Patna Stationery Business Faces Crisis Amid Digital Shift and Free Supply Scheme बोले पटना : स्टेशनरी की मांग में कमी से दुकानदारों की कमाई घटी, Patna Hindi News - Hindustan
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बोले पटना : स्टेशनरी की मांग में कमी से दुकानदारों की कमाई घटी

पटना में स्टेशनरी और कॉपी का कारोबार पिछले कुछ वर्षों में डिजिटल परिवर्तन और मुफ्त स्टेशनरी वितरण योजना के चलते संकट में है। कारोबारियों की आय में 70 प्रतिशत गिरावट आई है। वे सरकारी स्कूलों में...

Newswrap हिन्दुस्तान, पटनाThu, 20 Feb 2025 06:28 PM
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बोले पटना : स्टेशनरी की मांग में कमी से दुकानदारों की कमाई घटी

पटना में स्टेशनरी और कॉपी का बड़ा कारोबार रहा है। लेकिन, पिछले कुछ वर्षों से स्कूल-कॉलेजों में पढ़ाई और दफ्तरों के कामकाज के स्वरूप में आए बदलाव ने इस कारोबार पर असर डाला है। इससे स्टेशनरी के थोक और खुदरा कारोबार से जुड़े कारोबारियों की कमाई घटकर आधी हो गई है। सरकारी व निजी दफ्तरों में काम-काज डिजिटल होने लगा है और कई निजी स्कूल बच्चों को खुद ही कॉपी देने लगे हैं। कारोबारियों का कहना है कि सरकारी स्कूलों में मुफ्त स्टेशनरी किट वितरण योजना में उन्हें भी किसी रूप में शामिल किया जाये। इससे उनके कारोबार को संजीवनी मिल जाएगी। राजधानी का खजांची रोड, नया टोला और बीएम दास रोड किताबों से कहीं ज्यादा स्टेशनरी सामान और स्कूल बैग के कारोबार के लिए जाना जाता है। यहां हर प्रकार की कॉपियां, पेन, पेंसिल और स्टेशनरी से जुड़े अन्य सामान की थोक और खुदरा दुकानें हैं। लंबे अरसे से इस कारोबार से जुड़े मुकेश जुनेजा भारी मन से कहते हैं - ‘बाजार की स्थिति ऐसी है कि कॉपी-स्टेशनरी दुकानदार अपना कारोबार बंद करने को मजबूर हो रहे हैं। कॉपी-स्टेशनरी का सीजन जनवरी से मार्च के बीच माना जाता है। सीजन होने के बावजूद बाजार में खरीदार नहीं हैं। दुकानों में माल भरा हुआ है लेकिन खरीदारी के लिए ग्राहक नहीं आ रहे हैं। मुकेश का यह दर्द स्टेशनरी कारोबार से जुड़े सभी व्यापारियों का है।

दरअसल पटना के कॉपी-स्टेशनरी कारोबारियों की हालत खास्ता है। कम्प्यूटर, लैपटॉप और टैब का इस्तेमाल बढ़ने और स्कूल से लेकर सरकारी कार्यालयों में कामकाज डिजिटल माध्यम से होने का असर इस कारोबार पर दिखने लगा है। कारोबारियों का कहना है कि कोरोना के पूर्व जितना कारोबार था, उसकी तुलना में करीब 70 प्रतिशत बाजार गिर चुका है। कॉपी-स्टेशनरी कारोबारी अब सरकार की तरफ उम्मीद की टकटकी लगाए बैठे हैं। वे चाहते हैं कि सरकार द्वारा संचालित स्कूलों में मुफ्त कॉपी-स्टेशनरी कीट योजना में उन्हें भी किसी ना किसी तरह शामिल किया जाये। यदि उन्हें भी स्कूलों में कॉपी, बैग आदि की आपूर्ति का जिम्मा मिले, तो इस कारोबार को संजीवनी मिल जायेगा। सरकार की ओर से राज्य के स्कूलों में मुफ्त कॉपी-स्टेशनरी किट बांटी जा रही है। स्कूलों में मिलने वाले मुफ्त कॉपी व स्टेशनरी के कारण गली-मोहल्लो के कॉपी-स्टेशनरी, बैग आदि की बिक्री प्रभावित हुई है। कारोबारी मांग कर रहे हैं कि मुफ्त योजना के तहत बंटने वाली कॉपी व स्टेशनरी सामग्री की खरीदारी राज्य के बाहर से नहीं बल्कि राज्य के अंदर के कारोबारियों से किया जाए। जिससे यहां के कारोबारियों को नुकसान होने से बचाया जा सके। साइकिल-पोशाक योजना की तर्ज पर इस योजना को भी डीबीटी के माध्यम से लागू करने की भी उनकी है।

बिहार शिक्षा परियोजना द्वारा 2024-25 में राज्य के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले एक करोड़ से ज्यादा छात्र व छात्राओं को कक्षा 1 से 12 तक मुफ्त कॉपी, बैग, पेन, पेंसिल, रबड़ आदि कॉपी-स्टेशनरी सामग्री का कीट वितरित किया गया। जिसके कारण राज्य के खुले बाजार में कॉपी व स्टेशनरी की मांग कम हो गई और खपत प्रभावित हुई। कॉपी-स्टेशनरी कारोबारी अजय गुप्ता बताते हैं कि मुफ्त बांटी जाने वाली कॉपी-स्टेशनरी सामग्री की खरीदारी बिहार के कारोबारियों से की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि मुफ्त योजना से छात्रों व अभिभावकों को तो लाभ मिला, लेकिन स्थानीय कॉपी-स्टेशनरी दुकानों के बीच दशकों से तैयार खपत-आपूर्ति शृंखला ध्वस्त हो रहा है। इसे बचाने का उपाय करना चाहिए। इसके कारण पटना के लगभग दस हजार से ज्यादा कारोबारियों की हालत खराब हो गई है। कारोबारियों के अनुसार कॉपी-स्टेशनरी कारोबारी कोरोना के बाद सबसे बुरे समय से गुजर रहे हैं।

शिकायतें

1. कॉपी-स्टेशनरी की मांग में लगातार गिरावट से कमाई घट रही है

2. दुकानदारी के लिए बैंकों व निजी लोगों से लिए कर्ज अदायगी में परेशानी

3. बिक्री नहीं होने के कारण दुकानों का किराया देने में परेशानी

4. कॉपी पर 12 प्रतिशत की दर से जीएसटी लगने के कारण यह महंगा है

5. खजांची रोड में आवागमन में होती है परेशानी, ट्रैफिक जाम बड़ी समस्या

सुझाव

1. मुफ्त कॉपी-स्टेशनरी योजना में स्थानीय कारोबारियों को प्राथमिकता मिले

2. योजना को यदि संचालित करना है तो इसे डीबीटी माध्यम से चलाया जाए

3. दुकानदारों को सस्ता कर्ज मुहैया कराया जाना चाहिए

4. कॉपी पर जीएसटी के स्लैब में बदलाव किया जाए

5. खजांची रोड की जर्जर सड़कों की मरम्मत की जाए, जाम से निजात मिले

कोरोना के बाद बिहार का कागज उद्योग भी सिमटता जा रहा

बिहार के कुल चार पेपर मिलों से प्रति वर्ष लगभग 40 हजार टन कागज का उत्पादन होता है। यहां के पेपर मिलों द्वारा उत्पादित कागज का 95 प्रतिशत खपत बिहार में ही होता रहा है। बिहार में उत्पादित कागज में से 30 हजार टन कागज से बिहार के कारोबारी कॉपियों का निर्माण करके यहां के स्थानीय बाजारों में आपूर्ति करते थे। इसके अलावा बिहार के बाहर राज्यों से आने वाले कागज में 20 हजार टन की कॉपियों की खपत यहां होती थी। कारोबारियों के अनुसार बिहार के अलावा यहां उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश से भी काफी मात्रा में कॉपियां और कागज बिहार के बाजार में आती थी। लेकिन कोरोना के बाद से ही यहां के पेपर मिलों में कागज के उत्पादन और कॉपियों की खपत प्रभावित होने लगी थी। कोरोना का प्रभाव देशव्यापी पड़ा है।

निजी स्कूलों की कॉपियों का बाजार

राज्य में प्राइवेट स्कूलों में कॉपियों का बाजार बहुत ज्यादा प्रभावित नहीं हुआ है। उद्यमी दीपशिखा बताती हैं कि निजी स्कूलों में ब्रांडेंड कॉपियों की बिक्री ज्यादा होती है। ब्रांडेंड कॉपियों का उत्पादन बिहार के बाहर होता है। बिहार में ब्रांडेंड कॉपियों का केवल ट्रेडिंग ही किया जाता है। इसके अलावा कई बड़े निजी स्कूल कॉपियों के ब्रांडेंड कंपनियों से अपने नाम, कॉपियों पर बड़ी मात्रा में छपवाकर अपने पास स्टॉक रखते हैं और स्कूल द्वारा निर्धारित स्टेशनरी दुकानों पर ही यह मिलता है। निजी स्कूलों की कॉपियों के कारोबार में स्थानीय स्टेशनरी दुकानदारों की भागीदारी नगण्य है।

योजना अच्छी, जिलास्तर पर हो निविदा

पेपर मिल संचालक विमल प्रकाश कहते हैं कि कक्षा एक से कक्षा 12 तक के सरकारी स्कूलों के छात्र-छात्राओं को कॉपी-स्टेशनरी देने की योजना बहुत अच्छी है। लेकिन इस योजना का टेंडर जिला स्तर पर निकाला जाना चाहिए। इसमें कॉपी-स्टेशनरी की होने वाली खरीदारी बिहार के ही उत्पादकों से करने की शर्त होनी चाहिए। इससे राज्य के उत्पादकों को भी फायदा होगा और स्कूली छात्र-छात्राओं को मुफ्त कॉपी-स्टेशनरी भी मिल सकेगा।

बैंकों को कर्ज लौटाने में परेशानी

कॉपी-स्टेशनरी कारोबारी विकास कुमार बताते हैं कि बड़ी संख्या में उद्यमियों ने बैंकों से कर्ज ले रखा है। ऐसे में बैंकों का कर्ज चुकाने में परेशानी हो रही है। कारोबारियों पर एनपीए होने का खतरा भी बढ़ा है। बिक्री बाधित होने के कारण कई कॉपी-स्टेशनरी कारोबारी बैंकों से लिए कर्ज की ईएमआई और दुकानों का किराया भाड़ा तक देने में कठिनाई महसूस कर रहे है। रौशन कॉपी भंडार के विनोद कुमार बताते हैं कि इसके पहले कोरोना के कारण कॉपी-स्टेशनरी की दुकानदारी पर मार पड़ी थी। कोरोना के बाद ऑनलाइन व ई-कॉमर्स का बड़ा झटका कॉपी-स्टेशनरी कारोबार पर पड़ चुका है। कॉपी-स्टेशनरी कारोबारी विमल प्रकाश बताते हैं कि यदि वित्तीय वर्ष 2025-26 में भी मुफ्त ‘कीट योजना के तहत राज्य के बाहर से ही कॉपी-स्टेशनरी आदि की खरीदारी की गई तो इस वर्ष बड़ी संख्या में कारोबारियों को अपनी दुकानों को बंद करना पड़ेगा।

खजांची रोड की कई दुकानें हो गईं बंद

बीते छह महीने से पटना में कॉपी-स्टेशनरी की कई दुकानें बंद हो गईं। कारोबारियों का दावा है कि खजांची रोड की 14 थोक दुकानें बंद हो चुकी हैं। खजांची रोड के कारोबारी विकास बताते हैं कि पहले वे बैग निर्माता थे। लेकिन सात महीने पहले नुकसान के कारण उन्हें अपना कारखाना बंद करना पड़ा। कारखाना में तैयार माल के साथ वे बैग दुकानदार हो गए। मुख्यमंत्री उद्यमी योजना के तहत पटना में बड़ी संख्या में सीमांत कारोबारी कर्ज लेकर दुकान और छोटी उत्पादन इकाई चला रहे है। लेकिन बाजार में मांग कम होने के कारण अब कर्ज का ईएमआई देना मुश्किल हो रहा है।

(प्रस्तुति: रोहित, फोटो: सुनील सिंह)

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