Heartwarming Tales of Faith and Sacrifice Maharaj Hridayanand s Discourse at Vaishnodevi Temple माता-पिता के काम न आए पुत्र पर धिक्कार : हृदयानंद, Ghatsila Hindi News - Hindustan
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माता-पिता के काम न आए पुत्र पर धिक्कार : हृदयानंद

गालूडीह में माता वैष्णोदेवी धाम में तृतीय स्थापना दिवस पर कथा के चौथे दिन हृदयानंद गिरि महाराज ने भक्ति और त्याग पर प्रकाश डाला। उन्होंने सत्य और विद्या के महत्व, तथा धर्मराज युधिष्ठिर और हरिश्चंद्र...

Newswrap हिन्दुस्तान, घाटशिलाThu, 17 April 2025 06:20 AM
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माता-पिता के काम न आए पुत्र पर धिक्कार : हृदयानंद

गालूडीह, संवाददाता। गालूडीह उल्दा स्थित माता वैष्णोदेवी धाम में वैष्णोदेवी मंदिर में तृतीय स्थापना दिवस पर कथा के चौथे दिन हृदयानंद गिरि महाराज ने देवव्रत की कथा बताई कि कैसे वह भीष्म पितामह बने। उन्होंने कथा में राम को कपि हनुमान का ऋणी बताया। हरिश्चंद्र के भाग्य में पुत्र ही नहीं थे। वह सत्य का दामन नहीं छोड़ा। उन्होंने कहा कि विद्या के समान मित्र नहीं होता है, जब तक नेत्रों में ज्ञान नहीं विद्या नहीं, तब तक सब अंधे हैं। सत्य के बल पर दो लोग स्वर्ग पर हैं। एक हरिश्चंद्र और दुसरा धर्मराज युधिष्ठिर। राग के समान दुःख कोई नहीं है और त्याग के समान सुख नहीं है। इंसान मजदूरी करके भी भूख से मरता है, जबकि पशु पक्षी कभी भूख से नहीं मरते हैं। इसका कारण भगवान पर विश्वास कमजोर होना है। उन्होंने रागी और त्यागी की दोस्ती का वर्णन किया।

धृतराष्ट्र और पाण्डव की जीवनी का वर्णन करते हुए कहा कि इन्हीं के वंश में आगे चलकर परिक्षित राजा हुए। परिक्षित बहुत धार्मिक राजा थे। उन्होंने पूर्वजों के द्वारा जमा किए सामानों में एक मुकुट धारण कर लिए। उन्होंने मुकुट जैसे सिर पर डाला कलि प्रवेश कर गया। शिकार करने गए प्यास लग गया। ऋषि को आवाज लगाया, ऋषि ध्यान में मग्न थे। उसने ऋषि के गले में मृत सांप डाल दिया। ऋषि के पुत्र ने श्राप दिया कि जो मेरे पिता के गले में सांप डाला, उसके आज सातवें दिन सांप के काटने से मौत हो जाएगी। उन्होंने कहा कि थोड़ा स्थान भगवती के चरण में ले लें, उसका भाग्य बदल जाएगा। देवता वर देता है वरदान देता है, संत आशीर्वाद देते हैं। वरदान झूठा हो जाता है आशीर्वाद कभी झूठा नहीं होता है।

दशरथ के दरबार में विशिष्ट के गोद में बालक रो रहा था तो दशरथ ने पूछा वह क्यों रो रहा है। आपका गुरु कौन बनेगा, आपकी कोई संतान नहीं है। राजा दशरथ सीधे गुरु के पास पहुंचकर अपना दुख सुनाया। उन्होंने कहा कि तुम एक मांगा है हम तुम्हें चार देंगे। उसके लिए पुत्र प्राप्ति यज्ञ होने लगा। ऋषि ने उन्होंने तीन भाग बनाकर तीनों रानियों को दे दिया। तीन रानियों के चार पुत्र हुए सभी बहुत खुश थे।

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