हाईवे की हालत खराब है तो टोल नहीं वसूल सकते, हाईकोर्ट ने दिया आदेश; SC ने लगा दी रोक
- जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की सुप्रीम कोर्ट पीठ ने 15 अप्रैल, 2025 को अंतरिम आदेश जारी करते हुए हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी।

सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी है, जिसमें कहा गया था कि खराब स्थिति में हाईवे पर टोल टैक्स नहीं वसूला जाना चाहिए। इससे पहले हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय राजमार्ग 44 पर लखनपुर और बन्न टोल प्लाजा पर टोल शुल्क में 80 प्रतिशत की कटौती कर दी गई थी। हालांकि अब सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) NH-44 पर लखनपुर और बन्न टोल प्लाजा पर 75 प्रतिशत की दर से टोल वसूल सकता है। इस मामले की अगली सुनवाई 19 मई, 2025 को निर्धारित की गई है।
क्या है पूरा मामला?
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाई कोर्ट ने फरवरी 2025 में एक जनहित याचिका (पीआईएल) के जवाब में आदेश जारी किया था, जिसमें कहा गया था कि जब तक दिल्ली-अमृतसर-कटरा एक्सप्रेसवे का निर्माण पूरी तरह से पूरा नहीं हो जाता, तब तक एनएच-44 के लखनपुर और बन्न टोल प्लाजा पर टोल शुल्क को 80 प्रतिशत तक कम किया जाए। हाई कोर्ट ने तर्क दिया था कि निर्माण कार्य के कारण राजमार्ग की खराब स्थिति के चलते यात्रियों से पूरा टोल वसूलना "अनुचित" है। कोर्ट ने यह भी कहा था कि टोल शुल्क का उद्देश्य यात्रियों को अच्छी और सुचारू सड़क सुविधा प्रदान करना है, और यदि सड़क खराब स्थिति में है, तो टोल वसूलना उचित सेवा के सिद्धांत का उल्लंघन है।
हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कई अन्य निर्देश भी जारी किए थे, जिनमें टोल प्लाजा के बीच न्यूनतम 60 किलोमीटर की दूरी का पालन करने, टोल कर्मचारियों का पुलिस सत्यापन सुनिश्चित करने और वैष्णो देवी तीर्थयात्रियों से अनुचित टोल वसूली पर रोक लगाने जैसे बिंदु शामिल थे। हाई कोर्ट ने यह भी जिक्र किया था कि केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने जून 2024 में एक वैश्विक कार्यशाला में कहा था कि खराब सड़कों पर टोल वसूलने का कोई औचित्य नहीं है।
एनएचएआई की अपील और सुप्रीम कोर्ट का फैसला
एनएचएआई ने हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दायर की थी। एनएचएआई की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क दिया कि हाई कोर्ट ने टोल दरों में हस्तक्षेप करके अपनी अधिकारिता का उल्लंघन किया है, क्योंकि टोल दरें केंद्रीय नियमों द्वारा नियंत्रित होती हैं। मेहता ने यह भी बताया कि एनएच-44 के चार से छह लेन में मरम्मत के दौरान पहले से ही नियम 4(9) के तहत टोल शुल्क में 25 प्रतिशत की कमी की गई थी, जिसके परिणामस्वरूप 75 प्रतिशत की दर पर टोल वसूला जा रहा था।
जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की सुप्रीम कोर्ट पीठ ने 15 अप्रैल, 2025 को अंतरिम आदेश जारी करते हुए हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी। कोर्ट ने कहा, "इस आदेश पर रोक रहेगी।" कोर्ट ने एनएचएआई को मौजूदा नियमों के तहत 75 प्रतिशत की दर पर टोल वसूलने की अनुमति दी और मामले की विस्तृत सुनवाई के लिए 19 मई, 2025 की तारीख तय की।
जनहित याचिका और याचिकाकर्ता का पक्ष
यह मामला सुगंधा साहनी द्वारा दायर एक जनहित याचिका से शुरू हुआ था, जिसमें लखनपुर, थंडी खुयी और बन्न टोल प्लाजा पर टोल टैक्स में छूट की मांग की गई थी। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया था कि एनएच-44 का लखनपुर-उधमपुर खंड 2021 से निर्माणाधीन है, और लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा अभी भी अधूरा है। निर्माण के कारण सड़क पर गड्ढे, डायवर्जन और खराब स्थिति के कारण यात्रियों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है, जिससे वाहनों की टूट-फूट बढ़ रही है और यात्रा समय में 3-4 घंटे की वृद्धि हो रही है।
याचिकाकर्ता ने यह भी दावा किया था कि राष्ट्रीय राजमार्ग शुल्क नियम, 2008 के नियम 3 के तहत, टोल केवल पूरी तरह से निर्मित राजमार्ग पर ही वसूला जा सकता है। इसके अलावा, साहनी ने टोल प्लाजा के बीच 60 किलोमीटर की न्यूनतम दूरी के नियम का उल्लंघन होने का आरोप लगाया, क्योंकि सरोरे और बन्न टोल प्लाजा के बीच की दूरी केवल 47 किलोमीटर है।