बोले धनबाद: स्कूल व शुल्क समितियों का किया जाए गठन
निजी स्कूलों में नए शैक्षणिक सत्र की शुरुआत के साथ अभिभावकों पर री-एडमिशन शुल्क के लिए दबाव बनाया जा रहा है। प्रशासन ने रोक लगाने की बात की है, लेकिन स्कूल प्रबंधन विभिन्न नामों से शुल्क वसूल कर रहा...
निजी स्कूलों में नए शैक्षणिक सत्र का शुरुआत हो चुकी है। बच्चे भी स्कूल जाने लगे हैं। जिले के नामी-गिरामी स्कूलों में भी नए क्लास में बच्चों का री-एडमिशन (नए क्लास में फिर से नामांकन) लिया जा रहा है। री-एडमिशन के लिए अभिभावकों पर दबाव भी बनाया जा रहा है। हालांकि स्कूल री-एडमिशन की जगह किसी दूसरे मद में राशि वसूल रहे हैं लेकिन अभिभावकों को तो भुगतान करना ही पड़ रहा है। प्रशासन तथा सरकार री-एडमिशन के नाम पर शुल्क वसूलने पर रोक लगाने की बात करते हैं। स्कूल प्रबंधन किसी दूसरे तरीके से अभिभावकों से राशि वसूल रहा है। अभिभावकों की मजबूरी है कि अतिरिक्त राशि का भुगतान करना ही पड़ रहा है। अभिभावक परेशान और चिंतित है। अभिभावकों के सामने अजीब स्थिति बन आती है। अभिभावक कहते हैं कि आखिर जाएं तो जाएं कहां।
नए शैक्षिणक सत्र में भी प्राइवेट स्कूलों की ओर से अतिरिक्त राशि ली जा रही है। प्रशासन तथा सरकार ने री-एडमिशन के नाम पर राशि लेने पर रोक लगाई तो स्कूल प्रबंधन दूसरे नाम पर राशि की वसूली कर रहा है। अधिकतर स्कूलों में 10-15 फीसदी तक ट्यूशन फीस भी बढ़ा दी गई है। ट्यूशन फीस के साथ-साथ डेवलप्मेंट चार्ज, एनुअल फीस, बिल्डिंग डेवलपमेंट चार्ज तथा एडवांस के रूप में स्कूल प्रबंधन राशि की वसूली कर रहा है। अभिभावक परेशान हैं लेकिन शिक्षा विभाग तथा जिला प्रशासन इस पर ध्यान नहीं दे रहा है।
प्रशासन इस पर ध्यान दे तथा स्कूलों पर कार्रवाई करे। उक्त बातें अभिभावक संघ के सदस्यों ने आपके अपने अखबार हिन्दुस्तान से कही। हिन्दुस्तान की टीम बोले कि अभिभावकों से उनकी राय जानने गई थी। अभिभावक तथा संघ के लोगों ने कहा कि कई स्कूल प्रबंधन किसी की नहीं सुनता है। अधिकतर निजी स्कूलों की ओर से ट्यूशन फीस बढ़ा दी गई है। इसके साथ-साथ कई तरह के अन्य शुल्क भी लिए जा रहे हैं। स्कूल प्रबंधन इस बारे में अभिभावकों की कुछ भी नहीं सुनता है। झारखंड शिक्षा न्यायाधिकरण अधिनियम 2017 के आलोक में विद्यालय स्तर पर शुल्क समिति और जिलास्तर पर उपायुक्तों की अध्यक्षता में समिति गठित करना अनिवार्य है। धनबाद में अभी तक इस तरह की समिति का गठन नहीं किया गया है। अगर समिति गठित भी है तो वह काम नहीं कर रही है। यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। इस समिति के माध्यम से ही प्राइवेट स्कूल की फीस बढ़ाई जा सकती है। विधानसभा में स्कूलों की मनमानी का मामला उठाया गया। इसके बाद भी कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। शिक्षा विभाग प्राइवेट स्कूलों की मनमानी पर रोक लगाने में विफल है। शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन ने भी री-एडमिशन के नाम पर फीस लेने वाले स्कूलों पर ढाई लाख जुर्माना लगाने की बात कही है। अभिभावकों ने कहा कि स्कूल प्रबंधन री-एडमिशन फीस का नाम बदलकर एनुअल फीस, बिल्डिंग डेवलपमेंट चार्ज या कंस्ट्रक्शंस चार्ज के नाम पर उतना ही पैसा वसूल रहे हैं। अभिभावकों ने कहा कि झारखंड शिक्षा न्यायाधिकरण अधिनियम को सख्ती से लागू करें। स्कूल के इस रवैये से अभिभावक परेशान हैं। इस समस्या से निजात दिलाने के लिए झारखंड अभिभावक महासंघ हमेशा प्रयासरत है। हर हाल में झारखंड शिक्षा न्यायाधिकरण अधिनियम को लागू करायेंगा।
खास दुकानों से किताबें खरीदने का निर्देश : झारखंड अभिभावक महासंघ के अध्यक्ष पप्पू सिंह ने कहा कि कई प्राइवेट स्कूल प्रबंधन चिन्हित बुक स्टोर व स्कूल यूनिफॉर्म हाउस से ही किताब-कॉपी व ड्रेस खरीदने के लिए कहते हैं। गठबंधन बनाकर अभिभावकों को परेशान किया जा रहा है। जिला प्रशासन सबसे पहले इस पर लगाम लगाए। उन्होंने कहा कि नए सत्र में प्राइवेट स्कूल केवल मासिक शैक्षिणक शुल्क ही लें। री-एडमिशन फीस को अन्य नाम यानी एनुअल फीस, बिल्डिंग डेवलमेंट चार्ज, कंस्ट्रक्शन चार्ज या अन्य किसी प्रकार का चार्ज न लें। उन्होंने कहा कि अभिभावकों में आक्रोश है लेकिन खुलकर स्कूल प्रबंधन के खिलाफ बोल नहीं पा रहे हैं। उन्होंने कहा कि अभिभावकों के साथ अभिभावक महासंघ खड़ा है लेकिन कुछ अभिभावक खुलकर हमारा साथ नहीं देते हैं। उन्होंने कहा कि झारखंड के शिक्षा मंत्री के आदेशों का अनुपालन करवाना अब जिला शिक्षा विभाग एवं जिला प्रशासन का दायित्व है।
सुझाव
1. झारखंड शिक्षा न्यायाधीकरण अधिनियम को सख्ती से लागू किया जाए।
2. प्राइवेट स्कूलों में एनसीईआरटी की किताबों की जगह निजी प्रकाशकों की किताबों से पढ़ाई बंद करवायी जाए।
3. प्राइवेट स्कूलों में री-एडमिशन की जगह अन्य मदों में ली जाने वाली राशि पर लगे रोक।
4. बीस-बीस साल पुरानी स्कूल बसों संचालन बंद कराया जाए।
5. हर साल किताबों के एक-दो चैप्टर में किए जाने वाले बदलाव पर रोक लगाई जाए।
शिकायतें
1. झारखंड शिक्षा न्यायाधीकरण अधिनियम को सख्ती से लागू नहीं कराया जा रहा है।
2. अधिकतर निजी स्कूलों में एनसीईआरटी की जगह निजी प्रकाशकों की किताबों से हो रही पढ़ाई।
3. आदेश के बाद भी स्कूल तथा जिला स्तर पर समिति का नहीं किया गया है गठन।
4. प्राइवेट स्कूलों में गर्मी की छुट्टियों के दौरान बस व वैन शुल्क की वसूली की जाती है
5. चिह्नित बुक स्टोर से किताब खरीदने के लिए स्कूल प्रबंधन द्वारा किया जाता है बाध्य।
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