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जजों के अपमान के आरोपों पर हिमंत ने कांग्रेस को दिखाया आईना, निशिकांत दुबे का शायराना जवाब

  • Himanta on Nishikant Dubey case: असम के मुख्यमंत्री ने कांग्रेस द्वारा भाजपा पर जजों के अपमान के लगाए जा रहे आरोपों का जवाब दिया है। सरमा ने कांग्रेस को आईना दिखाते हुए उन जजों की लिस्ट साझा की जिनका कांग्रेस पार्टी और उनके नेताओं ने सार्वजनिक तौर पर अपमान किया था।

Upendra Thapak लाइव हिन्दुस्तानMon, 21 April 2025 12:05 PM
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जजों के अपमान के आरोपों पर हिमंत ने कांग्रेस को दिखाया आईना, निशिकांत दुबे का शायराना जवाब

भारतीय जनता पार्टी के सांसद निशिकांत दुबे द्वारा सुप्रीम कोर्ट पर की गई टिप्पणी के बाद पार्टी बैकफुट पर खड़ी दिखाई दे रही थी। अब कांग्रेस के आरोपों के बाद पार्टी के वरिष्ठ नेता और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कांग्रेस के उन नेताओं की सूची जारी की है, जिन्होंने सार्वजनिक रूप से जजों की आलोचना की है। सरमा द्वारा लिखे गए इस पोस्ट पर भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने भी शायराना अंदाज में जवाब दिया है।

असम के मुख्यमंत्री ने लिखा कि भाजपा ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता और गरिमा को भारत के लोकतंत्र की आधारशिला के रूप में हमेशा सम्मान दिया है। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा की टिप्पणी का जिक्र करते हुए सरमा ने लिखा कि दुबे और सांसद दिनेश शर्मा की टिप्पणी पार्टी के रुख को प्रदर्शित नहीं करती हैं। पार्टी अध्यक्ष ने इस पर अपना बयान जारी कर पार्टी की स्थिति को साफ कर दिया है। सरमा ने कहा कि हमारी पार्टी न्यायपालिका के सम्मान की अपनी स्थिति पर हमेशा कायम है। इस मामले में हमारे ऊपर जो आरोप लगा रहे हैं उस कांग्रेस पार्टी को न्यायपालिका के साथ अपने ऐतिहासिक संबंधों की जांच कर लेना चाहिए।

असम के मुख्यमंत्री ने कांग्रेस के नेताओं द्वारा न्यायाधीशों की आलोचना करने वाली खबरों की कटिंग को साझा करते हुए कहा कि कांग्रेस ने कई मौकों पर न्यायपालिका के सम्मानित सदस्यों की सार्वजनिक रूप से आलोचना की है। सरमा ने उदाहरण देते हुए कहा कि भारत के पूर्व न्यायाधीश दीपक मिश्रा पर कांग्रेस पार्टी और मुख्य विपक्षी दलों ने बिना किसी ठोस सबूत के कदाचार का आरोप लगाया था। इतना ही नहीं उन्हें महाभियोग प्रस्ताव का सामना तक करना पड़ा।

इसके बाद उन्होंने पूर्व मुख्य न्यायाधीश और सांसद रंजन गोगोई के मामले की बात करते हुए ककहा कि उन्होंने अयोध्या के ऐतिहासिक फैसले के बाद विपक्षी दलों की कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा। इसके अलावा सरमा ने पूर्व न्यायाधीश और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के पूर्व प्रमुख न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा के मामले का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि न्यायाधीश को उनके न्यायिख निर्णयों और कार्यपालिका से निकटता के कारण निशाना बनाया गया था, जबकि वह हमेशा की अपने संवैधानिक कर्तव्यों का पालन करते रहे।

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इसके अलावा भी असम के मुख्यमंत्री ने कई और केसों का भी जिक्र करते हुए लिखा कि यह पैटर्न कांग्रेस के भीतर न्यायपालिका की विश्वसनीयता को चुनौती देने की प्रवृत्ति का दर्शाता है। जब भी राजनैतिक निर्णय उनके खिलाफ होते हैं तो वह आलोचना करने लगते हैं। इस प्रकार कि चुनिंदा आलोचना न केवल न्यायिक प्रक्रियाओं की पवित्रता का कमजोर करती है, बल्कि लोकतांत्रिक बातचीत के लिए भी एक चिंताजनक मिसाल बनाती हैं।

सरमा की इस पोस्ट को रिट्वीट करते हुए सांसद दुबे ने फानी बदायुनी द्वारा लिखा एक शेर साझा किया। "ज़िंदगी जबर है जबर के असर नहीं, है इस कैद तो ज़ंजीर भी दरकार नहीं"।

सांसद की यह टिप्पणी मोटे तौर पर भाजपा की उन राजनैतिक मजबूरियों का उल्लेख करती नजर आती हैं जिसके कारण भाजपा नेतृत्व को उनकी टिप्पणियों से अलग होना पड़ा था।