मधेपुरा : दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी के स्वरूप में की हुई पूजा
उदाकिशुनगंज में चैत्र नवरात्र के दूसरे दिन श्रद्धालुओं ने दुर्गा की ब्रह्मचारिणी के स्वरूप की पूजा की। पंडितों ने इस दिन की आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्ता पर प्रकाश डाला। मंदिरों में श्रद्धालुओं की...

उदाकिशुनगंज, एक प्रतिनिधि। चैत्र नवरात्रा के दूसरे दिन सोमवार को दुर्गा की ब्रह्मचारिणी के स्वरूप में पंडितों एवं श्रद्धालुओं के द्वारा मंदिरों में पूजा अर्चना की गई। दूसरे दिन भी सुबह से ही दुर्गा मंदिरों में माता के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी। पंडितों ने चैत्र नवरात्र में ब्रह्मचारिणी स्वरूप की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए आध्यात्मिक और बैज्ञानिक तरीके से बर्णण किया। उन्होंने बताया कि नवरात्र में नौ दिनों तक शक्ति की अराधना वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ की जाती है। बताया गया कि ब्र्ह्मचारिणी अर्थात तप का आचरण करने वाली। ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं भब्य है।पूर्व जन्म में जब ये हिमालय के घर पुत्री रुप में उत्पन्न हु ई थी तब उन्होंने नारद के उपदेश से भगवान शंकर जी को प्राप्त करने के लिए अत्यंत कठिन तपस्या की थी। इस तपस्या के कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी के नाम से ख्याति दिया गया। नवरात्र के दूसरे दिन इन्हीं के रुप की उपासना की जाती है। यहां के नयानगर भगवती स्थान,सार्वजनिक दुर्गा मंदिर उदाकिशुनगंज, दुर्गा मंदिर खोडागंज, दुर्गा मंदिर बीड़ीरणपाल, दुर्गा मंदिर गमैल, दुर्गा मंदिर बाराटेनी सहित अन्य मंदिरों में भब्य रुप से मां दुर्गा की अराधना की जा रही है। ग्रामीणों ने बताया कि सभी मंदिरों में हर वर्ष बड़े ही धूमधाम से ग्रामीणों के सहयोग से दुर्गा पूजा की जा रही है। जिसमें नवमी और दशमीं के दिन भव्य मेला का आयोजन किया जाता है। सभी स्थानों पर मेला परिसर में भव्य तोरण द्वार, आकर्षक पंडाल के साथ रौशनी की ब्यवस्था की गई है। श्रद्धालुओं द्वारा आपसी सहयोग से नवमी और दशमी को मैया जागरण का कार्यक्रम आयोजित किया जाता है। जिसमें अपार भीड़ होती है। जिसे मेला कमेटी के सदस्यों एवं प्रशासन के सहयोग से चप्पे चप्पे में सुरक्षा के इंतजाम किए जाते हैं। मेला परिसर में दुकानें,झूला,खेल खिलौने, मिठाई, की दुकानें अभी से ही सजने संवरने लगा है। वहीं मंदिर में पूजा करने वाले श्रद्धालुओं के लिए प्रत्येक दिन माता रानी का प्रसाद वितरण किया जाता है। जबकि मंदिर कमेटी की ओर से कन्याओं को खीड़ का भोजन कराये जाने की प्रथा स्थापना काल से ही किया जा रहा है।
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