार स्वच्छता कर्मियों और पर्यवेक्षकों के बिना पंचायत में सफाई संभव नहीं है लेकिन हमें समय पर वेतन नहीं दिया जाता। यदि हमें हमारी मेहनत का उचित पारिश्रमिक नहीं मिलेगा तो हमारा काम करने का उत्साह कम हो जाएगा। रामप्रवेश कुमार हमारी मांग केवल वेतन तक सीमित नहीं है। हम चाहते हैं कि हमें अन्य सरकारी योजनाओं जैसे ईपीएफ और पेंशन का लाभ मिले ताकि बुजुर्ग होने के बाद भी हमारी आय बनी रहे। सोनू कुमार

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