Husband first responsibility is to maintain his legal wife Delhi High Court important decision पति की पहली जिम्मेदारी अपनी कानूनी पत्नी का भरण-पोषण करना, दिल्ली हाईकोर्ट का अहम फैसला, Ncr Hindi News - Hindustan
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पति की पहली जिम्मेदारी अपनी कानूनी पत्नी का भरण-पोषण करना, दिल्ली हाईकोर्ट का अहम फैसला

दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि कोई भी व्यक्ति लिव-इन पार्टनर और उसके बच्चों के खर्च के नाम पर अपनी कानूनी पत्नी को गुजाराभत्ता देने से नहीं बच सकता। पति की पहली जिम्मेदारी अपनी कानूनी पत्नी का भरण-पोषण करना है।

Praveen Sharma लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्ली। हेमलता कौशिकSat, 24 May 2025 08:29 AM
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पति की पहली जिम्मेदारी अपनी कानूनी पत्नी का भरण-पोषण करना, दिल्ली हाईकोर्ट का अहम फैसला

दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि कोई भी व्यक्ति लिव-इन पार्टनर और उसके बच्चों के खर्च के नाम पर अपनी कानूनी पत्नी को गुजाराभत्ता देने से नहीं बच सकता। पति की पहली जिम्मेदारी अपनी कानूनी पत्नी का भरण-पोषण करना है। जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस रेनू भटनागर की बेंच ने दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर के पद पर कार्यरत पति को निर्देश दिया है कि वह पत्नी को निचली अदालत द्वारा तय गुजाराभत्ता रकम का भुगतान करे। प्रोफेसर को पिछले छह साल के गुजाराभत्ता रकम की भरपाई पत्नी को करनी है।

दरअसल, इस मामले में प्रोफेसर की दलील थी कि वह तकरीबन 62 हजार रुपये महीने अपनी लिव-इन पार्टनर और उसके तीन बच्चों के जीवन-यापन के लिए देता है। ऐसे में उसकी आर्थिक स्थिति पत्नी के बकाया गुजाराभत्ते की भरपाई करने की नहीं है। बेंच ने कहा कि कानूनी पत्नी का अपना वजूद होता है। बेशक लिव-इन पार्टनर और उससे जन्मे तीन बच्चे भी उसकी जिम्मेदारी हैं, लेकिन प्राथमिकता कानूनी पत्नी की ज्यादा है।

कमाई कम और खर्च ज्यादा : इस मामले में बेंच ने कहा कि हैरत की बात है कि पत्नी को बकाया गुजाराभत्ता देने से बच रहे प्रोफेसर पति ने अदालत में दायर अपने हलफनामे में मासिक आय 1 लाख 30 हजार बताई है, जबकि होम लोन की किस्तों और अन्य खर्चों को मिलाकर वह मासिक खर्च 1 लाख 75 हजार रुपये बता रहा है। बेंच ने कहा कि ऐसे में 45 हजार रुपये की व्यवस्था को लेकर हलफनामे में कोई जिक्र नहीं है।

योग्य होने और वास्तविक आय में है अंतर : पति की तरफ से दावा किया गया कि उसकी पत्नी खुद कमाकर गुजर-बसर करने योग्य है। इस पर बेंच ने कहा कि कानून में स्पष्ट उल्लेख है कि योग्य होना और वास्तविक कमाई में अंतर होता है। इस समय कानूनी पत्नी की आय का कोई साधन नहीं है। वह पति से गुजाराभत्ता मांगने की हकदार है। इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

बेंच ने निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखा है। प्रोफेसर पति को कहा कि वह मार्च 2019 से जून 2024 के बीच प्रतिमाह पांच हजार रुपये और जुलाई 2024 से अब तक दस हजार रुपये प्रतिमाह के हिसाब से पत्नी को गुजाराभत्ता रकम का भुगतान करेगा।