कथक नृत्य कलाकार को मिले प्रोत्साहन और चाहिए उचित मंच
समस्तीपुर के नृत्य और संगीत कलाकारों ने अपनी समस्याएं साझा की हैं। उन्होंने कहा कि जिला प्रशासन और कला संस्कृति विभाग से उन्हें सहायता नहीं मिलती है। स्थानीय कार्यक्रमों में बाहरी कलाकारों को...
समस्तीपुर। जिले के नृत्य और संगीत के कलाकारों ने देश और विदेश में नाम रोशन किया है। इन कलाकारों की संख्या सैकड़ों में है। इन कलाकारों ने अपनी समस्याओं पर चर्चा करते हुए कहा कि जिला प्रशासन और कला संस्कृति विभाग से हमलोगों को सहयोग नहीं मिलता है। स्थानीय कार्यक्रम में हम लोेगों को उचित स्थान नहीं देते हैं। अन्य जिलों और दूसरे प्रदेशों के कलाकारों को बुलाया जाता है और हमें नजरअंदाज करते हैं। हम लोगों के लिए सरकार भत्ता की व्यवस्था भी करे। सीजन में आमदनी ठीकठाक हो जाती है। इसके बाद गुजरा करना मुश्किल होता है। मिथिलांचल का समस्तीपुर जिला शुरू से ही कला और संस्कृति की धरती रही है। नृत्य से जुड़ी कई नामचीन हस्तियों ने जिले का नाम रोशन किया है। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों से जुड़े कलाकार विभिन्न अवसरों जैसे दुर्गा पूजा, काली पूजा, स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस सहित अन्य कार्यक्रम पर नृत्य से दर्शकों का मन को मोह लेते हैं। नृत्य से जुड़े कलाकारों को सरकारी संरक्षण प्राप्त नहीं होता है। इतना ही नहीं नृत्य से जुड़े कलाकारों को सरकारी आयोजनों में भी उचित जगह नहीं मिलती है। अर्पण कुमार ने कहा की जिले के स्थापना दिवस में बाहरी कलाकारों को बुलाया जाता है। इसमें दिल्ली, कोलकाता, मुंबई के कलाकार प्रस्तुति देते हैं, मगर जिले के नृत्य कलाकार को मौका नहीं दिया जाता है। अगर मिलता भी है तो बस मंच तक ही उनको स्थान दिया जाता है। उनको अपने कला का प्रदर्शन करने का भी मौका नहीं दिया जाता है।
वहीं स्वदेश ने बताया की शहर में नृत्य कलाकारों की कई टीम सक्रिय है। यहां के नृत्य कलाकार अपनी नृत्य कला के प्रदर्शन के लिए देश के कोने-कोने में पहुंचते हैं पर अपने ही जिले में कलाकार उपेक्षित हैं। इन कलाकारों की सुविधाएं लगातार छिन रही हैं। पूरे शहर में अब कोई भी जगह नहीं है, जहां कलाकार अभ्यास कर सकें। इसलिए जिले के कलाकार सक्षम नहीं हो पाते। इस वजह से भी डांस सीखने वालों में लगातार कमी देखी जा रही है। बैजू कुमार ने बताया की बिहार में विविध कलाएं हैं, किंतु आए दिन जिले के कलाकार बाहर पलायन कर रहे हैं क्योंकि स्थानीय कलाकारों के लिए किसी भी तरह की जिला में कला संबंधित गतिविधि नहीं होने के कारण कलाकारों को जीविकोपार्जन में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। इस कारणवश कई कलाकार महानगरों में बस गए और कुछ अपनी कला की प्रस्तुति कर रहे हैं। वहीं प्रियंका कुमारी ने कहा की जिला में कला संबंधित पहचान के लिए स्थानीय कलाकारों का विकास होना महत्वपूर्ण है और उन्हें उचित पारिश्रमिक मिलना चाहिए।
कला और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए जिला प्रशासन को कला और कलाकारों के लिए सशक्त कदम उठाने की अति आवश्यकता है। बिहार के अन्य जिलों में कला, संस्कृति एवं युवा विभाग और पर्यटक विभाग, बिहार सरकार द्वारा विभिन्न कार्यक्रम, उत्सव, महोत्सव आदि का आयोजन किया जा रहा है। यहां भी इस तरह की गतिविधियों जैसे सांस्कृतिक कार्यक्रमों, सांस्कृतिक उत्सव महोत्सव, कला और संस्कृति के प्रति जागरूकता, कला प्रदर्शनी, संगीत समारोह आदि का आयोजन होना चाहिए। कलाकारों को समर्थन देने के लिए आर्थिक सहायता प्रदान करना साथ ही कलाकारों को प्रशिक्षण देना तथा कलाकारों को मंच प्रदान करना चाहिए। जिसे हमारी सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण होगा। इन प्रयासों से जिले में कला और संस्कृति को बढ़ावा मिलेगा और स्थानीय कलाकार समुदाय को इसका लाभ भी मिलेगा। कलाकार सह बीपीसीसी चयनित नृत्य शिक्षिका दीप शीखा ने बताया कि डांस प्रैक्टिस के लिए मंच नहीं है। शहर में कोई उचित जगह नहीं है। डांस कलाकारों के लिए कला भवन का होना बहुत जरूरी है। इस वजह से लोकनृत्य, लोकसंगीत, लोककला करीब-करीब विलुप्त होती जा रही है। लोक परंपरा को जीवंत रखने के लिए कई समारोह हो रहे हैं, मगर इसमें कुछ गिने- चुने को छोड़कर अन्य विधाओं के कलाकारों की उपेक्षा हो रही है। परिणाम स्वरूप डोम कच, झिझिया, झरनी, सामा चकेवा, पमरिया नांच, अल्लाह रुदल आदि कलाएं अब विलुप्त होने के कगार पर हैं।
बोले-जिम्मेदार
कथक जैसे शास्त्रीय नृत्य को सीखने की बच्चों में रुचि कम हो रही है, जो चिंता का विषय है। इस दिशा में जिला प्रशासन पहल करेगी। हम स्कूलों और सांस्कृतिक संस्थानों के माध्यम से लोक और शास्त्रीय नृत्य को बढ़ावा देने की योजनाएं बना रहे हैं, ताकि नई पीढ़ी अपनी जड़ों से जुड़ी रह सके।
-जुही कुमारी, जिला कला संस्कृति पदाधिकारी, समस्तीपुर
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