पूर्व चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ को नहीं मिल पा रहा अच्छा घर, सरकारी आवास में बचे सिर्फ 20 दिन
- पूर्व चीफ जस्टिस ने दिव्यांगों के अधिकारों से जुड़े एक कार्य़क्रम में कहा, 'हमारी दो प्यारी बेटियां हैं। उनकी जरूरते हैं, लेकिन उनके अनुसार कोई घर नहीं मिल पा रहा। हर पब्लिक स्पेस एक जैसा ही है। लंबे समय से हमारा समाज दिव्यांगों को नजरअंदाज करता रहा है और यह एक तरह से उत्पीड़न की हद तक रहा है।'

देश के पूर्व मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ का कहना है कि उन्हें राजधानी दिल्ली में कोई अच्छा घर नहीं मिल पा रहा है। उन्हें ऐसे घर की तलाश है, जो उनकी दिव्यांग बेटियों प्रियंका और माही के हिसाब से अनुकूल हों। डीवाई चंद्रचूड़ रिटायर हो चुके हैं और उन्हें चीफ जस्टिस के तौर पर मिले सरकारी आवास को 30 अप्रैल तक खाली करना है, लेकिन अब तक उन्हें कोई अच्छा वैकल्पिक आवास नहीं मिला है। पूर्व चीफ जस्टिस ने दिव्यांगों के अधिकारों से जुड़े एक कार्य़क्रम में कहा, 'हमारी दो प्यारी बेटियां हैं। उनकी जरूरते हैं, लेकिन उनके अनुसार कोई घर नहीं मिल पा रहा। हर पब्लिक स्पेस एक जैसा ही है। लंबे समय से हमारा समाज दिव्यांगों को नजरअंदाज करता रहा है और यह एक तरह से उत्पीड़न की हद तक रहा है।'
उन्होंने 'दिव्यांगों के अधिकार और उसके आगे' नाम से आयोजित कार्यक्रम में कहा कि मेरी और पत्नी कल्पना दास की दो बेटियां हैं- प्रियंका और माही। दोनों बेटियां nemaline myopathy नाम के सिंड्रोम से पीड़ित हैं। इस बीमारी में मसल्स का अच्छे से विकास नहीं हो पाता और इससे शरीर काफी कमजोर रहता है। यह एक जेनेटिक बीमारी है, जो अकसर जन्मजात होती है। इस दौरान जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने जज के तौर पर अपने कार्यकाल को लेकर भी बात की। उन्होंने कहा कि एक जज के तौर पर आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते कि आपके फैसले का क्या असर होगा। आपके पास 10 कारण होते हैं कि किसी को राहत देने से इनकार कर दें। लेकिन हमें ऐसा करने के लिए सिर्फ एक अच्छे कारण की जरूरत होती है।
चंद्रचूड़ ने दोनों बेटियों को गोद लेने की कहानी का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि उस दौरान में इलाहाबाद हाई कोर्ट में काम कर रहा था, जब उन्हें हमने लिया। चंद्रचूड़ ने कहा, 'शुरुआती दिनों में तो वे हड्डी और मांस भर थीं। उनकी मां ने यह समझते हुए उन्हें इग्नोर किया था कि शायद उन्हें बचाना मुश्किल होगा।' उन्होंने कहा कि हमने बेटियों को मेडिकल सहायता प्रदान की। यहां तक कि बड़ी बेटी को यह चिंता थी कि उसकी छोटी बहन का भी अच्छा इलाज हो। वह उसकी सेहत के लिए चिंतित रहा करती थी। उन्होंने कहा कि इन बेटियों ने उनके और पूरे परिवार के जीवन के प्रति दृष्टिकोण को बदला है। चंद्रचूड़ ने कहा कि इन बेटियों ने हमें पर्यावरण और पशुओं के प्रति भी संवेदनशीलता से विचार करने की सीख दी।
उन्होंने बताया कि कैसे उन्हें मिट्टी कैफे स्थापित करने की प्रेरणा मिली। यह मिट्टी कैफे दिव्यांग जनों के लिए एक अच्छे वर्कप्लेस को तैयार करने के मकसद से बनाया गया है। चंद्रचूड़ ने कहा कि हम यह बताना चाहते हैं कि दिव्यांगता कोई बाधा नहीं है। वे भी समाज में अच्छे से रह सकते हैं और सर्विस रिसीवर की बजाय सर्विस प्रोवाइडर भी हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि मेरे इस प्रयोग का असर हुआ कि राष्ट्रपति ने भी प्रेसिडेंट हाउस में मिट्टी कैफे की शुरुआत की। उन्होंने कहा कि मैंने हमेशा जोर दिया कि दिव्यांगों से जुड़े मामलों की अदालतों में तेजी से सुनवाई की जाए। उन्होंने कहा कि इसके लिए बस यह जरूरी होता है कि बेंच थोड़ा संवेदनशीलता से विचार करे।