सफाई मित्रों को मिले बीमा का लाभ नियमित मिले वेतन और बढ़े भत्ते
समस्तीपुर नगर निगम के 47 वार्डों की सफाई का कार्य सफाई मित्रों पर है। इनके पास सुरक्षा उपकरण नहीं हैं और समय पर मजदूरी का भुगतान नहीं होता। एजेंसियाँ इनका शोषण कर रही हैं, जबकि नगर निगम ने उनकी समस्या...

शहर के 47 वार्डों की संपूर्ण सफाई का भार सफाई मित्रों के कंधों पर है। समस्तीपुर नगर निगम के रिकार्ड में साढ़े पांच सौ सफाई मित्र हैं। ये दैनिक मजदूरी पर काम करते हैं। लेकिन इनकी गंभीर समस्याओं और प्रमुख मांगों का निदान नहीं हो पा रहा है, जिससे ये परेशानी झेलने को विवश हैं। बगैर किसी सुरक्षा उपाय के ये लोग नालों में उतरकर गंदगी साफ करते हैं। 47 वार्डों के इस शहर की सफाई कराने के लिए तीन जोनों के वार्डों की सफाई का ठेका दो सफाई एजेंसियों को समस्तीपुर नगर निगम ने दे रखा है। ये सफाई एजेंसियां सफाई मित्रों से काम कराती हैं।
सफाई मित्र किरण देवी, हीरा देवी, राधा देवी, शोभा देवी का कहना है कि सफाई एजेंसियां उनका आर्थिक व मानसिक शोषण तथा दोहन करती हैं। समय पर मजदूरी का भुगतान एजेंसियां नहीं करती हैं। श्रम विभाग ने नगर निगम को पत्र देकर सभी सफाई मित्रों का प्रतिदिन 12 रुपए के हिसाब से बढ़ा कर मजदूरी का भुगतान करने को कहा था। फिर भी एजेंसियां बढ़ा हुआ मजदूरी का भुगतान नहीं कर रही हैं। इसको लेकर नगर प्रशासन से अनुरोध किया गया था कि वे सफाई एजेंसियों को बढ़ा हुआ मजदूरी भुगतान एजेंसियों से दिलाने दिलाएं, जिस पर नगर निगम ने अब तक पहल नहीं की है। सफाई मित्रों की पीड़ा है, कि सफाई करने के लिए उन्हें जूते, गल्ब्स और मास्क नहीं दिए जाते हैं। इसके नहीं रहने से कई बार सफाई कार्य के दौरान वे घायल हो जाते हैं। इलाज का खर्च भी उन्हें ही खुद उठाना पड़ता है। उनकी आवाज को दबा दी जाती है। कन्हैया कुमार, रूबी देवी, अजय मल्लिक, सूरज राम, रूबी देवी कहती हैं कि उनसे आउटसोर्सिंग एजेंसियां महीने में 30 दिन काम लेती हैं और 26 दिनों का मजदूरी भुगतान करती है। ईपीएफओ में मजदूरों के वेतन से 12 प्रतिशत काटकर बैंक भेजा जाता है। 13 प्रतिशत आउटसोर्सिंग एजेंसियां भेजती हैं। अधिकतर सफाई मित्र वर्षों से सफाई का काम करते आ रहे हैं, फिर भी उनकी सेवा अब तक स्थायी नहीं की गई है। सफाई मित्र एजेंसियों के शोषण व दोहन के शिकार बने हुए हैं। आरोप लगाया नगर निगन प्रशासन उन्हें ही अंदर से मदद करता है। उन्हें किसी महीने मजदूरी का भुगतान समय पर नहीं मिलता है। वह भी श्रम विभाग के निर्धारित मानदंडों से कम मजदूरी मिलता है। इतने कम पैसे में परिवार चलाना मुश्किल होता है। इस व्यवस्था का विरोध करने पर एजेंसियों के ठेकेदार काम से निकाल देने की धमकी देकर उनकी आवाज दबा देते हैं। निगम प्रशासन भी सफाई मित्रों की नहीं सुनता है। शहर से कचरा उठाव करने वाले अधिकतर सफाई वाहन भी जर्जर हैं, जिनकी मरम्मत नहीं करायी जा रही है। इन्हीं वाहनों की मदद से सफाई करनी पड़ती है। उन्होंने बताया कि लोग अपने घरों में सो रहे होते हैं, उस समय ही सफाई मित्र झाडू लेकर अपने घर से ड्यूटी के लिए निकल पड़ते हैं। दोपहर एक बजे के बाद उन्हें घर जाना पड़ता है। सफाईमित्रों की सेवा स्थायी नहीं करने से अनुकंपा का लाभ भी उन्हें नहीं मिलता है। सफाई मित्रों को नगर निगम या आउटसोर्सिंग एजेंसियों ने फोटोयुक्त आईकार्ड भी नहीं दिया है। जिसके कारण उन्हें कार्यस्थल पर दिक्कत होती है। लोग पहचानते नहीं हैं। ऐसे में उनके साथ लोग बदसलूकी भी करते हैं। उनका कहना है कि वर्षों से लोग शहर को साफ व स्वच्छ बनाने में जुटे हैं। फिर भी उनकी सेवा स्थायी नहीं की गई है। उन्हें आश्वासन तो दिया जाता है, लेकिन पहल नहीं की जाती है। -बोले जिम्मेदार- नगर निगम बोर्ड से निर्णय लेकर दैनिक श्रमिकों को 100 रुपये बढ़ा कर मजदूरी भुगतान हाल में ही किया गया था। जो न्यूनतम मजदूरी अकुशल श्रमिकों को मिलती चाहिए, वो उन्हें हम दे रहे हैं। उनकी सेवा स्थायी करने का मामला नीतिगत है। इस पर निर्णय नगर विकास विभाग ही ले सकता है। इन श्रमिकों को यह मांग नगर विकास विभाग में रखना चाहिए। - केडी प्रोज्जवल, नगर आयुक्त, नगर निगम, समस्तीपुर।
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