बोले पटना : आंखों की रोशनी जांचने वालों को खुद के जीवन में उजाले का इंतजार
बिहार में ऑप्टोमेट्रिस्ट की 13 वर्षों से सरकारी अस्पतालों में बहाली नहीं हुई है। ऑप्टोमेट्रिस्ट आंखों की समस्याओं का प्राथमिक उपचार करते हैं, लेकिन सरकारी नियमावली और काउंसिल की कमी के कारण उन्हें...
ऑप्टोमेट्रिस्ट की 13 वर्षों से नहीं हुई सरकारी अस्पतालों में बहाली आंखों से संबंधित किसी भी प्रकार की समस्या होने पर मरीजों को सबसे पहले ऑप्टोमेट्रिस्ट की ही जरूरत पड़ती है, जो आंखों और दृष्टि को प्रभावित करने वाले कारणों की जांच के साथ प्राथमिक उपचार करते हैं। यदि किसी मरीज को सर्जरी आदि की आवश्यकता होती है तो उन्हें नेत्र रोग विशेषज्ञ के पास भेजने का काम भी करते हैं। आंखों की रोशनी को बचा दूसरों के जीवन को उजाला करने वाले दृष्टिमितिज्ञ वर्तमान में खुद के भविष्य को अंधकार में पा रहे हैं।
ऑप्टोमेट्रिस्ट के लिये 12 वर्षों में नहीं बनी नियमावली:बीते 25 वर्षों से ऑप्टोमेट्रिस्ट के तौर पर काम कर रहे पंकज सिन्हा इस क्षेत्र के भविष्य को लेकर चिंता जताते हैं। बताते हैं कि 2012 से बिहार में सरकारी तौर पर स्नातक स्तर की ऑप्टोमेट्री की पढ़ाई कराई जा रही है। इसके अलावा कई निजी संस्थानों में भी दृष्टिमिति की शिक्षा दी जा रही है। प्रत्येक वर्ष बड़ी संख्या में छात्र डिग्री प्राप्त कर बाजार में आ रहे हैं, लेकिन उनका असली संघर्ष यहीं से शुरू होता है। साल 2021 में राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम द्वारा मात्र नौ ऑप्टोमेट्रिस्ट की बहाली को छोड़ दें तो बिहार में इस कोर्स के शुरू होने के एक दशक से अधिक समय बीत जाने के बावजूद इसके लिये सरकारी बहाली नहीं निकली है। हैरत की बात ये है कि इसके लिये अब तक कोई नियमावली ही नहीं बनी है तो बहाली कैसे आयेगी। इसके अलावा कोई ऑप्टोमेट्रिस्ट काउंसिल का भी गठन नहीं किया गया है।
पंकज सिन्हा कहते हैं कि आंखों से संबंधित किसी भी प्रकार की समस्या की शुरुआती जांच ऑप्टोमेट्रिस्ट ही करते हैं। प्राथमिक नेत्र देखभाल, निदान और उपचार का महत्वपूर्ण कार्य ऑप्टोमेट्रिस्ट के ही जिम्मे होना चाहिये लेकिन सरकारी अस्पतालों में ये काम नेत्र रोग सहायकों और अप्रशिक्षित लोगों से लिया जा रहा है। किसी मरीज की आंखों की जांच कर उचित लेंस की सलाह देने समेत अन्य दृष्टि चिकित्सा का काम ऑप्टोमेट्रिस्ट ही करते हैं। इसके अलावा आंखों की सर्जरी से पूर्व और पश्चात सभी तरह की सहायता ऑप्टोमेट्रिस्ट ही देते हैं। इसके बावजूद सरकारी स्तर पर इसे लेकर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। इसके बदले ऑप्थैल्मिक असिस्टेंट से काम चलाया जा रहा है जबकि उनका केवल नेत्र चिकित्सकों को सहयोग करने का है। दोनों का अलग-अलग और अपना महत्वपूर्ण काम है लेकिन ऑप्टोमेट्रिस्ट को उनकी विशेषज्ञता के आधार पर प्राथमिकता नहीं दी जा रही है। एक तरफ निजी क्लीनिकों में नेत्र चिकित्सक केवल ऑप्टोमेट्रिस्ट को ही बहाल करते हैं दूसरी तरफ सरकारी अस्पतालों में उनकी जरूरत पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
बिहार में ऑप्टोमेट्रिस्ट के लिये सीमित अवसर : बीते 15 वर्षों में पटना में ऑप्टोमेट्रिस्ट का काम कर रहे राजेश झा कहते हैं कि बिहार में ऑप्टोमेट्रिस्ट के लिये बेहद सीमित अवसर हैं। दूसरे राज्यों में दृष्टिमितिज्ञों के लिये सरकारी नौकरी की सुविधा है। वहीं, बिहार में सरकारी नौकरी नहीं होने के कारण नये दृष्टिमितिज्ञों को काफी संघर्ष करना पड़ता है। शुरुआत में निजी अस्पतालों या क्लीनिकों में काम करना मजबूरी बन जाती है। जहां दूसरे राज्यों में नये ऑप्टोमेट्रिस्ट को 20-25 हजार रुपये मिल जाते हैं तो बिहार में ये आंकड़ा 8-10 हजार के बीच ही होता है। चार वर्षों के पाठ्यक्रम पूरा करने के बाद जब नये ऑप्टोमेट्रिस्ट बाजार में आते हैं तो उन्हें बेहद मायूसी होती है। उन्हें कुशल दैनिक मजदूर से भी कम पैसों पर काम करना पड़ता है।
शिकायतें
1. बिहार में ऑप्टोमेट्रिस्ट के लिए सरकारी बहाली नहीं आने से परेशानी
2. ऑप्टोमेट्रिस्ट के लिए बिहार सरकार ने कोई नियमावली नहीं बनाई है
3. दृष्टिमितिज्ञों के लिए बिहार में आजतक किसी काउंसिल का गठन नहीं हुआ
4. एकमात्र सरकारी संस्थान पब्लिक हेल्थ इंस्टीट्यूट में शिक्षकों की कमी
5. ऑप्टोमेट्री के छात्रों को दूसरे कोर्स के मुकाबले 10 गुना कम मानदेय दिया जा रहा
सुझाव
1. बिहार में ऑप्टोमेट्रिस्ट के लिए जल्द सरकारी बहाली की प्रक्रिया शुरू की जाये
2. ऑप्टोमेट्रिस्ट के लिए भी नियमावली बनाकर बहाली शुरू की जाये
3. दृष्टिमितिज्ञों के लिए विशेष काउंसिल का गठन किया जाये
4. पब्लिक हेल्थ इंस्टीट्यूट में शिक्षकों के रिक्त पदों को भरा जाये
5. ऑप्टोमेट्री के छात्रों को भी अन्य कोर्सों के अनुरूप मानदेय दिया जाये
पंजीयन के अभाव में ऑप्टोमेट्रिस्ट की डिग्री का नहीं कोई महत्व
साल 2012 में बिहार सरकार ने पब्लिक हेल्थ इंस्टीट्यूट के माध्यम से ऑप्टोमेट्री में स्नातक तक की पढ़ाई की शुरुआत की। तब से हर वर्ष यहां 30 छात्रों का दाखिला लिया जाता है। बिहार संयुक्त प्रवेश प्रतियोगिता परीक्षा बोर्ड द्वारा आयोजित प्रवेश परीक्षा के माध्यम से छात्रों का नामंकन होता है। नामांकन की लंबी चौड़ी प्रक्रिया और पूरे चार साल के कोर्स और छह माह के इंटर्नशिप के बाद प्राप्त डिग्री भी वास्तविक रूप से छात्रों के काम की नहीं रहती। पीएचआई के निदेशक डॉ. सुरेन्द्र प्रसाद सिंह बताते हैं कि बिहार में ऑप्टोमेट्रिस्ट के लिए आजतक किसी काउंसिल का गठन ही नहीं किया गया है, जिस कारण इसकी डिग्री प्राप्त करने वाले छात्रों के पंजीकरण की कोई व्यवस्था नहीं है। ऐसे में इतनी मेहनत के बाद डिग्री हासिल करने के बावजूद ये लोग बाहर जाकर भी कोई नौकरी नहीं कर सकते हैं, क्योंकि रजिस्ट्रेशन के अभाव में इनकी डिग्री का कोई महत्व नहीं रहता है।
पीएचआई में जल्द शुरू होगी पीजी की पढ़ाई
पटना स्थित पब्लिक हेल्थ इंस्टीट्यूट में ऑप्टोमेट्री के लिये वर्तमान समय में केवल स्नातक स्तर की ही पढ़ाई होती है। हालांकि यहां जल्द ही पीजी का कोर्स भी शुरू किया जायेगा। संस्थान के निदेशक डॉ. सुरेन्द्र प्रसाद सिंह बताते हैं कि इस संबंध में बीते दिनों ही बिहार स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय के उपकुलपति डॉ. प्रो. सुरेन्द्र नाथ सिन्हा, परीक्षा नियंत्रक सत्यप्रकाश तथा रजिस्ट्रार बिमलेश कुमार झा के साथ बैठक हुई है। इसमें ऑप्टोमेट्री के लिये पीजी के कोर्स की शुरुआत करने को लेकर बात रखी है। होली के बाद इस संबंध में स्वास्थ्य विबाग के मंत्री के साथ भी बैठक प्रस्तावित है, जिसमें इन तमाम मुद्दों को लेकर चर्चा की जायेगी। उम्मीद है कि जल्द ही इस पर कोई सकारात्मक निर्णय लिया जायेगा। पीजी कोर्स के साथ ही यहां नेत्र चिकित्सा को लेकर भी एक पूरी व्यवस्था कायम करने की योजना है ताकि गरीबों की भी आंखों से संबंधित इलाज हो सके।
स्नातक के बाद निजी संस्थानों में जाना पड़ता है
बिहार में ऑप्टोमेट्री कोर्स के लिये पटना स्थित पब्लिक हेल्थ इंस्टीट्यूट ही एकमात्र सरकारी कॉलेज है, जहां महज तीस सीटें हैं। साल 2012 से यहां कोर्स की शुरुआत की गई। फिलहाल पीएचआई में केवल स्नातक की ही पढ़ाई होती है। आगे की डिग्री के लिये छात्रों को निजी संस्थान का सहारा लेना पड़ता है।
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