बोले रामगढ़: शहीद के गांव में न सड़क ना पानी, वंशज बदहाल
गोला प्रखंड के संथालियों ने आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। औंराडीह गांव के लोग आज भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। चामू मांझी के नेतृत्व में संथालियों ने 1857 के विद्रोह में अंग्रेजों...
गोला।आजादी की लड़ाई में गोला प्रखंड के संथालियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। संथालियों का नाम लिए बिना आजादी की कहानी पूरी नहीं हो सकती है। आजादी का गवाह औंराडीह देशवल टांड़ स्थित ऐतिहासिक जोड़ा सखुआ का क्षेत्र आज बदहाल है। वहीं 1857 के गदर में अंग्रेजों से लड़े चामू मांझी के वंशज आज विकास के आस में बैठे हुए हैं। औंराडीह गांव के लोग मूलभूत सुविधाओं से पूरी तरह वंचित हैं। हिन्दुस्तान के बोले रामगढ़ कार्यक्रम में औंराडीह गांव के ग्रामीणों ने अपनी बदहाली की समस्या को साझा किया। देश की आजादी में गोला प्रखंड क्षेत्र के संथालियों की बड़ी भूमिका रही है। इसके बाद भी यहां के संथाली आदिवासी आज भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। 1857 का सिपाही विद्रोह हो या 1947 की जंग-ए-आजादी औंराडीह गांव के संथाली आदिवासियों के नेतृत्व में महत्वपूर्ण भूमिका निभाया गया है।
1857 के सिपाही विद्रोह में अंग्रेजों ने इस क्षेत्र में अपना आधिपत्य कायम करना चाहा तो औंराडीह गांव के वीर योद्धा चामू मांझी के नेतृत्व में सैकड़ों संथाली गोलबंद होकर अंग्रेजों का डट कर मुकाबला किया। चामू मांझी के वंशजों ने बताया कि 1857 ई की गदर में देशवल टांड़ से शुरु हुई युद्ध, भैरवी नदी तक खूनी संघर्ष में तब्दील हो गया। जिसमें सैकड़ों अंग्रेज सिपाही मारे गए। चामु मांझी के प्रपौत्र गणेश मुर्मू ने बताया कि अंग्रेज सिपाहियों का कत्लेआम करने से चामू मांझी की तलवार उनके मुठी में ही चिपक गई थी। काफी अर्से के बाद मां दुर्गे की पूजा आराधना के बाद तलवार हाथ से छुटी, तो उसी दिन से यहां मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित कर उसकी पूजा अर्चना की जा रही और तलवार को जोड़ा सखुआ के पास गड्डा खोद कर गाड़ दिया गया। तब से यह जोड़ा सखुआ संथालियों के लिए आस्था का केन्द्र बना हुआ है।
संथाली जाति के लोग आज हर तरह की शूभ कार्य की शुरुआत यहीं से करते हैं। कालांतर में दिशोम गुरु शिबू सारेन ने इसी जगह से झारखंड अलग राज्य और महाजनी प्रथा के खिलाफ आन्दोलन का विगुल फूंका। भारत का स्वतंत्रता संग्राम में केवल संथाली आदिवसियों ने ही भूमिका नहीं निभाई। बल्कि समाज के हर वर्ग, जाति के लोगों ने इसमें योगदान दिया। लेकिन चामु मांझी के नृतृत्व में संथाली समाज ने अपने सीमित संसाधनों के बावजूद ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध अपराजेय प्रतिरोध का इतिहास रचा है। जंगलों पहाड़ों में निवास करने वाले संथाली आदिवासी समाज अपनी वीरता, अदम्य साहस व स्वतंत्रता प्रेम के लिए प्रसिद्ध है। यहां का संथाल समाज अपनी स्वतंत्रता की रक्षा के लिए हर संभव प्रयास करते थे। प्रकृति की गोद रहने वाले ये वीर योद्धा बाहरी आक्रमणकारियों के सामने झुके नहीं, बल्कि निरंतर संघर्षरत रहे। जब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में अपनी जड़ें जमानी शुरू की उस समय भी यहां का संथाल समाज उनके लिए बहुत बड़ी चुनौती बनकर सामने आया। वे लोग न केवल अंग्रेजी प्रशासन के विरुद्ध खड़े हुए, बल्कि उन्होंने अपने पारम्परिक शस्त्रों से औपनिवेशिक शासन को चुनौती भी दी। ब्रिटिश शासन ने गोला के ग्रामीण क्षेत्रों पर नियंत्रण स्थापित करने का प्रयास किया तो उन्हें संथालियों के कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ा।
ये लोग ब्रिटिश शासन को अपने अस्तित्व के लिए सबसे बड़ा खतरा मानते थे। संथालियों ने ब्रिटिश कानून को कभी स्वीकार नहीं किया। परंपरागत शासन व्यवस्था के अनुरूप जीवन जीने का संकल्प लिया। ब्रिटिश अधिकारियों ने संथाल समाज को नियंत्रण में लेने के लिए कई प्रयास किया। लेकिन गोरिल्ला युद्ध नीति के सामने बार-बार असफल हुए। संथाली योद्धा पहाड़ों और जंगलों का लाभ उठा कर अचानक आक्रमण करते और फिर सुरक्षित स्थानों पर चले जाते थे। यह रणनीति अंग्रेजों के लिए एक गंभीर समस्या बन गई थी। संथाल समाज में अनेकों वीर योद्धा हुए, जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका निभाई।
चामू मांझी के वंशजों की आर्थिक स्थिति दयनीय
स्वतंत्रता सेनानी चामु मांझी के वंशज औरांडीह गांव के मलकठवा टोला में आबाद हैं। टोला तक एक पीसीसी सड़क गई है, जो जर्जर हालत में है। यहां के लोगों के लिए आय का कोई स्रोत नहीं है। सभी लोग कृषि कार्य और मजदूरी कर जीविकोपार्जन करते हैं। यहां के बच्चे फटे पुराने कपड़ों में दिन भर इधर उधर खेलते नजर आ जाएंगे। टोले में एक मात्र सोलर जलमिनार है, जिसे लोग पेयजल के साथ अपनी सभी तरह की पानी की जरुरत पूरी करते हैं। टोला में आंगनबाड़ी केंद्र नहीं रहने से बच्चे प्रारंभिक शिक्षा से वंचित हैं।
अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा जोड़ा सखुआ
पिछले लगभग पौन दो सौ वर्षों से शहीद स्मारक के रुप में प्रसिद्ध विशाल जोड़ा सखुआ का वृक्ष आज बदहाली के आंसू बहा रहा है। विकास के नाम पर यहां कुछ भी नहीं है। वृक्ष के चारों ओर गंदगी का अंबार लगा हुआ है। वहीं हाल के दिनों में बनवाया गया चबुतरा भी बदहाल हो चूका है। हालांकि संथाली आदिवासियों का हर प्रमुख कार्य यहां से शुरु किया जाता है। कार्यक्रम के अवसर पर ही यहां की साफ सफाई होती है। इस ऐतिहासीक स्थल पर चहारदीवारी नहीं होने के कारण स्थानीय लोग कबाड़ चीजें यहां पर फेक देते हैं। स्थानीय लोग ने इस जगह की घेराबंदी और सुंदरीकरण की मांग करते हैं।
विकास की बाट जोह रहा टोला
मलकठवा टोले में न रोजगार के साधन हैं और न ही बिजली की व्यवस्था ठीक है। पानी की किल्लत टोला में हमेशा बनी रहती है। यही नहीं टोला में न कोई आंगनबाड़ी केंद्र है और न ही स्वास्थ्य सुविधा। इस जगह से झारखंड अलग राज्य आन्दोलन के अगुआ पूर्व मुख्यमंत्री दिशोम गुरु शिबू सोरेन ने महाजनी प्रथा व झारखंड अलग राज्य का आन्दोलन यहीं से शुरु की थी। यहां पर राज्य के राज्यपाल से लेकर राज्य के कई बड़े बड़े मंत्रियों का आगमन हो चुका है। सबों ने लोगों को विकास का आश्वासन दिया। लेकिन आज तक कुछ नहीं हुआ।
युद्धकौशल में पिछड़ते जा रहे हैं संथाली
प्राचीन काल से ही संथाली आदिवासियों का युद्ध कौशल संस्कृतिक विरासत के रुप में समृद्ध रहा है। संथाली लोक कथाएं, गीत, नृत्य स्वतंत्रता संग्राम की गाथाओं से भरे हुए हैं। इन गीतों में वीरता, संघर्ष और स्वतंत्रता की भावना परिलक्षित होती है। लेकिन वर्तमान समय में बेरोजगारी व आर्थिक तंगी से इनके हौसले पर भी असर पड़ रहा है। बेरोजगारी के कारण यहां के अधिकतर युवक रोजगार की तलाश में पलायन करने के लिए विवश हो गए हैं। वहीं बाकि लोग परिजनों का भरण पोषण के लिए मजदूरी करते हैं।
सरकारी दफ्तरों का चक्कर लगाते-लगाते हम थक चुके हैं। लेकिन हमारी दुर्दशा को देखने व सुनने वाला कोई नहीं है। - गणेश मुर्मू
राज्य की सरकार हमे जैसे भूल गई है। सरकार हमें रोजगार मुहैया कराए, ताकि हम सब अपना जीवन सम्मान के साथ जी सकें।- मालती कुमारी
कई आवेदन दिए, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। कभी कभी ऐसा महसुस होता है कि देश व राज्य में हमारा कोई योग्यदान नहीं है।- ऋतु देवी
सरकार से रोजगार की उम्मीद है, ताकि अपने परिवार का भरण पोषण कर सकूं। मजदूरी कर के परिवार का पेट भरना मुश्किल है। - कंदनी देवी
टोला में आंगनबाड़ी केंद्र भी नहीं है। जीससे बच्चों को अच्छी शिक्षा मिल सके। हम अपने बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देना चाहते हैं।- बसंती देवी
बच्चों को बेहतर कल देने के लिए अच्छे से पढ़ाना चाहते हैं। शिक्षा देने में असमर्थ हैं। जिससे हमारे बच्चों का भविष्य अंधकार में है।- शिवानी देवी
हम दिव्यांगों की मदद करना चाहते हैं, लेकिन अधिकारियों से निराशा मिलती है। हम बच्चों को शिक्षित करने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं।- शांति देवी
सरकार को रोजगार परक प्रशिक्षण देकर यहां के युवकों को हुनरमंद बनाना चाहिए, ताकि हम सब सम्मानजनक जीवन जी सकें।- नीता देवी
चिकित्सा सुविधा उपलब्ध नहीं है। किसी के बिमार पड़ने पर उसे करीब 15 किमी दूर सीएचसी गोला ले जाना पड़ा है। - धनु मुर्मू
हमें सरकार व प्रशासन के सहयोग की बहुत अधिक जरुरत है। सरकार को हमारी दुर्दशा पर ध्यान देना चाहिए। - कामेश्वर मुर्मू
हम सब मेहनत कर के आगे बढ़ना चाहते हैं, लेकिन सुदूर क्षेत्र होने के कारण यहां कोई साधन नहीं है। -गौरी देवी
इन क्षेत्र मेंं अक्सर हाथियों को उत्पात होता है। गांव में किसी तरह की आपातकालीन सुविधा भी उपलब्ध नहीं है। - लालदेव मुर्मू
आज जब हम स्वतंत्र भारत में सांस ले रहे हैं तो हमें संथालियों के बलिदान को याद रखना चाहिए और उनके संघर्ष से प्रेरणा लेनी चाहिए। संथाली आदिवासी समाज की यह गौरवशाली इतिहास समाज की धरोहर है। आने वाली पीढ़ियों के लिए एक अमर प्रेरणा भी है। आज उनकी संघर्ष गाथाएं स्वर्ण अक्षरों में लिखी जानी चाहिए।
-जीतलाल टुडू,मुखिया,उपरबरगा पंचायत
संथाली आदिवासियों को इतिहासकारों ने पृष्ठों में विशेष जगह नहीं दी। इतिहासकार इन संघर्षों को विद्रोह की संज्ञा दिए। लेकिन यह स्वाधीनता संग्राम था। आजादी में अहम भूमिका निभाने वाले चामु मांझी के वंशजों को अवसर मिलना चाहिए। इनकी समस्या को सरकार तक पहुंचाएंगे।
-रेखा सोरेन, जिला परिषद सदस्य
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