जानलेवा बीमारी से जंग जीतकर दो महिला बनीं टीबी चैंपियन
किशनगंज की दो महिलाओं ने एमडीआर स्टेज टीबी को दिया मातजानलेवा बीमारी से जंग जीतकर महिला बनीं टीबी चैंपियनजानलेवा बीमारी से जंग जीतकर महिला बनीं टीबी च

किशनगंज, एक प्रतिनिधि । एमडीआर टीबी (मल्टी-ड्रग रेसिस्टेंट टीबी), यानी टीबी का वह स्टेज जिसमें सामान्य दवाएं असर नहीं करती। इस स्टेज में इलाज लंबा होता है, दवाओं की मात्रा ज्यादा होती है और शारीरिक व मानसिक थकावट चरम पर होता है। लेकिन किशनगंज की एमडीआर पीड़ित दो महिलाओं साक्षी और नेहा (काल्पनिक नाम) ने इस जानलेवा बीमारी को हराकर जहां खुद को बचाया, वहीं दोनों महिला टीबी चैंपियन के रूप में समाज के लिए एक प्रेरणास्रोत बन गई हैं। जहां समाज में टीबी को लेकर भय और चुप्पी होती है, वहीं इन दोनों महिलाओं ने यह साबित कर दिया कि अगर सही समय पर इलाज मिले, सही पोषण और मनोबल मिले, तो कोई भी बीमारी बड़ी नहीं होती। निक्षय पोषण योजना बनी संजीवनी:
टीबी इलाज के दौरान दोनों महिला को निक्षय पोषण योजना के तहत पूर्व में हर महीने 500-500 रुपये मिल रही थी। अक्टूबर 2024 से बढ़ी हुई राशि प्रत्येक माह एक-एक हजार की आर्थिक सहायता मिली। दोनों महिलाओं ने बताया कि इससे उन्हें पोषक आहार लेने में मदद मिली, जो उनकी रिकवरी के लिए बेहद जरूरी था। एमडीआर टीबी को मात देने वाली दोनों महिलाओं ने बताया कि निक्षय पोषण योजना की राशि से दूध, फल और अंडे आदि पौष्टिक आहार खरीदे। पहले शरीर कमजोर हो गया था, लेकिन पोषण मिलने से दवाएं असर करने लगी।
जब समाज दूर हुआ, सरकार ने साथ निभाया:
एमडीआर टीबी से लड़ कर स्वस्थ हुई दोनों महिलाओं ने बताया कि टीबी रोग का एमडीआर स्टेज पहुंचने से स्वास्थ बहुत गिर गया था। जिस वजह से समाज एवं समुदाय में लोगों ने दूरी बना ली थी। लेकिन हर हफ्ते स्वास्थ्य विभाग की टीम आती थी। डॉक्टर और आशा दीदी हमारे लिए सबसे बड़ी सहारा बनीं। लगातार जांच, दवा काउंसिलिंग और आर्थिक सहायता, नियमित दवा का सेवन से टीबी को हराकर आज स्वास्थ्य एवं सामान्य जीवन जी रहे हैं। सिविल सर्जन डॉ. राज कुमार चौधरी ने कहा कि एमडीआर टीबी से लड़ाई कठिन जरूर है, लेकिन असंभव नहीं। नियमित दवा, पोषण, परामर्श और सामाजिक समर्थन। यही चार स्तंभ हैं जो मरीजों को फिर से स्वस्थ जीवन देते हैं।
टीबी से संघर्ष जारी, उम्मीद बरकरार:
सिविल सर्जन डॉ. राज कुमार चौधरी ने बताया कि जिले के जनवरी 2025 से अब तक 26 लोग टीबी रोग को मात देकर स्वस्थ एवं सामान्य जीवन जी रहे हैं। जिले में वर्तमान में 856 टीबी मरीजों का इलाज जारी है। उन्होंने बताया कि टीबी उन्मूलन एवं 2025 के अंत तक टीबी मुक्त लक्ष्य को हासिल करने के उद्देश्य से जिले में सक्रिय स्क्रीनिंग, डोर-टू-डोर जागरूकता और विशेष शिविर चलाये जा रहे हैं। सिविल सर्जन ने बताया कि दोनों महिला टीबी चैंपियन के रूप में समाज के लिए एक प्रेरणा बन गई हैं। दोनों महिलाओं की कहानी यह साबित करती है कि कोई भी बीमारी आखिरी नहीं होती। अगर हम डर की बजाय जानकारी और सहयोग को अपनाएं, तो हर मरीज एक चैंपियन बन सकता है। टीबी अब शर्म या डर का विषय नहीं, एक ऐसी चुनौती है जिसे मिलकर हराना है। किशनगंज का यह उदाहरण टीबी मुक्त भारत की ओर एक ठोस कदम है।
टीबी मरीजों के लिए काफी मददगार है निक्षय पोषण योजना : सीएस
सिविल सर्जन डॉ.राज कुमार चौधरी ने बताया कि टीबी मरीजों को इलाज के दौरान पोषण के लिए पांच सौ रुपये प्रतिमाह दिए जाने वाली निक्षय पोषण योजना बड़ी मददगार साबित हुई है। मरीज का टीबी पुष्टि होने के साथ एक हजार रुपये प्रति माह सरकारी सहायता प्रदान की जा रही है। टीबी मरीज को आठ महीने तक दवा चलती है। इस आठ महीने की अवधि तक प्रतिमाह एक -एक रुपये डीबीटी के माध्यम से राशि सीधे बैंक खाते में भेजी जाती है।
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