श्रावणी मेला: मेले में कमाई के साथ साथ शिवभक्तों की सेवा के लिए घर लौटने लगे परदेशी
पेज चार की लीडपेज चार की लीड श्रावणी मेला- अब सिर्फ़ 46 दिन शेष मेले के आयोजन से कांवरिया पथ के साथ-साथ होगा क्षेत्र का विकास क्षेत्र की

श्रावणी मेला: मेले में कमाई के साथ साथ शिवभक्तों की सेवा के लिए घर लौटने लगे परदेशी कटोरिया (बांका), निज प्रतिनिधि श्रावणी मेला सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि यह आस्था, सेवा और स्थानीय अर्थव्यवस्था के सशक्तिकरण का एक अनूठा संगम है। सुल्तानगंज से देवघर तक फैले कांवरिया पथ पर जहां लाखों शिवभक्तों की आस्था उमड़ती है, वहीं इस आयोजन से हजारों परिवारों को रोजगार और आमदनी का जरिया मिलता है। क्षेत्र की एक बड़ी आबादी दिल्ली, महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब, हरियाणा सहित अन्य राज्यों के शहरों में मेहनत मजदूरी के लिए काम करने जाती है। लेकिन श्रावणी मेला के दौरान लगभग परदेशी अपने घर लौट आते हैं।
अब जब मेला शुरू होने में महज 46 दिन शेष रह गए हैं, तो तैयारियों ने रफ्तार पकड़ ली है। परदेशी मजदूर और व्यापारी अपने गांवों की ओर लौटने लगे हैं, ताकि वे मेला अवधि में कांवरियों की सेवा और व्यापार से साल भर के लिए आमदनी सुनिश्चित कर सकें। परदेश से लौटे लोग कांवरिया पथ के किनारे दुकान और टेंट लगाने के लिए जमीन बुक करा रहे हैं। कई दुकानदार बांस-बल्ले और तिरपाल की व्यवस्था में जुट गए हैं। मेले में होटल, किराना, फल, पूजा सामग्री की दुकानें, स्टॉल, भोजनालय, किराए की जमीन, टेंट व्यवसाय जैसे अनेक गतिविधियों से हजारों लोगों को कमाई होती है। इसके अलावा किसान इस दौरान मकई, गन्ना, सब्ज़ी, और साग आदि अधिक कीमतों पर बेचकर अच्छा मुनाफा कमाते हैं। जिससे कई परिवारों की साल भर की आजीविका चलती है। सवारी वाहनों को दुरुस्त करने में लगे चालक कांवरियों की भारी आवाजाही के कारण भाड़ा वाहन चालकों की भी अच्छी कमाई होती है। सुल्तानगंज- देवघर मुख्य मार्ग पर सैकड़ों पैसेंजर बसें, ऑटो, मैजिक, छोटी मालवाहक गाड़ियां आदि चलती है। अन्य दिनों की अपेक्षा मेले में सवारी का भाड़ा दुगना से अधिक होता है। मेले में गाड़ी चलाकर कमाई करने के लिए मालिक व चालक कल पुर्जा दूरस्त करवाने में जुट गए हैं। वहीं कागजात को भी अपडेट करवाने की कवायद शुरू हो गई है। तैयारी शूर होते ही मिलने लगता है रोजगार श्रावणी मेले में देश-विदेश के अलग-अलग कोनों से आने वाले कांवरियों की सुविधा के लिए जिला प्रशासन हर बार करोड़ों रुपए खर्च करती है। मेले की तैयारी के साथ ही कांवरिया पथ पर बालू बिछाना, तोरण द्वार बनाना, धर्मशालाओं और सार्वजनिक भवनों की मरम्मत, रंग-रोगन, साफ-सफाई, और टेंट आदि का कार्य शुरू हो जाते हैं। इन कार्यों में स्थानीय मजदूरों, राजमिस्त्रियों, ठेकेदारों और छोटे ठेकेदारों को सीधा रोजगार मिलता है। यह पूरी तैयारी लगभग डेढ़ से दो महीने चलती है, जिससे क्षेत्र की एक बड़ी आबादी को रोजगार का अवसर प्राप्त होता है।
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