बोले हजारीबाग:निर्बाध बिजली, जमीन मिले तो चमक जाए व्यापार
कोल विद्रोह (1831-32) के दमन के बाद हजारीबाग जिले की स्थापना 1934 में हुई। हजारीबाग को जिला बनाने का उद्देश्य सैन्य छावनी के रूप में विकसित करना था।

हजारीबाग। आजादी के बाद जब बड़े उद्योग लगाने का दौर शुरू हुआ तो वो वृहत हजारीबाग के क्षेत्र में तो जरूर आए पर वर्तमान हजारीबाग के क्षेत्रफल से बाहर है। बोकारो में इस्पात उद्योग लगा, गोमिया में विस्फोटक फैक्टरी लगी,भुरकुंडा में ग्लास फैक्टरी लगी इन सब के बावजूद हजारीबाग की पहचान औद्योगिक नगरी के रूप में नही हो पाया। हजारीबाग में कोयला, अभ्रक, चूनापत्थर और अयस्क प्रचूर मात्रा में पाए जाते हैं। लेकिन इसे संबंधित उद्योग नहीं स्थापित किया गया है। इससे लोगों को रोजगार मिले और पलायन बंद हो। यहां अगर इन अयस्कों से जुड़े उद्योग होते तो इसकी एक अलग पहचान होती। यहां का कोयला, लोहा, अभ्रक अन्य राज्यों या देश में चला जाता है। कुछ साल पहले डोमोटांड और आस पास के क्षेत्र में सीमेंट की फैक्ट्री लगी। परन्तु यहां उत्पादन बहुत कम पैमाने पर होता है जिससे कम लोगों को रोजगार मिल पाता है। इससे हजारीबाग की कोई बड़ी पहचान नहीं बन पाती है। शहर में खपत के लिए बेकरी उद्योग हैं पर यह लघु एवं कुटीर उद्योग के अंतर्गत आता है। यह औद्योगिक केंद्र या संकुल के रूप में नहीं जाना जाता है। जो छोटे मोटे उद्योग भी लगे हैं बिजली की समस्या या अन्य सरकारी बाधाओं को झेल रहे हैं। यहां के कोयला से दूसरे राज्यों को बिजली मिलती है, पर यहां के औद्योगिक कर्मी और आम उपभोक्ता निर्बाध बिजली आपूर्ति की शिकायत करते हैं। इसका असर यहां निवेश करने वाले उद्योगों पर पड़ेगा।
वहीं बड़कागांव क्षेत्र में करीब दो दशक से कोयला का उत्खनन किया जा रहा है। परन्तु विस्थापन और पुनर्वास नीति पर अस्पष्टता के कारण बार इसका असर कोयला खनन पर होता है। अक्सर हड़ताल तालाबंदी से यहां काम ठप हो जाता है। वहीं हजारीबाग शहर एक आवासीय एवं शैक्षणिक शहर के रूप में पहचान बना चुका है। इससे यहां किसी भी तरह का पर्यावरणीय क्षरण होता है तो इसका स्थानीय शहर वासी और प्रबुद्ध वर्ग विरोध करते हैं। इसलिए भी यहां कभी किसी तरह का बडा़ संयत्र नही स्थापित हुआ।
जिला मुख्यालय एंव प्रमंडलीय मुख्यालय होने के कारण यहां कई ट्रेड यूनियन का दफ्तर और कार्यकर्ता रहते हैं। किसी भी तरह के आद्यागिक विवाद होने पर प्रशासन पर अनावश्यक दवाब बनाते रहे है। ट्रेड यूनियन की राजनीति एवं गुटबाजी का असर यह हुआ कि आसपास जो भी उद्योग या खनन क्षेत्र रहे वो समय से पहले बंद हो गए या बंद करा दिया गया। मजदूरों के हित को मजबूत करने की जगह मिल बंद कराने की राजनीति होने से भदानीनगर का ग्लास मिल बंद हो गया। वहीं दो दशक पहले हजारीबाग में न कोई टेक्निकल और न ही व्यवसायिक कोर्स चलता था। इससे यहां के बच्चे रोजगार परक शिक्षा के लिए बाहर जाते थे और बाहर ही नौकरी करते थे। बाकी बच्चे परंपरागत शिक्षा प्राप्त कर सरकारी नौकरी के लिए प्रयासरत रहते थे।तकनीकी और व्यवसायिक कोर्स चलने से उसके अनुसार उद्योग भी खुलने लगते हैं क्योंकि उद्योग के जरूरत के अनुसार मानव संसाधन तैयार किए जाते हैं।
हजारीबाग को उद्योगों का हब बनाने के लिए एक बहुस्तरीय रणनीति का जरूरत है जिसमें सरकार,गैर सरकारी संगठन, नागरिक समूह और जनप्रितिनिधीयों को आपसी सहयोग और समन्वय से कार्य करने की जरूरत है। उदारीकरण के बहुत से ऐसे उद्याेग उभरें जो हजारीबाग की हरियाली प्रभावित किए बिना यहां के लोगों के जीवन स्तर में सुधार ला सकती है।
प्रस्तुति गौतम
अपराध पर अंकुश लगाने से उद्यमियों को िमलेेगी काफी सुविधा
उद्योग लगाने और निवेशकों को आकर्षित करने से पहले आवश्यक है की जिले में विधि व्यवस्था ठीक हो। अपराध और नक्सल गतिविधियों में कमी लाए बिना न तो पूर्व में स्थापित और नए लगने वाले उद्योग का साकारात्मक असर दिख सकता है। कानून का राज्य आम जन के साथ-साथ निवेशकों, उद्यमिमों के लिए भी आवश्यक है। उद्योग बढ़ने पर अपराधिक गतिविधियों पर अंकुश लगाने की जरूरत है।
जिले में उद्योग-धंधे लगे तो पलायन की समस्या हद तक होगी कम
इक्कसवीं सदी हरित अर्थव्यवस्था हरित तकनीक आधारित उद्योगों का है। हजारीबाग को यहां के स्वास्थ्य सुखद मौसम के लिए भी जाना जाता है। यहां के निवासी चाहते हैं की हजारीबाग में धुआं रहित उद्योग लगे न तो कोई न लगे। अगर एक बार शहर धुआं निकलने वाले कारखाने से जुड़ा तो लोगों को जीना मुहाल हो जाएगा। हालांकि उद्योग धंधे लगने से यहां पलायन की समस्या काफी हद तक दूर होगी। साथ ही यहां के व्यवसायियों को भी फायदा होगा।
शिक्षा और शोध नगरी के रूप में है हजारीबाग की पहचान
क्या हर जिला को औद्योगिक जिला के रूप में पहचान बनाना जरूरी है। हजारीबाग को शिक्षा एंव शोध नगरी के रूप में नही जाना जा सकता है। तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला के तर्ज पर वर्तमान झारखंड के शोध शहर के रूप में इसकी पहचान बने ऐसी चाहत यहां के शहरवासी रखते हैं। झारखंड में जो भी नए शोध केन्द्र खुले उसकी स्थापना हजारीबाग में हो तब यह सपना साकार हो सकता है।
उद्यमियों ने कहा - विधि व्यवस्था में हो सुधार
हजारीबाग कभी अभ्रक, कोयला के लिए पूरे देश में जाना जाता था पर केवल इनके उत्पादन के लिए कोई उद्योग यहा नहीं लगाया गया। इस कारण यह आर्थिक रूप से पिछड़ा क्षेत्र बना हुआ है। -सुबोध अग्रवाल
्रहाल के दशक में डोमोटांड और आसपास कुछ छोटे मोटे उद्योग लगे भी हैं पर वो जिला को औद्योगिक नगरी के रूप में पहचान नहीं दिला पाए। कम पैमाने पर उत्पादन होता है और बहुत कम श्रमिक रोजगार पाते हैं। -निखिल गर्ग
जिला उद्योग केंद्र कार्यहीन कार्यालय में बदल चुका है। फाइलों और दस्तावेजों में यहां ज्यादा काम होता है जमीन पर इनका काम कम ही दिखता है। केवल अनुदान के माध्यम से ही विकास नहीं होता है। -राजेश गोयल
परंपरागत शिक्षा से लेकर रोजगार के लिए बड़े शहर लोग चले जाते थे। इसलिए किसी तरह औद्याेगिक विकास यहां नही हो पाया जो शैक्षणिक संस्थान और व्यवसायिक संस्थान को जोड़ पाता। -विकास अग्रवाल
यहां आम घरेलू उपभोक्ताओं को ही 18 घंटे नियमित बिजली की आपूर्ति नहीं हो पाती है। इस दशा में कौन यहां कल कारखाना लगाना चाहेगा। सरकार को इस दिशा ध्यान देने की जरूरत। -जयप्रकाश मोदी
डीवीसी और थर्मल पावर से उत्पादित ज्यादातर बिजली पड़ोसी राज्यों का केंद्रीय पूल में चला जाता है। इससे कोयला उत्पादक राज्य होने के बाद भी बिजली वितरण में समस्या होता है।
-राजेंद्र प्रसाद
हजारीबाग लंबे समय तक नक्सल प्रभावित जिला के रूप में जाना जाता रहा है। इस कारण निवेशक यहां उद्योगों में निवेश करने से कतराते हैं। विधि व्यवस्था की लचर हाल स्थिति को और गंभीर करता है। -मनोज मोदी
ट्रेड यूनियन की राजनीति और हड़ताल धीरे-धीरे मजदूरों के हितों को मजबूत करने के बजाए संयंत्र बंदी में सहायक हुआ। मालिक मिल बंद करने में अपना हित देखे और उसे बंद कर कर दिया। -मनोज कुमार
सरकार बीमार उद्योगों को फिर से ठीक करने की ठोस पहल के बजाए बार बार नीतियों में परिवर्तन करती चली गयी। सरकार नई औद्योगिक और निवेश नीति लाने में विश्वास करती है। -आलोक मोदी
हजारीबाग समेत पूरे झारखंड में किसी भी योजना के लिए जमीन अधिग्रहण करना एक टेढी खीर बनता जा रहा है। उद्योगपति इसमें फंस कर अपना समय और पूंजी बर्बाद नहीं करना चाहते। -अजीत कुमार
प्रदूषण और पर्यावरण मानकों में सरकारी विभागों का असयोगात्मक रवैया अनावश्यक अड़चन पैदा करता है। इस कारण उद्योगपति यहां संयंत्र लगाने से पहले सौ बार सोचते हैं।
-नीरज मोदी
राजनीतिक अस्थिरता और जल जंगल जमीन के नारे पर सरकारों का सृजन यहां बड़े उद्योग लगाने के लिए बाधा का काम करते है। विस्थापन और पुनर्वास के मुद्दे पर विफलता इस आग में घी का काम करते हैं। -हरि प्रसाद
इनकी भी सुनिए
हजारीबाग में आज भी औद्योगिक माहौल की कमी साफ देखी जाती है। यहां निवेशकों के लिए मूलभूत सुविधाएं तक उपलब्ध नहीं हैं।सरकार की ओर से वादे तो होते हैं लेकिन अमल नहीं होता। हजारीबाग को उद्योग के नक्शे पर लाने के लिए ठोस नीति जरूरी है।
– शंभू नाथ अग्रवाल, अध्यक्ष, फेडरेशन चैंबर ऑफ कॉमर्स
हजारीबाग में आज तक कोई बड़ा उद्योग स्थापित नहीं हो पाया है। सरकारी तंत्र की उदासीनता के कारण उद्यमिता को बढ़ावा नहीं मिल पा रहा।सड़क, बिजली, पानी जैसी सुविधाओं का घोर अभाव है। यदि सुविधाएं दी जाएं तो हजारीबाग में उद्योग का अच्छा विकास हो सकता है और क्षेत्र से काफी हद तक पलायन रुकेगा।
– भैया अभिमन्यु, संयोजक, उद्योग प्रकोष्ठ
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