शौक जिंदा रखने को बनाया हुनर बैंक, जीविका ने दिखाई राह तो 5-5 जोड़कर 10 लाख जमा कर लिए
- महिलाएं अन्य बचत के अलावा पांच-पांच रुपये अपने शौक को सीखने, किसी हुनर से जुड़ने के नाम पर सहयोग राशि देने लगी। पांच-पांच रुपये की सहयोग राशि देकर इन महिलाओं ने 10 लाख रुपये जमा कर लिया है।

खुद के शौक को जिंदा रखने को महिलाओं ने हुनर बैंक बनाया है। किसी को पढ़ने तो किसी को नृत्य और गायन का शौक है। रोटी-दाल की जरूरतों के बीच पिसती महिलाओं के लिए कभी इन शौकों को जिंदा रखना तो दूर इसके बारे में सोचना भी गुनाह था। लेकिन, इस बीच विभिन्न रोजगार से जुड़ जिंदगी जब पटरी पर आई तो इन्होंने अपने शौक को पूरा करने के लिए अनोखा रास्ता अपनाया।
किसी की उम्र 40 साल तो कोई 50 साल की। ये महिलाएं जीविका के समूह से जुड़कर अलग- अलग रोजगार के लिए तो पैसे इकट्टा करती ही थीं, इस बीच उन्होंने अपने शौक को जिंदा रखने के लिए हुनर बैंक बनाया। महिलाएं अन्य बचत के अलावा पांच-पांच रुपये अपने शौक को सीखने, किसी हुनर से जुड़ने के नाम पर सहयोग राशि देने लगी। पांच-पांच रुपये की सहयोग राशि देकर इन महिलाओं ने 10 लाख रुपये जमा कर लिया हैं। इसके बाद उन्होंने अपने शौक व हुनर को अमली जामा पहनाना शुरू किया। महिलाओं ने सबसे पहले लाइब्रेरी खोली। इसमें पढ़ाई का शौक रखने वाली महिलाओं के साथ बच्चे भी आते हैं। ये महिलाएं लाइब्रेरी चलाती हैं और नृत्य-संगीत का प्रशिक्षण भी लेती हैं। समूह में ऐसी महिलाएं भी हैं जो आज तक स्कूल नहीं गईं।
लाइब्रेरी में पढ़कर 30 ने किया मैट्रिक
इन महिलाओं का नेतृत्व कर रही मुशहरी की मीना कहती हैं कि हमलोगों के समूह को जीविका से ट्रेनिंग मिली है। अलग-अलग रोजगार से हम जुड़ी हैं। जब कुछ पैसे हाथ में आए तो मन में अपने लिए भी कुछ करने की इच्छा जागी। कई महिलाएं जो दादी-नानी बन चुकी हैं, उन्होंने लाइब्रेरी में पढ़ाई की। इसी पैसे से फॉर्म भरा और इस साल 30 महिलाएं एनआईओएस से मैट्रिक की परीक्षा भी पास की। आशा देवी कहती हैं कि हमसे कई हैं जो नृत्य व गायन में रुचि रखती हैं। उनके लिए इसके प्रशिक्षण की व्यवस्था की गई है। बताया कि कई बार हमें ताने भी सुनने पड़ते हैं कि इस उम्र में चली है शौक पूरा करने। लेकिन, हम जानते हैं कि हमने सही पहल की है।
5-5 रुपये सहयोग राशि देकर जमा किए 10 लाख
हुनर बैंक से जुड़ी महिलाएं कहती हैं कि रोजगार से जुड़ने के बाद पांच-छह साल पहले बच्चों की पढ़ाई के लिए 2-2 रुपये की सहयोग राशि जब जमा करनी शुरू की तो इसका काफी लाभ मिला। हमारे गांव घर की ऐसी बच्चियां जो पैसे की वजह से पढ़ाई नहीं कर पाती थीं, उनकी इससे मदद करनी शुरू की। इसके बाद हमें ख्याल आया कि हम अपने लिए भी ऐसा कुछ कर सकती हैं। हम जो पैसे अपने खर्च के लिए रखती थीं, उसमें से 5-5 रुपये हर महीने जमा करना शुरू किया। लगभग ढाई साल पहले इसकी पहल शुरू की। अब अच्छी खासी रकम जमा हो गई। इसे हमने अलग-अलग मद में बांटा है। इस साल 30 महिलाओं को मैट्रिक परीक्षा का फॉर्म भरवाने के लिए 60 हजार रुपये दिए गए। ये सभी महिलाएं अब मैट्रिक पास हैं।