Impact of Online Shopping on Traditional Book Sellers in Darbhanga किताबों की सरकारी खरीद में लोकल पुस्तक विक्रेताओं को मिले प्राथमिकता, Darbhanga Hindi News - Hindustan
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किताबों की सरकारी खरीद में लोकल पुस्तक विक्रेताओं को मिले प्राथमिकता

इंटरनेट और ऑनलाइन शॉपिंग के बढ़ते प्रभाव ने दरभंगा के पारंपरिक पुस्तक विक्रेताओं को अस्तित्व की लड़ाई में डाल दिया है। ऑनलाइन प्लेटफार्मों की बढ़ती लोकप्रियता और ई-बुक्स के उदय से बिक्री में गिरावट आई...

Newswrap हिन्दुस्तान, दरभंगाFri, 18 April 2025 03:19 AM
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किताबों की सरकारी खरीद में लोकल पुस्तक विक्रेताओं को मिले प्राथमिकता

इंटरनेट और ऑनलाइन शॉपिंग के बढ़ते प्रभाव ने हर व्यवसाय को प्रभावित किया है। पुस्तक विक्रेता भी इससे अछूते नहीं हैं। देशभर के साथ-साथ दरभंगा के भी पारंपरिक पुस्तक विक्रेता आज अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। ऑनलाइन प्लेटफॉर्मों की सुविधा, छूट और व्यापक चयन ने ग्राहकों को दुकानों की ओर रुख करने से हतोत्साहित किया है। कभी साहित्य, प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी और अकादमिक पुस्तकों के लिए मशहूर दरभंगा का किताब बाजार आज सन्नाटे में तब्दील रहता है। शहर के पुस्तक विक्रेता राम कुमार, कैलाश, दिलीप कमती आदि कहते हैं कि जहां पहले छात्रों की भीड़ दुकानों पर लगी रहती थी, वहां आज कुछ ही ग्राहक आ पाते हैं। आज हम जब दरभंगा रेलवे स्टेशन के पास स्थित स्टेशन रोड की गलियों से गुजरते हैं तो किताबों की सजी कतारें अब वैसी रौनक नहीं बिखेरतीं जैसी एक दशक पहले तक बिखेरा करती थीं। डिजिटल तकनीक की तेज रफ्तार ने परंपरागत पुस्तक व्यवसाय को एक कठिन मोड़ पर ला खड़ा किया है।

पुस्तक विक्रेता सुधीर पांडेय कहते हैं पिछले कुछ वर्षों में ऑनलाइन पुस्तक विक्रेताओं ने बाजार में एक मजबूत पकड़ बना ली है। कई ई-कॉमर्स वेबसाइटें ग्राहकों को घर बैठे लाखों पुस्तकों तक पहुंचने की सुविधा प्रदान कर रही हैं। आकर्षक छूट, त्वरित डिलीवरी और पुस्तकों की विस्तृत शृंखला ने ऑनलाइन शॉपिंग को पुस्तक प्रेमियों के लिए एक पसंदीदा विकल्प बना दिया है। इसके अतिरिक्त ई-पुस्तकों का उदय भी पारंपरिक पुस्तक विक्रेताओं के लिए बड़ी चुनौती बनकर उभरा है। आज के दौर में डिजिटल माध्यम ने सिर्फ पुस्तक दुकानों को ही प्रभावित नहीं किया है, जो लाइब्रेरी कभी पठन-पाठन का मुख्य आधार होते थे, वो भी इस बदलाव से अछूते नहीं हैं। कभी लाइब्रेरी किसी भी समाज की बौद्धिक रीढ़ मानी जाती थी, पर आज की पीढ़ी लाइब्रेरी जाने को पुराने जमाने की बात मानती है। स्कूल और कॉलेज की लाइब्रेरी में भी छात्रों की उपस्थिति घट रही है। आंकड़े बताते हैं कि 2020 से 2024 के बीच भारत में प्रिंट किताबों की बिक्री में लगभग 25 से 30 फीसदी तक की गिरावट दर्ज की गई है, जबकि इसके विपरीत ई-बुक्स और ऑडियो बुक्स की खपत में 40 फीसदी से अधिक की वृद्धि हुई है। 18 से 35 वर्ष की उम्र के पाठकों में से 60 फीसदी लोग अब प्राथमिक रूप से डिजिटल माध्यमों से पढ़ते हैं।

पुस्तक विक्रेता लालू कुमार कहते हैं कि ऑनलाइन प्लेटफॉर्मों की बढ़ती लोकप्रियता के कारण पारंपरिक पुस्तक विक्रेताओं की बिक्री में भारी गिरावट आई है। ग्राहक अब घर बैठे ही अपनी पसंदीदा पुस्तकें ऑर्डर कर रहे हैं, जिससे दुकानों पर ग्राहकों की भीड़ कम हो गई है। डिजिटल युग ने हमारी जिंदगी को तेज, सुविधाजनक और जानकारीपूर्ण बना दिया है, लेकिन इसके साथ-साथ उसने हमें किताबों से दूर भी कर दिया है।

उन्होंने कहा कि सबसे बड़ी परेशानी इस बात को लेकर है कि सरकारी स्तर पर किताबों की खरीदारी करने में स्थानीय दुकानदारों को मौका नहीं दिया जा रहा है। इससे पुस्तक विक्रेता निराश हो रहे हैं।

बोले जिम्मेदार

स्कूल-कॉलेजों तथा विश्वविद्यालयों में किताबों की आपूर्ति के लिए स्थानीय किताब दुकानदारों को अवसर दिया जाए, इसके लिए भारत सरकार तथा बिहार सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय में हम अपनी बात रखेंगे। इसके लिए स्थानीय स्तर पर भी प्रयास करेंगे।

- डॉ. गोपाल जी ठाकुर, सांसद

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