The Supreme Court said justice withheld is worse ask jharkhand HC to submit report 3 साल से फैसला नहीं सुनाने पर SC की कड़ी टिप्पणी, कहा- न्याय न मिलना बदतर; HC से रिपोर्ट तलब, Jharkhand Hindi News - Hindustan
Hindi Newsझारखंड न्यूज़The Supreme Court said justice withheld is worse ask jharkhand HC to submit report

3 साल से फैसला नहीं सुनाने पर SC की कड़ी टिप्पणी, कहा- न्याय न मिलना बदतर; HC से रिपोर्ट तलब

सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि न्याय में देरी न्याय से वंचित करने के समान है, वहीं न्याय न मिलना उससे भी बदतर है। कोर्ट 4 कैदियों की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिनके अपील पर झारखंड हाई कोर्ट ने करीब 3 साल से फैसला सुरक्षित रखा है, लेकिन उन्हें सुनाया नहीं गया।

Subodh Kumar Mishra हिन्दुस्तान टाइम्स, नई दिल्लीWed, 23 April 2025 08:07 PM
share Share
Follow Us on
3 साल से फैसला नहीं सुनाने पर SC की कड़ी टिप्पणी, कहा- न्याय न मिलना बदतर; HC से रिपोर्ट तलब

सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि न्याय में देरी न्याय से वंचित करने के समान है, वहीं न्याय न मिलना उससे भी बदतर है। कोर्ट 4 कैदियों की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिनके अपील पर झारखंड हाई कोर्ट ने करीब 3 साल से फैसला सुरक्षित रखा है, लेकिन उन्हें सुनाया नहीं गया। सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड हाई कोर्ट से सुरक्षित रखे गए फैसलों की संख्या पर रिपोर्ट मांगा है।

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को झारखंड हाई कोर्ट से दो महीने से ज्यादा समय तक सुरक्षित रखे गए फैसलों की संख्या पर रिपोर्ट मांगा है। यह निर्देश तब आया है जब झारखंड जेल में बंद आजीवन कारावास की सजा पाए 4 कैदियों ने शीर्ष अदालत को बताया कि हाई कोर्ट ने 2022 से उनकी अपील पर फैसला सुरक्षित रखा हुआ है। बिरसा मुंडा जेल में बंद चार दोषियों ने एक याचिका दायर कर सुप्रीम कोर्ट से उनके जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों की रक्षा करने का आग्रह किया है। उन्हें उनकी अपीलों पर फैसला सुनाने के लिए तीन साल का समय बहुत लंबा लग रहा है।

सजा के लगभग 11 से 16 साल काट चुके हैं

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने उनकी याचिका पर झारखंड सरकार और झारखंड हाई कोर्ट को नोटिस जारी कर याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया। एक संक्षिप्त आदेश पारित करते हुए पीठ ने झारखंड हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को एक सीलबंद लिफाफे में स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया। इसमें उन सभी मामलों का विवरण देना होगा, जिनमें दो महीने से अधिक समय से फैसले सुरक्षित रखे गए हैं। कोर्ट ने चार दोषियों द्वारा जमानत की मांग करने वाली एक याचिका पर भी नोटिस जारी किया, क्योंकि वे अपनी सजा के लगभग 11 से 16 साल काट चुके हैं।

दोषियों पिला पाहन, सोमा बदंग, सत्यनार और धर्मेश उरांव की ओर से पेश वकील फौजिया शकील ने कहा कि वे अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग समुदाय से हैं। वे अपनी अपील के फैसले से अवगत हुए बिना छूट के लिए आवेदन करने की स्थिति में नहीं हैं। उरांव के मामले में फैसला तीन साल से अधिक समय पहले सुरक्षित रखा गया था, जबकि अन्य मामलों में लगभग 2 साल और 11 महीने की देरी हुई थी।

समस्या केवल इन चार कैदियों तक ही सीमित नहीं

याचिका में बताया गया है कि समस्या केवल इन चार कैदियों तक ही सीमित नहीं है। इसमें 10 अन्य आजीवन कारावास की सजा पाए कैदियों की सूची भी संलग्न की गई है, जो लगभग 3 साल से हाई कोर्ट में अपनी अपील पर निर्णय का इंतजार कर रहे हैं। दोषियों ने झारखंड हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश, राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण, झारखंड राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण जैसी कानूनी संस्थाओं और यहां तक ​​कि जेल के दौरे के दौरान राज्य के अधिकारियों और विधि अधिकारियों के समक्ष भी अपनी शिकायतें रखीं, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।

याचिका में सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का हवाला

याचिका में सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का हवाला दिया गया है, जिसमें इस तरह की प्रथा की निंदा की गई है। फैसले सुरक्षित रखे जाने के तीन महीने के भीतर सुनाए जाने पर जोर दिया गया है और किसी भी स्थिति में छह महीने से अधिक समय नहीं लिया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान से दायर एक याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा था कि आजीवन कारावास की सजा काट रहे ऐसे अपराधी को जमानत दी जानी चाहिए, जिसने 8 साल की वास्तविक सजा काट ली हो।

अनी राय बनाम बिहार राज्य (2001) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यह बार-बार माना गया है कि न्याय न केवल किया जाना चाहिए बल्कि ऐसा दिखना भी चाहिए कि न्याय किया गया है। इसी तरह, जहां न्याय में देरी न्याय से वंचित करने के समान है, वहीं न्याय न मिलना उससे भी बदतर है। इस निर्णय में आगे यह भी कहा गया कि निर्णय में वह तारीखें भी होनी चाहिए जब फैसला सुरक्षित रखा गया और जब सुनाया गया था। निर्देशों में आगे उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों को यह सुनिश्चित करने को कहा गया कि लंबित फैसले छह हफ्ते के अंदर सुनाए जाएं।