दिल्ली LG वीके सक्सेना के मानहानि मामले में मेधा पाटकर को अदालत से डबल राहत
दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना की मानहानि मामले में साकेत कोर्ट ने आज सोशल एक्टिविस्ट मेधा पाटकर को डबल राहत दी है। कोर्ट ने मेधा पाटकर पर लगाए गए जुर्माने को घटाने के साथ ही सजा से भी राहत प्रदान कर दी है।

दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना की मानहानि मामले में साकेत कोर्ट ने आज सोशल एक्टिविस्ट मेधा पाटकर को डबल राहत दी है। कोर्ट ने मेधा पाटकर पर लगाए गए जुर्माने की राशि 10 लाख रुपये से घटाकर 1 लाख रुपये कर दी। इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि मेधा पाटकर की उम्र को देखते हुए उन्हें एक साल के लिए प्रोबेशन पर रखा जाएगा। इससे पहले सेशन कोर्ट ने उनकी दोषसिद्धि को बरकरार रखा था।
साकेत कोर्ट के एडिशनल सेशन जज विशाल सिंह की अदालत ने 70 वर्षीय मेधा पाटकर को एक साल के अच्छे आचरण की शर्त के साथ प्रोबेशन पर रिहा करने का आदेश दिया। इसके लिए उन्हें अच्छे आचरण का बॉन्ड भरकर देना होगा। कोर्ट ने उनकी उम्र, पहले कोई दोष सिद्ध न होने और उनके द्वारा किए गए अपराध को देखते हुए उन्हें यह राहत दी है। साथ ही कोर्ट ने उन पर लगाए गए 10 लाख रुपये के जुर्माने को भी घटाकर 1 लाख रुपये कर दिया है, जिसे उन्हें जमा करना होगा।
साल 2000 में दर्ज कराए गए इस मामले में मजिस्ट्रेट कोर्ट ने उन्हें दोषी करार देते हुए पांच महीने कैद की सजा सुनाई थी। मेधा पाटकर ने सजा और दोषसिद्धि को चुनौती देते हुए याचिका दायर की थी। मेधा पाटकर आज वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये कोर्ट में पेश हुईं।
बता दें कि, प्रोबेशन अपराधियों के साथ गैर-संस्थागत व्यवहार का एक तरीका है। यह सजा का एक सशर्त निलंबन है, जिसमें दोषी ठहराए जाने के बाद अपराधी को जेल भेजने के बजाय अच्छे आचरण के बॉन्ड पर रिहा कर दिया जाता है।
पिछले सप्ताह कोर्ट ने मानहानि के अपराध के लिए उन्हें दोषी ठहराने के मजिस्ट्रेट कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा था। वीके सक्सेना ने 24 नवंबर, 2000 को पाटकर के खिलाफ मानहानिकारक प्रेस रिलीज जारी करने के लिए नेशनल काउंसिल ऑफ सिविल लिबर्टीज के अध्यक्ष के रूप में मामला दायर किया था।
पिछले साल 24 मई को मजिस्ट्रेट कोर्ट ने कहा था कि पाटकर के बयानों में सक्सेना को 'कायर' कहा गया था और उन पर हवाला लेन-देन में शामिल होने का आरोप लगाए गए था, जो न सिर्फ अपमानजनक था, बल्कि उनके बारे में नकारात्मक धारणाओं को भड़काने के लिए भी गढ़े गए थे। साथ ही, यह भी आरोप लगाया गया था कि शिकायतकर्ता गुजरात के लोगों और उनके संसाधनों को विदेशी हितों के लिए ‘गिरवी’ रख रहे हैं, जो उनकी ईमानदारी और सार्वजनिक सेवा पर सीधा हमला है।
सजा पर बहस 30 मई को पूरी हो गई थी, जिसके बाद सजा पर फैसला 7 जून को सुरक्षित रखा गया था। 1 जुलाई को अदालत ने उन्हें पांच महीने के साधारण कारावास की सजा सुनाई थी, जिसे उन्होंने सेशंस कोर्ट में चुनौती दी थी।