Private Ambulance Drivers Frontline Workers Overlooked Amidst COVID-19 and Traffic Challenges बोले देवघर : संकट में आते हैं काम, लेकिन नहीं मिलता है उचित सम्मान, Deogarh Hindi News - Hindustan
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बोले देवघर : संकट में आते हैं काम, लेकिन नहीं मिलता है उचित सम्मान

कोरोना महामारी में निजी एंबुलेंस चालकों की भूमिका महत्वपूर्ण है, लेकिन सरकार और समाज द्वारा इन्हें उपेक्षित किया जाता है। एंबुलेंस चालकों का कहना है कि उन्हें उचित सम्मान, सुविधाएं और टैक्स में छूट की...

Newswrap हिन्दुस्तान, देवघरTue, 8 April 2025 07:33 PM
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बोले देवघर : संकट में आते हैं काम, लेकिन नहीं मिलता है उचित सम्मान

बात जहां एंबुलेंस चालक की हो वहां कोरोना जैसी महामारी को नियंत्रित करने में मदद की हो या फिर सड़क दुर्घटना के घायल को कम से कम समय में अस्पताल पहुंचाने की। प्रसव कराने के लिए प्रसूता को अस्पताल ले जाने से लेकर गंभीर मरीजों को एक से दूसरे अस्पताल में शिफ्ट करने में प्राइवेट एंबुलेंस चालकों (निजी एंबुलेंस चालक) की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होती है। ये हमेशा फ्रंटलाइन वर्कर्स की श्रेणी में होते हैं। दिन-रात का बगैर भेद किये मरीजों को लाने ले जाने का काम तन्मयता से करते हैं। भारी बरसात हो या फिर गर्मी का मौसम। जाड़े की कंपकपाती रात में भी प्राइवेट एंबुलेंस चालक अपनी ड्यूटी पर तैनात रहते हैं। बावजूद जीवन बचाने वाला यह बड़ा वर्ग उपेक्षा का दंश झेल रहा है। न तो सरकार इनकी चिंता करती है और न लोग इनके इस महत्वपूर्ण कार्य को महत्व देते हैं। एंबुलेंस चालकों को यह हर वक्त सालता रहता है कि समाज उनकी उपेक्षा करता रहता है जबकि संकट की घड़ी में समाज के हर वर्ग के लोगों की मदद करते हैं।

एंबुलेंस चालकों का कहना है कि प्रशासन से लेकर सरकार तक ने महामारी के समय इनके काम की सराहना की थी। सामाजिक संगठनों ने भी हमें हाथो-हाथ लिया था। वे दिन-रात की परवाह किए कोरोना मरीजों को लाने ले जाने के काम में पूरी तत्परता के साथ लगे थे। इस काम में कई एंबुलेंस चालक कोरोनो संक्रमित भी हो गए। आम दिनों में भी वे मरीजों की सेवा करते रहते हैं। इसके बाद भी सरकार से लेकर आम जनता तक से उपेक्षित हैं। न तो इनहें सरकार की ओर से कोई विशेष सुविधा मिलती है और न ही सड़क पर प्राथमिकता दी जाती है। वे मरीजों को समय पर अस्पताल पहुंचाने की चुनौती से जूझते रहते हैं। हर दिन नई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। उनकी मांग है कि प्रशासन तथा सरकार उचित सम्मान दे तथा एंबुलेंस संचालकों को रोड टैक्स तथा अन्य शुल्कों में छूट दी जाय। एंबुलेंस खरीदने के लिए सब्सिडी मिले। अन्य सुविधाएं भी दी जायें। निजी एबुलेंस चालकों मनोज कुमार कामत, रामदेव राय, रमेश झा, पदम बहादुर थापा, पप्पू झा, प्रदीप कुमार झा, नंदकिशोर पुजहर, हरे राम गुप्ता, प्रहलाद सिंह, पप्पू गुप्ता, मुरारी मंडल, राकेश झा ने बोले देवघर संवाद कार्यक्रम में हिन्दुस्तान से बातचीत के दौराण अपनी समस्याओं तथा मांगों को रखा।

एंबुलेंस चालकों ने कहा कि वे अपने पेशे को सिर्फ जीविकोपार्जन का साधन नहीं बल्कि जनसेवा का कार्य भी मानते हैं। बावजूद इसके सरकार की ओर से उनके लिए कोई विशेष राहत नहीं दी जाती। उल्टा, नए-नए नियमों के तहत उनसे ज्यादा टैक्स वसूला जाता है। एंबुलेंस पर भारी कर लगाया जाता है, जिससे चालक आर्थिक बोझ से दबे रहते हैं। नई नीतियों के तहत टैक्स में बढ़ोतरी की जाती है लेकिन सुविधाओं में कोई सुधार नहीं होता। एंबुलेंस के लिए अलग से किसी तरह की टैक्स छूट या सब्सिडी देने पर विचार नहीं किया जाता। एंबुलेंस चालकों की शिकायत है कि उन्हें अस्पतालों में भी सम्मान नहीं मिलता। अस्पताल प्रशासन न तो उनके लिए पीने के पानी की व्यवस्था करता है और न ही उनके बैठने की कोई जगह निर्धारित की जाती है। मरीजों को छोड़ने के बाद घंटों इंतजार करने की स्थिति में भी उन्हें किसी तरह की सुविधा नहीं दी जाती है। अस्पतालों में एंबुलेंस पार्किंग के लिए कोई स्थान निर्धारित नहीं होता। एंबुलेंस चालकों के अनुसार सड़क पर उनकी सबसे अधिक उपेक्षा होती है। बार-बार हूटर बजाने के बावजूद लोग रास्ता नहीं छोड़ते। इससे मरीजों को अस्पताल पहुंचाने में देरी होती है। ट्रैफिक नियमों के अनुसार एंबुलेंस को प्राथमिकता दी जानी चाहिए लेकिन लोग खुद आगे निकलने की होड़ में लगे रहते हैं। रास्ता न मिलने की वजह देर होती है या यदि मरीज की हालत बिगड़ जाती है या उसकी मौत हो जाती है तो परिजन सारा दोष एंबुलेंस चालक पर लगा देते हैं। कई बार मरीज के परिजन चालक से गाली-गलौज करने लगते हैं। यहां तक कि मारपीट की नौबत आ जाती है। एसे कंडीशन में ड्राईवर को अपनी जान बचाने के लिए भागना पड़ जाता है।

पुलिस और प्रशासन का रवैया भी उदासीन : एंबुलेंस चालकों का कहना है कि सिर्फ आम लोगों से ही नहीं बल्कि पुलिस और प्रशासन से भी परेशानी झेलनी पड़ती है। नियमों के तहत एंबुलेंस को भीड़ में हूटर बजाने की अनुमति दी गई है ताकि उसे रास्ता मिल सके। जब चालक ऐसा करते हैं तो पुलिस उन्हें अनावश्यक रूप से रोक कर फटकार लगाती है। कई मामलों में पुलिस चालकों पर जुर्माना भी लगा देती है या उन्हें परेशान करती है। खाली एंबुलेंस के लिए भी रास्ता मिलना जरूरी होता है क्योंकि मरीज को लेने के लिए उसे तेज गति से गंतव्य तक पहुंचना होता है।

लोग हमारी अहमियत को समझें : एंबुलेंस चालकों का कहना है कि वे जीवन रक्षक सेवा प्रदान करते हैं। बावजूद उन्हें सरकार से लेकर सड़क तक हर जगह अपमान सहना पड़ता है। यदि उनकी समस्याओं का समाधान नहीं किया गया तो इससे न केवल उनकी आजीविका प्रभावित होगी बल्कि मरीजों की जान बचाना भी कठिन हो जायेगा।

सुझाव

1. सरकार को एंबुलेंस चालकों के लिए स्वास्थ्य और जीवन सुरक्षा बीमा के साथ-साथ रिटायरमेंट और पेंशन योजना लागू करनी चाहिए।

2. रोड टैक्स और टोल में छूट - एंबुलेंस को रोड टैक्स और टोल शुल्क से मुक्त किया जाना चाहिए ताकि उनकी आर्थिक परेशानियां कम हो सकें।

3. अस्पतालों में विशेष सुविधाएं - अस्पतालों में एंबुलेंस चालकों के लिए बैठने, खाने-पीने और पार्किंग की उचित व्यवस्था होनी चाहिए।

4. एंबुलेंस को ट्रैफिक में प्राथमिकता मिले - ट्रैफिक पुलिस और आम जनता को जागरूक किया जाए कि वे एंबुलेंस को रास्ता दें।

5. सरकारी मान्यता और सम्मान - एंबुलेंस चालकों को फ्रंटलाइन वर्कर्स का दर्जा दिया जाए और उनके कार्य को समाज में उचित मान्यता और सम्मान मिले।

शिकायतें

1. अस्पताल प्रशासन, डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मी एंबुलेंस चालकों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करते और उन्हें अनदेखा करते हैं।

2. महामारी के दौरान एंबुलेंस चालकों को फ्रंटलाइन वर्कर्स कहा गया, लेकिन बाद में उन्हें कोई सरकारी सुविधा या सम्मान नहीं मिला।

3. ट्रैफिक में जगह बनाने के लिए हूटर बजाने पर पुलिस एंबुलेंस चालकों को रोकती है और कभी-कभी जुर्माना भी लगाती है।

4. एंबुलेंस खरीदने और चलाने पर भारी टैक्स लगाया जाता है, जिससे चालकों पर आर्थिक दबाव बढ़ता है।

5. मरीजों को अस्पताल ले जाने में देरी होने पर परिजन अक्सर एंबुलेंस चालकों से बदसलूकी करते हैं। परिजन कभी-कभी गाली-गलौज भी करते हैं, यहां तक की मारपीट भी हो जाती है

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