अंदर के पेज के लिए : 87 साल तक नारी सशक्तीकरण की अगुवा रहीं दादी रतनमोहिनी
राजयोगिनी दादी रतनमोहिनी, जिन्होंने 13 वर्ष की उम्र में ब्रह्माकुमारी संस्था से जुड़कर जीवन समाज कल्याण को समर्पित किया, 101 वर्ष की आयु में निधन हो गईं। उनका जीवन अनुशासन, सेवा और ईश्वर भक्ति का...

- 13 वर्ष की उम्र में ही ब्रह्माकुमारी संस्था से जुड़ गईं - पूरा जीवन अनुशासन, सेवा और ईश्वर भक्ति का प्रतीक रहा
- 101 साल की उम्र में ली अंतिम सांस
जयपुर, एजेंसी।
राजस्थान के प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की प्रमुख रहीं राजयोगिनी दादी रतनमोहिनी का पूरा जीवन अनुशासन, सेवा और ईश्वर भक्ति का प्रतीक रहा। मात्र 13 वर्ष की आयु में ही ब्रह्माकुमारीज से जुड़ गई थीं और उसके बाद जीवन को समाज कल्याण को समर्पित कर दिया। दादी रतनमोहिनी का मंगलवार को निधन हो गया।
विश्वविद्यालय से जुड़े अनुयायियों के मुताबिक, 101 वर्ष की आयु में भी दादी की दिनचर्या अलसुबह ब्रह्ममुहूर्त में 3.30 बजे से शुरू हो जाती थी। सबसे पहले वह परमपिता शिव परमात्मा का ध्यान करती थीं। फिर राजयोग मेडिटेशन उनकी दिनचर्या में शामिल रहा। उनके निधन पर आध्यात्मिक जगत में शोक की लहर है।
बचपन का नाम लक्ष्मी था
दादी रतनमोहिनी का जन्म 25 मार्च, 1925 को सिंध हैदराबाद के एक साधारण परिवार में हुआ था। माता-पिता ने उनका नाम लक्ष्मी रखा। बचपन से अध्यात्म के प्रति लगन और परमात्मा को पाने की चाह में मात्र 13 वर्ष की उम्र में लक्ष्मी ने विश्व शांति और नारी सशक्तिकरण की मुहिम में खुद को समर्पित कर दिया।
जब 30 हजार किमी का सफर किया तय
दादी वर्ष 1937 में ब्रह्माकुमारीज की स्थापना से लेकर 2025 तक 87 वर्ष की यात्रा की साक्षी रही हैं। वह पिछले 40 से अधिक वर्ष से संगठन के ही युवा प्रभाग की अध्यक्ष की भी जिम्मेदारी संभाल रही थीं। उनके नेतृत्व में युवा प्रभाग द्वारा देशभर में अनेक राष्ट्रीय युवा पदयात्रा, साइकिल यात्रा और अन्य अभियान चलाए गए। युवा प्रभाग द्वारा दादी के नेतृत्व में 2006 में निकाली गई स्वर्णिम भारत युवा पदयात्रा ने ब्रह्माकुमारीज के इतिहास में एक नया अध्याय लिखा गया। 20 अगस्त, 2006 को मुंबई से यात्रा का शुभारंभ किया गया और 29 अगस्त, 2006 का तीनसुकिया असम में समापन किया गया। स्वर्णिम भारत युवा पदयात्रा द्वारा पूरे देश में 30 हजार किमी का सफर तय किया गया। इसमें पांच लाख ब्रह्माकुमार भाई-बहनों ने भाग लिया। सवा करोड़ लोगों को शांति, प्रेम, एकता, सौहार्द्र, विश्वबंधुत्व, अध्यात्म, व्यसनमुक्ति और राजयोग ध्यान का संदेश दिया गया।
कुछ प्रमुख तथ्य :
- संस्थान में बहनों के प्रशिक्षण और नियुक्ति का कार्यभार दादी ने संभाला और छह हजार सेवा केंद्रों की नींव रखी
- 1985 में दादी के ही नेतृत्व में भारत एकता युवा पदयात्रा निकाली गई। इससे 12,550 किमी की दूरी तय की गई।
- दादी के निर्देशन में करीब 70 हजार किलोमीटर से अधिक की पैदल यात्राएं निकाली गईं
- 20 फरवरी, 2014 को गुलबर्गा विश्वविद्यालय ने दादी रतनमोहिनी को डॉक्टरेट की मानद उपाधि से नवाजा
कोट्:::::::
लोगों को आध्यात्मिक उत्थान के लिए मार्गदर्शन करने के लिए समर्पित जीवन वाली दादी रतनमोहिनी ने बुद्धि से दुनिया भर में लाखों लोगों के जीवन को प्रकाशित किया। उन्होंने अपनी करुणा से व्यथित आत्माओं को सांत्वना दी। उनके निधन से एक ऐसा शून्य पैदा हो गया है, जो हमें हमेशा पीड़ा देता रहेगा।
- अमित शाह, केंद्रीय गृहमंत्री
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