बोले पूर्णिया : दुकान, रेस्टोरेंट और होटल खोलने के लिए मिले अनुदान
हलवाई समाज के लोग मिठाई बनाने का पारंपरिक व्यवसाय करते हैं, लेकिन अब अन्य जातियों के लोगों के शामिल होने से उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। रोजगार की कमी और शिक्षा की समस्या के कारण युवा...
खुशी का कोई भी मौका हो तो सबसे पहले मिठाई की याद आती है। हलवाई समाज परंपरागत तौर पर मिठाई बनाने का काम कर रहे हैं। हालांकि आधुनिक दौर में दूसरी जाति के लोगों ने भी यह काम शुरू कर दिया है, जिससे हलवाई समाज के सामने कई चुनौतियां खड़ी हो गई हैं। एक जमाना था जब बाजार में हलवाई पट्टी होती थी। पर्व त्योहार और विभिन्न आयोजनों पर मिठाई बनाने की जिम्मेदारी उन्हीं की होती थी। साथ-साथ मिठाई बेचना भी इनका काम था। जानकारी के अनुसार, पूर्णिया विधानसभा क्षेत्र में पांच से छह हजार तक हलवाई समाज की मिठाई एवं नाश्ते की दुकानें हैं। जिले में 10 से 20 हजार हलवाई समाज के लोग इस पेशे में हैं। जिले में अमूमन एक करोड़ से अधिक की रोजना मिठाई की बिक्री होती है। संवाद के दौरान हलवाई समाज के लोगों ने अपनी समस्याएं बताईं।
40 हजार के करीब है हलवाई समाज की जनसंख्या
06 हजार हलवाई समाज के लोग हैं नौकरीपेशा
05 हजार लोग कर चला रहे मिठाई एवं नाश्ते की दुकान
हलवाई समाज हमारे देश के हर कोने में पाए जाते हैं। ऐसा इसलिए कि आरंभिक काल से उनका पेशा समाज को मिठास का एहसास कराता है। ऐसा कोई गांव नहीं जहां हलवाई समाज के लोग बसे नहीं हैं। ये लोग काफी सीधे-साधे होते हैं। कर्मठ होते हैं। अपने पेशे में काफी एकाग्रचित रहने वाले इस समाज को आज की तारीख में लोगों ने सीधा-साधा समझ कर हाशिए पर ला दिया है। हिन्दुस्तान अखबार ने बोले पूर्णिया संवाद के तहत इन लोगों से बात की। लोगों ने कहा कि उनके पेशे पर अब उनका एकाधिकार नहीं रहा, क्योंकि अब अन्य जाति समाज के लोग भी इस पेशे में आ गए हैं। कुछ लोगों ने बताया कि अब रेडीमेड मिठाई भी बाहर से आने लगी है जिसके कारण हम लोगों का काम धीमा हो गया है। रोजगार प्रभावित हो गया है।
लग्न के बाद नहीं मिलता काम :
लोगों ने बताया कि उनके समाज के प्रति समाज का नजरिया स्पष्ट नहीं है जिसके कारण उनके बच्चे को पढ़ाई-लिखाई एवं मुख्य धारा में लाने का काम नहीं हो रहा है। हलवाई समाज की उपेक्षा के कारण समाज के युवा दर-दर भटकने लगे हैं। मजदूरी कर अपना जीवन यापन एवं परिवार की भरण-पोषण करना पड़ता है। कुछ लोग तो पलायन भी कर चुके हैं। लग्न के समय काम मिल जाता है। लेकिन लग्न समाप्त होने के बाद काम मिलना बंद हो जाता है। काम नहीं मिलने के कारण मजदूरी करनी पड़ती है। कई हलवाई चाय बेचकर जीवन-यापन कर रहे हैं। चाय एवं नाश्ते की दुकान में अब लोगों की कम आवाजाही से दुकान चलाकर परिवार की भरण-पोषण करना मुश्किल हो रहा है। कई लोग घर में मिठाई बनाकर हाट बाजार में जाकर बेचने के लिए मजबूर हैं।
सरकार से आर्थिक सहयोग की जरूरत :
स्थाई दुकान नहीं होने एवं पूंजी की कमी के कारण खोमचा में खेत-खेत गांव-गांव में घूमकर बेचकर कमाई कर परिवार का भरण-पोषण करते हैं। चौक-चौराहों बाजार में अपनी पूंजी लगाकर मिठाई दुकान खोलने के बाद भी बिक्री कम होने से परिवार के भरण-पोषण करने में कठिनाई होती है। इसके बाद भी दुकान में कर्ज लेकर पूंजी लगाकर व्यवसाय को बढ़ाने के बाद भी काफी परेशानी झेलनी पड़ती है। हलवाई समाज के लोगों को मिठाई दुकान, रेस्टोरेंट, होटल खोलने के लिए सरकार द्वारा अनुदानित दर पर व्यवसाय चलाने के लिए राशि देनी चाहिए ताकि हलवाई समाज के लोग सरकार के सहयोग से आर्थिक रूप से सबल हो सकें। हलवाई समाज के लोग मंहगा कर्ज लेकर मिठाई एवं अन्य दुकान चलाते हैं। इसके बाद भी कम लाभ होने से परिवार का भरण-पोषण नहीं हो पाता।
हलवाई समाज का उपनिवेश है डुमरी:
पूर्णिया, कटिहार और भागलपुर की सीमा से सटे डुमरी गांव की मिठाई पूरे जिले में फेमस है। ऐसा इसलिए कि डुमरी गांव हलवाई समाज का एक ऐसा उपनिवेश है जहां भारी मात्रा में मिठाई का उत्पादन होता है। यहां मिठाई बनाने के लिए कोई रेडीमेड मशीन नहीं बल्कि मैन्युअल ढंग से एक से एक स्वाद वाली मिठाई का निर्माण होता है। सबसे बड़ी बात यह है कि जिले में मिठाई की जो दर है उससे लगभग आधी दर पर यहां मिठाई मिल जाती है। बड़े-बड़े आयोजनों में लोग यहां आकर आर्डर करते हैं। कहा जा रहा है कि यह दियारा इलाका है जिसके कारण दुधारू पशुओं का पशुपालन बड़े पैमाने पर होता है। सस्ती दूध मिलने के कारण बड़े पैमाने पर मिठाई का उत्पादन होता है और यहां के हलवाई सस्ते दूध के कारण मिठाई की भी दर कम रखते हैं। यहां के हलवाई का मानना है कि बिक्री काफी ज्यादा होती है तो कम प्रॉफिट पर भी अच्छा लाभ मिल जाता है। सस्ती मिठाई होने के कारण इस इलाके में मेहमानों का स्वागत भी डुमरी के रसगुल्ला से होता है और हर घर में सुबह-सुबह मेहमानों को रसगुल्ला दालमोट का नाश्ता दिया जाता है। कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि बिहार में जिस तरह से मनेर का लड्डू और हाजीपुर का खाजा फेमस है उसी तरह डुमरी का रसगुल्ला भी फेमस है।
शिकायत
1. रोजगार के लिए जगह नहीं मिलती
2. रेडीमेड मिठाई से रोजगार प्रभावित
3. अन्य समाज के लोगों के आने से चुनौती
4. हलवाई समाज के शिक्षा की व्यवस्था नहीं
5. रोजगार के लिए कहीं सस्ता लोन नहीं मिलता
सुझाव
1. रोजगार के लिए सस्ते ब्याज दर पर लोन मिले
2. विभिन्न मार्केट में मिठाई की दुकान की जगह मिले
3. हलवाई समाज के बच्चों की पढ़ाई की खास व्यवस्था हो
4. लोकल मेड मिठाई का मार्केट तैयार होना जरूरी
5. हलवाई समाज के मिठाई बनाने वाले का रजिस्ट्रेशन हो
सुनें हमारी बात
1. हलवाई समाज की उपेक्षा के कारण हलवाई समाज के युवा दर-दर भटकने लगे हैं। मजदूरी कर अपना जीवन-यापन एवं परिवार की भरण-पोषण करना पड़ता है। कुछ लोग तो पलायन भी कर चुके हैं।
बमबम साह
2. हमलोगों को लग्न के समय भोज के लिए काम मिल जाता है। लेकिन लग्न समाप्त होने के बाद काम मिलना बंद हो जाता है। काम नहीं मिलने के कारण मजदूरी खोजकर मजदूरी करनी पड़ती है।
मिथुन कुमार
3. लग्न शुरू होने के साथ ही लोगों की डिमांड के अनुसार काम मिल जाता है। लेकिन लग्न के बाद काम नहीं मिलने पर मजदूरी कर अपना परिवार की भरण-पोषण करने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
तीलो कुमार
4. अच्छी क्वालिटी की मिठाई बनाने के बाद भी कम काम मिलने से परिवार की भरण-पोषण करने में काफी दिक्कत होती है। काम नहीं मिलने से मजदूरी करने को मजबूर हैं।
राहुल कुमार
5. चाय बेचकर जीवन चलाना पड़ता है। चाय एवं नाश्ते की दुकान में अब लोगों की कम आवाजाही से दुकान चलाकर परिवार का भरण-पोषण करना मुश्किल हो रहा है। सरकार हमें भी पैकेज दे तो अच्छा काम करेंगे।
विमल कुमार
6. घर में मिठाई बनाकर हाट-बाजार में जाकर बेचने के लिए मजबूर हैं। स्थायी दुकान नहीं होने एवं पूंजी की कमी के कारण खोमचा में खेत और गांव में घूमकर बेचकर कमाई कर परिवार का भरण-पोषण करते हैं।
विभूति कुमार
7. चौक-चौराहों, बाजार में अपनी पूंजी लगाकर मिठाई दुकान खोलने के बाद भी बिक्री कम होने से परिवार का भरण-पोषण करने में कठिनाई होती है। इसके बाद भी दुकान में कर्ज लेकर पूंजी लगाकर व्यवसाय को बढ़ाने के बाद भी काफी परेशानी झेलनी पड़ती है।
अशोक साह
8. हलवाई के काम में अन्य समाज के लोगों के शामिल होने से हलवाई समाज के बच्चों के भविष्य को लेकर संशय बना हुआ है। अन्य समाज के लोग भी मिठाई दुकान या रेस्टोरेंट चला रहे हैं जिससे चुनौती बढ़ गई है।
चंदन साह
9. हलवाई समाज के लोगों को मिठाई दुकान, रेस्टोरेंट होटल खोलने के लिए सरकार द्वारा अनुदानित दर पर राशि देनी चाहिए ताकि हलवाई समाज के लोग आर्थिक रूप से सबल हो सके।
राजू शाह
10. हलवाई समाज के लोग मंहगी दर में कर्ज लेकर पूंजी लगाकर मिठाई एवं अन्य दुकान चलाते हैं। इसके बाद भी कम लाभ होने से परिवार के भरण-पोषण को चिंतित रहते हैं।
राजेश कुमार साह
11. हलवाई समाज के लोगों को अनुदानित दर पर व्यवसाय चलाने के लिए राशि की व्यवस्था हो। इससे हलवाई समाज को आर्थिक बल मिलेगा। सरकार को हलवाई समाज के भविष्य के लिए सोचना चाहिए।
राजेन्द्र साह
12. कर्ज लेकर पूंजी लगाने के बाद भी अन्य लोगों के भी इस व्यवसाय में आने के कारण दुकानदारी ज्यादा नहीं चल पाती है। इस कारण परिवार का भरण-पोषण करना मुश्किल हो जाता है।
-गोपाल साह
13. हलवाई समाज का काम कम चलने के कारण समाज के बच्चे अब अन्य रोजगार कर परिवार के भरण-पोषण करने के लिए मजबूर हैं।
-प्रमोद साह
14. चाय दुकान चलाकर परिवार का भरण-पोषण करने में काफी दिक्कत होती है। बच्चों को अच्छी शिक्षा नहीं दे पाते हैं। घूम-घूम कर भी चाय बेचते हैं।
-शंकर कुमार
बोले जिम्मेदार
शैक्षणिक जागरूकता के लिए हलवाई समाज लगातार डोर टू डोर अभियान चला रहा है। समय बदला है और अब पारंपरिक पेशा से अलग हटकर काम करने के लिए नई पीढ़ी को प्रेरित किया जा रहा है। बेटियों की शिक्षा के लिए भी हम लोग अभियान चला रहे हैं।
-अजय कुमार शाह, युवा समाजसेवी, हलवाई समाज।
हलवाई समाज को आगे लाने के लिए हर संभव प्रयास किए जाएंगे। इनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति में उत्थान के लिए गंभीरता से विचार किया जा रहा है। हलवाई समाज हमारे समाज की धरोहर के रूप में रहे हैं। उनकी हर उलझन और समस्या का निराकरण किया जाएगा।
-राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव, सांसद पूर्णिया
बोले पूर्णिया असर
श्रमिकों के लिए बनेगा इंडस्ट्रियल टाउनशिप
पूर्णिया। जिले में औद्योगिक इकाई के साथ श्रमिकों के आवास के रूप में इंडस्ट्रियल टाउनशिप बनेगा। यहां इंडस्ट्रियल एरिया के कर्मचारियों के रहने के इंतजाम होंगे। जन सुविधाओं के अलावा स्कूल, अस्पताल, पार्क व मनोरंजन के अन्य सुविधाएं भी होगी। यह इंटीग्रेटेड इंडस्ट्रियल टाउनशिप होगा जहां 24 घंटे पानी की सुविधा रहेगी। यहां कर्मचारियों के रहने की सुविधा होगी। बिजली-पानी के साथ-साथ सड़क के किनारे पेड़ लगे होंगे। इस योजना ने पूर्णिया के श्रमिकों का मनोबल ऊंचा किया है। हालांकि यह सरकारी योजना है लेकिन लोग यही बता रहे हैं कि पिछले 18 जनवरी को हिन्दुस्तान अखबार के बोले पूर्णिया संवाद के तहत श्रमिकों की समस्या छपी तो सरकार ने काम शुरू कर दिया। स्थानीय लोग बोले पूर्णिया कार्यक्रम की प्रशंसा कर रहे हैं। कहा कि पिछले दिनों कई सामुदायिक समस्याओं को उठाया जिसका समाधान हुआ है। समाजसेवी विनय कुमार और विजेंद्र सिंह कहते हैं कि बोले पूर्णिया काफी उपयोगी साबित हो रहा है। बियाडा पूर्णिया के डीजीएम शिव कुमार ने बताया कि इंडस्ट्रियल टाउनशिप के लिए जमीन की तलाश की जा रही है। इसके लिए 500 एकड़ से एक हजार एकड़ जमीन की जरूरत होगी। इसे ढूंढने का कार्य शुरू कर दिया गया है। टाउनशिप बनने पर औद्योगिक निवेश तो होगा ही साथ ही यहां इंडस्ट्री में काम करने वाले कर्मचारियों को भी आवास समेत अन्य सुविधा मिलेगी।
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