बोले पूर्णिया : 400 में नहीं कट रहा बुढ़ापा, 3000 रुपये की जाए पेंशन
पूर्णिया जिले में 3 लाख 39 हजार 881 समाजिक सुरक्षा पेंशनधारियों में से 1 लाख 34 हजार 712 बुजुर्गों को मुख्यमंत्री वृद्धजन पेंशन योजना के तहत 400 रुपये प्रति माह मिलते हैं। महंगाई के कारण बुजुर्गों ने...
पूर्णिया जिला में समाजिक सुरक्षा पेंशनधारियों की संख्या 3 लाख 39 हजार 881 है। इसमें सबसे अधिक संख्या मुख्यमंत्री वृद्धजन पेंशन योजना के पेंशनर्स की है। जिले में 60 प्लस के सभी वर्ग के 1 लाख 34 हजार 712 लोगों को मुख्यमंत्री वृद्धजन पेंशन योजना के तहत पेंशन मिल रही है। यह पेंशन पाने वाले लोगों का कहना है कि आज के महंगाई के दौर में 400 रुपया प्रतिमाह से बुढ़ापा नहीं कट रहा है। बोले पूर्णिया के मंच पर पेंशनर्स ने इस राशि को बढ़ाकर 3000 करने की मांग की है।
3 लाख 39 हजार है पूर्णिया जिले में समाजिक सुरक्षा पेंशनधारियों की संख्या
60 प्लस के सभी वर्ग के 1 लाख 34 हजार 712 लोगों को मिलती है पेंशन
14 प्रखंड मुख्यालयों में जीवन प्रमाणीकरण केंद्र की भी बुजुर्गों ने उठाई मांग
देश और समाज की नींव रखने वाले वृद्धों को उनके जीवन की संध्या बेला में वह सम्मान और सहयोग नहीं मिल पा रहा है, जिसके वे वास्तव में हकदार हैं। एक ओर जहां परिवार में उनकी भूमिका गौण होती जा रही है, वहीं दूसरी ओर सरकार की ओर से दी जाने वाली सामाजिक सुरक्षा पेंशन मात्र 400 रुपये प्रति माह से उनका गुजर-बसर होना असंभव सा हो गया है। वृद्धावस्था में जब व्यक्ति सबसे अधिक देखभाल और आर्थिक सहयोग की अपेक्षा करता है, तब उसे केवल नाम मात्र की सहायता मिल रही है। समाजिक कार्यकर्ताओं, पेंशनधारी बुजुर्गों तथा सेवानिवृत्त सरकारी कर्मियों ने मिलकर सरकार से यह मांग की है कि सामाजिक सुरक्षा पेंशन की राशि को बढ़ाकर न्यूनतम 3000 रुपये प्रति माह किया जाए ताकि वृद्धजन सम्मानपूर्वक अपना जीवन जी सकें।
कई वृद्ध परिजनों की झेल रहे उपेक्षा :
वृद्धजन हमारी संस्कृति और समाज की रीढ़ हैं। उनकी उपेक्षा केवल एक पीढ़ी को नहीं, बल्कि संपूर्ण मानवता को पीछे ले जाती है। सरकार को चाहिए कि वह सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में वृद्धजनों की भागीदारी को प्राथमिकता दे। उनकी पेंशन में यथोचित वृद्धि करें और सम्मानपूर्वक जीवन जीने के लिए सभी जरूरी संसाधन उपलब्ध कराए। आज जरूरत है संवेदनशीलता, नीतिगत प्रतिबद्धता और सामाजिक सहभागिता की। केवल नीतियां बनाना पर्याप्त नहीं, उनका क्रियान्वयन भी उतना ही जरूरी है। वृद्धावस्था में व्यक्ति को परिवार का प्यार, समाज का सम्मान और सरकार की सहायता की सर्वाधिक आवश्यकता होती है, परंतु आज की पीढ़ी में पारिवारिक संरचना में हो रहे बदलाव के कारण बुजुर्गों को वह सम्मान नहीं मिल पा रहा है। कई वृद्धजन ऐसे हैं जिन्हें उनके अपने ही परिवार वाले बोझ समझते हैं और कई बार उन्हें वृद्धाश्रमों की ओर रुख करना पड़ता है। बुजुर्गों का कहना है कि जीवन भर उन्होंने समाज और देश की सेवा की, लेकिन आज उनके जीवन के इस अंतिम चरण में उन्हें ही समाज ने नजरअंदाज कर दिया है। यह न केवल सामाजिक विफलता को दर्शाता है, बल्कि नैतिक मूल्यों के पतन की ओर भी संकेत करता है।
पूरा नहीं हो पाता दवा का भी खर्च :
वर्तमान में बिहार सहित कई राज्यों में सामाजिक सुरक्षा पेंशन के अंतर्गत वृद्धों को मात्र 400 रुपये प्रति माह की राशि दी जाती है। यह राशि न तो उनके दैनिक जरूरतों को पूरा कर सकती है और न ही दवाओं और चिकित्सा खर्चों का बोझ उठा सकती है। एक वृद्ध पेंशनधारी रामलाल ठाकुर ने बताया 400 रुपये में आजकल एक सप्ताह की दवा भी नहीं आती। बिजली बिल, किराया, भोजन और अन्य खर्चों का क्या? उन्होंने यह भी कहा कि यह राशि सिर्फ एक औपचारिकता बनकर रह गई है, जिससे वृद्धों का जीवन सुरक्षित नहीं हो सकता। बुजुर्गों की आवाज़ बुलंद करते हुए कई पूर्णिया बुजुर्ग समाज के अध्यक्ष नित्यानंद कुमार, पूर्णिया सिविल सोसाइटी के महासचिव दिलीप कुमार चौधरी, लायंस क्लब ग्रेटर पूर्णिया के अध्यक्ष उदय शंकर प्रसाद सिंह, सहित कई समाजसेवी संगठनों और वरिष्ठ नागरिक मंचों ने यह मांग उठाई है कि सामाजिक सुरक्षा पेंशन की राशि बढ़ाकर कम से कम 3000 रुपये प्रति माह की जानी चाहिए। उनका कहना है कि मौजूदा महंगाई को देखते हुए यह भी न्यूनतम सहायता राशि होनी चाहिए, जिससे बुजुर्ग कम से कम अपनी बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा कर सकें। वहीं बिहार पेंशनर समाज के अध्यक्ष अरविंद कुमार सिंह ने बताया कि सरकार के पास संसाधनों की कोई कमी नहीं है, लेकिन राजनीतिक प्राथमिकताओं में बुजुर्गों को स्थान नहीं मिल पा रहा है।
स्वैच्छिक पेंशन दान योजना हो लागू :
सेवानिवृत्त सरकारी सेवकों और अधिकारियों ने सरकार को एक नई पहल के तहत स्वैच्छिक पेंशन दान योजना लागू करने का सुझाव दिया है। इसके अंतर्गत वे सेवानिवृत्त कर्मचारी जो सक्षम हैं, वे स्वेच्छा से अपनी पेंशन का एक हिस्सा सामाजिक सुरक्षा कोष में दान कर सकते हैं। इस कोष का उपयोग उन वृद्धों के लिए किया जा सकता है जो अत्यंत निर्धन हैं और जिनके पास कोई स्थायी आय स्रोत नहीं है। इस योजना से न केवल बुजुर्गों की स्थिति सुधरेगी, बल्कि समाज में सेवा और सहयोग की भावना भी जागृत होगी। सरकार से यह भी मांग की गई है कि वह एक विशेष सामाजिक सुरक्षा निधि कोष की स्थापना करें, जिससे वृद्धजनों को एक सम्मानजनक जीवन जीने योग्य पेंशन दी जा सके। यह निधि सरकारी बजट, सीएसआर फंड, एनजीओ के सहयोग और स्वैच्छिक दान से संचालित की जा सकती है। वित्तीय विशेषज्ञों का कहना है कि यदि इस दिशा में सरकार सकारात्मक कदम उठाए तो एक बड़ी आबादी को राहत दिया जा सकता है।
सभी 14 प्रखंड मुख्यालयों में जीवन प्रमाणीकरण केंद्र की मांग :
वृद्धजनों को सामाजिक सुरक्षा पेंशन प्रदान करने के लिए जीवन प्रमाणीकरण अनिवार्य होता है, परंतु कई प्रखंडों में यह कार्य समय पर नहीं हो पा रहा है। इससे हजारों बुजुर्गों की पेंशन रुक गए है। कुछ मामलों में तो तकनीकी दिक्कतों के चलते वृद्धों को महीनों तक पेंशन नहीं मिलती। कई बार उन्हें बैंक या सीएससी केंद्रों के चक्कर लगाने पड़ते हैं, जो कि उनके स्वास्थ्य और उम्र के लिहाज से अत्यंत कष्टदायक है। बुजुर्गों ने यह मांग की है कि राज्य के सभी प्रखंड मुख्यालयों पर स्थायी जीवन प्रमाणीकरण केंद्र की स्थापना की जाए, जिससे उन्हें बार-बार लंबी दूरी तय कर प्रमाण देने की आवश्यकता न हो। इसके साथ ही, मोबाइल वैन या डिजिटल प्रमाणीकरण सुविधा भी शुरू करने की मांग की गई है, जो विशेष रूप से शारीरिक रूप से असमर्थ वृद्धजनों के लिए सहायक होगी। वरिष्ठ नागरिकों ने सरकार से यह भी आग्रह किया है कि उनके लिए एक विशेष हेल्पलाइन नंबर तथा शिकायत निवारण केंद्र की स्थापना की जाए, जहां वे अपनी समस्याओं को दर्ज करवा सकें और उनका त्वरित समाधान हो। आज भी कई वृद्धजन ऐसे हैं जिन्हें यह भी पता नहीं होता कि उनकी पेंशन क्यों बंद हो गई या किस कार्यालय से संपर्क करना है।
सुनें हमारी पीड़ा
वृद्धावस्था में व्यक्ति को परिवार का प्यार, समाज का सम्मान और सरकार की सहायता की सर्वाधिक आवश्यकता होती है, परंतु आज की पीढ़ी में पारिवारिक संरचना में हो रहे बदलाव के कारण बुजुर्गों को वह सम्मान नहीं मिल पा रहा है।
- हरिलाल मांझी, कसबा
एक ओर जहां परिवार में बुजूर्गो की भूमिका गौण होती जा रही है, वहीं दूसरी ओर सरकार की ओर से दी जाने वाली सामाजिक सुरक्षा पेंशन मात्र 400 रुपये प्रति माह से उनका गुजर-बसर होना असंभव सा हो गया है।
-सूरज कुमार मंडल, कसबा
सरकार को चाहिए कि वह सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में वृद्धजनों की भागीदारी को प्राथमिकता दें, उनकी पेंशन में यथोचित वृद्धि करें और सम्मानपूर्वक जीवन जीने के लिए सभी जरूरी संसाधन उपलब्ध कराए।
-महेश प्रसाद चौधरी, जलालगढ़
वृद्धजनों को सामाजिक सुरक्षा पेंशन प्रदान करने के लिए जीवन प्रमाणिकरण अनिवार्य होता है, परंतु कसबा प्रखंड में यह कार्य समय पर नहीं हो पा रहा है। इससे हजारों बुजुर्गों की पेंशनधारी परेशान रह रहे है।
-बासुकीनाथ ठाकुर, कसबा
सामाजिक सुरक्षा पेंशन की राशि को बढ़ाकर न्यूनतम 3000 रुपये प्रति माह किया जाए ताकि वृद्धजन सम्मानपूर्वक अपना जीवन जी सकें। साथ ही अपने दैनिक जरूरतों को पूरा कर सके।
भुवनेश्वर लाल दास, बक्साघाट पूर्णिया।
सरकार के पास संसाधनों की कोई कमी नहीं है, लेकिन राजनीतिक प्राथमिकताओं में बुजुर्गों को स्थान नहीं मिल पा रहा है। जिस कारण सरकार के स्तर पर बुजूर्ग आज भी उपेक्षित है।
- राधाकांत यादव, सिपाही टोला बक्साघाट ।
वृद्धजन हमारी संस्कृति और समाज की रीढ़ हैं। उनकी उपेक्षा केवल एक पीढ़ी को नहीं, बल्कि संपूर्ण मानवता को पीछे ले जाती है। सरकार को चाहिए कि वह सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में वृद्धजनों की भागीदारी को प्राथमिकता दे।
-अमरेन्द्र कुमार सिंह ,पूर्णिया।
बिहार में सामाजिक सुरक्षा पेंशन के अंतर्गत वृद्धों को मात्र 400 रुपये प्रति माह की राशि दी जाती है। यह राशि न तो उनके दैनिक जरूरतों को पूरा कर सकती है और न ही दवाओं और चिकित्सा खर्चों का बोझ उठा सकती है।
- उपेन्द्र नारायण पोद्दार, पूर्णिया।
सेवानिवृत्त कर्मचारी जो सक्षम हैं, वे स्वेच्छा से अपनी पेंशन का एक हिस्सा सामाजिक सुरक्षा कोष में दान कर सकते हैं। इस कोष का उपयोग उन वृद्धों के लिए किया जाना चाहिए जो अत्यंत निर्धन हैं और जिनके पास कोई स्थायी आय स्रोत नहीं है।
- अरविंद कुमार सिंह
कुछ मामलों में तो तकनीकी दिक्कतों के चलते वृद्धों को महीनों तक समाजिक सुरक्षा पेंशन नहीं मिलती। कई बार उन्हें बैंक या सीएससी केंद्रों के चक्कर लगाने पड़ते हैं, जो कि उनके स्वास्थ्य और उम्र के लिहाज से अत्यंत कष्टदायक है।
सुवंश ठाकुर, पूर्णिया।
सामाजिक सुरक्षा पेंशन में आज जरूरत है संवेदनशीलता की, नीतिगत प्रतिबद्धता की और सामाजिक सहभागिता की। केवल नीतियां बनाना पर्याप्त नहीं, उनका क्रियान्वयन भी उतना ही जरूरी है।
सतीश कुमार साह, पूर्णिया
सरकार को चाहिए कि बुजुर्गों के लिए जिला व प्रखंड स्तर पर विशेष हेल्पलाइन नंबर तथा शिकायत निवारण केंद्र की स्थापना करें, ताकि जहां वे अपनी समस्याओं को आसानी से दर्ज करवा सकें और उनका त्वरित समाधान हो।
रमेश प्रसाद सिंह, पूर्णिया।
सामाजिक सुरक्षा पेंशन के अंतर्गत वृद्धों को मात्र 400 रुपये प्रति माह की राशि दी जाती है। यह राशि न तो उनके दैनिक जरूरतों को पूरा कर सकती है और न ही दवाओं और चिकित्सा खर्चों का बोझ उठा सकती है।
दीनानाथ भगत, पूर्णिया।
सरकार के स्तर पर विशेष सामाजिक सुरक्षा निधि की स्थापना किया जाए, जिससे वृद्धजनों को एक सम्मानजनक जीवन जीने योग्य पेंशन दी जा सके। यह निधि सरकारी बजट, सीएसआर फंड, एनजीओ के सहयोग और स्वैच्छिक दान से संचालित किया जा सकता है।
- सुजीत घोष, पूणिया।
बुजुर्गों जीवन भर समाज और देश की सेवा की, लेकिन आज उनके जीवन के इस अंतिम चरण में उन्हें ही समाज ने नजरअंदाज कर दिया है। यह न केवल सामाजिक विफलता को दर्शाता है, बल्कि नैतिक मूल्यों के पतन की ओर भी संकेत करता है।
-विपिन बिहारी दास।
सरकार को एक नई पहल कर स्वैच्छिक पेंशन दान योजना लागू करना चाहिए। जिससे वैसे सेवानिवृत्त कर्मचारी जो सक्षम हैं, वे स्वेच्छा से अपनी पेंशन का एक हिस्सा सामाजिक सुरक्षा कोष में दान कर सकते हैं।
-चन्द्र शेखर दास, सेवानिवृत बैंक अधिकारी ।
शिकायत
1. वृद्धों को नहीं मिल रहा परिवार और समाज से उचित सम्मान
2. 400 रुपये की पेंशन में नहीं कटता गुजारा
3. स्वेच्छिक पेंशन दान योजना हो लागू नही की गई
4. जीवन प्रमाणीकरण कार्य नहीं हो रहा संपन्न
4. पेंशन स्वीकृत कराने के भी कई तरह की परेशानी हो रही
सुझाव
1. नई पीढ़ी के बच्चों अपने बुजुर्गों को उचित सम्मान देने जरूरत है।
2. 400 रुपये की पेंशन में बढ़ाकर 3000 की जानी चाहिए।
3. सरकार को चाहिए कि स्वैच्छिक पेंशन दान योजना लाएं।
4. जीवन प्रमाणिकरण कार्य नियमित प्रखंड स्तर पर करने की व्यवस्था हो।
5. बुढ़ापे में लोगों की हो सामाजिक सुरक्षा
बोले जिम्मेदार
बुजुर्गों को मिलने वाली समाजिक सुरक्षा पेंशन की राशि से संबंधित शिकायतें सही हैं। अपने स्तर से बुजुर्गों के हित में पेंशन की राशि बढ़ाने के लिए सरकार एवं सदन में मांग रखेंगे।
-विजय खेमका, पूर्णिया सदर विधायक
पूर्णिया जिला में समाजिक सुरक्षा पेंशनधारियों की संख्या लगभग 3 लाख 39 हजार से अधिक है, जिन्हें प्रतिमाह 400 रुपये की दर से उनके बैंक खाता में स्थानांतरित कर दिया जाता है। बुजुगों की मांग सरकार का नीतिगत मामला है। उन्हीं के स्तर से निर्णय लिया जाना है।
-रीतेश कुमार, सहायक निदेशक, सामाजिक सुरक्षा कोषांग।
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