दिल्ली में 3 वितरकों के कब्जे में था शराब का कारोबार, कैग रिपोर्ट से बड़ा खुलासा
दिल्ली विधानसभा के सदन में मंगलवार को पेश की गई कैग रिपोर्ट से बड़ा खुलासा हुआ है। कैग की रिपोर्ट के अनुसार, केवल तीन वितरक दिल्ली में कुल शराब सप्लाई चेन के 71 प्रतिशत से अधिक हिस्से को नियंत्रित कर रहे थे।

दिल्ली विधानसभा के सदन में मंगलवार को पेश की गई कैग रिपोर्ट से बड़ा खुलासा हुआ है। कैग की रिपोर्ट के अनुसार, केवल तीन वितरक दिल्ली में कुल शराब सप्लाई चेन के 71 प्रतिशत से अधिक हिस्से को नियंत्रित कर रहे थे। नीति में निर्माता और थोक विक्रेताओं के बीच एक विशेष व्यवस्था अनिवार्य कर दी गई, जिस कारण किसी विशेष निर्माता के सभी ब्रांडों की पूरी सप्लाई केवल एक थोक विक्रेता द्वारा नियंत्रित की जा रही थी।
शराब के टॉप 10 ब्रांड की दिल्ली में बिकी शराब में 46.46 प्रतिशत हिस्सेदारी थी, जबकि शीर्ष 25 ब्रांडों की हिस्सेदारी 69.50 प्रतिशत थी। विशेष रूप से इंडोस्पिरिट (76 ब्रांड) द्वारा आपूर्ति की गई, उसके बाद महादेव लिकर (71 ब्रांड) और ब्रिंडको (45 ब्रांड) का स्थान रहा। शराब की बिक्री में इन तीन थोक विक्रेताओं की हिस्सेदारी 71.70 प्रतिशत रही।
262 दुकानें निजी व्यक्तियों को दीं : रिपोर्ट में कहा गया है कि इसी तरह खुदरा दुकानों के उद्देश्य से दिल्ली को 32 क्षेत्रों (जिसमें 849 दुकानें हैं) में विभाजित किया गया था, जिनके लाइसेंस 22 संस्थाओं को निविदा के माध्यम से दिए गए थे, जबकि 377 खुदरा दुकानें चार सरकारी निगमों द्वारा संचालित की जा रही थीं और 262 खुदरा दुकानें पहले निजी व्यक्तियों को आवंटित की गई थीं।
लैब नहीं बनाई : थोक विक्रेताओं को मुनाफा 5 फीसदी से बढ़ाकर 12 फीसदी कर दिया गया। तर्क दिया गया कि गुणवत्ता जांच प्रणाली के लिए गोदामों में प्रयोगशालाओं की स्थापना जरूरी थी, लेकिन कोई लैब नहीं बनाई गई। इससे थोक लाइसेंसधारियों का लाभ बढ़ा, परंतु राजस्व गिर गया।
जांच और अग्रिम लागत की अनदेखी : कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘आप’ सरकार ने बिना उचित जांच के खुदरा शराब लाइसेंस जारी कर दिए, जिसमें वित्तीय विवरण, आपराधिक रिकॉर्ड आदि पर ध्यान नहीं दिया गया। शराब क्षेत्र को संचालित करने के लिए सौ करोड़ से अधिक का प्रारंभिक निवेश आवश्यक था, लेकिन कोई वित्तीय पात्रता मानदंड नहीं रखा गया। इसके चलते कमजोर वित्तीय पृष्ठभूमि वाली संस्थाओं को लाइसेंस मिल गए।
पारदर्शिता की कमी और शराब कार्टेल का निर्माण : नई आबकारी नीति ने एक ही आवेदक को 54 शराब विक्रय केंद्र संचालित करने की अनुमति दी। इससे एकाधिकार और कार्टेल बनाने का रास्ता खुल गया। पहले सरकार निगम 377 खुदरा विक्रय केंद्र चलाते थे, जबकि 262 निजी व्यक्तियों द्वारा संचालित किए जाते थे। नई नीति के तहत 32 खुदरा जोन बनाए गए, जिनमें 849 विक्रय केंद्र शामिल थे, परंतु केवल 22 निजी संस्थाओं को लाइसेंस दिए गए।
गठजोड़ करने के लिए मजबूर किया : शराब नीति ने निर्माताओं को एक ही थोक विक्रेता के साथ गठजोड़ करने के लिए मजबूर किया, जिससे कुछ गिने-चुने थोक विक्रेता आपूर्ति शृंखला पर हावी हो गए। 367 पंजीकृत भारतीय निर्मित विदेशी शराब ब्रांडों में से केवल 25 ब्रांडों ने दिल्ली की कुल शराब बिक्री का 70 फीसदी हिस्सा ले लिया। केवल तीन थोक विक्रेताओं ने 71 फीसदी से अधिक आपूर्ति को नियंत्रित किया। इन तीनों थोक विक्रेताओं के पास 192 ब्रांडों के विशिष्ट आपूर्ति अधिकार थे, जिससे यह तय किया जा सकता था कि कौन से ब्रांड सफल होंगे और कौन से नहीं। उपभोक्ताओं के पास सीमित विकल्प थे और शराब की कीमतें कृत्रिम रूप से बढ़ाई जा सकती थीं।
देशी शराब की तस्करी नहीं रोकी गई
रिपोर्ट में कहा गया है कि आबकारी खुफिया ब्यूरो (ईआईबी) द्वारा देशी शराब की तस्करी पर सक्रिय कार्रवाई नहीं की गई। जब्त स्टॉक में 65 फीसदी देशी शराब थी। शराब की केवल जब्ती हुई, लेकिन आगे कोई कदम नहीं उठाया गया। कुछ विशेष क्षेत्रों में बार-बार तस्करी हो रही थी। फिर भी सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया, जो कि लापरवाही या संभावित मिलीभगत को दर्शाता है।
गुणवत्ता में भी गंभीर लापरवाही बरतने का आरोप
कैग की रिपोर्ट ने शराब की गुणवत्ता पर निगरानी को लेकर भी लापरवाही बरतने की बात कही गई है। रिपोर्ट के मुताबिक, गुणवत्ता परीक्षण नियमों का उल्लंघन किया गया। गुणवत्ता परीक्षण रिपोर्ट या तो अनुपस्थित थीं या भारतीय मानक ब्यूरों के मानकों के अनुरूप नहीं थी। कुछ लाइसेंसधारियों द्वारा जमा की गई परीक्षण रिपोर्ट ऐसी प्रयोगशालाओं से आईं थी, जो राष्ट्रीय परीक्षण और अंशाकन प्रयोगशाला प्रत्यायन बोर्ड (एनएबीएल) द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं थीं। 51 फीसदी विदेशी शराब परीक्षण के मामले में रिपोर्ट या तो सालभर से ज्यादा पुरानी थीं या रिपोर्ट ही नहीं थीं। इससे शराब की गुणवत्ता नियंत्रण के प्रति लापरवाही का पता चलता है। रिपोर्ट के मुताबिक, भारी धातुओं और मिथाइल अल्कोहल जैसे हानिकारक तत्वों की रिपोर्ट भी या तो अनुपस्थित थीं या उन्हें नजरअंदाज किया गया। वहीं, आबकारी विभाग ने एल-1 लाइसेंसधारियों को उच्च मूल्य वाली शराब के लिए अपनी खुद की एक्स-डिस्टिलरी प्राइस तय करने की अनुमति दे दी। इससे कीमत में हेराफेरी का रास्ता खुल गया।
पूर्ववर्ती सरकार ने नियमों का उल्लंघन किया
विजेंद्र गुप्ता, अध्यक्ष, दिल्ली विधानसभा ने कहा, ''मैं नई सरकार को बधाई देता हूं कि हाईकोर्ट के निर्देशों के अनुपालन में कैग रिपोर्टें आज सदन में प्रस्तुत की जा रही हैं। मुझे आशा है कि सदस्य सीएजी की रिपोर्ट के निष्कर्षों पर सार्थक चर्चा करेंगे। पिछली सरकार ने हाईकोर्ट के कड़े निर्देशों के बाद भी इस रिपोर्ट को रखने में देरी की। वर्ष 2017-2018 से संबंधित सीएजी रिपोर्टें सदन में प्रस्तुत नहीं की गईं। उस समय के विपक्षी विधायकों ने लगातार यह मुद्दा उठाया था। मुझे इस बात को लेकर आक्रोश है कि सीएजी रिपोर्टों को दबाया गया और पूर्ववर्ती सरकार द्वारा सीएजी रिपोर्टों को सदन में प्रस्तुत न करके जानबूझकर और सुनियोजित रूप से संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन किया गया।''
संयुक्त उद्यम दिखाकर अपने दोस्तों को काम दिया : सिरसा
मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने कहा कि तत्कालीन ‘आप’ सरकार ने शराब का धंधा करके सिर्फ घोटाला किया है। शराब के थोक विक्रेता का मार्जिन लाभ पांच फीसदी से बढ़ाकर 12 फीसदी कर दिया। उसके पीछे तर्क क्या दिया, शराब की जांच करानी होती है तो प्रयोगशाला में खर्च होता है। उन्होंने कहा कि इनकी शराब नीति में है कि शराब निर्माता थोक विक्रेता या रिटेलर नहीं हो सकता है, मगर इन्होंने घोटाले के लिए उसका रास्ता भी निकाल लिया। संयुक्त उद्यम दिखाकर अपने दोस्तों को काम दिया।
बाबा साहेब आंबेडकर की तस्वीर का सहारा ले रहे : प्रवेश वर्मा
लोक निर्माण विभाग मंत्री प्रवेश वर्मा ने सीएजी रिपोर्ट पर कहा कि पिछली सरकार ने शिक्षा की बात करके शराब घोटाला किया। सिर्फ लोगों को सपने दिखाए और खुद की जेब भरी। शराब नीति में कुल दो हजार करोड़ रुपये से अधिक का घोटाला हुआ है। इन्हें पता था कि कैग रिपोर्ट आने वाली है। इनका भ्रष्टाचार खुलने वाला है तो अपना चेहरा छिपाने के लिए बिना किसी बात के बाबा साहेब की तस्वीर का सहारा ले रहे हैं। उन बाबा साहेब का जिनके संविधान को इन्होंने कभी माना ही नहीं।
कैग रिपोर्ट दबाकर रखी : लवली
गांधी नगर से विधायक अरविंदर सिंह लवली ने चर्चा की शुरुआत की। उन्होंने कहा कि कैग रिपोर्ट को सदन में रखना एक संवैधानिक प्रक्रिया है, मगर आज जो लोग बाबा साहेब की तस्वीर की बात कर रहे हैं उन्होंने ही उस संवैधानिक प्रक्रिया को लागू नहीं किया। जिन लोगों ने 2015 में सत्ता में आने के बाद सुनिश्चित किया कि एक भी कैग रिपोर्ट सदन में ना आए। आज वहीं लोग बाबा साहेब के सपनों की हत्या करके उनके लिए नारे लगा रहे हैं, जो पार्टी कैग रिपोर्ट के आधार पर भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना आंदोलन करके राजनीति में आई, उसी कैग रिपोर्ट को दबाकर बैठी थी।
खजाने को लूटा गया : सूद
शिक्षा मंत्री आशीष सूद ने कहा कि जब हम सड़कों पर शराब घोटाले की बात करते थे तो ये कहते थे कि आंकड़े कहां से लाते हैं। अब कैग रिपोर्ट उन आंकड़ों को सही साबित कर रही हैं। रिपोर्ट बता रही है कि कैसे आबकारी विभाग को लाइसेंस फीस के नाम पर 890 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। इन्होंने सरकारी खजाना लूटा है।