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बढ़ती उम्र के साथ जरूरी है आपका अपना फिटनेस मंत्र, देखें डॉक्टर की सलाह

40 पहुंचते-पहुंचते शरीर तमाम बदलावों और सेहत से जुड़ी परेशानियों की चपेट में आना शुरू हो जाता है। आपको इन परेशानियों का सामना ना करना पड़े इसके लिए जरूरी है, फिटनेस पर ध्यान। कैसे करें इस मामले में शुरुआत, बता रही हैं दिव्यानी त्रिपाठी

Kajal Sharma हिन्दुस्तानFri, 25 April 2025 03:58 PM
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बढ़ती उम्र के साथ जरूरी है आपका अपना फिटनेस मंत्र, देखें डॉक्टर की सलाह

ऊह, आह, आउच... यह अल्फाज 40 की दहलीज तक पहुंचते-पहुंचते आम हो जाते हैं। खासतौर पर महिलाओं के लिए। उनकी चिंता कभी लगातार बढ़ते हुए वजन की होती है, तो कभी जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों की। अब सवाल उठता है कि भला ऐसा होता क्यों है? तो इस सवाल का जवाब देते हुए अंतरराष्ट्रीय योग गुरु डॉ. सुनील सिंह कहते हैं कि यह वह अवस्था होती है, जब महिलाएं प्री-मेनोपॉज या मेनोपॉज की स्थिति में होती हैं। मेनोपॉज के कारण शरीर तमाम हार्मोनल बदलावों के दौर से गुजर रहा होता है। साथ ही मेटाबॉलिज्म धीमा पड़ने लगता है और उसके कारण वजन बढ़ने लगता है। जिम्मेदारियों के चलते संतुलित खानपान और व्यायाम भी उनकी दिनचर्या से दूर हो जाता है। बढ़ती उम्र में तमाम जरूरी पोषक तत्व जैसे कैल्शियम, आयरन, विटामिन-डी वगैरह की कमी भी आने लग जाती है। कई बार ऐसी स्थिति में अनुवांशिक शरीरिक व्याधियां भी हमें सताने लग जाती हैं। लिहाजा, बेहतर होगा कि आप समय रहते अपनी फिटनेस और दिनचर्या पर काम करना शुरू कर दें।

हाल ही में अभिनेत्री और एंकर मिनी माथुर ने भी सोशल मीडिया पर वीडियो पोस्ट करके अपनी फिटनेस के राज खोले हैं। कसरत करती नजर आ रही मिनी ने खुद के लिए वक्त निकालने और अपने स्वास्थ्य को रीसेट करने की बात कही है। क्या आप भी खुद को रीसेट करने का मन बना रही हैं? जवाब अगर हां, है तो शुरुआत आज से ही करें। यकीन मानिए जिंदगी में कुछ जरूरी बदलाव आपको सेहत का वरदान दे जाएंगे।

योग अभ्यास है जरूरी

बढ़ती उम्र के साथ हड्डियों को मजबूत बनाए रखने वाले एस्ट्रोजन हार्मोन की मात्रा घटने लगती है,जो कि एक महिला को मेनोपॉज की तरफ ले जाना शुरू करता है। एक शोध के मुताबिक 30 की उम्र के बाद मांसपेशियों में हर दशक में लगभग तीन से आठ फीसदी तक की कमी आती है। मांसपेशियों की मजबूती को बरकरार रखने के लिए इस उम्र में खानपान को दुरुस्त रखने के साथ ही स्ट्रेंथ ट्रेनिंग भी जरूरी है। डॉ. सुनील की मानें तो ऐसे में आपको संपूर्ण योगाभ्यास की आवश्यकता है। जिसमें सबसे पहले नंबर पर आता है, सूर्य नमस्कार। इसकी शुरुआत दो चक्र से करके आप 15-16 चक्र तक जा सकती हैं। ध्यान रखिए कि इसे समय के हिसाब से बढ़ाएं। आप आगे झुकने वाले आसन जैसे पश्चिमोत्तासन, पादहस्तासन आदि का भी अभ्यास कर सकती हैं। आपको ध्यान देना है कि जो भी आसन आप करें, उनमें लंबे समय तक रुकना बेहतर होगा।

जैसे आप सांस छोड़ते हुए आगे झुक रही हैं तो तीस सेकेंड तक उसी मुद्रा में रुकी रहें। इसके बाद बारी आती है, पीछे झुकने वाले आसन की। जब आप आगे झुकने वाले आसन करती हैं तो पीछे झुकने वाले आसन करना भी जरूरी हो जाता है ताकि संतुलन बना रहे। इसके लिए आप भुजंग आसन, ऊष्ठ आसन आदि कर सकती हैं। इसके बाद बारी आती है प्राणायाम की। इसमें आप कपालभाति कर सकती हैं। इसकी शुरुआत पांच मिनट से कीजिए। यह आपके पेट पर जमा अतिरिक्त वसा को कम करने में मददगार होगा। अनुलोम-विलोम आपके वात-पित्त और कफ दोष को ठीक कर देगा। साथ ही तनाव में भी कमी आएगी। आप भारोत्तोलन, स्क्वाट्स और पुश-अप जैसी बॉडी ट्रेनिंग भी कर सकती हैं। इनसे आपका मेटाबॉलिज्म दोबारा दुरुस्त हो जाएगा। कार्डियो वर्कआउट के लिए आप हर सप्ताह कम से 150 मिनट तैराकी, टहलना या फिर डांस आदि करें।

खुराक रखें संतुलित

खुराक की शुरुआत हाइड्रेशन की बात से करते हैं। पानी को हल्के में लेने की गलती बिल्कुल भी न करें। दिन भर में आठ से दस गिलास तरल पदार्थ, जिस भी तरह आपके लिए आसान हो उसे लेना न भूलें। पर्याप्त मात्रा में तरल पदार्थ के सेवन से मेनोपॉज से जुड़ी सूजन और कब्ज की समस्या में आराम मिलेगा। साथ ही यह आपके भूख को भी नियंत्रित करेगा। खाने में संतुलन के तत्व की अनदेखी न करें। इस बाबत आहार सलाहकार डॉ. भारती दीक्षित कहती हैं कि आपको अपनी खुराक में कैलोरी कंट्रोल करने की आवश्यकता है। आपको सब्जियां खानी हैं, यह तो आप जानती हैं। पर यहां इस बात का ध्यान रखना है कि ऐसी सब्जियों का सेवन करना है, जिसमें स्टार्च कम मात्रा में हो जैसे पालक, बंदगोभी, खीरा आदि। सेहतमंद तरीके से वजन घटाने के लिए खट्टे फलों का सेवन करें। अधिक तेल वाले ड्राई फ्रूट जैसे बादाम, काजू आदि से परहेज करना भी बेहतर होगा। कैल्शियम की अधिकता वाला खाना आपकी हड्डियों की सेहत को सुधारेगा। इसके लिए आप मखाना और टोन्ड डेयरी प्रोडक्ट्स का सेवन करें। बकौल डॉ. भारती, बेहतर होगा कि आपकी खुराक कैल्शियम से भरपूर हो। प्रोटीन आपके लिए जरूरी है। पर, आपको यहां इस बात का भी ख्याल रखना है कि इस उम्र में आपका मेटाबॉलिज्म धीमा हो चुका है। लिहाजा, बेहतर होगा कि आप लीन प्रोटीन को तरजीह दें। जैसे मछली, चिकन, फलियां, नट्स, बीज कम वसा वाले डेयरी उत्पाद आदि। अंडा खा रही हैं, तो उसका सफेद भाग ही खाएं। ओमेगा थ्री और सिक्स भी आपके लिए जरूरी है। इसके लिए आप अलसी, सोयाबीन और अवाकाडो आदि का सेवन कर सकती हैं। पर्याप्त मात्रा में घुलनशील फाइबर का सेवन करें। यह न सिर्फ आपके पाचन को दुरुस्त रखने में मददगार होगा बल्कि आपके पेट को भी लंबे समय तक भरा रखेगा। शक्कर, वसा युक्त चीजों से तौबा कर लेना ही आपके लिए बेहतर होगा। अमेरिकन जर्नल ऑफ क्लीनिकल न्यूट्रिशन में प्रकाशित एक अध्ययन बताता है कि उच्च वसा और अधिक चीनी के सेवन से मेनोपॉज के लक्षणों जैसे कि हॉट फ्लश और रात में पसीना आने की परेशानी बढ़ जाती है।

वह करें जो मन को भाए

जी, बिल्कुल सही पढ़ा आपने। स्वस्थ रहने के लिए अपने शौक को समय देना भी जरूरी है। वो इसलिए कि बढ़ती उम्र में महिलाओं में तनाव की समस्या में भी इजाफा हो जाता है। नतीजा, मानसिक और शारीरिक विकार। आंकड़े भी इस बात की तसदीक करते हैं। उनकी मानें तो 35 से 54 वर्ष कि महिलाओं में चिंता और तनाव की समस्या पुरुषों की तुलना में दोगुनी दर्ज की जा रही है। और जब आप अपने शौक या मन के कामों में अपने समय को निवेश करती हैं तो आपके शरीर में गुड हार्मोन का स्त्राव होता है। ये वही हार्मोन होते हैं जो व्यायाम करने पर स्त्रावित होते हैं। यह गुड हार्मोन आपके तनाव के स्तर को कम करने में मददगार साबित होता है। आप अपने दिमाग को सक्रिय रखने के लिए भी कुछ प्रयोग कर सकती हैं। आप कुछ नया सीख सकती है जैसे कोई भाषा या पेंटिंग आदि।

नींद लें भरपूर

आठ घंटे की नींद हमारे लिए बहुत जरूरी है, यह तो हम जानते ही हैं। पर, उम्र के इस पड़ाव में महिलाओं की नींद में भी कमी आने लग जाती है। कोशिश कीजिए कि जल्दी सोने की आदत बने। नींद में कमी तनाव और अनिंद्रा का कारण बनेगी। डॉ. सुनील कहते हैं कि अनिंद्रा कार्टिसोल के स्त्राव को बढ़ाती है, जिसका असर इंसुलिन पर पड़ता है और पेट के आसपास चर्बी इकट्ठा होने लगती है। साथ ही डायबिटीज होने का भी जोखिम बढ़ सकता है।

समय-समय पर करवाएं जांच

अरे कुछ नहीं है, बेवजह जांच क्यों करवानी? यह रवैया 40 के बाद छोड़ देना ही बेहतर है। यह वह वक्त है कि आपको अपने शरीर के लक्षणों को करीब से भांपने की आवश्यकता है। बेहतर होगा कि साल में कम से कम एक बार ब्लड ग्लूकोज, ईसीजी, यूरिन टेस्ट, सीबीसी, आयोडीन सरीखी जांच करवाती रहें ताकि हो सकने वाली समस्या को बढ़ने से पहले ही रोका जा सके।

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